लेखक- कुंवर गुलाब सिंह

‘‘श्यामाचरन, तुम मेरी दौलत देख कर हैरान रह जाओगे. मेरे पास सोनेचांदी के गहनों के अलावा बैंक में रुपया भरा पड़ा है. अगर मैं खुल कर खर्च करूं, तो भी आगे आने वाली पीढ़ी के लिए कम न होगा. तुम मेरी हैसियत का मुकाबला नहीं कर सकोगे, क्योंकि तुम्हारी कोई हैसियत ही नहीं है.’’ श्यामाचरन सिर नीचा किए मन ही मन मुसकराता रहा. वह सोचने लगा, ‘विवेक राय अचानक ऐसी बातें क्यों कह रहे हैं?’

‘‘श्यामाचरन, मैं चाहूं तो अपनी एकलौती बेटी रेशमा को सोनेचांदी के गहने से लाद कर किसी ऊंचे करोड़पति के यहां उस के लड़के से ब्याह दूं. लेकिन जानबूझ कर फटे बोरे में पैबंद लगा रहा हूं, क्योंकि तुम्हारा बेटा विजय मुझे पसंद आ गया है, जो अभी ग्रेजुएशन ही कर रहा है. ‘‘मेरी दूर तक पहुंच है. तुम्हारा बेटा जहां भी नौकरी करना चाहेगा, लगवा दूंगा. तुम तो उस की जिंदगीभर कोई मदद नहीं कर पाओगे. तुम जितना दहेज मांगोगे, उस से दोगुनातिगुना मिलेगा…’’

थोड़ी देर बाद कुछ सोच कर विवेक राय आगे बोले, ‘‘क्या सोचा है तुम ने श्यामाचरन? मेरी बेटी खूबसूरत है, पढ़ीलिखी है, जवान है. इस से बढ़ कर तुम्हारे बेटे को क्या चाहिए? ‘‘वैसे, मैं ने तुम्हारे बेटे को अभी तक देखा नहीं है. वह तो मेरा मुनीम राघव इतनी ज्यादा तारीफ करने लगा, इसलिए तुम को बुलाया.

‘‘मैं चाहूंगा कि 2-4 दिन बाद उसे यहां ले कर आओ. खुद मेरी बेटी को देखो और उसे भी दिखला दो. समझो, रिश्ता पक्का हो गया.’’ ‘‘आप बहुत बड़े आदमी हैं सेठजी. गाजियाबाद के बड़े कारोबारियों में आप का नाम है, जैसा मैं ने सुना. आप की तारीफ करूंगा कि आप ने मेरे बेटे को देखे बिना ही रिश्ता पक्का करने का फैसला कर लिया. पर मुझे अपने बेटे और पत्नी से भी सलाहमशवरा करने का मौका दें, तो मेहरबानी होगी.’’

‘‘जाइए, लेकिन मना मत कीजिएगा. मेरी ओर से 2 हजार रुपए का नजराना लेते जाइए,’’ विजय राय कुटिल हंसी हंस दिए. बिंदकी गांव पहुंच कर श्यामाचरन ने विवेक राय की लच्छेदार बातें अपनी पत्नी सत्यवती को सुनाईं. वह बहुत खुश हुई, मानो उस के छोटे से मामूली मकान में पैसों की बरसात अचानक होने वाली हो.

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जब सत्यवती ने अपने बेटे विजय के मन को टटोलना चाहा, तो वह

बिगड़ गया. ‘‘पैसे के लालच ने आप को इतना मजबूर कर दिया कि आप मेरी पढ़ाई बंद कराने पर उतारू हो गए. पढ़ाई पूरी करने के बाद मेरी जो कमाई होगी, उस पर पूरा हक आप का ही तो होगा. आप के लिए जल्दी दुलहन ला कर मैं अपना भविष्य खराब नहीं करना चाहूंगा,’’ विजय ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा.

‘‘इतने पैसे वाले आदमी की एकलौती बेटी तुम्हें ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलेगी. तुम मुझे सौतेली मां समझते रहो, लेकिन मैं तो तुम्हें अपने छोटे लड़के राजू और बेटी लीला से भी ज्यादा समझती हूं. ‘‘तुम्हारा गरीब बाप मुझे एक अच्छी साड़ी नहीं खरीद सका, सोने की जंजीर नहीं दे सका. खाने के लाले पड़े रहते हैं. तुम्हारी पढ़ाई में ही सारा पैसा खर्च कर देता रहा है. कभी सोचा है कि मैं घर कैसे चला रही हूं. अमीर की बेटी यहां आ कर सोना बरसाएगी, तो सभी का भला हो जाएगा,’’ सत्यवती ने विजय को समझाया.

