शुंभ जब खाली बरतन उठा रहा था तो फोन की घंटी बजने पर प्रीति बैडरूम में चली गई. गौरव से पकौड़ों की तारीफ सुनने पर शुंभ ने सकुचाए स्वर में कहा, ‘‘थैंक यू सर, डरतेडरते बनाए थे बहुत दिनों के बाद, किचन का काम करने की आदत छूट गई है.’’
‘‘क्यों, मैडम खाना नहीं बनवातीं?’’
‘‘जब कभी पार्टी हो तभी. और आज तो अरसे बाद पार्टी हुई है.’’
‘‘मैडम बहुत बिजी रहने लगी हैं?’’
‘‘वे तो हमेशा से ही हैं मगर अब सब सहेलियां दोस्त शादी कर के अपनीअपनी घरगृहस्थी में मगन हो गए हैं. किसी को दूसरों के घर आनेजाने की फुरसत ही नहीं है. पहले तो बगैर पार्टी के भी बहुत आनाजाना रहता था पर अब कोई बुलाने पर भी नहीं आता,’’ शुंभ के स्वर की व्यथा गौरव को बहुत गहरी लगी, ‘‘आजकल तो काम के बाद टीवी देख कर ही समय गुजारती हैं.’’ तभी प्रीति आ गई, ‘‘माफ करिएगा, आप को इंतजार करना पड़ा. लंदन से मम्मीपापा का फोन था. सो, बीच में रखना ठीक नहीं समझा.’’
‘‘आप के मम्मीपापा लंदन में हैं?’’
‘‘जी हां, मेरी डाक्टर बहन के पास. छुटकी अकेली है, सो ज्यादातर उसी के पास रहते हैं.’’
‘‘अकेली तो आप भी हैं,’’ गौरव के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा. ‘‘यहां और वहां के अकेलेपन में बहुत फर्क है. वैसे यहां भी अब लोग स्वयं में ही व्यस्त रहने लगे हैं. एक कप गरम चाय और चलेगी?’’
‘‘जी नहीं, अब चलूंगा. पकौड़े बहुत खा लिए हैं, सो एफ-1 में बताना भी है कि मैं आज रात को खाना नहीं खाऊंगा. डा. राघव के यहां हम कुछ दोस्त एक नौकर से खाना बनवाते हैं.’’
‘‘खाने के बहाने दोस्तों से गपशप भी हो जाती होगी.’’
‘‘जी हां, और दोस्तों को भी बुलाते रहते हैं. एक रोज आप को भी बुलाऊंगा.’’ इस से पहले कि वह खुद को रोकता, शब्द उस के मुंह से निकल चुके थे लेकिन प्रीति ने बुरा मानने के बजाय सहज भाव से कहा, ‘‘जरूर, मुझे इंतजार रहेगा उस रोज का.’’
‘‘ठीक है, मिलते हैं फिर,’’ कह कर गौरव ने विदा ली. राघव के घर जाने से पहले गौरव ने कालोनी के 2-3 चक्कर लगाए, वह कुछ सोच रहा था और उसे अपनी सोच सही लग रही थी. अगले सप्ताहांत डा. गौरव ने प्रीति को डिनर पर बुलाया. वह इस शर्त पर आना मान गई कि वह 9 बजे के बाद आएगी. गौरव ने कहा कि वे लोग भी 8 बजे के बाद ही घर पहुंचते हैं. लेकिन साढ़े 8 बजे के करीब एफ-1 में हादसा हो गया. बहुत जोर से कुछ गिरने और कांच टूटने की सी आवाज आई. ठंड के बावजूद कई लोग डिनर के बाद टहलने निकले हुए थे. एफ-1 में रहने वाला डा. राघव तभी आया था और अपनी गाड़ी लौक कर रहा था. उस के हाथ से चाबी छूटतेछूटते बची.
‘‘यह क्या हुआ, चौकीदार?’’ उस ने घबराए स्वर में पूछा.
‘‘जो भी हुआ है फर्स्ट फ्लोर पर ही हुआ है साहब, ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सिर पर ही कुछ गिरा है,’’ चौकीदार ने सिर सहलाते हुए कहा.
‘‘तुम्हारे सिर पर तो डा. राघव का फ्लैट है,’’ किसी ने कहा, ‘‘चल कर देखिए डाक्टर साहब.’’
‘‘आप लोग भी चलिए न,’’ डा. राघव ने घबराए स्वर में कहा.
‘‘राजू तो घर में होगा साहब.’’
‘‘शायद नहीं, उसे खाना लाने बाजार जाना था,’’ राघव ने सीढि़यां चढ़ते हुए कहा. तभी न जाने कहां से गौरव आ गया, ‘‘क्या हुआ यार, सुना है प्रीति चावला वाला अदृश्य मानुष अपने घर में घुस आया है.’’
