नीलम ने बचपन से ही अपना काम खुद किया है, जब वह केवल 5 साल की थी, तब वह बाहर से सामान लाने अपने छोटे भाई को लेकर जाती थी, इससे भाई को भी काम के बारें में धीरे-धीरे सबकुछ समझ में आने लगा था. यही वजह है कि किसी नए शहर में जाकर आज नीलम को जॉब करना, घर खोजना, वहां की परिस्थितियों से एडजस्ट करने में किसी प्रकार की समस्या नहीं हुई.

खुद की निर्णय वह खुद ले सकती है. इसके लिए वह अपने पेरेंट्स को धन्यवाद् देती है, क्योंकि उनके विश्वास और मजबूत सोच की वजह से वह इतना कुछ कर पाई, जिसका फायदा उसे अब मिल सहा है. उसे याद आता है, जब उसने बाज़ार जाते हुए पैसे गिरा दिए, पर उसके पिता डांटने के वजाय वापस फिर से पैसे दिए और सावधान रहने की सलाह दिया. इसके बाद नीलम ने हमेशा पिता की बात को ध्यान में रखा और कभी भी उससे ऐसी गलती नहीं की.

रोमा भी एक ऐसी इकलौती लड़की है, जिसने जॉब को अच्छी तरह से करने के लिए अपने पेरेंट्स से अलग फ्लैट लेकर रहने का निश्चय लिया, क्योंकि घर से जॉब पर जाने-आने में 2 घंटे लगते थे. आज वह खुश है, क्योंकि उसका फैसला सही रहा, हालाँकि उसके पेरेंट्स चाहते नहीं थे, लेकिन वह अपने निर्णय पर अटल रही और उन्हें समझाया कि उसका उनसे अलग रहना एक जरुरी है, जिससे वह जॉब अच्छी तरह से कर सकें और इसे वे साधारण तरीके से लें.

असल में आत्मनिर्भर बनने के लिए सबसे ज़रूरी है, बजट से लेकर इंवेस्टमेंट तक खुद मैनेज करना, ऐसे में अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग खुद करना पड़ता है. कॉन्फिडेंट होना इंडिपेंडेंट होने की तरफ पहला कदम होता है. इसके अलावा इसमें सेल्फ लव यानि आप जैसे हैं वैसे खुद को स्वीकार करना जैसे अपने व्यक्तित्व, शरीर, विचार, दिलचस्पी और अपने हालात को समझना. साथ ही परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं, ये शब्द खुद से या दूसरो से कभी भी ना कहना. इसके साथ-साथ निश्चयात्मक बनना, अपने स्किल को बढ़ाना, किसी से कुछ पूछने में संकोच न करना और एक्स्प्लोर करने से पीछे न हटना आदि.

  1. सेल्फ लव

सेल्फ लव की अगर बात करें, तो आज की व्यस्त जीवन शैली में व्यक्ति खुद के बारें में सोचने में असमर्थ होता है, जिसमे उसकी प्रतियोगिता हमेशा सामने वाले से बनी रहती है और खुद को कमतर समझते रहते है. असल में सेल्फ लव एक एक्साइटिंग कांसेप्ट है, जिसमे खुद की अच्छाइयों और कमियों दोनों को साथ-साथ पूरी तरह से एक्सेप्ट करना पड़ता है. ये एक फील गुड फैक्टर नहीं होता, जिसमे शारीरिक, मानसिक आदि की कमी को सराहते हुए, गले लगाने जैसा होता है, इससे खुद को प्रचुर मात्रा में ख़ुशी मिलती है, ग्रोथ में कमी नहीं होती और व्यक्ति खुद को सेहतमंद समझने लगता है.

2. नई स्किल्स सीखे

कई बार बचपन में व्यक्ति कई चीजे सीखता है और उसमे से कुछ चीजे बहुत रुचिपूर्ण हो सकती है, जो अब व्यक्ति को आगे बढ़ने में सहयक होती है. नई-नई स्किल्स की जानकारी से व्यक्ति के जीवन के कई नए रास्ते खुल जाते है. स्किल्स व्यक्ति का खुद के लिए किया गया एक इन्वेस्टमेंट है, क्योंकि नई स्किल्स से व्यक्ति किसी पर निर्भर नहीं होता और उसकी निपुणता उसके अंदर होती है, जो उसे नई जानकारी के साथ-साथ ग्रो करने में सहायक होती है.

