‘‘नेहा, वादा करो तुम कभी सादगी नहीं अपनाओगी. मैं तुम्हें हमेशा लाल जोड़े में ही सजाधजा देखना चाहता हूं सम?ा,’’ अनिल का अनुरोध अजीब सा था. उस के युवा पति की इस वक्त यह कैसी मांग है. अनिल की लड़खड़ाती आवाज उस के कानों में देर तक गूंजती रही और उस के साथ ही डाक्टर की बात भी, ‘‘नेहा, आप अनिल से आखिरी बार मिलना चाहें तो…’’

एक लड़की चाहे तो क्या नहीं कर सकती. पति को खोने के बाद भी उस ने हिम्मत नहीं हारी वह कर दिखाया जिस की दाद हरकोई देने लगा था…

आखिरी बार शब्द उस की रूह को कंपाने के लिए काफी थे. उसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. वह तो जैसे किसी चमत्कार की प्रतीक्षा में थी. सबकुछ ठीक हो जाएगा और अनिल अस्पताल से सकुशल घर आ जाएंगे. वह उन के मनपंसद लाल जोड़े में उन का स्वागत करेगी मगर अफसोस कि अब किसी चमत्कार की कोई गुंजाइश शेष नहीं रही. डाक्टर ने साफसाफ कह दिया कि अनिल अपनी आखिरी सांसें ले रहा है. यह सुन कर एक बार को ऐसा लगा जैसे उस का शरीर अपनी ही जगह पर जम गया. हाथपांव ने काम करना बंद कर दिया. भला कौन सी ऐसी पत्नी होगी जो भरी जवानी में पति का साथ छूटने को समान्य तरीके से ले. आंखों के आगे जैसे अंधेरा सा छा रहा था कि तभी उस की नजर कैलेंडर पर पड़ी.
ओह, आज की तिथि का वह बेसब्री से प्रतीक्षा करता था.

उस ने फटाफट अपनी आंखों के आंसू पोंछे. वह अपना वादा भला कैसे तोड़ सकती है. बाद में जो भी हो फिलहाल अपने पति को खुशीखुशी विदा करेगी. उस ने अपना कबर्ड खोला तो सामने ही लाल जोड़ा टंगा दिख गया. ऐनिवर्सरी नजदीक थी तभी तो अनिल ने उस के लिए ड्राईक्लीन करा कर रखा था. जाने कहां से साहस आया और सोलहशृंगार कर तैयार हो गई. कार की चाबी उठा ली और निकल पड़ी. अटलांटा शहर बहुत बड़ा तो है नहीं.

लोग मुड़मुड़ कर उस के लिबास को देख रहे थे पर उसे तो जैसे कुछ भी नहीं सू?ा रहा था. रास्ते में 4 सिगनल पड़े. सब की अजीब नजरें चुभती रहीं. लोगों को उस का लाल रंग अटपटा लग रहा था. जहां ग्रे, नीले व काले कपड़े ही ज्यादा से ज्यादा पहने जाते हैं, सफेद रंग सुहाग की निशानी हो वहां सुर्ख लाल रंग का जोड़ा और इतना सारा सोना पहने कोई कार चलाता दिखे तो अचरज होना स्वाभाविक ही है.

यह कहानी अटलांटा स्थापित एक इंजीनयर की है जो मूल निवासी आंध्र प्रदेश के एक गांव का था. वहां के लोग शादीब्याह अकसर रिश्तेदारों के बीच निबटाते हैं ताकि जगह, जमीन, सोना सब घर का घर में ही रह जाए. नेहा की मां ने भी ऐसा ही रिश्ता देख रखा था. अनिल रिश्ते में नेहा का मामा लगता था. उस ने इंजीनियरिंग के बाद न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की डिगरी पूरी की. जब कैंपस सलैक्शन से जौब लग गई तो घर वालों ने उस का ब्याह नेहा के साथ तय कर दिया.

परिवार वालों ने सोचा कि बारबार आनाजाना क्यों करना है, आया है तो दुलहन को ले कर ही वापस जाए. दूल्हा 25 का और दुलहन मात्र 18 वर्ष की. वैसे तो यह विवाह की उम्र नहीं थी पर नेहा की मां को यह रिश्ता बेहद पसंद था सो कर दिया. देखनेदिखाने वाली जोड़ी थी दोनों की. प्यार उतना तो था ही जितना किसी भी नवयुगल में होता है. कमसिन नेहा में हया गजब की थी जिस पर अनिल दीवाना हुआ जा रहा था. दिन के 12 बजे की शादी थी. सारे रिश्तेनातेदार जमा थे. ऐसे में सब के सामने ही उस का गुस्ताख सहचर हथेली दबा बैठा.