राघव ने डरतेडरते ताला खोला, कमरे में अंधेरा था, ‘‘चौकीदार, टौर्च मिलेगी?’’ ‘‘डर मत यार, मैं अंदर जा कर लाइट जलाता हूं,’’ गौरव ने आगे बढ़ कर लाइट जलाई. उस के पीछे और सब भी कमरे में आ गए. कमरे में ज्यादा सामान नहीं था. डाइनिंगटेबल के पास रखा साइडबोर्ड जमीन पर औंधा पड़ा था और उस में रखे चीनी व कांच के समान के टुकड़े दूरदूर तक फर्श पर बिखरे हुए थे. ‘‘इतना भारी साइडबोर्ड अपने से तो गिर नहीं सकता. जरूर कोई इस से अंधेरे में टकराया है, कमरों में देखो, जरूर कोई छिपा हुआ होगा.’’
‘‘कमरे तो सब बाहर से बंद हैं मित्तल साहब, परदों के पीछे या किचन में होगा,’’ राघव ने कहा.
‘‘वह भाग चुका है राघव, बालकनी का दरवाजा खुला हुआ है. उस से कूद कर भाग गया,’’ गौरव ने कहा.
‘‘लेकिन कूदता हुआ नजर तो आता, बहुत लोग टहल रहे हैं कंपाउंड में.’’
‘‘मेन रोड पर, यहां हैज के पीछे अंधेरे में कौन आता है या इधर देखता भी है,’’ गौरव बोला.
‘‘लेकिन गौरव, सुबह मैं सब के बाद गया था. और मैं ने जाने से पहले बालकनी का दरवाजा भी बंद किया था,’’ राघव ने कहा.
‘‘मैं थोड़ी देर पहले आया था राघव, कुछ क्रिस्टल ग्लास टम्बलर ले कर. उन्हें राजू से धुलवा कर साइडबोर्ड में सजाने और राजू को बाजार भेजने के बाद मैं बालकनी में आ कर खड़ा हो गया था. फिर कपड़े बदलने जाने की जल्दी में मैं बगैर बालकनी बंद किए मेनगेट बंद कर के अपने घर जा रहा था कि आधे रास्ते में ही शोर सुन कर वापस आ गया,’’ गौरव ने कहा.
‘‘आप के पास भी यहां की चाबी है?’’ मित्तल ने पूछा.
‘‘आटोमैटिक लौक को बंद करने के लिए चाबी की जरूरत नहीं होती…’’ इस से पहले कि गौरव अपनी बात पूरी कर पाता, घबराई और उस से भी ज्यादा हड़बड़ाई सी प्रीति आ गई.
‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं?’’
‘‘जो सुना वह देख भी लीजिए,’’ गौरव ने हंसते हुए फर्श पर बिखरे कांच की ओर इशारा किया.
‘‘ओह नो, मेरे यहां तो खैर कुछ नुकसान नहीं हुआ था लेकिन…’’
‘‘इस में से कुछ तो बहुत महंगा और बिलकुल नया सामान था जो गौरव ने आज ही खरीदा था और कुछ देर पहले शोकेस में सजाया था,’’ राघव ने प्रीति की बात काटी. ‘‘क्या बात है डा. गौरव, नई क्रौकरी की खरीदारी, बाहर से खाना मंगवाना कोई खास दावतवावत है?’’ एक प्रश्न उछला.
‘‘इन फालतू सवालों के बजाय हम मुद्दे की यानी चोरी की बात क्यों नहीं करते मित्तल साहब?’’ किसी ने तल्ख स्वर में कहा. ‘‘उस की बात क्या करेंगे?’’ गौरव ने कंधे उचकाए, ‘‘बालकनी का दरवाजा खुला छोड़ कर जाने की लापरवाही मैं मान ही रहा हूं, चौकीदार ने मेनगेट तभी बंद करवा दिया था, अब चोर कहां भाग कर गया, यह तो सोसायटी के कर्ताधर्ता ही सोचेंगे. हमें तो यह सोचना है कि रात के खाने का क्या करें, किचन में जाने का रास्ता तो कांच से अटा पड़ा है.’’ ‘‘फिक्र मत कर यार, राजू कुछ खाना बना गया है और कुछ ले कर आता ही होगा. आ कर टूटा हुआ कांच हटा देगा,’’ राघव ने कहा फिर सब की ओर देख कर बोला, ‘‘माफ करिएगा, आप को बैठने को नहीं कह सकते क्योंकि इतनी कुरसियां ही नहीं हैं.’’ ‘‘कोई बात नहीं, हम चलते हैं,’’ कह कर सब चलने लगे और उन के साथ ही प्रीति भी, गौरव उसे रोकने के बजाय उस के साथ ही चल दिया.
‘‘आप कहां चल दिए डा. गौरव, बगैर खाना खाए?’’ मित्तल ने पूछा.
‘‘घर कपड़े बदलने, मैं अस्पताल के कपड़ों में खाना नहीं खाता.’’
‘‘खाना खाने का मूड रहा है अब?’’ प्रीति ने धीरे से पूछा.
‘‘एक डाक्टर होने के नाते मूड के लिए न तो खुद खाना छोड़ता हूं और न किसी को छोड़ने देता हूं,’’ गौरव मुसकराया, ‘‘आप भी चेंज कर लीजिए, फिर वापस आते हैं एफ-1 में.’’