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तीसरे दिन जब पीयूष का बुखार उतर गया तो वह औफिस पहुंची. आधा दिन

बीत गया, मगर शलभ ने कोई खोजखबर नहीं ली. पैंडिंग काम ज्यादा होने की वजह से लंच तक वह भी अपनी सीट से उठ नहीं पाई. लंच में जब वह शलभ के कमरे में पहुंची तो वह गायब था. उस के स्टाफ ने बताया कि वह किसी गैस्ट के साथ बाहर गया है. नेहा उदास सी वापस अपनी सीट पर लौट आई. शाम को उस ने शलभ को फोन किया तो उस ने बताया कि वह अभी भी बाहर है सो बात नहीं कर सकता. इसी तरह

2-3 दिन तक वह नेहा को इग्नोर करता रहा. अंत में एक दिन नेहा सुबहसुबह उस के कैबिन में पहुंच कर उस का वेट करने लगी.

शलभ उसे देख कर हौले से मुसकराते हुए हालचाल पूछने लगा. तभी चपरासी 2 कप चाय रख गया.

चाय पीते हुए नेहा ने सवाल किया, ‘‘शलभ याद है उस दिन तुम मु?ो अपने पेरैंट्स से मिलवाने की बात कर रहे थे. आज मेरे पास समय है. शाम वाली मीटिंग कैंसिल हो गई. तुम्हारा भी आज कोई इंगेजमैंट नहीं. कहीं बाहर चलते हैं. मु?ो तुम्हें अपने बारे में कुछ बताना भी था. फिर तुम्हारे पेरैंट्स से भी मिल लूंगी.’’

‘‘सौरी यार पर अब मु?ो तुम्हें अपने पेरैंट्स से मिलवाने में कोई दिलचस्पी नहीं.’’

‘‘मगर क्यों?’’ चौंकते हुए नेहा ने पूछा.

‘‘मैं जिस मकसद से मिलवाना चाहता था वह मकसद ही खत्म हो चुका है,’’ शलभ ने सपाट सा जवाब दिया.

‘‘क्या मैं जान सकती हूं शलभ, तुम मु?ो इस तरह ट्रीट क्यों कर रहे हो? कई दिन से नोटिस कर रही हूं, तुम मु?ो इग्नोर कर रहे हो.’’

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