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लेखिका- डा. के. रानी

आते ही नरेन ने पिछले दिनों के अनुभव रीमा को सुनाने शुरू कर दिए. रीमा को अपने पर ही आश्चर्य हो रहा था कि आज नरेन की बातों में उसे यदि रस नहीं आ रहा था तो खिन्नता भी नहीं हो रही थी. वह नरेन की बातों को सुन कर भी नहीं सुन रही थी. उस का ध्यान कहीं और था. वह सोच रही थी, ”अनिल जब बात करते हैं तो दूसरे की रुचि का पूरा ध्यान रखते हैं. उन की बातें कहीं से भी साथ वाले की रुचि का अतिक्रमण नहीं करतीं और नरेन? वे तो सिर्फ अपनी इगो को तुष्ट करने वाली बातें ही करते हैं, दूसरे की रुचि उस में हो या न हो.

पूरी शाम नरेन की बातों में ही गुजर गई. रात को बिस्तर पर लेटे हुए भी रीमा अनिल के स्पर्श को भूल नहीं पा रही थी. नरेन के साथ ढेर सारा प्यार बांटते हुए भी कहीं अनिल की याद उस की योजना को बढ़ा रही थी.

दूसरे दिन जब नरेन औफिस से लौटे तो साथ में अनिल भी थे. अनिल को देख कर रीमा का चेहरा खिल उठा. तभी अनिल बोल उठे, ”नरेन, मैं तुम्हारी अनुपस्थिति में यहां आता रहा हूं. मैडम ने बता ही दिया होगा. तुम्हें बुरा तो नहीं लगा.“

रीमा ने घूर कर अनिल को देखा, जैसे उस की चोरी पकड़ ली गई हो. नरेन ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया. अनिल व नरेन घंटों औफिस की बातें करते रहे. दूर बैठी रीमा अनिल के सामीप्य के लिए तरसती रही. अनिल की स्पष्टवादिता ने रीमा के अंतर्मन को कहीं शांत भी कर दिया था. अनिल का मान उस की नजर में पहले से अधिक बढ़ गया. वह सोचने लगी, ‘यह व्यक्ति जीवन में किसी को धोखा नहीं दे सकता.’

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