श्यामाचरन की पहली औरत मर चुकी थी. उस ने दूसरी शादी सत्यवती से रचाई थी, जिस से 2 बच्चे हुए थे. ‘‘बेटा, एक बार चल कर उस लड़की को देख तो लो. पसंद आए, तो हां कर देना.

‘‘मैं विवेक राय के यहां रिश्ता मांगने नहीं गया था, बल्कि उन्होंने खुद बुलाया था. अगर उन की लड़की हमारी बहू बनने लायक है, तो घर में आने वाली लक्ष्मी को ठुकराया नहीं जाता,’’ श्यामाचरन ने अपने बेटे विजय को समझाते हुए कहा. ‘‘आप लोग समझते क्यों नहीं? मेरी पढ़ाई रुक जाएगी, तब क्या होगा. आजकल नौकरी भी इतनी जल्दी नहीं मिलती. आप को धनदौलत मिली, तो कितने दिन तक उसे इस्तेमाल कर पाएंगे? हर मांबाप लड़की को अपने घर से जल्दी निकालना चाहते हैं, इसलिए हम गरीब लोगों के पल्ले बांध कर वे भी फुरसत पा लेना चाहते होंगे.’’

‘‘उन के पास काफी पैसा है. अकेली लड़की है. सबकुछ तुम्हें ही मिलेगा, जिंदगीभर मौज से रहना.’’ ‘‘शादी के बाद अगर कल को उन्होंने मुझे घरजमाई बना कर रखना चाहा, तो क्या आप उम्मीद करते हैं कि उन का पैसा यहां पहुंच पाएगा? मुझे उन के यहां गुलाम बन कर रहना पड़ेगा, जो मैं कभी पसंद नहीं करूंगा.’’

‘‘ये सब बातें छोड़ो. ऐसा कुछ नहीं होगा. वे तुम्हारी तारीफ सुन कर, फोटो देखते ही शादी करने को तैयार हो गए.’’ ‘‘आगे उन की क्या मंसा है आप नहीं जानते. कोई लड़की वाला आज के जमाने में इस तरह अपनी बेटी किसी गरीब घराने में देने को तैयार नहीं हो जाता. मुमकिन है, इस के पीछे उन की कोई चाल हो.

‘‘शायद लड़की बुरे चरित्र की हो, जिसे जल्दी से जल्दी घर से निकालना चाहते हों. आप को पहले उन सब बातों का पता लगा लेना चाहिए.’’ ‘‘बेटा, मैं सब समझता हूं. विवेक राय मुंहमांगा दहेज देंगे, ऐसा रिश्ता मैं मना नहीं कर सकता.’’

‘‘आप जिद करेंगे, तो मैं इस घर को छोड़ कर कहीं और चला जाऊंगा,’’ गुस्से में विजय बोला. ‘‘तो तुम भी कान खोल कर सुन लो. अगर तुम ने ऐसा किया, तो मैं भी आत्महत्या कर लूंगा,’’ कहते हुए श्यामाचरन रोने लगे.

आखिरकार विजय को झुकना पड़ा. गाजियाबाद में विजय अपने पिता के साथ जा कर विवेक राय की बेटी रेशमा को देखने के लिए राजी हो गया. सच में श्यामाचरन पैसों का लालची था. उस ने रेशमा के बारे में किसी के द्वारा पूरी जानकारी हासिल करना जरूरी नहीं समझा.

सत्यवती ने भी अपने सौतेले बेटे विजय के भविष्य के बारे में सोचना जरूरी नहीं समझा. वह तो चाहती थी कि जल्द से जल्द उस के यहां छप्पर फाड़ कर रुपया बरसे, लड़की जैसी भी हो, उस से सरोकार नहीं. फिर भी उस के मन में शंका बनी थी कि बिना किसी ऐब के एक रईस अपनी बेटी को इतनी जल्दी गरीब घराने में शादी के लिए दबाव क्यों डालने लगा था? फिर उस ने सोचा, उसे लड़की से क्या लेनादेना, उसे तो गहने, धनदौलत से मतलब रहेगा, जिसे पा कर वह खुद राज करेगी. विवेक राय ने श्यामाचरन को यह भी बतला दिया था कि उन के पास केवल दौलत ही नहीं, बल्कि सत्ता की ताकत भी है. कई बड़े सरकारी अफसर, नेता, मंत्री और विधायकों से भी याराना है, जिस की वजह से उस का शहर में दबदबा है.

