‘‘मां,   मां, कहां चली गईं?’’?  रेणु की आवाज सुन कर मैं

पीछे मुड़ी.

‘‘तो यहां हैं आप. सारे घर में ढूंढ़ रही हूं और आप हैं कि यहां अंधेरे कमरे में अकेली बैठी हैं. अब तक तैयार भी नहीं हुईं. हद हो गई. हर साल आज के दिन आप के दिल पर न जाने क्यों इतनी उदासी छा जाती है,’’ रेणु अपनी धुन में बोलती जा रही थी.

आज पहली अप्रैल है. आज भला मैं

कैसे खुश रह सकती हूं? आज मेरी मृत बेटी प्रिया का जन्मदिन है. 25 वर्ष पूर्व आज ही के दिन मैं ने ‘प्रियाज हैप्पी होम’ की स्थापना की थी. आज उस की रजत जयंती का समारोह आयोजित किया गया है.

‘‘चलिए, जल्दी तैयार हो जाइए. पापा सीधे समारोह में ही पहुंच रहे हैं. अनाथाश्रम

से 2-3 बार फोन आ चुका है कि हम घर से निकले हैं या नहीं.’’

‘‘कितनी बार कहा है तुम से कि अनाथाश्रम मत कहा करो. वह भी तो अपना ही घर है, प्रिया की याद में बनाया हुआ छोटा सा आशियाना,’’ मैं खीज उठी.

‘‘अच्छा, सौरी. अब जल्दी तैयार हो जाइए. आकाश भैया भी आ गए.’’

हैप्पी होम की सहायक संचालिका

रुचि तिवारी मुझे अपने साथ स्टेज पर ले गई.

समारोह की शुरुआत मुख्य अतिथि ने दीप प्रज्वलित कर के की. प्रिया की बड़ी तसवीर पर माला पहनाते वक्त मेरी आंखें नम हो गईं.

समारोह के समापन से पहले मुझ से दो शब्द

कहने के लिए कहा गया, तो मैं ने सब का अभिवादन करने के पश्चात एक संक्षिप्त सा भाषण दिया, ‘देवियो और सज्जनो, 25 वर्ष पूर्व मैं ने जब अपने पति की सहमति से इस हैप्पी होम की नींव रख कर एक छोटा सा कदम उठाया था तब मैं ने सोचा भी न था कि इस राह पर चलतेचलते इतने लोगों का साथ मुझे मिलेगा और कारवां बनता जाएगा. आज हमारे हैप्पी होम में अलगअलग आयु के 500 से भी अधिक बच्चे हैं. 3 छात्राएं स्कालरशिप हासिल कर के डाक्टर बन चुकी हैं. 10 से अधिक छात्र इंजीनियर बन गए हैं और अच्छे पदों पर नौकरी कर रहे हैं. इस से अधिक गर्व की बात हमारे लिए और क्या हो सकती है? हैप्पी होम में पलने वाले हर बच्चे के होंठों पर मुसकान हमेशा बनी रहे, हमारी यही कोशिश आगे भी जारी रहेगी. धन्यवाद.’

समारोह में जिस तरह मेरी प्रशंसा के पुल बांधे गए, क्या मैं वाकई उस की हकदार हूं? क्या मैं अपनी प्रिया की उतनी ही ममतामयी मां बन पाई, जितना हैप्पी होम के बच्चों की हूं?

इन प्रश्नों के मेरे पास सकारात्मक उत्तर नहीं होते. अपने गरीबान में झांक कर देखने पर मैं खुद को कितना घृणित महसूस करती हूं, यह मैं ही जानती हूं.

मेरा मन पुरानी यादों के गलियारों में भटकने लगता है, जब मैं ने प्रिया को खो

दिया था. प्रिया को जब पहली बार देखा था, वह तो और भी पुरानी बात है. तब वह अपने पिता रवि और दादी के साथ हमारे पड़ोस में रहने आई थी.

पड़ोस में जब कोई नया परिवार आता है तो स्वाभाविक रूप से हर किसी को उस के बारे में जानने की उत्सुकता होती है. मां, इस का अपवाद न थीं. पहले टैक्सी से रवि, प्रिया और अपनी बूढ़ी मां के साथ आए. पीछे से उन का सामान ट्रक से पहुंचा.

