प्रिया की शादी के 1 साल तक घर वालों ने उस से मां बनने या परिवार आगे बढ़ाने को ले कर कोई बात नहीं की. इस मामले में उस के पति भी हमेशा सपोर्टिव रहे और पूछने पर यही कहा कि जब तुम चाहो सिर्फ तभी मां बनने का फैसला लेना. मगर जब शादी के कुछ साल तक बच्चा नहीं हो तो लोगों के दिमाग में सिर्फ एक ही बात आती है कि कुछ कमी होगी. प्रिया के साथ भी ऐसा ही हुआ. लोग उस में ही कमी तलाशने लगे और दबे मुंह ताने भी देने लगे.

‘बच्चा नहीं हो रहा, जरूर कुछ कमी होगी’ प्रिया को इस तरह की बातें भी सुनने को मिलने लगीं. दरअसल, आज भी कई लोगों को फैमिली प्लानिंग के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उन्हें लगता है कि बस शादी हुई और बच्चा हो जाना चाहिए और अगर नहीं हुआ है तो जरूर कोई कमी होगी. देखा जाए तो यह कमी पुरुष में भी हो सकती है. लेकिन प्रैक्टिकली इस कमी का इशारा सिर्फ महिला की तरफ ही होता है.

इन तानों से बचने के लिए प्रिया ने शादी के करीब 2 साल बाद ही फैमिली प्लानिंग खत्म कर मां बनने का फैसला लिया. उस ने अपने पति से इस बारे में बात की. इस के बाद शुरू हुई वह कहानी जहां कई लोगों की जिंदगी एक नए रास्ते की तरफ मुड़ जाती है. प्रिया ने प्राकृतिक तरीके से प्रैगनैंट होने की काफी कोशिश की, मगर ऐसा नहीं हो सका. घर में सब उदास से रहते. सास और वह खुद भी किसी छोटे बच्चे को देखती तो दिल में हूक सी उठती. हर महीने वे 3 दिन आते और उसे फिर से निराश कर के चले जाते.

कई तरह के डाक्टरी चैकअप और इलाज के बाद भी जब कोई नतीजा नहीं निकला तब प्रिया को प्रैगनैंसी के लिए आईवीएफ की मदद लेनी पड़ी. आईवीएफ के जरीए वह जल्द ही प्रैगनैंट हो गई. फिर बहुत इंतजार के बाद जब नन्हा सा फूल उस की गोद में खेलने लगा तो घर भर में खुशी की लहर दौड़ गई. बच्चे को गोद में लेते ही सब के चेहरे पर रौनक छा जाती. वह बच्चा पूरे परिवार को जोड़ने और घर भर की खुशियों की वजह बन गया.

नई खुशी और उत्साह की वजह

सच में किसी भी परिवार के लिए बच्चे का जन्म एक नई खुशी और उत्साह की वजह बनता है. बच्चा उन के जीवन में नए रंग ले कर आता है. बच्चे के जन्म के साथ ही शादीशुदा जिंदगी में एक मजबूती आ जाती है. रिश्तों में प्रगाड़ता और घर में रौनक आ जाती है. पतिपत्नी एकदूसरे के ज्यादा करीब आते हैं. एकदूसरे की तकलीफ सम झने लगते हैं और एक अनकहा सा जुड़ाव महसूस करते हैं.

जिन मुद्दों पर शादी के बाद 2 लोगों के बीच अकसर बहस हो जाती थी, बच्चे पैदा होने के बाद वे मुद्दे कहीं खो जाते हैं. दोनों मिल कर केवल बच्चे की सेहत और उस की सुरक्षा के बारे में सोचने लग जाते हैं. बच्चे की मासूमियत के आगे घर के सारे गम फीके से लगने लग जाते हैं. लेकिन वही बच्चा जब बीमार हो जाता है तो जैसे मांबाप के दिन का चैन और रातों की नींदें ही उड़ जाती हैं.

दरअसल, बच्चे परिवार का वह हिस्सा होते हैं जो बीज से निकल कर एक छोटे से पौधे के रूप में जन्म लेते हैं. बच्चों के जन्म लेने से हर परिवार की खुशियां दोगुनी हो जाती हैं. मातापिता बच्चों की परवरिश से ले कर उन्हें बड़ा करने तक उन की सारी जिम्मेदारियां उठाते हैं. बच्चा जबजब रोता है तबतब माता अपने सारे काम छोड़ कर उस को चुप करवाने के लिए चली आती है.

बच्चा जब भी किसी वस्तु के लिए जिद करता है तो पिता समेत पूरा घर उस की हर जिद के लिए दिनरात एक कर देता है. बच्चे के जन्म के साथ ही पति का पत्नी के साथसाथ परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ भी रिश्ता और मजबूत हो जाता है.

