10 मिनटों में नितिन की कहानी खत्म हो गई. वह जमशेदपुर में एक कर्तव्यनिष्ठ और होनहार बैंक अधिकारी था. मध्यरात्रि के अंधेरे में टाटारांची हाइवे पर उस की मोटरसाइकिल की सामने से आती हुई स्कौर्पियो से टक्कर हो गई. वह गिर पड़ा, लुढ़कते हुए उस का सिर माइलपोस्ट से जा टकराया और ब्रेन हैमरेज हो गया. रक्त अधिक बहने के कारण 10 मिनटों में ही उस के प्राण पखेरू उड़ गए. स्कौर्पियो वाला वहां से सरपट भाग गया. 38 वर्षीय नितिन की 25 वर्षीया पत्नी रूमी विवाह के 2 वर्षों के भीतर पति खो बैठी.

ऐक्सिडैंट और मौत की खबर रात को जमशेदपुर पहुंचते ही घर के सभी सदस्य दहाड़ें मारमार कर रोने लगे. किसी को भी सुध नहीं थी. नितिन की मां और रूमी की तो रोरो कर हालत खराब हो गई.

सुबह हो चुकी थी. महल्ले वालों ने शोक समाचार सुना और वे मातमपुरसी के लिए आने लगे. नितिन के पिता विरेंद्र बाबू अपनी पत्नी को सांत्वना दे रहे थे, गले लगा रहे थे. लेकिन रूमी अकेली पड़ गई थी, किसी को उसे समझाने की सुध नहीं रही. आने वाले कईर् पड़ोसी फुसफुसाहट में बातें कर रहे थे, उन के हावभाव से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो रूमी ही नितिन की मृत्यु का कारण हो.

समय बीता, वर्ष बीते, विरेंद्र बाबू और उन की पत्नी रूमी का खयाल बेटी जैसा रख रहे थे.

एक दिन दोनों ने रूमी को जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराया. विरेंद्र बाबू रूमी से बोले, ‘‘बेटे, तुम स्नातक की पढ़ाई पूरी कर लो, जो होना था हो गया, तुम अपने पैरों पर खड़ी होने का प्रयास करो.’’

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