शिष्टाचारवश मां और पिताजी ने उन के घर जा कर अपना परिचय दिया. घर आ कर मां  पहले उन लोगों के लिए चाय, फिर सारा खाना बना कर ले गईं. घर आ कर मां बोलीं, ‘‘बेचारे बहुत भले लोग हैं. नन्ही बिटिया का नाम प्रिया है. बेचारी बिन मां की बच्ची. 3 महीने पहले उस की मां गुजर गईं.’’

‘‘अच्छा. क्या हुआ था उन्हें, इतनी छोटी उम्र में?’’ मैं ने स्वेटर बुनते हुए पूछा.

‘‘गर्भाशय का कैंसर था. पहले बहुत रक्तस्राव हुआ. फिर डाक्टरों ने आपरेशन कर के गर्भाशय निकाल दिया, परंतु तब तक कैंसर बहुत फैल गया था,’’ मां ने बताया.

इतने में प्रिया के रोने की आवाज आई, तभी मैं ने बाहर दालान में जा कर देखा तो प्रिया की दादी उसे गोद मेें लिए हुए चिडि़या आदि दिखा कर उस का दिल बहलाने का असफल प्रयास कर रही थीं. प्रिया की रुलाई रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.

नन्ही प्रिया ने हलके गुलाबी रंग का झालरों

वाला फ्राक पहना था. घुंघराले बालों की लट माथे पर बारबार आ रही थी, जिसे उस की दादी हाथ से पीछे कर देती थीं. मुझ से प्रिया का रोना देखा न गया. मैं ने अपने घर के बगीचे से एक गुलाब का फूल लिया और रास्ता पार कर के प्रिया के घर पहुंच गई. गेट खुलने की आवाज सुन कर प्रिया की दादी ने पीछे मुड़ कर मुझे देखा और हौले से मुसकरा दीं.

‘‘नमस्ते, आंटीजी,’’ मैं ने हाथ जोड़ते हुए कहा. मेरे पीछे मां भी आ गई थीं.

‘‘बिटिया, क्यों रो रही है? नया घर

पसंद नहीं आया क्या?’’ मां ने हंसते हुए प्रिया के गाल की चिकोटी काटी.

प्रिया ने रोना बंद कर दिया और मुंह फुला कर हमें देखने लगी. मैं ने उसे अपने पास बुलाया तो उस ने सिर हिला कर आने से इनकार किया. मैं ने गुलाब का फूल उस की ओर बढ़ाया. वह उसे लेने के लिए आगे बढ़ी, तो मैं ने उसे लपक कर पकड़ लिया. फिर मैं उसे ले कर अपने बगीचे में आ गई और उसे तरहतरह के फूल दिखाने लगी. प्रिया अब रोना बंद कर हंसने लगी.

‘‘3-4 महीने बाद पहली बार बच्ची इतना खुल कर हंसी है,’’ यह निर्मला देवी का स्वर था. उन्होंने प्रिया को पास बुला कर खाना खिलाने का आग्रह किया, परंतु उस ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दीं.

मैं ने निर्मला देवी के हाथ से प्लेट ले ली. वह मेरे हाथ से खुशीखुशी खाना खाने लगी. रात तक प्रिया मुझ से इतनी घुलमिल गई कि बड़ी मुश्किल से रवि के बहुत पुचकारने पर अपने घर जाने के लिए तैयार हुई.

मेरी 2 बार सगाई टूट चुकी थी. पहली बार तो लड़के वाले सगाई के बाद दहेज की मांग बढ़ाते ही जा रहे थे, इसी कारण रिश्ता टूट गया, क्योंकि पिताजी उन मांगों को पूरा करने में असमर्थ थे. दूसरा रिश्ता जिस लड़के से हुआ था, उस के बारे में पिताजी को पता चला कि वह दुश्चरित्र था.

एक रात प्रिया तेज बुखार से तप रही

थी, पर मुझे सुबह पता चला. मैं उस के घर गई और बोली, ‘‘आंटीजी, आप ने मुझे बुलाया

क्यों नहीं?’’

‘‘आकांक्षा बेटी, सवाल एक रात का नहीं

है. सारी जिंदगी का है. एक बिन मां की बच्ची को तुम ने 1 ही वर्ष में अपनी ममता की शीतल फुहारों से सराबोर कर दिया है. क्या तुम रवि की दुलहन बन कर हमेशा के लिए इस घर में आ सकती हो? बोलो बेटी, कुछ तो बोलो,’’ निर्मला देवी मेरा हाथ पकड़ कर रोने लगीं. अचानक इस प्रस्ताव को सुन कर मुझ से कुछ कहते न बना.

