रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताःअनुभव सिन्हा, शिल्पान व्यास, दुगे्रश दधीच, भक्ति सकपाल

निर्देशकः रत्ना सिंहा

कलाकारः काव्या थापर, ईशा सिंह, प्रीत कमानी, संजय विश्नोई, मनोज पाहवा,  सपना सैंड, ओमकार कुलकर्णी व अन्य.

अवधिः दो घंटे सोलह मिनट

‘शादी में जरुर आना’’ जैसी सफलतम फिल्म की निर्देशक रत्ना सिन्हा इस बार कालेज और मिडल क्लास की पृष्ठभूमि में एक प्रेम कहानी के साथ ही मध्यम वर्गीय परिवारों के जीवन मूल्यों की बात करने वाली फिल्म ‘‘मिडिल क्लास लव’’ लेकर आयी हैं.

कहानीः

फिल्म ‘‘मिडिल क्लास लव’’ के केंद्र में मसूरी का मध्यवर्गीय लड़का यूडी (प्रीत कमानी) है, जो कि ख्ुाद को अपने बड़े भाई व पिता से अलग ढर्रे पर चलकर धन व शोहरत पाना चाहता है. वह फैंसी स्कूल में पढ़ना चाहता है. स्मार्ट दिखना चाहता है. और वर्तमान धन्नासेठों के लड़के व लड़कियों की तरह वह कूल रहना चाहता है. यूडी के परिवार में एक एक रूपया गिनने के लिए उसकी मां (सपना सैंड) टिफिन बनाकर सप्लाई करती हैं. बड़ा भाई (संजय बिश्नोई) ट्यूशन देता है और उसके पिता शर्मा (मनोज पाहवा) हमेशा पैसा बचाने की बात करते हैं. दो सौ रूपए बचाने के लिए वह टूटा हुआ चश्मा पहनते हैं. पर बेटे यूधिष्ठिर उर्फ यूडी को अच्छी शिक्षा देने के लिए डेढ़ लाख रूपए कालेज की फीस भर देते हैं.

मगर यूडी का मानना है कि छोटे मोटे पेसे बचाकर कभी भी ‘कूल’ नही बना जा सकता. किशनचंद कालेज में पढ़ने की बजाय यूडी हाई फाई कालेज ‘ओकवुड’ में पढ़ने जाता है. इस कालेज में प्रवेश के लिए वह जो तरकीब अपनाता है, उसे किसी लड़के को नही अपनाना चाहिए. खैर, कालेज में पहले दिन वह अमि अमीर लड़की सायशा (काव्या थापर) से नाटकीय तरीके से मिलता है. सायशा उसे भाव नही देती. तो वह कक्षा में आएशा  (ईशा सिंह) के साथ बैठता है. आएशा भी उसके साथ खड़ूस सा व्यवहर करती है, पर यूडी अपने तरीके से साएशा व आएशा दोनों को पिघलाने का प्रयास करता है. वह कालेज में साएशा के प्रेमी के रूप में मशहूर होना चाहता है. आयशा की मां सिंगल मदर और डाक्टर है.

अचानक एक दिन साएशा उसके साथ शर्त लगाती है कि वह उसे अपना ब्वौय फ्र्रेंड उस दिन घोषित करेगी, जब यूडी, आएशा को अपने प्रेम जाल मे फंासने के बाद उसे धोखा देगा. अब यूडी इंटरनेट से यह जाने का प्रयास करता है कि किसी लड़की को कैसे प्रेम जाल में फंसाया जाए और उसी ट्कि पर काम करते हुए वह आएशा का दिल लगभग जीत चुका होता है कि तभी आएशा को पता चल जाता है कि यूडी ने इंटरनेट की मदद से उसे अपने प्रेम जाल में फंासने की चालें चली और आएशा,  सायशा व कालेज के कई अन्य लड़के लड़कियों के सामने उसे थप्पड़ मार देती है. यहां पर साएशा,  यूडी को बताती है कि उसने आएशा से बदला लेने के लिए ही यूडी से यह शर्त लगायी थी. इस बीच वह अपनी हरकतों से अपने माता पिता व भाई को भी नाराज कर चुका है. पर एक थप्पड़ यूडी को बहुत कुछ सिखा देता है. उसके बाद यूडी एक नई राह पकड़ता है. . फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः साएशा, आएशा व यूडी अच्छे दोस्त बन जाते हैं.

