लेखक- दरख्शां अनवर ‘ईराकी’

‘‘अरे, आप लोग यहां क्या कर रहे हैं? सब लोग वहां आप दोनों के इंतजार में खड़े हैं,’’ हमशां ने अपने भैया और होने वाली भाभी को एक कोने में खड़े देख कर पूछा.

‘‘बस कुछ नहीं, ऐसे ही…’’ हमशां की होने वाली भाभी बोलीं.

‘‘पर भैया, आप तो ऐसे छिपने वाले नहीं थे…’’ हमशां ने हंसते हुए पूछा.

‘काश हमशां, तुम जान पातीं कि मैं आज कितना उदास हूं, मगर मैं चाह कर भी तुम्हें नहीं बता सकता,’ इतना सोच कर हमशां का भाई अख्तर लोगों के स्वागत के लिए दरवाजे पर आ कर खड़ा हो गया.

तभी अख्तर की नजर सामने से आती निदा पर पड़ी जो पहले कभी उसी की मंगेतर थी. वह उसे लाख भुलाने के बावजूद भी भूल नहीं पाया था.

‘‘हैलो अंकल, कैसे हैं आप?’’ निदा ने अख्तर के अब्बू से पूछा.

‘‘बेटी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ अख्तर के अब्बू ने प्यार से जवाब दिया.

‘‘हैलो अख्तर, मंगनी मुबारक हो. और कितनी बार मंगनी करने की कसम खा रखी है?’’ निदा ने सवाल दागा.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? मैं तो कुछ नहीं जानता कि हमारी मंगनी क्यों टूटी. पता नहीं, तुम्हारे घर वालों को मुझ में क्या बुराई नजर आई,’’ अख्तर ने जवाब दिया.

‘‘बस मिस्टर अख्तर, आप जैसे लोग ही दुनिया को धोखा देते फिरते हैं और हमारे जैसे लोग धोखा खाते रहते हैं,’’ इतना कह कर निदा गुस्से में वहां से चली गई.

सामने स्टेज पर मंगनी की तैयारी पूरे जोरशोर से हो रही थी. सब लोग एकदूसरे से बातें करते नजर आ रहे थे. तभी निदा ने हमशां को देखा, जो उसी की तरफ दौड़ी चली आ रही थी.

ये भी पढ़ें- नीड़: सिद्धेश्वरीजी क्या समझ पाई परिवार और घर की अहमियत

‘‘निदा, आप आ गईं. मैं तो सोच रही थी कि आप भी उन लड़कियों जैसी होंगी, जो मंगनी टूटने के बाद रिश्ता तोड़ लेती हैं,’’ हमशां बोली.

‘‘हमशां, मैं उन में से नहीं हूं. यह सब तो हालात की वजह से हुआ है…’’ निदा उदास हो कर बोली, ‘‘क्या मैं जान सकती हूं कि वह लड़की कौन है जो तुम लोगों को पसंद आई है?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. वह देखो, सामने स्टेज की तरफ सुनहरे रंग का लहंगा पहने हुए खड़ी है,’’ हमशां ने अपनी होने वाली भाभी की ओर इशारा करते हुए बताया.

‘‘अच्छा, तो यही वह लड़की है जो तुम लोगों की अगली शिकार है,’’ निदा ने कोसने वाले अंदाज में कहा.

‘‘आप ऐसा क्यों कह रही हैं. इस में भैया की कोई गलती नहीं है. वह तो आज भी नहीं जानते कि हम लोगों की तरफ से मंगनी तोड़ी गई?है,’’ हमशां ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘मगर, तुम तो बता सकती थीं.

तुम ने क्यों नहीं बताया? आखिर तुम भी तो इसी घर की हो,’’ इतना कह कर निदा वहां से दूसरी तरफ खड़े लोगों की तरफ बढ़ने लगी.

निदा की बातें हमशां को बुरी तरह कचोट गईं.

‘‘प्लीज निदा, आप हम लोगों को गलत न समझें. बस, मम्मी चाहती थीं कि भैया की शादी उन की सहेली की बेटी से ही हो,’’ निदा को रोकते हुए हमशां ने सफाई पेश की.