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उन्होंने यह भी भरोसा दिलाया कि विजय को दामाद बनाते ही उसे अच्छी नौकरी दिलवा देंगे. विवेक राय चरित्रहीन था. उस ने 4 शादियां की थीं. पहली पत्नी से रेशमा हुई थी. जब रेशमा 4 साल की हुई, तो उस की मां मर गई. उस के बाद धीरेधीरे विवेक राय ने 3 शादियां और की थीं. पर वे तीनों ही संदिग्ध हालात में मर गई थीं.

रेशमा को उन तीनों की मौत के बारे में भनक थी, पर जान कर भी वह अनजान बनी रही और दब कर रहने की आदी हो चुकी थी. विवेक राय की सब से बड़ी कमजोरी बाजारू औरतें और शराब की लत थी. जब विवेक राय पर नशे का जुनून सवार हो जाता, तो वे भूखे भेडि़ए की तरह औरत पर टूट पड़ते और दरिंदे की तरह रौंद डालते.

विजय ने रेशमा को देखा. वह बहुत खूबसूरत थी. सजा कर बापबेटे के सामने ला कर बैठा दी गई थी. गले में मोतियों की माला, नाक में हीरे की नथ, बालों में जूही के फूल. उस खूबसूरती को देख कर विजय ठगा सा रह गया. रेशमा ने भी अपनी चितचोर निगाहों से विजय को देखा. वह रेशमा के मन को भा गया. लेकिन एक बार भी उस के होंठों पर मुसकराहट नहीं आई, जैसे वह किन्हीं खयालों में खोई थी.

विजय के कुछ पूछने पर सिर झुका देती, मानो उस में लाजशर्म हो. विवेक राय ने दोनों की भावनाओं को समझा. नाश्तापानी होने के बाद श्यामाचरन और विजय को एक महीने के अंदर रेशमा से शादी करने को विवेक राय मजबूर करते रहे कि वे लोग बरात ले कर गाजियाबाद में फलां तारीख की अमुक जगह पर पहुंच जाएं.

उसी समय विवेक राय ने 50 हजार रुपए श्यामाचरन के हाथ में नजराने की रस्म अदा कर दी और भरोसा दिलाया कि उन्हें मुंहमांगी कीमत मिलेगी. घर लौटने पर विजय ने शादी करने से मना कर दिया, लेकिन पिता की धमकी और जोर डालने पर उसे मजबूर होना पड़ा.

तय समय पर कुछ लोगों के साथ श्यामाचरन अपने बेटे विजय को दूल्हा बना कर बरात गाजियाबाद ले जाना पड़ा. वहां आलीशान होटल में उन लोगों के ठहरने का इंतजाम किया गया था. बरात की शोभा बढ़ाने के लिए उन्हीं की ओर से इंतजाम किया गया था, क्योंकि विवेक राय शहर के रुतबेदार शख्स थे. देखने वाले यह न समझें कि बेटी का रिश्ता ऐसेवैसे घर में जोड़ा था. बरात धूमधाम से उन के घर के पास पहुंची.

दुलहन की तरह उन की बड़ी सी कोठी को बिजली की तमाम रोशनी द्वारा सजाया गया था. शहनाइयों की आवाज गूंज रही थी, बड़ेबड़े लोग, नातेरिश्तेदार, विधायक, मंत्री और शहर के जानेमाने लोग वहां मौजूद थे. रेशमा को कमरे के अंदर बैठाया गया था. वह लाल सुर्ख लहंगे, दुपट्टे और गहनों से सजाई गई थी. सहेलियां तारीफ करते छेड़छाड़ कर रही थीं, पर वह शांत और गंभीर थी. शहनाई की आवाज मानो उस के दिल पर हथौड़े की तरह चोट कर रहे थे.

शादी के बाद तीसरे दिन बरात वापस लौटी. कीमती तोहफे, घरेलू सामान और दूसरी चीजों से कई बक्से भरे थे, जिसे देख कर नातेरिश्तेदार खुशी से सराबोर हो गए. बहू का भव्य स्वागत किया गया. रातभर के जागे दूल्हादुलहन थके थे, इसलिए दोनों को अलगअलग कमरों में आराम करने के लिए घरेलू रस्मअदाई के बाद छोड़ दिया गया. शाम तक दूसरे रिश्तेदार भी चले गए.