पतिपत्नी करीब आते हैं

बच्चे का आगमन पतिपत्नी को जोड़ता है. वे एक इकाई के रूप में काम करने लगते हैं. दोनों का ध्येय अपने दिल के टुकड़े को आराम पहुंचाना और सही तरीके से उस का विकास होता देखना होता है. उन के पास एकदूसरे के साथ लड़ने का समय नहीं रहता. वे सम झने लगते हैं कि बच्चे को अपने पेरैंट्स का प्यार चाहिए. बच्चे को प्यारदुलार देने के लिए पतिपत्नी को भी करीब आना पड़ता है ताकि उसे एक खुशहाल माहौल में मां और पिता दोनों का प्यार एकसाथ मिल सके. इस तरह से एक बच्चा पतिपत्नी को दूर नहीं बल्कि करीब लाने का काम करता है.

साथ समय बिताना

नन्हे बच्चे के आने के साथ ही मातापिता की दिनचर्या बदल जाती है. वे बच्चे के साथ जागते हैं और बच्चे के साथ ही सोते हैं. उस के साथ हंसते हैं और बच्चे के रोने पर एकसाथ परेशान भी होते हैं. बच्चे का डायपर बदलने से ले कर उस के खानेपीने का इंतजाम करने और खिलौने से खिलाने, नहलानेधुलाने और बीमार पड़ने पर रातभर उस का खयाल रखने का काम भी दोनों मिल कर करते हैं और इस वजह से उन्हें ज्यादा समय साथ बिताने का मौका मिलता है.

सिर्फ मातापिता ही नहीं बल्कि दादादादी, बूआ, चाचा जैसे घर के दूसरे सदस्यों को भी बच्चे के साथ समय बिताने का मौका मिलता है और वे इसे भरपूर ऐंजौय करते हैं. इस तरह पूरा परिवार एकजुट हो जाता है.

जुड़ाव

एक बच्चे के आ जाने के बाद मांबाप उस के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहते हैं. इस दौरान उन्हें भी एकदूसरे से एक खास जुड़ाव का एहसास होने लगता है. एकदूसरे के लिए की गई छोटीछोटी कोशिश पतिपत्नी को और करीब लाने का काम करती है. बच्चे की देखभाल के बहाने पतिपत्नी कई तरह की बातें शेयर करते हैं. उन के बीच कम्यूनिकेशन मजबूत होता है और इसी के साथ उन का रिश्ता भी मजबूत होता है.

औरत के जीवन में प्रैगनैंसी यानी गर्भावस्था एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण मुकाम होता है. कुछ दंपती बच्चे की प्लानिंग करते हैं और उन का मातापिता बनने का सफर आसानी से शुरू हो जाता है, वहीं कुछ दंपतियों को कई कोशिशों के बाद भी यह खुशी मिलने में एक अरसा लग जाता है. इस के अलावा कई बार कुछ सामान्य शारीरिक दोषों की वजह से भी औरत गर्भावस्था के सुख से वंचित रह जाती है. ऐसे में आजकल पतिपत्नी यह सपना आईवीएफ के जरीए भी पूरा करने लगे हैं. यह बच्चे के लिए तरसते दंपतियों की जिंदगी में खुशियों के दीप जलाने की एक बेहतरीन और नई तकनीक है.

आइए, जानते हैं प्रैगनैंसी और आईवीएफ से जुड़ी कुछ रोचक और जरूरी बातें:

गर्भावस्था क्या है: गर्भावस्था का एहसास और इस की पूरी प्रक्रिया से ले कर बच्चे के मां के हाथों में आने तक सबकुछ इतना जादुई है कि कभीकभी यकीन करना कठिन होता है कि छोटा सा फर्टिलाइज्ड एग कैसे मां के गर्भाशय में पहुंच कर एक बच्चे का रूप ले लेता है. दरअसल, गर्भावस्था का पूरा मामला हारमोंस के एक ऐसे बायोलौजिकल डांस पर टिका होता है जिस की एक भी बीट आप को मिस नहीं करनी चाहिए वरना फिर अगले महीने का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है. अगला महीना यानी अगला औव्यूलेशन पीरियड.

एक सामान्य लड़की के यूटरस यानी गर्भाशय में सिर्फ 10 मिलीलिटर यानी 2 चम्मच पानी समाने जितनी क्षमता होती है. लेकिन जब गर्भावस्था का समय आता है तब इस की क्षमता बढ़ कर इतनी ज्यादा हो जाती है कि इस में लगभग 5 लिटर फ्लूड आ जाता है. गर्भाशय खुद को इतना ज्यादा फैला लेता है कि इस में बढ़ते बच्चे के लिए पूरी जगह बनने लगती है.