‘‘और तुम लोग मान गए. एक लड़की की जिंदगी बरबाद कर के अपनी कामयाबी का जश्न मना रहे हो,’’ निदा गुस्से से बोली.

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं?है. मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मम्मी की कसम के आगे हम सब मजबूर थे वरना मंगनी कभी भी न टूटने देते,’’ कह कर हमशां ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘देखो हमशां, अब पुरानी बातों को भूल जाओ. पर अफसोस तो उम्रभर रहेगा कि इनसानों की पहचान करना आजकल के लोग भूल चुके हैं,’’ इतना कह कर निदा ने धीरे से अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई.

‘‘निदा, इन से मिलो. ये मेरी होने वाली बहू के मम्मीपापा हैं. यह इन की छोटी बेटी है, जो मैडिकल की पढ़ाई कर रही है,’’ अख्तर की अम्मी ने निदा को अपने नए रिश्तेदारों से मिलवाया.

निदा सोचने लगी कि लोग तो रिश्ता टूटने पर नफरत करते हैं, लेकिन मैं उन में से नहीं हूं. अमीरों के लिए दौलत ही सबकुछ है. मगर मैं दौलत की इज्जत नहीं करती, बल्कि इनसानों की इज्जत करना मुझे अपने घर वालों ने सिखाया है.

‘‘निदा, आप भैया को माफ कर दें, प्लीज,’’ हमशां उस के पास आ कर फिर मिन्नत भरे लहजे में बोली.

‘‘हमशां, कैसी बातें करती हो? अब जब मुझे पता चल गया है कि इस में तुम्हारे भैया की कोई गलती नहीं है तो माफी मांगने का सवाल ही नहीं उठता,’’ निदा ने हंस कर उस के गाल पर एक हलकी सी चपत लगाई.

कुछ देर ठहर कर निदा फिर बोली, ‘‘हमशां, तुम्हारी मम्मी ने मुझ से रिश्ता तोड़ कर बहुत बड़ी गलती की. काश, मैं भी अमीर घर से होती तो यह रिश्ता चंद सिक्कों के लिए न टूटता.’’

‘‘मुझे मालूम है कि आप नाराज हैं. मम्मी ने आप से मंगनी तो तोड़ दी, पर उन्हें भी हमेशा अफसोस रहेगा कि उन्होंने दौलत के लिए अपने बेटे की खुशियों का खून कर दिया,’’ हमशां ने संजीदगी से कहा.

ये भी पढे़ं- मुसकान: सुनीता की जिंदगी में क्या हुआ था

‘‘बेटा, आप लोग यहां क्यों खड़े हैं? चलो, सब लोग इंतजार कर रहे हैं. निदा, तुम भी चलो,’’ अख्तर के अब्बू खुशी से चहकते हुए बोले.

‘‘मुझे यहां इतना प्यार मिलता है, फिर भी दिल में एक टीस सी उठती?है कि इन्होंने मुझे ठुकराया है. पर दिल में नफरत से कहीं ज्यादा मुहब्बत का असर है, जो चाह कर भी नहीं मिटा सकती,’ निदा सोच रही थी.

‘‘निदा, आप को बुरा नहीं लग रहा कि भैया किसी और से शादी कर रहे हैं?’’ हमशां ने मासूमियत से पूछा.

‘‘नहीं हमशां, मुझे क्यों बुरा लगने लगा. अगर आदमी का दिल साफ और पाक हो, तो वह एक अच्छा दोस्त भी तो बन सकता है,’’ निदा उमड़ते आंसुओं को रोकना चाहती थी, मगर कोशिश करने पर भी वह ऐसा कर नहीं सकी और आखिरकार उस की आंखें भर आईं.

‘‘भैया, आप निदा से वादा करें कि आप दोनों जिंदगी के किसी भी मोड़ पर दोस्ती का दामन नहीं छोड़ेंगे,’’ हमशां ने इतना कह कर निदा का हाथ अपने भैया के हाथ में थमा दिया और दोनों के अच्छे दोस्त बने रहने की दुआ करने लगी.