सुहागरात मनाने के लिए रेशमा को सजा कर पलंग पर बैठाया गया था. विजय कमरे में आया. उस ने अपनी लुभावनी बातों से रेशमा को खुश करना चाहा, हथेली सहलाई, अपने पास खींचना चाहा, तो उस ने मना किया. कई बार उस के छेड़ने पर रेशमा उस से कटती रही, उस की आंखों से आंसू निकलते देख विजय ने सोचा कि पिता की एकलौती औलाद है, उसे पिता से बिछुड़ने की पीड़ा सता रही होगी, क्योंकि उस की मां न थी. बड़े लाड़प्यार से पिता ने पालापोसा और मांबाप दोनों का फर्ज अदा किया था. बहुत पूछने पर रेशमा ने बतलाया कि उसे पीरियड आ रहा है. कुछ रोज तक रेशमा उस की मंसा पूरी नहीं कर सकेगी.

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चौथे दिन विवेक राय का मुनीम बड़ी कार ले कर यह बतलाने पहुंचा कि रेशमा के पिता की हालत एकाएक बेटी के चले जाने से खराब हो गई. वे बेटी को देखना चाहते हैं. रेशमा की विदाई कर दी जाए. मजबूरी में बिना सुहागरात मनाए रेशमा को विदा करना पड़ा. विजय ने साथ जाना चाहा, तो मुनीम ने यह समझाते हुए मना कर दिया कि पहली बार उन्हें ससुराल में इज्जत के साथ बुलाया जाएगा.

एक महीने से ज्यादा हो चुका था. रेशमा को वापस भेजने के लिए श्यामाचरन गुजारिश करते रहे, पर विवेक राय ने अपनी बीमारी की बात कह कर मना कर दिया.

डेढ़ महीने बाद विवेक राय खुद अपनी कार से रेशमा को ले कर श्यामाचरन के यहां आए और बेटी को छोड़ कर चले गए. डेढ़ महीने बाद फिर वही सुहागरात आई, तो दोनों के मिलन के लिए कमरा सजाया गया. रेशमा घुटनों में सिर छिपाए सेज पर बैठी रही. उस की आंखों से झरझर आंसू गिर रहे थे. विजय के पूछने पर उस ने कुछ नहीं बताया, बस रोती ही रही.

इतने दिनों बाद पहली सुहागरात को विजय को रेशमा का बरताव बड़ा अटपटा सा लगा. उसे ऐसी उम्मीद जरा भी न थी. पहले सोचा कि रेशमा को अपने घर वालों से दूर होने का दुख सता रहा होगा, इसलिए याद कर के रोती होगी, कुछ देर बाद सामान्य हो जाएगी, पर वह नहीं हुई. जब रेशमा विजय की छेड़खानी से भी नहीं पिघली, तो उस ने पूछा, ‘‘रेशमा, सचसच बताओ, क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं हूं? अगर तुम्हें मेरे साथ सहयोग नहीं करना था, तो शादी क्यों की? पति होने के नाते अब मेरा तुम पर हक है कि तुम्हें खुश रख कर खुद भी खुश रह सकूं.’’

रेशमा के जवाब न देने पर विजय ने फिर पूछा, ‘‘रेशमा, डेढ़ महीने तुम्हारे तन से मिलने के लिए बेताबी से इंतजार करता रहा है. आज वह समय आया, तो तुम निराश करने लगी. सब्र की भी एक सीमा होती है, ऐसी शादी से क्या फायदा कि पतिपत्नी बिना वजह एकदूसरे से अलग हो कर रहें,’’ कहते हुए विजय ने रेशमा को अपनी बांहों में कस लिया और चूमने लगा. रेशमा कसमसाई और खुद को उस से अलग कर लिया. लेकिन जब विजय उसे बारबार परेशान करने लगा, तो वह चीख मार कर रो पड़ी.

