आदिल के अब्बू की तबीयत आज कुछ ज्यादा ही खराब लग रही थी, इसलिए उस ने आज खबरों के लिए फील्ड पर न जा कर सरकारी अस्पताल के डाक्टर वर्माजी से मिलने अपने अब्बू को ले कर अस्पताल पहुंच गया था.

आदिल के अब्बू को दमे की दिक्कत थी, जिस की वजह से वे बहुत ही परेशान रहते थे. डाक्टर वर्मा की दवा से उन को फायदा था, इसलिए वह अब्बू का इलाज उन से ही करा रहा था.

जब आदिल अस्पताल पहुंचा, तो डाक्टर साहब अभी अपने कमरे में नहीं बैठे थे. पड़ोस में अधीक्षक साहब के औफिस से हंसीमजाक की आवाजें आ रही थीं. उस ने अंदाजा लगा लिया कि डाक्टर साहब अधीक्षक साहब के साथ बैठे होंगे.

आदिल अब्बू को एक बैंच पर लिटा कर खुद भी वहीं एक बैंच पर बैठ गया. तभी उस की नजर एक औरत पर पड़ी, जो अपने बीमार बच्चे को गोद में ले कर इधरउधर भटक रही थी, लेकिन काफी वक्त बीत जाने के बाद भी उस के बच्चे को अभी तक किसी डाक्टर ने नहीं  देखा था.

वह औरत अस्पताल में मौजूद स्टाफ से अपने बच्चे के इलाज के लिए गुहार लगा रही थी कि डाक्टर साहब को बुला दो, लेकिन कोई उस की बात सुनने को तैयार नहीं था. शायद उस का बच्चा काफी बीमार था, लेकिन कोई भी उस की मदद के लिए सामने नहीं आया था.

आदिल उस औरत को देख कर इतना तो समझ गया था कि वह काफी गरीब है, वरना वह इस कदर परेशान नहीं हो रही होती. अगर वह पैसे वाली होती, तो अभी तक बाहर के किसी प्राइवेट अस्पताल में जा कर अपने बच्चे को दिखा देती.

जानते हैं, सरकारी अस्पतालों की हालत. सरकार सरकारी अस्पताल इसीलिए खुलवा रही है कि गरीबों और बेबसों का मुफ्त इलाज हो सके, लेकिन इन भ्रष्ट डाक्टरों के चलते सरकारी अस्पताल इन की कमाई का अड्डा बन गए हैं, क्योंकि इन की इनसानियत मर चुकी है और वे गरीबों का खून चूसने से भी बाज नहीं आते.

आदिल ने एक नजर सामने लगी दीवार घड़ी पर डाली, जो सुबह के  11 बजने का संकेत दे रही थी. अस्पताल में मरीजों की भीड़ भी बढ़ती जा रही थी, लेकिन अभी तक किसी कमरे में कोई डाक्टर नहीं बैठा था, जिस से उस औरत के साथसाथ बाकी मरीज भी परेशान हो रहे थे.

आदिल को आज तक सरकारी महकमे का काम करने का तरीका समझ नहीं आया कि जनता के रुपयों से वे लोग तनख्वाह पाते हैं, लेकिन इस के बावजूद कभी कोई जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाना चाहते.

आदिल एक टैलीविजन चैनल का पत्रकार होने के चलते कई बार सरकारी अस्पतालों की इस तरह की खबरें चला चुका है, लेकिन फिर भी हाल नहीं बदले, क्योंकि कमीशनबाजी के चलते ऊपर से नीचे तक सभी भ्रष्ट बैठे थे, जिन का हिस्सा पहले ही पहुंच जाता था.

लेकिन बारबार खबरें चलाने के चलते उन लोगों ने आदिल के लिए जरूर परेशानी खड़ी कर दी थी. एक बार उस ने इसी अस्पताल की एक खबर डाक्टरों के द्वारा कमीशनबाजी के चलते बाहर के मेडिकल दुकानों की लिखी जाने वाली दवाओं पर चला दी थी, उसी दौरान उस को कुछ दवाओं की जरूरत पड़ गई थी, जो साधारण सी दवाएं थीं, लेकिन फिर भी उस की खबर चैनल पर चलने से नाराज किसी मैडिकल वाले ने उसे वे दवाएं नहीं दी थीं. इस के बाद उस ने किसी दूसरे पत्रकार साथी को भेज कर वे दवाएं मंगवाई थीं.

उस वक्त उसी पत्रकार ने आदिल को समझाया था कि ज्यादा बड़े पत्रकार मत बनो, पूरा सिस्टम भ्रष्ट है. तुम इन को नहीं सुधार सकते, लेकिन तुम जरूर किसी दिन इन के चक्कर में आ कर बहुतकुछ गंवा दोगे.

उस हादसे के बाद अब आदिल अस्पताल की कोई भी नैगेटिव खबर जल्दी नहीं चलाता था कि दोबारा वह इस तरह की मुसीबत में पड़े.

‘‘बाबूजी, हमारे बच्चे को बचा लो. इसे बहुत तेज बुखार हो गया है. इस के सिवा हमारा कोई भी नहीं है.’’

तभी किसी की आवाज सुन कर आदिल की तंद्रा टूटी. उस ने देखा कि वही औरत अपने बच्चे को ले कर उस के पास आ गई थी और रोरो कर वह उस से मदद की गुहार लगा रही थी.

उस औरत को अपने पास देख आदिल जरूर समझ गया था कि अस्पताल में मौजूद किसी शख्स ने उसे बता दिया था कि वह एक पत्रकार है.

