Society Story in Hindi: लोकेशजी परेशान चल रहे हैं बहुत दिन से. जीवन जैसे एक बिंदु पर आ कर खड़ा हो गया है, उन्हें कुछकुछ ऐसा लगने लगा है. समझ नहीं पा रहे जीवन को गति दें भी तो कैसे. जैसे घड़ी भी रुकी नजर आती है. मानो सुइयां चल कर भी चलती नहीं हैं. सब खड़ा है आसपास. बस, एक सांस चल रही है, वह भी घुटती सी लगती है. रोज सैर करने जाते हैं. वहां भी एक बैंच पर चुपचाप बैठ जाते हैं. लोग आगेपीछे सैर करते हैं, टकटकी लगा कर उन्हीं को देखते रहते हैं. बच्चे साइकिल चलाते हैं, फुटबाल खेलते हैं. कभी बौल पास आ जाए तो उठा कर लौटा देते हैं लोकेशजी. यही सिलसिला चल रहा है पिछले काफी समय से.

‘‘क्या बात है, अंकल? कोई परेशानी है?’’ एक प्यारी सी बच्ची ने पास आ कर पूछा. नजरें उठाईं लोकेशजी ने. यह तो वही प्यारी सी बच्ची है जिसे पिछले सालभर के अंतराल से देख रहे हैं लोकेशजी. इसी पार्क में न जाने कितनी सैर करती है, शायद सैर पट्टी पर 20-25 चक्कर लगाती है. काफी मोटी थी पहले, अब छरहरी हो गई है. बहुत सुंदर है, मौडल जैसी चलती है. अकसर हर सैर करने वाले की नजर इसी पर रहती है. सुंदरता सदा सुख का सामान होती है यह पढ़ा था कभी, अब महसूस भी करते हैं. जवानी में भी बड़ी गहराई से महसूस किया था जब अपनी पत्नी से मिले थे. बीच में भूल गए थे क्योंकि सुख का सामान साथ ही रहा सदा, आज भी साथ है. शायद सुखी रहने की आदत भी सुख का महत्त्व कम कर देती है. जो सदा साथ ही रहे उस की कैसी इच्छा.

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