‘‘आप मुझे परेशान मत कीजिए. मैं आप के काबिल नहीं हूं. मेरे दिल में जो पीड़ा दबी है, उसे दबी रहने दीजिए. मुझे इस घर में केवल दासी बन कर जीने दीजिए, नहीं तो मैं खुदकुशी कर लूंगी.’’ ‘‘खुदकुशी करना मानो एक रिवाज सा हो गया है. मैं शादी नहीं करना चाहता था, तो मेरे बाप ने खुदकुशी करने की धमकी देते हुए मुझे शादी करने को मजबूर कर दिया. शादी करने के बाद मेरी औरत भी खुदकुशी करने की बात करने लगी. अच्छा तो यही होगा कि सब की चाहत पूरी करने के लिए मैं ही कल सब के सामने खुदकुशी कर लूं.’’

‘‘नहीं… नहीं, आप ऐसा नहीं कर सकते. आप इस घर के चिराग हैं… पर आप मुझे मजबूर मत कीजिए. मैं आप के काबिल नहीं रह गई हूं. मुझे अपनों ने ही लूट लिया. मैं उस मुरझाए फूल की तरह हूं, जो आप जैसे अच्छे इनसान के गले का हार नहीं बन सकती. ‘‘मैं आप को अपने इस पापी शरीर के छूने की इजाजत नहीं दे सकती, क्योंकि इस शरीर में पाप का जहर भरा जा चुका है. मैं आप को कैसे बताऊं कि मेरे साथ जो घटना घटी, वह शायद दुनिया की किसी बेटी के साथ नहीं हुई होगी.

‘‘ऐसी शर्मनाक घटना को बताने से पहले मैं मर जाना बेहतर समझूंगी. मुझे मरने भी नहीं दिया गया. 2 बार खुदकुशी करने की कोशिश की, पर बचा ली गई, मानो मौत भी मुझे जीने के लिए तड़पाती छोड़ गई. ‘‘उफ, कितना बुरा दिन था वह, जब मैं आजाद हो कर अंगड़ाई भी न ले

सकी और किसी की बदनीयती का शिकार बन गई.’’ इतना कह कर रेशमा देर तक रोती रही. विजय ने उसे रोने से नहीं रोका. अपनी आपबीती सुनातेसुनाते वह पलंग पर ही बेहोश हो कर गिर पड़ी.

विजय ने रेशमा के मुंह पर पानी के छींटे मारे. उसे होश आया, तो वह उठ बैठी. ‘‘मेरी आपबीती सुन कर आप को दुख पहुंचा. मुझे माफ कर दीजिए,’’ कह कर रेशमा गिड़गिड़ाई.

‘‘तुम ने जो बताया, उस से यह साफ नहीं हुआ कि किस ने तुम पर जुल्म किया? ‘‘अच्छा होगा, तुम उस का खुलासा कर दो, तो तुम्हें सुकून मिलेगा.

‘‘लो, एक गिलास पानी पी लो. तुम्हारा गला सूख गया है, फिर अपनी आपबीती मुझे सुना दो. भरोसा रखो, मैं बुरा नहीं मानूंगा.’’ विजय के कहने पर आंखें पोंछती हुई रेशमा अपनी आपबीती सुनाने को मजबूर हो गई.

‘‘मेरे पिता मेरी मां को बहुत प्यार करते थे. मां की अचानक मौत से वे इतने दुखी हुए कि उन्होंने खूब शराब पीनी शुरू कर दी. मैं बड़ी होने लगी थी, मुझ में अच्छेबुरे की समझ भी आने लगी थी. ‘‘पिता ने एक के बाद एक 4 शादियां कर डालीं. पहली 2 बीवियों को वे अपने दोस्तों को सौंपते रहे, जिस से तंग आ कर उन्होंने नदी में डूब कर जिंदगी खत्म कर ली.

‘‘तीसरी से शादी रचा कर उस के साथ भी वही बुरा काम वे करते रहे. उस ने बहुत समझाया, पर पिता नहीं माने. ‘‘एक दिन उस ने भी अपने मायके में जा कर खुदकुशी कर ली.

‘‘मेरे पिता पर उन की खुदकुशी करने का कोई असर नहीं पड़ा. पैसे के बल पर उन के खिलाफ कोई केस नहीं बन पाया. ‘‘चौथी औरत इतनी खूबसूरत थी कि अपने प्रेमभाव से मेरे पिता को वश में करते हुए उन की बुरी आदतें कई महीने तक छुड़ा दीं. तब मैं 15 साल की उम्र पार कर चुकी थी.