उस औरत के आंसू और बच्चे के लिए तड़प उस से अब देखी नहीं जा रही थी. उस का चेहरा गुस्से से लाल होता जा रहा था, लेकिन वह यह भी अच्छी तरह जानता था कि अगर उस ने किसी तरह का कोई कदम उठाया, तो उस के लिए बहुत ही घातक साबित होगा, क्योंकि वह जानता था कि ये डाक्टर रूपी गिरगिट हैं, जो रंग बदलते देर नहीं करेंगे, जिस का नतीजा भी उस को भुगतना पड़ सकता है.

आदिल ने एक नजर बैंच पर लेटे अपने अब्बू पर डाली, जो उस की ओर ही देख रहे थे. उस की मनोदशा को वे अच्छी तरह से समझ रहे थे.

‘‘जो होगा देखा जाएगा,’’ आदिल ने मन ही मन तय किया. वह बैंच से उठा और मोबाइल का कैमरा चालू कर उस बेबस मां और उस के बीमार बच्चे के साथसाथ अस्पताल में मौजूद मरीजों की लगी भीड़ की एक वीडियो क्लिप बना ली. यही नहीं, उस ने एक बयान भी उस औरत का कैमरे में ले लिया कि वह कब से अपने बीमार बच्चे को ले कर भटक रही है वगैरह. फिर आदिल ने अधीक्षक के औफिस के पास पहुंच कर एक वीडियो अधीक्षक और डाक्टरों की पार्टी करते बना ली और चैनल पर खबर भेज कर खबर ब्रेक करा कर ट्वीट भी करा दी.

खबर चैनल पर चलने के बाद  5 मिनट भी नहीं गुजरे कि अस्पताल में हड़कंप मच गया.

औफिस के अंदर बैठे अधीक्षक व डाक्टर हड़बड़ाते हुए बाहर निकले और उस औरत के बच्चे को दाखिल कर उस के इलाज में जुट गए. यह देख कर आदिल को सुकून मिला कि अब वह बच्चा बच जाएगा.

‘‘बाबूजी, मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी,’’ कह कर वह औरत आदिल के पैर छूने लगी.

‘‘अरे, यह आप क्या कर रही हैं? उठिए, मैं ने कोई आप पर एहसान नहीं किया है. मैं ने केवल अपने कर्तव्य का पालन किया है,’’ आदिल ने उस औरत को उठाते हुए कहा.

तभी आदिल के अब्बू को दमे का अटैक पड़ गया और वे तड़पने लगे. यह देख कर उस ने तुरंत अब्बू का इन्हेलर निकाल कर उस में कैप्सूल लगा कर अब्बू के मुंह पर लगा दिया. अब्बू ने जोर से सांस खींचनी चाही, पर वे ऐसा नहीं कर सके.

यह देख कर आदिल तुरंत डाक्टर वर्मा को बुलाने पहुंच गया, जो किसी मरीज को देख रहे थे. उस ने अब्बू का हाल बता कर चलने के लिए कहा. लेकिन उन्होंने थोड़ा वक्त लगने की बात कह कर बाद में आने के लिए बोल दिया.

आदिल वापस अब्बू के पास आ गया, जो सांस न ले पाने के चलते काफी परेशान हो गए थे. वह थोड़ी देर तक बैठा उन के सीने को सहलाता रहा. उस के बाद फिर वह डाक्टर वर्मा को बुलाने पहुंच गया.

‘‘अरे, सौरी आदिल भाई, मैं तो भूल ही गया था. चलो, चलता हूं. कहां हैं तुम्हारे बाबूजी?’’ उसे देख कर डाक्टर वर्मा ने कहा और उस के साथ चल दिए.

‘‘आप के बाबूजी की तबीयत तो काफी ज्यादा खराब है. आप को इन  को जिला अस्पताल ले कर जाना पड़ेगा,’’ आदिल के अब्बू की हालत  देख कर डाक्टर वर्मा ने मानो ताना मार कर कहा.

डाक्टर की बात सुन कर आदिल समझ गया कि वे ऐसा क्यों कह रहे हैं. वह जानता था कि खबर चलने के बाद वे उस को परेशान जरूर करेंगे, क्योंकि अब्बू का यह अटैक तो कुछ भी नहीं था. इस से पहले जो अब्बू को  अटैक आए थे, वे भी ज्यादा तेज थे, तब तो उन्होंने महज एक इंजैक्शन लगा कर ही कंट्रोल कर लिया था, लेकिन अब वे उस से चिढ़ कर ही ऐसा कर  रहे हैं.

आदिल को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, क्योंकि अब्बू की हालत वहां ले जाने वाली नहीं थी, अगर वह उन्हें यहां से ले जाता है तो भी वहां तक पहुंचतेपहुंचते काफी देर हो जाएगी.

‘‘बाबूजी, हमारी वजह से ही आप को परेशानी हो रही है. अगर आप हमारी मदद न करते तो ये डाक्टर साहब अब्बू को जरूर ठीक कर देते,’’ उसे परेशान देख कर उस औरत ने हाथ जोड़ते हुए उस से कहा.

तभी एक बार फिर आदिल के बाबूजी तड़पने लगे, लेकिन सामने खड़ा कोई भी डाक्टर या फिर कोई स्टाफ उन को देखने तक नहीं आया. तभी उस के अब्बू को जोर से खांसी आने लगी  और फिर वे शांत हो गए. उस के अब्बू हमेशा के लिए उसे छोड़ कर जा चुके थे, बहुत दूर.

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