पहले तो वह सकुचाई और भी ज्यादा खुद में सिमट गई तो अनिल ने ही पहल की, ‘‘सुनो, कयामत ढा रही हो. वादा करो आज के दिन हर साल सुहाग का लाल जोड़ा ही पहनोगी.’’  ‘‘एक ही जोड़े में पूरी जिंदगी बितानी होगा? बड़े कंजूस हो,’’ उस ने ?ाठा गुस्सा दिखाया.

‘‘नए कपड़े खरीद लेना. जो दिल करे पहनना पर मु?ो यह दिन और ये यादगार पल हमेशा ताजा रखने हैं. तुम्हें इसी रूप में बिलकुल ऐसे ही करधनी और बाजुबंद के साथ सजीधजी देखना है.’’ तब से नेहा हर साल दुलहन की तरह सोलहशृंगार कर सजती थी और पति आंखों ही आंखों में उस का शुक्रिया अदा करता था. आज उसे अपने शृंगार में एक वेदना नजर आ रही थी. आखिरी बार दुलहन बनने की वेदना. आंखों में काजल जरूर था मगर सीने में तूफान उठ रहा था. आंखें स्नेहमय सजल नहीं थीं बल्कि दुख से पनीली और चिंता से अंगारे बरसा रही थीं. उसे बारबार स्वयं पर ही क्रोध आ रहा था और एक ही खयाल कि वह भारत क्यों गई. न वह जाती और न ही अपने साथ यह जानलेवा बीमारी लाती.

मार्च, 2022 की बात है. उस की मां जोरो की बीमार पड़ी तो अपनी मां से मिलने की व्याकुलता को रोक नहीं पाई. कोरोना के समय जब अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें बंद हो गईं थीं तभी उस की मां बीमार हुई थीं. ऐसे में जैसे ही फ्लाइट की सुविधा शुरू हुई उस ने मां के आग्रह पर अनिल से जिद्द कर अपने लिए विशाखापट्टनम का टिकट बनवा लिया.

बच्चे सम?ादार थे. मां के बिना भी उन्होंने अपना खयाल रख लिया पर नेहा के बिना अनिल का दिल नहीं लग रहा था. उसे वापस बुलाने के लिए रोज ही फोन करता, ‘‘कब आओगी?’’ ‘‘इतने दिनों बाद आई हूं तो थोड़े दिन और रह लूं.’’

‘‘अपना वादा नहीं निभाओगी?’’

‘‘कैसा वादा?’’

‘‘शादी की वर्षगांठ पर सुहाग के लाल जोड़े में साथ होने का वादा.’’

‘‘अरे हां. टिकट भेज दो,’’ और वह 20 मार्च को लौट आई मगर भारत से नेहा अकेली घर नहीं आई. उस के साथ कोरोना का डैल्टा वैरिएंट भी आ गया था. संभवतया एअरपोर्ट पर संक्रमित हुई थी. घर आने पर 1-2 दिन में कुछ स्वस्थ महसूस करने लगी पर अनिल के सिर में जोरों का दर्द होने लगा. हौस्पिटल जाने पर टैस्ट हुआ तो कोरोना पौजिटिव निकला. उसे तुरंत अस्पताल में दाखिल कर लिया गया. पहले मामला नियंत्रण में ही था मगर इधर 2 दिन पूर्व अनायास हालत बहुत खराब होने लगी तो उसे वैंटीलेटर पर रखा गया. उस की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती ही जा रही थी. अमेरिका में डैल्टा वैरिएंट आया ही नहीं था तो उस से लड़ने में डाक्टर भी अक्षम थे. उन के पास भी इस वैरिएंट की कोई सही दवा नहीं थी.

धीरेधीरे अनिल के शरीर के भीतरी अंग खराब हो रहे थे. जब ठीक होने का कोई आसार न दिखा तो नेहा को फोन किया गया. फोन का रिसीवर हाथ में लिए ही वह जमीन पर बैठ गई थी. कैसे क्या करेगी. पति अस्पताल में आखिरी सांसें ले रहा है. बच्चों का जीवन अधर में है. घर का लोन भी सिर पर है और ऊपर से उस ने अपनी ग्रैजुएशन भी पूरी नहीं की है. लेकिन इस हाल में भी उस की आंखों में अनिल और उन से किए वादे को पूरा करने का जनून था.

जल्द ही गाड़ी अस्पताल के सामने रुकी तो वह ?ाटके से बाहर आई. अस्पताल का स्टाफ बाहर ही खड़ा मिला. उस के पीछेपीछे ही कमरा नंबर-101 में पहुंची जहां अनिल दरवाजे पर टकटकी लगाए उस की राह देख रहा था. दोनों के नयन मिले. 12 बजे की सूई जैसे वे फिर से एकसाथ थे. आंखों में पूरा वैवाहिक सफर नाच गया और वे दोनों फिर से युवा हो उठे.