‘‘माफ कीजिएगा, अब हम एकदूसरे के दोस्त बन गए हैं और दोस्ती में कोई परदा नहीं, इसलिए आप मुझे बेवफा न समझें तो बेहतर होगा,’’ अख्तर ने कहा.

‘‘अच्छा, आप लोग मेरे बिना दोस्ती कैसे कर सकते हैं. मैं तीसरी दोस्त हूं,’’ अख्तर की मंगेतर निदा से बोली.

निदा उस लड़की को देखती रह गई और सोचने लगी कि कितनी अच्छी लड़की है. वैसे भी इस सब में इस की कोई गलती भी नहीं है.

‘‘आंटी, मैं हमशां को अपने भाई के लिए मांग रही हूं. प्लीज, इनकार न कीजिएगा,’’ निदा ने कहा.

‘‘तुम मुझ को शर्मिंदा तो नहीं कर रही हो?’’ अख्तर की अम्मी ने पलट कर पूछा.

‘‘नहीं आंटी, मैं एक दोस्त होने के नाते अपने दोस्त की बहन को अपने भाई के लिए मांग रही हूं,’’ इतना कह कर निदा ने हमशां को गले से लगा लिया.

‘‘निदा, आप हम से बदला लेना चाहती?हैं. आप भी मम्मी की तरह रिश्ता जोड़ कर फिर तोड़ लीजिएगा ताकि मैं भी दुनिया वालों की नजर में बदनाम हो जाऊं,’’ हमशां रोते हुए बोली.

‘‘अरी पगली, मैं तो तेरे भैया की दोस्त हूं, दुख और सुख में साथ देना दोस्तों का फर्ज होता है, न कि उन से बदला लेना,’’ निदा ने कहा.

‘‘नहीं, मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है,’’ अख्तर की अम्मी ने जिद्दी लहजे में कहा.

तभी अख्तर के अब्बू आ गए.

‘‘क्या बात है? किस का रिश्ता नहीं होने देंगी आप?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘अंकल, मैं हमशां को अपने भाई के लिए मांग रही हूं.’’

‘‘तो देर किस बात की है. ले जाओ. तुम्हारी अमानत है, तुम्हें सौंप देता हूं.’’

‘‘निदा, आप अब भी सोच लें, मुझे बरबाद होने से आप ही बचा सकती हैं,’’ हमशां ने रोते हुए कहा.

‘‘कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हो. मैं तो तुम्हें दिल से कबूल कर रही हूं, जबान से नहीं, जो बदल जाऊंगी,’’ निदा खुशी से चहकी.

‘‘हमशां, निदा ठीक कह रही हैं. तुम खुशीखुशी मान जाओ. यह कोई जरूरी नहीं कि हम लोगों ने उस के साथ गलत बरताव किया तो वह भी ऐसी ही गलती दोहराए,’’ अख्तर हमशां को समझाते हुए कहने लगा.

‘‘अगर वह भी हमारे जैसी बन जाएगी, तब हम में और उस में क्या फर्क रहेगा,’’ इतना कह कर अख्तर ने हमशां का हाथ निदा के भाई के हाथों में दे दिया.

‘‘निदा, हम यह नहीं जानते कि कौन बेवफा था, लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि हम बेवफा न थे,’’ अख्तर नजर झुकाए हुए बोला.

ये भी पढ़ें- आत्मसम्मान: रवि के सौदे का क्या था अंजाम

‘‘भैया, आप बेवफा न थे तो फिर कौन बेवफा था?’’ हमशां शिकायती लहजे में बोली. उस की नजर जब अपने भैया पर पड़ी तो देख कर दंग रह गई. उस का भाई रो रहा था.

‘‘भैया, मुझे माफ कर दीजिए. मैं ने आप को गलत समझा,’’ हमशां अख्तर के गले लग कर रोने लगी.

सच है कि इनसान को हालात के आगे झुकना पड़ता है. अपनों के लिए बेवफा भी बनना पड़ता है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...