बबलू , डैनी, बिठ्ठल, डोडो, हेनमत, हिरेन आदि किसी व्यक्ति का नाम हो सकता है, पर हमारे आसपास रहने वाले जानवर को भी घर की सदस्य की तरह ही नाम से बुलाया जाता है और वे अपने नाम से ही सब समझते है कि उन्हें बुलाया जा रहा है, ये बेजुबान अपने पालनकर्ता से केवल प्यार और थोडा भोजन मांगते है, लेकिन एक समय तक इनको अपने पास रखने, उनसे जरुरत के काम करवाने और लाड़-प्यार करने वाले व्यक्ति ही इन्हें अधिक उम्र या बीमार होने पर रास्ते पर भूखो मरने के लिए छोड़ देते है. कई बार तो इन्हें लोग बेच भी देते है. राजस्थान के जैसलमेर में जाते हुए रास्ते में जानवरों की काफी हड्डियाँ रास्ते के दोनों ओर देखने को मिलती है.इन जानवरों को कभी किसान हल चलाने या फिर दूध देने के लिए पालते है, लेकिन उम्र होने पर इन्हें रास्ते में छोड़ देते है और रेगिस्तान में ये जानवर खाने की तलाश में रास्ते पर भूखों मरने के लिए बाध्य होते है, ऐसे ही कुछ लावारिस जानवरों की तलाश में रहते है,एनजीओ ‘एनिमल राहतसंस्था’की वेटेरनरी डॉ.नरेश चन्द्र उप्रेती, जिन्होंने आज तक हजारों की संख्या में जानवरों को इलाज देकर अपनी शेल्टर होम में अच्छी तरह से रखा है. इसी कड़ी में उन्होंने दो घोड़ो का नाम अलिया और रणवीर दिया है, ताकि लोगों का ध्यान इन बेजुबानों पर पड़े.

जागरूकता है बढ़ाना

इस अनोखे गिफ्ट को पॉवर कपल अलिया और रणवीर को देने की वजह के बारें में पूछने पर डॉ. नरेश कहते है कि इस तरह के गिफ्ट से लोगों में जागरूकता बढ़ेगी.संस्था एनिमल राहत के बारें में डॉ. कहते है कि 2003 में बोझा ढोने वाले पशु जिसमें शुगर फैक्ट्री में शुगरकेन को ढोने वाल,  ईट भट्टी में ईट को ढोने वाले और तांगा स्टैंड में तांगा को खीचने वाले घोड़े, आदि सभी की जानवरों का मूल्य तब तक है, जब तक वह काम करता है. इसके बाद उसका ध्यान नहीं रखा जाता. इसलिए मैंने सांगली में पहले संस्था की स्थापना की, इसके बाद शोलापुर, सातारा, कोल्हापुर आदि जगहों पर किया है. इसके अलावा बुलंदशहर में एक सेंचुअरी साल 2020 में स्थापित किया है. ये दो घोड़े सांगली के बेलंकी नामक सेंचुअरीमें है, यहाँ करीब 197 जानवर है. गधा, घोडा बैल, कुत्ते मुर्गी आदि कई जानवर है.

मिली प्रेरणा

हालाँकि इस संस्था को शुरू करने वाली ब्रिटिश अमेरिकन एनिमल एक्टिविस्ट इंग्रिड न्यूकिर्ड थी, जिसने बैलों के साथ हुए क्रूरता को देखा था, क्योंकि महाराष्ट्र के सांगली में चीनी की कई मिल है, जिसमें बैलों पर करीब 3 से 4 टन बोझा डाला जाता है. उनके गले मेंफोड़े बन जाते है, उनके पाँव में लंगड़ापन होने पर भी उनसे काम करवाते रहते है. चोट लगने पर भी बैलों को काम करवाते है, चोट की वजह से बैल बाहर न चले जाय ये सोचकर बड़े-बड़े कील और फिरकियाँ लगा देते है. इससे बैल की गर्दन में कील चुभेगा, जिससे खून निकलता है, फिर भी वह बेजुबान काम करता रहता है. साल 2011 से मैं इसमें लगा हुआ हूँ और अब बैल की जगह ट्रेक्टर से समान ढोया जाता है.