अनिल कमजोर हो चुका था पर यत्नपूर्वक मुसकराया मानो आंखों ही आंखों में धन्यवाद दे रहा हो. कुछ पल ठहर से गए थे. दोनों ने आंखों ही आंखों में न जाने और कितने जन्मों के वादे कर लिए थे. एकदूसरे को और भी स्नेह व साहस से नवाज दिया था क्योंकि बाहर आने के बाद नेहा बिलकुल नहीं रोई.

पति जातीजाती नजरों से ही अपनी अर्धांगिनी को हिम्मत दे गया जो साथ रह कर उसे देता. नेहा को भी यह संतोष था कि अपने छोटे से वैवाहिक जीवन में उस ने शायद ही अनिल की किसी बात का मान न रखा हो. आखिरी विदाई भी ऐसे दी जैसे सैनिक की पत्नी पति को युद्ध की रणभेरी पर वीरगति के लिए भेजती है. हां, वह वाकई कोई वीरांगना ही थी.

बाहर आते हुए लोगों पर नजर पड़ी. उन की नजरें आश्चर्य से खुली थीं. विदेश में रह रहे जोड़ों के बीच उन की चर्चा जोरों पर थी. क्या ऐसी होती हैं भारतीय स्त्रियां जो सदा सुहागन जीती हैं और अपने सुहाग का मान रखते हुए समग्र जीवन समर्पित रहती हैं. घर आई तो भावुक बच्चे पिता को साथ न पा कर बुरी तरह टूट गए. उस ने उन्हें अपने सीने से लगा कर कहा, ‘‘बस वर्तमान में जीना है. तुम्हारे पिता हर पल को खुशी से जीने की कला सिखा कर गए हैं. हम उन की बताई राह पर ही चलेंगे. जितना रोना है आज ही रो लो. आज के बाद कोई नहीं रोएगा. सब अपने हिस्से की श्रद्धांजलि स्नेहपूर्वक देंगे. यह याद रखना कि वे कहीं नहीं गए हैं. हर वक्त हमारे साथ हैं. आज से मु?ो ही अपना पापा सम?ाना,’’ नेहा ने आंखों ही आंखों में जैसे अनिल को खुद में समा लिया था.

पहली समस्या घर के लोन की थी. एक बार की किश्त तो वहां के हिंदुस्तानी मित्रों ने जुटा कर दे दी. इस के बाद परिवार की ओर से किसी प्रकार का आर्थिक मदद नहीं मिली बल्कि रिश्तेदारों ने बहुत जोर दिया कि वह वापस आ जाए मगर अनिल के बिना भारत आ कर नई शुरुआत करने से बेहतर था वहीं रह कर संघर्ष करना. वह अनिल की विधवा बन कर सहानुभूति नहीं पाना चाहती थी बल्कि उस की सच्ची संगिनी बन उस के अधूरे कार्य पूरे करना चाहती थी. उस ने मन ही मन तय कर लिया था कि उस के बच्चे बिलकुल वैसे ही पलेंगे और बढ़ेंगे जैसा अनिल चाहते थे.

एक तो इस घर में उसे अनिल की उपस्थिति का एहसास होता था और दूसरे वहां अवसर ज्यादा थे. उस ने दिनरात मेहनत किया. बच्चों के स्कूल में काम की. गरमी की छुट्टियों में सुपर मार्केट में सेल्स व सफाई संबंधित काम किए. खाली वक्त में भी घर में नहीं रुकी. जब भी अवसर मिला डौलर कमाए और इस तरह घर के लोन की दूसरी किस्त देने में सक्षम हुई. कुछ और पैसे जमा हो गए तो साथ ही साथ औनलाइन कंप्यूटर की पढ़ाई करने लगी जिस के आधार पर अनिल के मित्रों की मदद से नौकरी पाने में आसानी हुई. बेटी ने भी पढ़ाई के साथसाथ एक पार्ट टाइम नौकरी कर ली. बेटा अपनी पढ़ाई पूरे जोरशोर से करता रहा.
कुछ समय की कड़ी मेहनत रंग लाई. सभी जानने वाले उस पर गर्व करने लगे. रिश्तेदारों के बीच उस की हिम्मत की चर्चा होने लगी कि कैसे अपनी पढ़ाई पूरी करते हुए उस ने अपने बच्चों को संभाला और यह साबित कर दिया कि कोई लड़की चाहे तो क्या नहीं कर सकती. सचमुच उस का लाल जोड़ा ही उस की प्रेरणा बना था. सुहाग खोने के बाद भी उस के पति के प्रेम ने उसे कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया.

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