एक औरत के मां बनने के लिए पतिपत्नी का सिर्फ शारीरिक संबंध बनाना ही काफी नहीं है बल्कि यह संबंध महिला का औव्यूलेशन पीरियड के समय बनाना जरूरी होता है. कई लड़कियों को औव्यूलेशन पीरियड के बारे में जानकारी नहीं होती है, इसलिए मां बनने की उन की इच्छा बहुत देर से पूरी होती है.

जटिल प्रक्रिया: सामान्य रूप से गर्भावस्था एक एग और स्पर्म के मिलने की प्रक्रिया है. लेकिन वास्तव में इस के पीछे शरीर के भीतर बहुत कुछ घटित होता है. साइंस की भाषा में गर्भावस्था तब शुरू होती है जब एक फर्टिलाइज्ड एग गर्भाशय में प्रवेश करता है. यह पूरी प्रक्रिया काफी जटिल है और इस को सम झने के लिए स्पर्म और एग के बारे में सम झना जरूरी है.

स्पर्म एक प्रकार के माइक्रोस्कोपिक सैल होते हैं जो टैस्टिकल्स में बनते हैं. स्पर्म अन्य फ्लूड्स के साथ मिल कर सीमन तैयार करता है जो इजैक्यूलेशन के दौरान पुरुष जननांग से बाहर निकलता है. जितनी बार इजैक्युलेशन होता है उतनी बार लाखों की संख्या में स्पर्म निकलते हैं, लेकिन गर्भावस्था के लिए सिर्फ एक स्पर्म और एग के मिलने की जरूरत होती है. एग्स ओवरीज में होते हैं. हारमोंस जो महिलाओं के मासिकचक्र के लिए जिम्मेदार होते हैं उन की ही वजह से हर महीने कुछ एग मैच्योर हो जाते हैं.

एग के मैच्योर होने का मतलब है कि वह स्पर्म के साथ फर्टिलाइज होने के लिए तैयार है. हारमोंस की वजह से गर्भाशय की बाहरी सतह भी थोड़ी मोटी हो जाती है जिस से महिला का शरीर गर्भावस्था के लिए तैयार होता है.

औव्यूलेशन पीरियड और गर्भावस्था

मासिकचक्र शुरू होने से कुछ दिनों पहले एक मैच्योर एग ओवरी से बाहर निकलता है और फैलोपियन ट्यूब से होते हुए यूटरस में प्रवेश करता है जिसे औव्यूलेशन पीरियड कहा जाता है. इस दौरान गर्भवती होने की संभावना सब से ज्यादा होती है. इस दौरान जब स्पर्म और एग जुड़ते हैं तो इसे फर्टिलाइजेशन कहा जाता है. जब यह फर्टिलाइज्ड एग गर्भाशय की तरफ जाता है तब वह ज्यादा से ज्यादा सैल्स में विभाजित होने लगता है जिस से एक बौलनुमा आकृति बन जाती है.

कोशिकाओं की ये गेंदनुमा आकृति फर्टिलाइजेशन के 3-4 दिन बाद गर्भाशय में प्रवेश करती है. जब यह गर्भाशय की दीवार से जुड़ जाती है तो इसे इंप्लांटेशन कहा जाता है जो गर्भावस्था की औफिशियल शुरुआत होती है. इन सारी प्रक्रियाओं के करीब 9 महीने के बाद बच्चे का जन्म होता है.

कमी महिला में ही नहीं पुरुष में भी हो सकती है: जब एक फर्टिलाइज्ड एग गर्भाशय में इंप्लांट हो जाता है तब प्रैगनैंसी हारमोंस की वजह से पीरियड्स रुक जाते हैं. लेकिन अगर एग स्पर्म से नहीं जुड़ता है या फर्टिलाइज्ड एग यूटरस में इंप्लांट नहीं होता है तो पीरियड्स के साथ ये फर्टिलाइज्ड एग्स भी बाहर निकल जाते हैं और गर्भवती होने के लिए अगले महीने का इंतजार जरूरी हो जाता है.

कई बार महीनों तक कोशिश करने के बाद भी गर्भावस्था की स्थिति सामने नहीं आती. इस की वजह मोटापा और ज्यादा उम्र के अलावा पीसीओएस (पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) या पीसीओडी जैसे कारण हो सकते हैं. कई दफा 2 खास हारमोन प्रोजेस्टेरौन और ऐस्ट्रोजन के बीच संतुलन बिगड़ जाता है या कई बार अंडाशय में सिस्ट (गांठ) बनने लगती हैं. इस से शरीर में कई समस्याएं होने लगती हैं और गर्भ ठहरने में बाधा पहुंचती है.

शादी के बाद सबकुछ सही होने पर भी दंपती को 6 महीनों से ले कर साल तक का समय गर्भावस्था की स्थिति तक पहुंचने में लग सकता है. इस से ज्यादा समय लगने पर जरूर डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए और उसी के अनुसार दवा व उपचार किया जाना चाहिए. कमी सिर्फ महिला में ही नहीं बल्कि पुरुष में भी हो सकती है. हालांकि इन समस्याओं का उपचार भी संभव है.

