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मैं अपने कमरे में पहुंचा और अपना सामान चैक किया. चंद महंगे कपड़े... पैसे... बस इतना ही... शाम ढलते ही अंधेरा घिरने लगा. मुझे नहीं पता कि मैं कितनी देर तक समुद्र में बैठा रहा और लहरों को लगातार तट से टकराते देखता रहा. आधी रात होनी चाहिए. मैं उस समय का इंतजार कर के बैठा रहा.

बहुत हो गया... यह जीवन... मैं ने अपनेआप से कहा और कुदरत से क्षमायाचना करते हुए चलने लगा.

समुद्र की गहराई उन जगहों पर ज्यादा नहीं होती जहां पैर सामने रखे जाते थे. मैं सागर की ओर चलने लगा. लहरें दौड़ती हुई मेरे पास आ कर मु   झे छूने लगीं और मु   झे ऐसा लगा जैसे मु   झे भीतर आने का निमंत्रण दे रही हों.

पैरों में सीप और पत्थर चुभ गए. छोटीछोटी मछलियों को मैं महसूस कर सकता था. आगेआगे मैं चहलकदमी करने लगी और गरदन तक पानी आ गया.

कुछ पुरानी यादें मु   झे उस वक्त घेरने लगीं और मेरे मन में अजीबोगरीब खयाल आने लगे. मगर मैं नहीं रुका, मैं चलता रहा.

खारा पानी मुंह में घुस गया, आंखों में पानी आने लगा. ऐसा लग रहा था जैसे कोई मु   झे किसी अवर्णनीय गहराई तक खींच रहा हो.

लहरों की गति अधिक है, एक खींच, एक टक्कर, एक लात, लहरें पानी में मेरे साथ प्रतिस्पर्धा करने लगीं जैसे फुटबौल खिलाड़ी गेंद को लात मार रहे हों.

मेरी स्मृति धूमिल हो रही थी. छाती, नाक, आंखें, कानों, मुंह में खारा पानी भर कर मु   झे नीचे और नीचे धकेल रहा था.

अचानक मु   झे ऐसा लगा कि कोई मजबूत हाथ मु   झे गहराई से ऊपर खींच रहा हो. मेरी याददाश्त रुक गई.

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