• रेटिंगः पांच में से आधा स्टार
  • निर्माता:भूषण कुमार और किशन कुमार
  • लेखकः मनोज शुक्ला मुंतशिर
  • निर्देषक: ओम राउत
  • कलाकार: प्रभास,कृति सैनन, सनी सिंह, सैफ अली खान, देवदत्त नागे, वत्सल सेठ, तृप्ति तोरडमल, सोनल चौहान
  • अवधि: लगभग तीन घंटे

पिछले दो वर्ष से सुर्खियों  में बनी रही निर्देषक ओम राउत की  फिल्म ‘‘आदिपुरूष‘’ अंततः 16 जून को सिनेमाघरो में पहुंच चुकी है. गत वर्ष इस फिल्म का टीजर अयोध्या में रिलीज किया गया था, उस वक्त फिल्म के खिलाफ हंगामा बरपा था. फिल्मकार पर कई तरह के आरोप लगे थे. फिल्म में राम व लक्ष्मण के पैरागॉन कंपनी के चमड़े के चप्पल पहनने पर रोष व्यक्त किया गया था. उस वक्त माहौल इतना बिगड़ गया था कि निर्माता ने फिल्म की रिलीज छह माह के टाल दी थी. इन छह माह में फिल्म के लेखक व भाजपा के नजदीकी मनोज मुंतशिर ने काफी मेहनत की और फिल्म के निर्माता भूषण कुमार व निर्देषक ओम राउत को अपने साथ लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्यप्रदेष के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा (ज्ञातब्य है कि ‘आदिपुरुष’ के टीजर को हिंदू आस्था के साथ खिलवाड़ का आरोप लगाते हुए काफी विरोध किया था,पर अब वह खुश है. जबकि फिल्म में कहीं कोई बदलाव नहीं किया गया.) सहित भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से जाकर मिले और उन्हे फिल्म दिखाकर फिल्म के लिए आशिर्वाद लिया और जब सब कुछ सही हो गया,तब यह फिल्म सिनेमाघर में पहुंचायी गयी.

बौलीवुड में कदम रखने के साथ ही फिल्म के लेखक व गीतकार  अपना नाम मनोज मुतशिर लिखते आए हैं. मगर केंद्र में सरकार बदलने व ‘हिंदूवाद’ व ‘राष्ट्रवाद’ की हवा को देखते हुए उन्होने घोषित कर दिया कि उनका असली नाम मनोज शुक्ला है.

जब पूरा देश राष्ट्रवाद में डूबा हो तो इस फिल्म में विभीषण, राघव(राम) से कहते हैं-‘‘मातृभूमि की रक्षा के लिए विश्वघात सही है.’’ फिल्म को समझने के लिए एक संवाद और देखें-‘‘शेष (लक्ष्मण )को मूर्क्षित करने के बाद इंद्रजीत ,राघव से कहते हैं-‘‘तुम लोगों का बंदर नाच खत्म..अब अपने भाई को उठाओ और वापस जाओ.’

‘रामायण’ की कथा उस काल की है,जब हमारे देश का नाम ‘भारत नही था.पर इस फिल्म में इस भारत ही कहा गया है. इतिहास इतना ही नही काफी बदला गया है.मसलन- शेष (लक्ष्मण) के मूर्क्षित हो जाने पर उनका इलाज करने के लिए श्रीलंका के राजवैद्य सुसैन नही आते हैं,बल्कि विभीषण की पत्नी बजरंग (हनुमान ) से कहती हैं कि संजीवनी बूटी लेकर आओ. बजरंग संजीवनी बूटी का पहाड़ यह कह कर उठाकर लाते हैं कि युद्ध चल रहा है तो इसकी जरुरत दूसरों को भी पड़ेगी और फिर विभीषण की पत्नी संजीवनी बूटी की दवा
बनाकर शेष को पिलाती हैं.

कहानीः

फिल्म की कहानी राघव(प्रभास   ),शेष(सनी सिंह ) व जानकी(कृति सैनन ) के जंगल में पहुंचने से होती है. उधर सुपर्णखा अपने भाई रावण के पास अपनी कटी नाक लेकर पहुंचती है और रावण (सैफ अली खान ) से कहती है कि जानकी जैसी सुंदर औरत तो रावण की पत्नी होनी चाहिए. और यही उसकी कटी नाक का बदला होगा. फिर स्वर्ण मृग को देखकर जानकी कहती है कि इस मृग को हमे अयोध्या लेकर चलना चाहिए. अयोध्या के लोग इसे देखकर खुश होंगें. राघव,मृग के पीछे भागते हैं, शेष की आवाज सुनकर शेष भी उनके पीछे जाते हैं. इधर रावण,जानकी का अपहरण कर लेते हैं. राघव व शेष दोनों पैदल कई किलोमीटर तक रावण के पीछे पैदल भागते हैं,जबकि रावण अपने राक्षसी विमान पर जानकी के साथ उड़ रहा है.फिर जानकी के लिए रावण का वध.

लेखन व निर्देषनः

सात सौ करोड़ की लागत में बनी फिल्म ‘‘आदिपुरूष’’ देखने के बाद अहसास होता है कि यह तो धन की आपराधिक बर्बादी है. फिल्म में निर्देषक की प्रतिभा शून्य नजर आती है. यह फिल्म सिनेमा के नाम पर सबसे बड़ा मजाक है. पूरी फिल्म देखकर यह समझ में नही आता कि फिल्म बनाने का औचित्य क्या है? फिल्मकार कहना क्या चाहते हैं? यह फिल्म किसी की आस्था ही नही बल्कि देश की संस्कृति,इतिहास, तहजीब आदि का मजाक उड़ाती है.

