अमितके मित्र और कुलीग मोहित के बेटे की बर्थडे पार्टी थी. हमें रात के 8 बजे उन के घर पहुंचना था, किंतु 7 बजने वाले थे और अमित अभी तक औफिस से नहीं आए थे. मैं तैयार हो कर उन का इंतजार कर रही थी. आखिकार मु?ा से रहा नहीं गया. मैं ने उन के औफिस फोन किया तो पता चला कि अमित 5 बजे औफिस से चले गए थे. मु?ो चिंता हुई. मैं ने मोबाइल पर फोन मिलाया. अमित की आवाज आई, ‘‘रितु, मैं अभी औफिस में मीटिंग में बिजी हूं. थोड़ी देर में पहुंच रहा हूं.’’

मु?ो बुरा लगा. अमित मु?ा से ?ाठ बोल रहे थे. हो सकता है कि अपने फ्रैंड्स के साथ हों या फिर मोहित के बेटे के लिए कोई उपहार लेने गए हों. थोड़ी देर बाद अमित आ गए और बोले, ‘‘आज औफिस में बहुत थक गया. शाम को बौस ने मीटिंग बुला ली. किंतु सच कहूं, तुम्हें देखते ही सारी थकान मिट गई. आज बहुत सुंदर लग रही हो. चलो, पार्टी में चलते हैं.’’

मेरा मन बु?ा गया, किंतु मैं ने चेहरे के भावों से जाहिर नहीं होने दिया. पार्टी में पहुंचे, तो केक कट चुका था. मेहमान डिनर कर रहे थे.हमें देख मोहित ने उलाहना दिया, ‘‘हद होती है यार, इतनी देर में आए हो. हम लोग कब से राह देख रहे थे.’’

मैं तपाक से बोली, ‘‘औफिस में मीटिंग थी. आप को तो पता ही होगा. इसीलिए देर हो गई.’’

मैं ने देखा, मोहित की ओर देखते हुए अमित ?ोंप रहे थे. खाने की प्लेट उठाते हुए मैं ने मोहित को इन से कहते सुना, ‘‘यह मीटिंग का क्या चक्कर है? तू तो 5 बजे ही औफिस से निकल गया था.’’

‘‘कुछ नहीं यार, थोड़ी देर के लिए उस से मिलने चला गया था.’’

‘‘देख अमित, तू विवाहित है. ज्यादा चक्कर में मत पड़. छोड़ उसे उस के हाल पर और रितु पर ध्यान दे.’’

मेरा मन धक से रह गया. यह क्या माजरा है और मोहित किसे छोड़ने की बात कर रहा था. घर पहुंच कर मैं उस पूरी रात सो न सकी थी. उस के बाद भी 2-3 बार ऐसा हुआ कि अमित मीटिंग का बहाना बना कर देर से घर आए, जबकि औफिस से पता चला था कि कोई मीटिंग नहीं थी.

अब तक सम?ाती थी कि अमित एक परफैक्ट हसबैंड हैं. उन में वे सभी

गुण हैं, जो एक लड़की अपने पति में चाहती है. किंतु अब लग रहा था, अमित को मैं जानती ही कितना हूं.

कुछ ही दिन तो बीते हैं, विवाह हुए. विवाह के 2 दिन बाद हम दोनों हनीमून के लिए दार्जिलिंग चले गए थे. वहां से लौट कर सप्ताह भर दिल्ली अपनी ससुराल में रह कर अमित के साथ पुणे आ गई. यहां जिंदगी धीरेधीरे अपने रूटीन पर आ गई. अमित सुबह औफिस के लिए निकल जाते और मैं घर को सजानेसंवारने में लग जाती. शाम को अकसर हम दोनों कहीं घूमने चल देते. कुल मिला कर मैं खुश थी. किंतु इन दिनों मेरे दिल में हलचल मची हुई थी कि ऐसा क्या है, जो अमित मु?ा से छिपा रहे हैं.

मैं ने सोचा यों परेशान होने से कुछ हासिल नहीं होगा. मु?ो बुद्धिमानी से स्वयं पता करना होगा, आखिर बात क्या है. कहीं अमित मेरे चेहरे के भावों से मन की बात सम?ा न जाएं, इस के लिए उन के सामने सहज रहने का अभिनय करना होगा.