दया भाव रखें जानवरों के प्रति

डॉ. का कहना है कि घोड़े जिनका नाम अलिया रखा वह फीमेल है, उसका प्रयोग शादी-ब्याह में होता था. घोड़ों को कभी भी शोर पसंद नहीं होता, क्योंकि शादी में पटाखों की आवाज, म्यूजिक का जोर से बजना आदि चरों तरफ शोर होता रहता है, ऐसे में घोड़े को बहुत परेशानी होती है. घोड़ी बिदक न जाय इसके लिए वे मुंह में स्पाइक यानि कील जैसी लगाम लगाते है. मैंने महसूस किया जिसकी जुबान है वह एन्जॉय कर रहा है और बेजुबान उसे सह रहा है. लोगों के मन में ऐसे जानवरों पर दया भाव रखने की जरुरत है.

दिया ट्रिब्यूट

डॉ. कहते है कि आलिया और रणवीर कपूर ने शादी में घोड़ी का प्रयोग नहीं किया, क्योंकि उनके परिवार में पूजा भट्ट, अलिया भट्ट, सोनी राजदान एनिमल लवर है. पिछले दिनों पूजा भट्ट ने एक मुर्गी को बचाकर यहाँ लायी थी, क्योंकि कोई इसे जादू-टोना में प्रयोगकर  रहा था. इसलिए मैंने ये नाम इन घोड़ों को देकर उन कपलएक ट्रिब्यूट दिया, ताकि लोग शादी-ब्याह में जानवरों का प्रयोग न करें. इसके अलावा विक्टोरिया टूरिस्ट कैरिज में घोड़े का प्रचलन मुंबई में था, जिसे बंद कर दिया गया है, घोडा रणवीर के पैरों के जॉइंट्स में सूजन आई हुई थी. पूरे शरीर में चोट और हड्डी-हड्डी यानि एक कंकाल की तरह दिख रहा था. काँटे वाली लगाम और ब्लिंकर्स के प्रयोग से घोड़ों को बहुत तकलीफ होती है. घोड़े को काबू करने के लिए वे मुहँ में लोहे की कांटेदार लगाम लगाते है, जिससे कई बार उनके जीभ में जख्म हो जाता है और वे ठीक तरह से खा नहीं पाते.इसके अलावा इन रास्तों पर उन्हें चलने में मुश्किल न हो, नाल उनके खुर में लगाईं जाती है. दोनों घोड़े को मुंबई से मैंने उद्धार किये है. इनका पता पुलिस के द्वारा मिला और मैंने इन्हें अडॉप्ट किया. इस नाम की वजह से पूरे देश से लोगों ने रेकॉगनाइज किया. जानवरों पर क्रूरता न करें, इस सन्देश को लोगों को जागरूक बनाने के लिए किया है.

 

डॉक्टर नरेश आगे कहते है कि सांगली और कोल्हापुर की ईंट की 18 भट्टी से मैंने गधों को हटाकर ट्रैक्टर का प्रयोग करना सिखाया है. इसमें मुश्किल ये भी आती है कि गधों को रखने वाले लोगों की आय ख़त्म हो जाती है,इसलिए पहले उनके हौसले को बढ़ाकर फिर इस काम को बंद किया, ताकि वे दूसरे किसी काम में लग जाय, करीब 200 से ऊपर गधों को उटी के पास के सेंचुअरी में शिफ्ट किया गया है. चीनी मिल के भी 5 बैल मालिको के 10 बैल मेरे पास रिटायर होकर आये है,इस तरह 26 चीनी मिल के 50 हज़ार बैलों की जगह ट्रेक्टर ने ले लिया है.