मां न बन पाने पर हत्या

हाल ही में बिहार के बगहा में संतान नहीं होने पर विवाहिता के गले में रस्सी डाल कर

हत्या का मामला सामने आया. हत्या के बाद ससुराल वाले घर छोड़ कर फरार हो गए. रामनगर थाना के भुवाल साह ने अपनी बेटी निर्मला की शादी 4 साल पूर्व बगहा नगर के कैलाश नगर निवासी भोला साह से की थी. 4 साल बीत जाने के बाद उस की कोई संतान नहीं हुई जिस को ले कर ससुराल वाले उस को प्रताडि़त करते थे, उस के साथ मारपीट करते थे और आएदिन ताने देते थे. कई बार घर से भी निकाल देते थे.

उसे घर में रखने के लिए रुपयों की मांग करते थे. सास अपने बेटे पर दूसरी शादी करने का दबाव भी बनाती थी. अंत में उन्होंने महिला की हत्या ही कर दी.

यह कोई अकेली घटना नहीं है. इस तरह की घटनाएं अकसर होती रहती हैं जब औरत पर बां झ होने का आरोप लगा कर और प्रताडि़त कर उसे दुनिया से ही रुखसत कर दिया जाता है मानों सारा दोष स्त्री का ही हो. ऐसे घर भी होते हैं जहां बच्चा न होने की वजह से घर में रोजरोज कलह होती है.

लड़ाई झगड़ों के बीच रिश्तों के बीच का प्रेम दम तोड़ने लगता है. घर में हमेशा अ

शांति और असंतुष्टि का साम्राज्य छाया रहता है. इस से भी बढ़ कर कुछ लोग तो संतान न होने पर ओ झामौलवी और बाबाओं के दर का चक्कर लगाने लगते हैं और इस तरह रहासहा सुकून और लाखों रुपए भी बरबाद करते हैं.

उपचार के कई विकल्प

भारत में बां झपन के उपचार के कई विकल्प मौजूद हैं, जिन में अंडाशय को अंडे की बेहतर गुणवत्ता के लिए स्टिम्युलेट करने की दवाएं शामिल हैं. इस के साथ अब दूरबीन से होने वाली सर्जरी में काफी तरक्की हुई है जैसे लैप्रोस्कोपी और हिस्ट्रोस्कोपी. ये न केवल समस्या का पता लगाने में मदद करती हैं, बल्कि बेहतर सफलता दर के साथ इस समस्या का उपचार भी करती हैं.

इस के अलावा कृत्रिम प्रजनन तकनीक जैसे इनविट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) मौजूद है. इस में अंडे और शुक्राणुओं को मिलाया जाता है और इन विट्रो यानी शरीर के बाहर निषेचित किया जाता है. उस के बाद उसे फिर गर्भ में स्थानांतरित कर दिया जाता है. यह तकनीक दंपतियों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है.

एआरटी जैसे आईवीएफ, आईसीएसआई आदि बां झपन के लिए एक वरदान है, मगर काफी महंगी है. इस का खर्च प्रति साइकिल करीब 1.5 से 2.5 लाख रुपए आता है जो इसे गरीबों की पहुंच से बाहर कर देता है.

कुछ समय पहले तक बेऔलाद महिलाओं को आईवीएफ की मदद से 45 साल की उम्र तक मां बनने की इजाजत थी, लेकिन लोकसभा में ‘असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी (रैगुलेशन) यानी एआरटी बिल 2020’ पास होने के बाद संतानहीन महिलाएं आईवीएफ की मदद से 50 साल की उम्र तक मां बन सकेंगी.

एग डोनर महिलाओं को मिलने वाले मेहनताने में सुधार होगा और उन की सेहत का खयाल भी रखा जाएगा. बहुत सारी महिलाओं के शरीर में ‘एग’ की कमी होती है. इन के लिए एग डोनर की सुविधा ली जाती है.

उम्मीदों को मिली उड़ान

आज पूरे विश्व में करीब 90 लाख बच्चे आईवीएफ की मदद से जन्म ले रहे हैं. ‘इंडियन आईवीएफ मार्केट आउटलुक 2020’ की रिपोर्ट के अनुसार 2014 से 2020 के बीच आईवीएफ मार्केट में 15% की बढ़त हुई. ‘आरएनसीओएस’ बिजनैस कंसल्टैंसी सर्विसेज की इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों में कई वजहों से इनफर्टिलिटी बढ़ी है, जिस में अधिक उम्र में शादी होना और लाइफस्टाइल को जिम्मेदार ठहराया गया है. यूनाइटेड नेशंस के डेटा के अनुसार भारत में इनफर्टिलिटी रेट बढ़ी है.

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