अब रोज सुबह जब अमित बाथरूम में होते, मैं उन का मोबाइल चैक करती. एक दिन एक मैसेज पर मेरी नजर अटक गई. बैंक से मैसेज था. अमित के अकाउंट से क्व1 लाख निकाले गए थे. इतनी बड़ी रकम उन्होंने किसे दी और क्यों, यह सवाल मु?ो परेशान करने लगा. अमित के घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी, इसलिए वहां देने का तो सवाल ही नहीं था. अब जितना समय वे घर में रहते, मैं चौकस रहती.

फिर एक रात खाना बनाते समय मु?ो लगा, अमित कमरे में फोन पर किसी से धीरेधीरे बातें कर रहे हैं. मैं आंच बंद कर दबे पांव दरवाजे के पीछे जा खड़ी हुई और कान लगा कर सुनने लगी.

वे मोहित से कह रहे थे, ‘‘नयना को रुपए दे दिए हैं. तू चिंता मत कर यार. रितु को कुछ पता नहीं चलेगा. वह तो स्वयं में ही मस्त रहती है.’’

मैं ने एक गहरी सांस भरी और वहां से हट गई. रात में अमित ने मु?ो अपनी बांहों में समेटना चाहा तो इच्छा हुई, उन का हाथ ?ाटक दूं. चेहरे पर बनावटी मुसकान का आवरण ओढ़े आखिर कब तक मैं उन के ?ाठे प्यार के नाटक में उन का साथ देती रहूंगी. अपने सम्मान को मार कर कब तक इस धोखेबाज इंसान को अपनी भावनाओं से खिलवाड़ करने दूंगी. किंतु मैं ने क्रोध में उफनती भावनाओं पर काबू पाया. सब्र से काम ले कर ही अपने मकसद में कामयाब हो सकती थी और अमित के ?ाठ को पकड़ सकती थी.

जल्द ही मु?ो सफलता मिली. उस रोज सुबह नाश्ता करते हुए अमित बोले, ‘‘रितु, मु?ो शाम को औफिस से लौटने में देर हो जाएगी. बौस के साथ मीटिंग है. तुम चाय पी लेना.’’

मेरा चेहरा उतर गया. आज सुबह इन का मोबाइल चैक करना भी भूल गई थी. तभी संयोग से दिल्ली से मेरी सास का फोन आ गया. अमित ने उन से बात की फिर बोले, ‘‘लो, मां, तुम से बात करना चाहती हैं.’’

मैं मोबाइल ले कर बालकनी में चली गई. मां से बातें करतेकरते मोबाइल का इनबौक्स चैक किया. एक मैसेज को देख कर मेरा दिल डूबने लगा. लिखा था, ‘आज शाम 6 बजे ग्लैक्सी मौल के कौफीहाउस में मिलो- नयना.’ यह नयना वही थी, जिसे अमित ने रुपए दिए थे. बात कर के मैं ने खामोशी से फोन उन्हें दे दिया.रोज की तरह जाते हुए अमित ने मेरे माथे पर चुंबन दिया तो मेरा मन वितृष्णा से भर

उठा. उन का स्पर्श भी अब मु?ो पराया लग रहा था. कौन है यह नयना? क्या रिश्ता है उस का अमित से? क्या उन का नयना के साथ अफेयर चल रहा है? शायद यही सच था, तभी तो मु?ा से ?ाठ बोल कर वे उस से मिल रहे थे. सारा दिन मैं वेदना के भंवर में डूबतीउतराती रही. एक अजीब सी बेचैनी, अनजाने भय से मैं छटपटाती रही. रहरह कर नजरें घड़ी की ओर उठ रही थीं. शाम के

5 बजते ही मैं ग्लैक्सी मौल की ओर चल दी. मैं अमित को रंगे हाथों पकड़ कर इस लुकाछिपी के खेल को समाप्त कर देना चाहती थी. ग्लैक्सी मौल के कौफीहाउस में पहुंचतेपहुंचते 6 बज गए. इधरउधर नजर डाली तो सब से पीछे कोने की मेज पर अमित एक खूबसूरत लड़की के साथ बैठे दिखे.

