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‘‘हां, श्यामा तो जिस समय रतन सिंह तुम्हारे खेत पर आया, तब तुम क्या रही थी?’’

मुवक्किला चुप थी. मैं ने थोड़ा सा परदा उठा कर उस स्त्री को देखा जिस को बलात्कार के मुकदमे में मेरे पति अदालत में दिया जाने वाला बयान सिखला रहे थे.

‘‘हां, बोलो, क्या कहोगी?’’

‘‘साहब, उस समय मैं खेत पर नहीं थी.’‘‘नहीं, श्यामा, यह बयान नहीं चलेगा. मुकदमा हारना है क्या? पुलिस में लिखे बयान को भूल जाओ. तुम्हें तो यह कहना है कि उस समय मैं खेत पर थी और तभी रतन सिंह...

‘‘ठीक है, साहब.’’

रात को मैं ने सुयश पति से पूछा, ‘‘क्यों, तुम्हारा यह सुबह वाला बलात्कार का मुकदमा सच्चा है या ?ाठा? किसी को फंसा तो नहीं रहे हो?’’

ये चौंक कर बोले, ‘‘लगता है तुम्हारी इस मुकदमे में काफी रुचि पैदा हो गई है.’’

‘‘नहींनहीं, भला मैं इस में क्यों रुचि लेने लगी? मैं तो यों ही जिज्ञासा शांत कर रही हूं.’’

ये सुन कर यह हंसने लगे. फिर कुछ देर बाद बोले, ‘‘मुकदमा तो एकदम सच्चा है, पर इन

लोगों ने आरंभ में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराते समय अपने बयान बिगाड़ दिए हैं. उन्हें सुधारना तो पड़ेगा ही.’’

‘‘जब इतनी बड़ी गलती हुई है तो तुम कैसे मुकदमा जीतोगे?’’

‘‘अरे, तुम तो वकील और न्यायाधीश की भी बाप हो गईं. यह धंधा तो ऐसा है कि जहां बूंद भर पानी न हो, वहां समुद्र साबित करना पड़ता है.’’

उस समय मेरी सलाह को इन्होंने हवा में उड़ा दिया था.

एक बार मैं ने पूछा था, ‘‘जिंदगीभर ससुरजी के बूते पर जीने का इरादा है? भला इस में हमारी कौन सी शान है? धोती लाना हो तो बाबूजी रुपए देगे. पिक्चर जाना हो तो बाबूजी की इजाजत लो. मैं तो आप की तनख्वाह में जीना चाहती हूं.’’

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