फिल्मकार ने रामायण की जो कहानी है,उसके कुछ दृष्यों को जोड़कर लगभग तीन घंटे की बैलगाड़ी से भी धीमी गति से चलने वाली फिल्म के रूप में पेश कर दिया. कहानी में कहीं भी आपस में कोई तारतम्य नही है. दर्शक भी चौंक जाता है कि यह क्या हो रहा है. वास्तव में एडीटर की भी गलती हैं. बाद वाले दृष्य पहले आ जाते हैं.इसमें न कहीं कोई रिष्ता उभरता है, न कोई संस्कृति,न कोई धर्म,न कोई इतिहास…सब कुछ कूड़ा करकट परोसा गया है. फिल्म में एक भी एक्षन दृष्य नही है, जो कि दर्शक को आकर्षित करे. इससे अच्छे एक्षन दृष्य तो बच्चा मोबाइल पर वीडियो गेम में देख लुत्फ उठाता रहता है. पर फिल्म का बजट सात सौ करोड़ रूपए है, पर वीएफएक्स वगैरह सब कुछ सतही है, तो फिर यह रकम खर्च कहां की गयी? ओम राउट के अनुसार लंका सोने की नही बल्कि काले रंग की थी. फिल्म में लंका काले रंग की ही है. फिल्म के किरदारों की हेअर स्टाइल हूबहू वही है जो वर्तमान समय की नई पीढ़ी की हेअर स्टाइल है. बौलीवुड मसाला फिल्मों की तरह राघव व जानकी प्रेम गीत गाते नजर आती हैं. दो दृष्यों में राघव व जानकी को एक दूसरे की तरफ कम से कम पांच मिनट तक भागते हुए देखकर शाहरुख खान की फिल्म के राज व सिमरन याद आ जाते हैं. निर्देषक ओम राउत का ज्ञान इतना अच्छा है कि उनके राम फिल्म में लोगो से तीर से नही बल्कि हाथपाई करते हैं. लेखक व निर्देषक ने सीता/जानकी की बजाय एक दृष्य में सेक्सी अवतार /सेंसुअल रूप में विभीषण की पत्नी को दिखा दिया.आखिर बौलीवुड मसाला फिल्मों में सेक्स व सेंसुआलिटी नजर आनी चाहिए. जानकी को रावण अशोक वाटिका नहीं, बल्कि काले पत्थर की जमीं वाली जगह पर रखते हैं. इतना ही लोगों को पहली बार पता चलेगा कि रावण व उनके भाई विभीषण  एक साथ बैठकर षराब का सेवन किया करते थे.

ओम राउत ने कुछ दृष्यों को विदेषी फिल्मों ‘‘लार्ड्स आफ द रिंग’ और ‘गेम्स आफ थ्रोन’’ के चुराकर इस फिल्म में पिरो दिए हैं. यह फिल्म देखकर यह स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है कि इन्ही  ओम राउत ने फिल्म ‘‘तान्हाजी’’ का निर्देशन किया था.

फिल्म के कुछ संवाद ऐसे हैं,जिन्हे सुनकर मनोज मुंतशिर के ज्ञान,उनकी भाषा व उनकी तहजीब पर तरस आता है. संवादों में गरिमा, उत्कृष्टता व मर्यादा होनी चाहिए, पर ऐसा कुछ नही है. संवाद सुनकर लेखक का दीमागी दिवालियापन ही सामने आता है. मसलन-रावण का बेटा बजरंग यानी हनुमान से कहता है-‘‘यह तेरी बुआ का बगीचा है,जो हवा खाने चला आया.’’

पूंछ में आग लगाई जाने के बाद हनुमान,रावण के बेटे से कहते हैं-‘‘कपड़ा तेरे बाप का,तेल तेरे बाप का,अग्नि तेेरे बाप की,अब जलेगी तेरे बाप की लंका..’’

जानकी उर्फ सीता,हनुमान से-‘‘राघव ने मुझे पाने के लिए षिव धनुष तोड़ा था,अब उन्हे रावण का घमंड तोड़ना होगा.’’अंगद का संवाद-‘‘जो हमारी बहन को हाथ लगाएगें, हम उनकी लंका लगाएंगे.’ कई संवाद तो ऐसे हैं,जिन्हें हम अक्सर सास बहू मार्का टीवी सीरियलों में अक्सर सुनते आए हैं.

अभिनयः

अफसोस फिल्म में किसी भी कलाकार ने ऐसा अभिनय नही किया है जिसकी चर्चा की जाए. हर कलाकार ‘रोबोट’ की तरह है,जो कि रिमोट कंट्रोल से संचालित होता रहता है. किसी के भी चेहरे पर कोई भाव नहीं.ज्यादा तर कलाकारों को संवाद तक ठीक से बोलना नही आया. हॉ! विभीषण की पत्नी का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री ने जरुर सही ढंग से संवाद बोले हैं.

अंत मेंः यूं तो मैं किसी भी फिल्म  के लिए नहीं कहता कि आप उसे न देखे. क्योंकि फिल्म के सफल होने पर हजारों परिवारो का पेट पलता है. मगर ‘‘आदिपुरूष’ फूहड़ फिल्म है. यह सिर्फ निराश ही नही करती बल्कि इतना सिरदर्द पैदा करती है कि कहना पड़ रहा है कि इस फिल्म को देखकर अपना पैसा व समय न बर्बाद करें. वैसे भी फिल्मकार ने फिल्म की शुरूआत में ही डिस्क्लेमर दिया है कि जिन्हे राम या रामायण की कहानी समझनी हो वह इस फिल्म को देखने के बाद बाल्मीकी रामायण को जाकर पढ़ें.हमने इंटरवल में कुछ लोगों को फिल्म छोड़कर जाते हुए देखा भी.

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