मैं कुछ सोच कर दृढ़ कदमों से उन की ओर बढ़ी. अमित नजरें ?ाकाए कुछ पेपर्स पढ़ने में व्यस्त थे. मैं उन की मेज के पास जा कर खड़ी हो गई. ज्योंही उन की नजर मु?ा पर पड़ी, वे बुरी तरह हड़बड़ा गए, ‘‘रितु, तुम यहां?’’ वे हैरानी से बोले.

मैं ने उन की आंखों में देख कर कहा, ‘‘अपनी फ्रैंड के साथ मौल में आई थी. आप को यहां देखा तो चली आई,’’ कह कर मैं वहां से चल दी. अमित पीछे से पुकारते ही रह गए.

मैं मन में पीड़ा का गुबार दबाए घर पहुंची और पलंग पर गिर कर फूटफूट कर रो पड़ी. दिल में हाहाकार मचा हुआ था. सम?ा नहीं आ रहा था क्या करूं. जब मन कुछ हलका हुआ तो उठ कर अटैची में कपड़े रखने लगी. अमित ने मेरे भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा दिया था. अब मु?ो क्या कदम उठाना चाहिए, यह फैसला लेना मुमकिन नहीं था कि तभी घंटी बजी. अमित आ गए थे. वे बेहद गंभीर थे. उन्होंने एक नजर अटैची में रखे कपड़ों पर डाली और फिर मेरा हाथ पकड़ कर बोले, ‘‘यह क्या कर रही हो रितु? कहां जा रही हो?’’

मैं ने गुस्से में उन का हाथ ?ाटक दिया और बोली, ‘‘अमित, आप ने क्या सम?ा था, आप मु?ो धोखा देते रहेंगे और मु?ो कुछ पता नहीं चलेगा? मैं काफी दिन पहले जान गई थी कि औफिस की मीटिंग के नाम पर आप कहीं और जाते हैं. मैं इस मौके की तलाश में थी कि आप का ?ाठ आप के सामने ला सकूं. आप का नयना से अफेयर था तो मु?ा से शादी क्यों की?’’

‘‘मेरा उस से अफेयर नहीं है रितु.’’

‘‘?ाठ कह रहे हैं आप… तभी तो मु?ा से ?ाठ बोल कर उस से मिलते हैं. उसे रुपए देते हैं.’’

अमित ने हैरानी से मु?ो देखा तो मैं बोली, ‘‘अमित, मैं कोई बेबस, निरीह लड़की नहीं जो पति की बेवफाई पर आंसू बहाती रहूं. मैं पढ़ीलिखी साहसी लड़की हूं. अपनी जिंदगी खराब नहीं होने दूंगी. फिलहाल मैं अपने घर जा रही हूं.’’

मैं ने अटैची उठानी चाही तो अमित ने मेरी बांह थाम ली. भर्राए स्वर में बोले, ‘‘बात सुन लो, फिर जो चाहो सजा देना. रितु, नयना का मु?ा से नहीं, मेरे बड़े भाई आलोक से अफेयर था. घर में सभी को इस बात का पता था. वह बे?ि?ाक हमारे घर आया करती थी. मैं तो उसे भाभी कहता था. नयना के मांबाप नहीं हैं. बड़े भाईभाभी हैं. सब की रजामंदी से भैया और नयना की सगाई कर दी गई.

शादी की तिथि 3 महीने बाद तय हुई थी. घर में जोरशोर से शादी की तैयारी चल रही थी, तभी कंपनी की ओर से एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में भैया को अमेरिका जाने को कहा गया. मां और पिताजी चाहते थे, जाने से पहले दोनों की शादी कर दी जाए ताकि भैया नयना को ले कर अमेरिका चले जाएं किंतु भैया नहीं माने. उन का कहना था, 6 माह बाद लौट कर आराम से अपनी जिंदगी शुरू करेंगे. नयना को प्रतीक्षा करने के लिए कह कर आलोक भैया चले गए. किसी तरह 6 माह कटे, किंतु भैया नहीं लौटे. फिर 1 साल बीततेबीतते भैया ने कंपनी बदल ली और वहीं पर बसे एक भारतीय परिवार की लड़की से शादी कर ली.

