‘‘तु?ो देखने,’’ चंदन को भी मस्ती सू?ा. ‘‘चल फिर बैठा रह,’’ कमला के हाथ सड़क पर ?ाड़ू चला रहे थे पर आंखें अब चंदन पर टिकी थीं. आज उस ने उसे ध्यान से देखा, उसे चंदन अच्छा लगा. उसे याद आया, यह तो रोज ही इस समय गार्डन के बाहर इधरउधर दिख ही जाता है.
उस ने ?ाड़ू हाथ में लिएलिए चंदन के पास जा कर पूछा, ‘‘क्या सचमुच मु?ो देखने आता है?’’
‘‘और क्या?’’
‘‘संतू को पता चल गया तो तु?ो पीटेगा.’’
‘‘तू बचा लेना.’’
‘‘वह बहुत अच्छा है, किसी को कुछ नहीं कहता है,’’ पीले रंग का सलवार सूट, उस पर कंधे पर लटके गुलाबी दुपट्टे को कमर में खोंसे, हाथ में लंबी सी ?ाड़ू लिए, पति की पैरवी करती सांवलीसलोनी सी कमली उसे भा गई. यों तो दिन में भी सब का एकदूसरे से कई बार आमनासामना होता था पर बात आज हो रही थी.
शकुंतला थोड़ी दूर पर दूसरी सड़क पर ?ाड़ू लगा रही थी. कमला को चंदन से बात करने में बड़ा रस मिला. जब से मुंबई आई थी, संतू भी व्यस्त होता गया था. वह यहां से जा कर सोता, फिर रात में किसी दूसरी सोसाइटी में वाचमैन की ड्यूटी करता. सुबह 7 बजे आता, 1 घंटा सोता, फिर यहां आ जाता. कुछ दिन से उस के मिजाज भी बदलेबदले से थे.
कमला तेज लड़की थी. उस की अपने जैसे कई लोगों से जानपहचान हो गई थी. उसे ‘कामधेनु’ में चल रही सब हलचल पता होती और अब उस का सब से बड़ा जासूस था, चंदन. चंदन अब उस के लिए चंदन नहीं, चंदू हो गया था. जैसे संतोष को वह प्यार से संतू कहती, अब चंदन को चंदू कहती.