कर्नाटक की विधान सभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने 33 वर्षीय तेजतर्रार हिंदुत्व का झंडा ऊंचा करने वाले कट्टर ब्राह्मण तेजस्वी सूर्या को चुनावी सभाओं में भाषण देने की सूची में शामिल नहीं किया और चुनाव का सारा भार 80 साल के बीएस यदुरप्पा पर डाल दिया.
वैसे भी भारतीय जनता पार्टी में आजकल 2 ही नेता (बाकी अंधभक्त, दरियां बिछाने वाले और फूल बरसाने वाले) बचे हैं. ये दोनों नेता मोदी 72 वर्ष के हैं व शाह 58 साल के. एक जमाने में भारतीय जनता पार्टी उन युवाओं से भरी होती थी जो हर मसजिद को तोड़ने को आमादा रहते थे, हर लड़केलड़की को इकट्ठा बैठे देख कर गरियाते थे, हर पढ़ेलिखे को अरबन नक्सल कहते थे और ये स्कूलों से ले कर विश्वविद्यालयों तक आरएसएस शाखाओं के कारण भरे रहते थे.
यही कुछ अमेरिका में हो रहा है. अमेरिका में इस बार 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन डैमोक्रेटिक पार्टी के कैंडीडेट होंगे और रिपब्लिकन पार्टी के शायद पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दूसरी टर्म के लिए.
2024 में जो बाइडेन 82 साल के होंगे और ट्रंप 78 साल के जिस का मतलब है कि 2028 में टर्म खत्म होने पर जो बाइडेन 86 के होंगे और ट्रंप 82 के होंगे. मोदी अगर 2024 में जीतते हैं तो 2029 में 79 वर्ष के होंगे.
यह दुनिया अब बूढ़ों के हाथों में जा रही है और एक जगह बूढ़ों की भरमार हो रही है. इंगलैंड के नए राजा चार्ल्स 73 साल की आयु में गद्दी पर बैठे, रूस के पुतिन 70 साल के हैं, शी जिनपिंग 70 साल के हैं, सिंगापुर के ली सीन लूंग 71 साल के हैं, जापान के फुमियो किशिदा 64 साल के हैं.
युवा नेता न अब संसदों में दिख रहे हैं, न मंत्रिमंडलों में और न ही कंपनियों की चेयरमैनी में.
यह ठीक है कि लोग ज्यादा जी रहे हैं और बच्चे कम हो रहे हैं और इसलिए दुनियाभर की पौपुलेशन सफेद बालों वाली हो रही है और जब लोगों को रिटायर होना चाहिए तब भी काम पर चले जा रहे हैं.
फिर भी युवाओं को इस तरह कौर्नर में डाल देना गलत है. आज राजनीति में जो एक बार कुरसी पर आ जाता है, चिपक कर बैठ जाता है. कांग्रेस में सोनिया गांधी चिपकी हुई हैं, समाजवादी पार्टी में हाल ही में मुलायम सिंह की मृत्यु के बाद ही अखिलेश को मौका मिला. राष्ट्रीय जनता दल आज भी बीमार लालू यादव के हाथों में है. ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में 68 साल की उम्र में 13 साल से सर्वेसर्वा बनी बैठी हैं.
अमेरिका हो, यूरोप, एशिया या अफ्रीका सब जगह आज नया उत्पादन, नई टैक्नोलौजी बिलकुल जवानों के हाथों में है. कोडिंग 15-16 साल वालों के हाथों में, डिजाइनिंग और प्रोडक्शन 20-25 साल वालों के हाथों में है पर शासन पूरी तरह सफेद बालों वालों के हाथों में है जो अपने पुराने घिसेपिटे 20वीं सदी के विचार थोप रहे हैं.
यूक्रेन में लड़ाई बूढ़ी सोच की देन है. आज का युवा इंटरनैट से हरेक से जुड़ा है. उस का किसी से बैर नहीं है. वह कम में गुजारा कर सकता है. उसे म्यूजिक पार्टी चाहिए. उसे न घर चाहिए, न बीवी, न बच्चे. वह अलग जीव है, 21वीं सदी का पर उसे जो बाइडेन, डोनाल्ड ट्रंप, चार्ल्स, शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी की पिछली सदी की सोच में जीना पड़ रहा है.
इंटरनैट ने दुनिया को एक कर दिया तो युवाओं के बल पर. इन बूढ़े नेताओं ने इसे फिर बांट दिया है- अमेरिकी, रूसी, चीनी कैंपों में.