कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

मैडम लोगों ने अपनीअपनी सहेलियों को बताया, सब नीचे आने लगीं. सब कोचटखारे भरे अच्छे मनोरंजन की चाह थी. आधुनिक, सभ्य, शिष्ट लोगों की सोसाइटी में बहुत दिनों बाद ऐसा मजमा लगा था. भीड़ लग गई. सौमिल की गरजती हुई रोबदार आवाज आई, ‘‘कहां हैं दोनों? अनिल, दरवाजा खोलो.’’

अनिल के दरवाजा खोलते ही कमली और चंदू चुपचाप बाहर निकल कर खड़े हो गए. एक मैडम ने डांटा, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आई, कमली?’’

‘‘यह कितनी बेशर्म है.’’

‘‘बाहर निकालो इसे. ऐसी औरत यहां काम नहीं करेगी.’’

‘‘चलो, भागो यहां से. तुम दोनों की छुट्टी.’’

‘‘रुको. संतू को बुलाते हैं, अनिल, संतू को बुला कर लाओ.’’

कमली और चंदू अभी तक चुप खड़े थे.

बहुत देर बाद कमली ने सब पर नजर डाली. देखा, अब तक संतू भी उस के सामने आ कर खड़ा हो गया था और उसे गुस्से में घूरता हुआ उस के बिलकुल पास आया और उसे मारने के लिए जैसे ही संतू ने हाथ उठाया, कमली ने उस का हाथ बीच में ही रोक लिया और सौमिल की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘चेयरमैनजी, हम से गलती इतनी ही हुई कि हम सोसाइटी के वाशरूम में साथ चले गए. मिलने की और कोई जगह नहीं सम?ा आई.’’

‘‘बस यही गलती है तुम्हारी? संतू के साथ होते हुए चंदू के साथ अंदर बंद हो, बेशर्म, शर्म नहीं आ रही?’’ एक आवाज आई.

‘‘आप बड़े लोग हो, साहब. हम छोटे लोग तो आप से सीखते हैं. इतने दिन से यहां काम करते हुए आप में से कई के बारे में बहुत कुछ पता चला है साहब,’’ कहतेकहते कमली ने जानबू?ा कर कुछ साहब और कुछ मैडम लोगों को शरारत से देखा और मुसकरा दी और फिर आगे कहने लगी, ‘‘यह संतू भी कहां क्या कर रहा है, रात में कहां की वाचमैनगिरी हो रही है, पता है.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...