लेखन व निर्देशनः

अमूमून पाया गया है कि स्कूल या कालेज की पृष्ठभूमि में बनने वाली फिल्मों के लिए लेखक या फिल्म सर्जक किसी तरह का अध्ययन या शोधकार्य नहीं करता. वह तो सिर्फ कालेज गोइंग लड़के व लड़कियों को अपनी फिल्म की तरफ खींचने के लिए कालेज या स्कूल की पृष्ठभूमि रख देते हैं. ऐसा ही फिल्म ‘‘मिडल क्लास लव’ की निर्देशक रत्ना सिन्हा ने किया है. कहानी के स्तर पर कुछ भी नया नही है. फिल्म में पढ़ाई या शिक्षा के महत्व से इतर सब कुछ है. हाथ में किताबें लेकर हर लड़का व लडकी पढ़ाई के अलावा सब कुछ करता हुआ नजर आताष्  है. कहानी जिस अंदाज में चलती है, उससे हर दर्शक भांप जाता है कि अगले दृश्य में क्या होने वाला है. यह लेखक व निर्देशक की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है. इस तरह के विषय पर पहले भी फिल्में आयी हैं, फर्क इतना है कि निर्देशक महोदया मॉडर्न बनने की बजाय देसी ही बनी रही. मगर कहानी व पटकथा के स्तर पर काफी लोचा है. साएशा अमीर कैसे है, कुछ पता नहीं. सिंगल मदर को अपने बच्चे की सबसे ज्यादा फिक्र रहती है, मगर यहां आएशा की मां को फिक्र नही, बेटी पूरी रात घर से बाहर रहती है. छोेटे भाई व आएशा के बीच रिश्ते को रेखांकित करने वाला कोई दृश्य ही नही है. यूडी को पता है कि उसकी अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है, फिर भी वह महज एक लड़की का ब्वौयफें्रड बनने के लिए हर तरह की बर्बादी करता है.

पटकथा की कमजोरी के ही चलते यूडी के दोस्त व हलवाई के बेटे, जिसे रैपर बनना है, वह परदे पर तभी आता है, जब यूडी को चमकाना हो या यूडी कहीं बुरी तरह से अटक गया हो. अन्यथा यूडी के दोस्त के किरदार को कोई तवज्जो ही नहीं दी गयी है. कितनी अजीब सी कहानी है. कभी आएशा व साएशा एक दूसरे की न सिर्फ अच्छी दोस्त रही हैं, बल्कि एक दूसरे को सबसे ज्यादा जानती हैं, उन्हें भी खराब संबंधों को सुधारने के लिए यूडी की जरुरत पड़ गयी.

माना कि फिल्मकार ने इस फिल्म में मध्यमवर्ग की मानसिकता को किसी त्रासदी या दुख के साथ परोसने की बजाय हल्के फुल्के हास्य के क्षणों के साथ पेश किया  है. लेकिन क्लायमेक्स में जमकर रोना धोना आदि मेलोड्रामा परोसने से वह भी बाज नही आयी. इतना ही नही क्लायमेक्स में जिस तरह से मध्यमवर्गीय परिवार के मूल्यों को लेकर यूडी का भाषण है, वह भी कमाल का ही है. क्लायमेक्स इससे कई गुणा ज्यादा बेहतर बन सकता था. निर्देशक यह भूल गयी कि वर्तमान पीढ़ी को उपदेश सुनना पसंद नही है.

अभिनयः

प्रीत कमानी, ईशा सिंह और  काव्या थापर तीनों ने अपने उत्कृष्ट अभिनय से अपने किरदारों को जीवंतता प्रदान की है. यूडी का किरदार निभाने वाले अभिनेता प्रीत कमानी ने पहली बार अभिनय किया है, मगर परदे पर उन्हे देखकर यह नही कहा जा सकता कि यह उनकी पहली फिल्म है. वह एक मंजे हुए कलााकर नजर आते हैं. अपने चुटीले संवादों का उन्होने बहुत बेहतरीन उपयोग किया है. यूडी के माता पिता के किरदार में सपना सैंड और मनोज पाहवा का अभिनय शानदार है. बड़े भाई के किरदार में संजय विश्नोई ने बहुत सधा हुआ अभिनय किया है.

गीत व संगीत काफी अच्छा है.

अंत में फिल्म में वल्गैरिटी नही है. कालेज के लड़के व लड़कियों को अवश्य पसंद आएगी.

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