‘‘चौथी मां भी मुझे अपनी सगी बेटी की तरह प्यार करती थी. 3 साल तक वह मुझे पालती रही, लेकिन उसे कोई ऐसी खतरनाक बीमारी लगी कि मर गई. ‘‘मेरे जल्लाद पिता फिर से शराब पीने लगे, बाजारू औरतों को घर में बुला कर ऐयाशी करने लगे. मैं अकसर देखती, तो आंखें बंद कर लेती.

‘‘उन के दोस्त भी अकसर घर पर आ कर शराब पीते और औरतों से ऐश करते. उन की गिद्ध जैसी नजरें मुझे भी देखतीं, मानो मौका पाते ही वे मुझे भी नहीं छोड़ेंगे. ‘‘मैं उन से दूर रहती थी. उन से बचने के लिए अकसर रात को अपनी सहेलियों के यहां सो जाती थी.

‘‘एक दिन मेरे पिता नशे में चूर किसी नाचगाने वाली के यहां से लौटे थे. उन की निगाह मुझ पर पड़ी. मैं मैक्सी पहने सो रही थी. शायद मेरा कपड़ा कुछ ज्यादा ही ऊपर तक खिसक गया था. ‘‘नशे में चूर वे अपने खून की ममता भूल गए और मेरे पलंग पर आ बैठे. छेड़ते हुए मेरे जिस्म को सहलाने लगे.

‘‘मेरी नींद खुली, तो वे बोले, ‘लेटी रहो. बिलकुल अपनी मां की सूरत पाई है तुम ने, कोई फर्क नहीं. उस की याद आ गई, तो तुम्हें गौर से देखने लगा.’ ‘‘उस के बाद मैं ने बहुत हाथपैर पटके, पर वे नहीं माने. उन्होंने मुझे अपनी हवस का शिकार बना डाला. मैं बहुत रोई, लेकिन उन पर कोई असर नहीं पड़ा.

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‘‘उस दिन के बाद से वे अकसर मेरे साथ वही कुकर्म करते रहे. मैं उन के खिलाफ किस से क्या फरियाद करती. 2 बार खुदकुशी करने की कोशिश की, पर बचा ली गई.’’ इतना कह कर रेशमा रोने लगी. विजय चाहता था कि उस के रो लेने से उस का मन शांत हो जाएगा. सालों की आग जो दिल में छिपाए उसे तपा रही थी, आंसू बन कर निकल जाएगी.

‘‘मेरी शादी आप के यहां इसलिए खूब दहेज दे कर कर दी गई, जिस से सब का मुंह बंद रहेगा. मुझे शादी के चौथे दिन बाद उस पिता ने बुलवा लिया. उस का पाप मेरी कोख में पलने लगा था. अगर उजागर हो जाता, तो उस की बदनामी होती. मेरा पेट गिरवा दिया गया. डेढ़ महीने बाद ठीक हुई, तो मुझ फिर यहां पटका गया, ताकि जिंदगीभर उस कलंक को छिपा कर रखूं. ‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरे इस पाप की छाया आप जैसे अच्छे इनसान पर पड़े. आप मुझे दासी समझ कर यहां पड़ी रहने दीजिए.

‘‘अगर आप ने मुझे घर से निकाल दिया, तो मेरे पिता आप को और आप के घर वालों पर मुकदमा चला कर परेशान कर डालेंगे. आप चुपचाप दूसरी शादी कर लें, मेरे पिता आप लोगों के खिलाफ कुछ नहीं कर पाएंगे. जब मैं चुप रहूंगी, तो कोई कोर्ट मेरे पिता की आवाज नहीं सुनेगा,’’ इतना कह कर रेशमा विजय के पैरों पर गिर पड़ी. ‘‘तुम ने अपनी आपबीती बता कर अपने मन को हलका कर लिया. समझ लो कि तुम्हारे साथ अनजाने में जो हुआ, वह एक डरावना सपना था.

‘‘मैं तुम्हारे दर्द को महसूस करता हूं. उठो, रेशमा उठो, तुम ने कोई पाप नहीं किया. तुम्हारी जगह मेरे दिल में है. तुम्हारी चुनरी का दाग मिट गया. ‘‘आज से तुम्हारी जिंदगी का नया सवेरा शुरू हुआ, जो अंत तक सुखी रखेगा,’’ कहते हुए विजय ने उसे उठाया, उस की आंखें पोंछीं और सीने से लगा लिया.

रेशमा भी विजय का प्यार पा कर निहाल हो गई.

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