अधिक शेल्टर होम की जरुरत

बाहर घूमने वाले जानवरों को सही तरह से रखने की कोई अच्छी जगह नहीं होती, क्या ऐसे पशुओं के लिए अच्छी जगह न होने की वजह के बारें में पूछने पर डॉ.नरेश कहते है कि मनुष्य ने इन जानवरों को अपनी सुविधा के लिए प्रयोग किया है, इनका केयर करना उनकी जिम्मेदारी होती है. सबसे जरुरी है कम पशुओं की ब्रीडिंग करना, जिससे पशुओं की संख्या न बढे. स्ट्रीट डॉग को भी कोर्ट ने स्टरलाईज और वैक्सीनेशन कर छोड़ देने की बात कही है, ताकि वे अच्छी तरह जी सकें. इसी तरह लगातार पशुओं के साथ हुए क्रूरता को रोकने का विकल्प ढूँढना है.

बदलना है सोच

सोच को भी बदलने की जरुरत है और आज भी इंडिया को लोग डेवेलोपिंग कंट्रीकहते है. उदहरण स्वरुप डॉ, बताते है कि सांगली से बेलगाँव की तरफ चिन्चनी की यात्रा, उसमें मुंबई से शिक्षित लोग आकर एक जोड़ी बैल खरीदकर 100 से 150 किलोमीटर मन्नत मांगने के लिए साल में एक बार देवी की इस मंदिर में जाते है,काम होने पर उन्हें बेच देते है. बैलों की कमी होने पर बैल के साथ घोड़े को भी जोड़ दिया जाता है. इसके अलावा बैलों की रेस होती है, जिसमें कई बार बैलों की पैर गिरने से टूट जाती है, इन जानवरों को ठीक करने के लिए,उन दिनों मेरा कैंप लगता है, ये भी क्रूरता है. जलिकट्टू खेल में भी बैलों को बिना आघात किये ये खेल नहीं हो सकता. लोग मानते है कि ये एक ट्रेडिशन है. ट्रेडिशन उतनी ही हद तक रखे, जिससे कोई आहत न हो. इसे बदलने का समय अब आ चुका है.

करें सही देख-रेख

एक अद्भुत घटना के बारें में डॉ. नरेश कहते है कि शोलापुर में एक ढेढ़ साल के बैल के नाक में रस्सी बाँध दिया, बैल बड़ा हो गया, लेकिन उसकी रस्सी छोटी हो गयी. इसकी वजह से नाक पूरा कट गया और 4 इंच गहरा घाव हो गया था. उसके ऊपर मक्खियाँ लग रही थी, बैल बड़ा होने की वजह से कोई सामने भी नहीं गया. हमारे लोगों ने चलती बाइक पर सवार होकर उसे दूर से बेहोश किया. फिर मैंने उसका इलाज किया और ठीक होने पर अपने शेल्टर होम में ले आया. स्वीटी और सुनील भी ऐसे ही दो मेल और फीमेल डॉग है, जिसे कोई मेरे शेल्टर होम के बाहर छोड़ गया था. मैंने उन्हें पाला और एडोप्ट कराने की कोशिश की, पर कोई नहीं मिला, अब वे मेरे साथ ही रहते है.

बच्चे हमारे भविष्य

इसके अलावा छोटे बच्चों जिनकी उम्र 7 से 12 साल तक होती है, उनके स्कूलों में एजुकेशन ऑफिसर समय-समय पर कार्यक्रम करते है. उनमे जानवरों के प्रति बच्चों में संवेदनशीलता लाई जाती है, क्योंकि वे ही हमारे भविष्य है. इसलिए कई बार आहत या भूखे-प्यासे पशु को बच्चों के पास लाया जाता है. वे उनके लिए आवाज उठाते है, उन्हें खाना-पीना देते है. आगे वह लोगों की जानवरों के प्रति क्रूरता को ख़त्म करना चाहते है और शादी -ब्याह में लोगों की मौज-मस्ती के लिए घोड़ी का प्रयोग करना बंद करें, क्योंकि गाना, बैंड, शोरगुल से क्योंकि कई बार घोड़ी का हार्ट अटैक हो जाता है. जानवरों को प्यार दें, दुत्कार नहीं.

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