3. फैसले खुद लेना सीखे  

हर दिन कुछ न कुछ नई घटनाएं घटती रहती है, ऐसे में खुद ही निर्णय लेना पड़ता है, हो सकता है कि व्यक्ति का फैसला गलत हो, लेकिन उसके लिए भी खुद को ही तैयार रहना पड़ता है. फैसला गलत होने पर भी खुद को आगे कुछ निर्णय लेने से रोके नहीं. मसलन अगर आपकी जॉब उसी शहर में किसी दूर  एरिया में है, तो आप अलग फ्लैट लेकर रहने का निश्चय वाकई एक अच्छा कदम है, क्योंकि इससे आप खुद की सोशल, इमोशनल, इकोनोमिकल स्थिति को अच्छी तरह से बैलेंस कर सकते है.

हो सकता है कि आप के पेरेंट्स आपकी इस निर्णय से असहज हो, लेकिन आपके खुलकर बातचीत से उन्हें आपके मकसद को समझने में आसानी होगी. इसके अलावा व्यक्ति को खुद के काम खुद करने, खुद की देखभाल करने आदि की शुरुआत पहले से ही कर देनी चाहिए. आत्मनिर्भर होने के लिए खुद के साथ-साथ दूसरों की बातों को भी उसके दृष्टिकोण से सोचें और उसकी गहराई में जाए, तब किसी बात के दोनों पहलुओं को अलग तरीके से और ऑब्जेक्टिवली जान सकते है.

4. पूछने से न कतराएं

आत्मनिर्भर का ये मतलब नहीं कि व्यक्ति हर बात को जानता हो, अगर किसी भी चीज की जानकारी न हो, समाधान न मिले, कही खो जाय, कंफ्यूज हो, तो पूछने से कभी न कतराएं. इससे व्यक्ति को एक सही निर्देश मिल सकता है. जैसे अगर आप खाना बनाना नहीं जानते है, तो किसी से पूछ सकते है या किताबों या मैगजीन की रेसिपी, या विडियो का सहारा ले सकते है. इससे खुद को कमजोर या बेकार न समझे, बल्कि इतने सक्षम आप खुद है कि अपनी समस्याओं का हल खुद पा सकते है और ये एक मोरल बूस्ट होता है.

5. करें एक्स्प्लोर

जितना एक्स्प्लोर व्यक्ति करता है, उतना ही उसे किसी बातकी जानकारी मिलती है. इसके लिए किसी नए स्थान में ट्रेवल करने के साथ-साथ किताबें और मैगजीन आदि पढना जरुरी होता है. उसमे ऐसी कई नई जानकारियाँ होती है. इससे किसी भी परिस्थिति को हैंडल करने के बारें में व्यक्ति समझ सकता है. अपने आसपास होने वाले किसी भी इवेंट्स में जाएँ और नई जानकारी प्राप्त करें. इसके अलावा अन्वेषण के कई प्रकार है, जिसमे अकेले ट्रेवल करना, किसी प्रोजेक्ट का टीम लीडर बनना, रोज के किसी छोटे-छोटे फैसले को खुद लेना आदि कई है.

इस बारें में मुंबई की क्लिनिकल एंड काउंसलिंग साइकोलॉजीस्ट कुमुद सिंह कहती है कि असल में बच्चे हर चीज अपने पेरेंट्स से ही सीखते है, पेरेंट्स अगर मोबाइल अधिक चलाते है, तो वे भी मोबाइल पर अधिक रहना पसंद करते है. बच्चे वही करते है, जो पेरेंट्स करते है. पेरेंट्स जो चाहते है, बच्चों को वैसा करना पसंद नहीं होता. इसलिए बचपन से ही पेरेंट्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे उनके रोल मॉडल बने और ऐसी चीज न करें, जो बच्चों के विकास में बाधक बने. इसके अलावा छोटे बच्चों को कंट्रोल कभी न करें, उन्हें सिर्फ रेगुलेट करें. उन्हें अनुसाशन में रहने की वैल्यू पता होने पर वे खुद ही इसे बचपन से अपना लेते है.

इस प्रकार आत्मनिर्भर व्यक्ति में आत्मविश्वास, साहस और  नेत्तृत्व के गुण में वृद्धि होती है, जो एक सफल जीवन जीने के लिए काफी होता है.

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