‘‘नयना के भाई ने पिताजी को बहुत बुराभला कहा. किंतु वे बेचारे शर्मिंदा होने के सिवा क्या करते? और नयना वह तो बिलकुल खामोश हो गई थी. उस के बाद नयना के बारे में हमें कुछ पता नहीं चला. बी.टैक करने के बाद जौब के लिए मैं पूना आ गया. तुम से शादी हुई. हनीमून से लौट कर एक संडे घर का सामान लेने मार्केट गया था. वहीं नयना मु?ो मिल गई. उस के साथ उस का 2 साल का बेटा भी था.

‘‘रितु, उस दिन नयना ने अपने बारे में मु?ो जो कुछ बताया वह बहुत दुखद था.

आलोक से धोखा खाने के बाद उस की शादी हुई और 3 साल के अंदर ही अत्यधिक शराब पीने के कारण पति की मौत हो गई. ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया. 2 साल के बेटे को साथ लिए नयना मायके आई. किंतु वहां भी भाईभाभी उसे बो?ा सम?ाते हैं. रितु उस की इस दुर्दशा का जिम्मेदार मेरा मन आलोक भैया को मान रहा था. इस नाते मैं ने उस की मदद करने का निश्चय किया. चाहता था, उसे कहीं अच्छी जौब मिल जाए और उस के बेटे का अच्छे स्कूल में दाखिला हो जाए. इस सिलसिले में कई बार उस से मिलना हुआ. उसे 1 लाख रुपए भी दिए जो उस ने इसी शर्त पर स्वीकारे हैं कि वह उन्हें वापस कर देगी. रितु, मैं ने जो कुछ भी किया, इंसानियत के नाते किया. तुम चाहो तो मोहित से पूछ लो. उसे सब पता है.’’

‘‘मैं जानती हूं, मोहित को पता है सिर्फ मु?ो ही आप ने पराया बना दिया. क्या मु?ा पर आप को तनिक भी विश्वास नहीं था?’’

‘‘दरअसल, मेरे मन में संकोच था. तुम घर में नईनई आई थीं. मैं ने सोचा, भैया के विश्वासघात से तुम्हारे मन में उन के प्रति सम्मान कम हो जाएगा. तुम क्या सोचोगी कि कैसे परिवार से मेरा नाता जुड़ा है.’’

कुछ क्षण खामोश रह कर मैं बोली, ‘‘यदि ऐसा व्यवहार मैं ने आप के साथ किया होता तो क्या आप खुशीखुशी मु?ो माफ कर देते? पतिपत्नी का रिश्ता आपसी विश्वास पर टिका होता है. आप ने यह क्यों नहीं सोचा कि दूसरों

के प्रति सम्मान की भावना बनाए रखने के लिए आप अपनी पत्नी को धोखा दे रहे हैं? अपने रिश्ते की नींव को कमजोर कर रहे हैं? छोटीछोटी बातें ही पतिपत्नी को करीब लाती हैं और छोटीछोटी बातों से ही रिश्ता दरकने लगता है.’’

‘‘मु?ो माफ कर दो रितु, जो चाहो सजा दे दो, किंतु मु?ो छोड़ कर मत जाओ. तुम कहोगी तो मैं नयना की मदद नहीं करूंगा.’’

‘‘मैं इतनी संवेदनाशून्य नहीं और न ही मेरा दिल इतना छोटा है. अमित, नयना को सपोर्ट करने की आप की भावना का मैं सम्मान करती हूं और हमेशा आप के साथ हूं, किंतु आप को मु?ा से एक वादा करना होगा. आप भविष्य में कभी मु?ा से कुछ छिपाएंगे नहीं.’’

‘‘मैं वादा करता हूं रितु, मैं कभी तुम से कुछ नहीं छिपाऊंगा. सदैव तुम्हारी भावनाओं की कद्र करूंगा,’’

भावविह्वल हो अमित ने मु?ो अपनी बांहों के घेरे में ले लिया. आज उन का यह स्नेहिल स्पर्श मु?ो बहुत अपना सा लगा.

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