‘‘उफ, मां, तुम भी कमाल करती हो. एक तो इस घर में आने के बाद से आकांक्षा ने प्रिया को कितना संभाला है, तुम उन्हें क्यों किसी अनचाहे बंधन में बांधने का प्रयास कर रही हो?’’

मैं ने पहली बार रवि को इतने गुस्से में देखा था.

‘‘आकांक्षाजी, मां की बातों का बुरा मत

मानिए. मां भी उम्र के साथसाथ  सठिया गई हैं. रात को मैं ने मां से आप को बुलाने को मना किया था. देखिए, प्रिया अपने मन में अपनी मां की जगह आप को रखती है. कल को जब आप की शादी हो जाएगी, तो हमें इसे संभालना फिर से मुश्किल हो जाएगा,’’ रवि मेरी ओर मुखातिब हो कर बोले.

रवि का आशय समझ कर मैं उलटे पांव घर वापस आ गई, पर घर आने के बाद मेरा किसी काम में मन न लगा. मुझे चिंतित देख कर जब मां ने कारण पूछा, तो मैं ने उन्हें सारी बात बता दी.

आखिर एक रोज बिना कोई भूमिका

बांधे पिताजी बोले, ‘‘बेटी, तुम तो जानती हो कि हमें तुम्हारी शादी की कितनी फिक्र है.

तुम हम पर न कभी बोझ थीं, न आगे कभी रहोगी. परंतु पिता के घर कुंआरी जिंदगी में किसी भी बेटी को वह सुख नहीं मिल सकता, जो पति, बच्चों के साथ गृहस्थी में रम कर मिलता है. माना कि रवि दुहाजू है, पर उम्र

में तुम से केवल 3 साल ही बड़ा है. अच्छा कमाता है, केवल 1 ही बेटी है, जिसे तुम दिलोजान से चाहती हो. अगर तुम्हें रवि पसंद हो, तो हम तुम्हारे रिश्ते की बात रवि से

करते हैं. बेटी, सोचसमझ कर कोई फैसला करो. तुम्हारे किसी भी निर्णय में हम तुम्हारे साथ हैं,’’ इतना कह कर पिताजी कमरे से

बाहर चले गए.

सारी रात मैं ने आंखों में गुजारी. पति के रूप में मैं ने रवि जैसे शांत, गंभीर और शालीन व्यक्ति की ही मन में कल्पना की थी. सुबह मैं ने मां को अपना निर्णय बताया, तो मां के चेहरे पर सुकून था. शाम तक बात रवि तक पहुंच गई.

15 दिनों के भीतर मेरी रवि से कोर्ट मैरिज हो गई और मैं उन की दुलहन बन कर उन की जिंदगी में आ गई. प्रिया सब से ज्यादा खुश थी कि अब आंटी हमेशा उस के संग रहेंगी.

‘‘बेटी, अब से यह तुम्हारी आंटी नहीं, बल्कि मम्मी हैं,’’ मेरी सास निर्मला देवी ने प्रिया को समझाया.

‘‘तो अब से मैं इन्हें मम्मी ही कहूंगी. कितनी सुंदर लग रही हो, मम्मी,’’  3 साल की प्रिया ने मेरे गले में अपनी बांहें डाल दीं.

देखते ही देखते 1 वर्ष हंसीखुशी में बीत गया. प्रिया अब स्कूल जाने लगी थी. कुछ दिनों बात पता चला कि मेरे पैर भारी हुए हैं. घर में खुशियों की बहार आ गई.

मांजी प्रिया से कहतीं, ‘‘बिटिया, अब अकेले नहीं रहेगी. बिटिया के संग खेलने कोई आने वाला है.’’

प्रसव के कुछ वक्त बाद मैं अपने मायके आई. प्रिया की परीक्षाएं खत्म हो गई थीं. अत: रवि प्रिया को भी मेरे पास छोड़ गए.

एक दिन मैं बाहर बैठ कर प्रिया के बाल बना रही थी कि 2 महीने का आकाश दूध के लिए रोने लगा. मैं ने मां को आवाज दे कर कहा, ‘‘मां, जरा आकाश को देखना, मैं प्रिया के बाल बना कर अंदर आती हूं.’’

मां के पहुंचने तक आकाश ने रोरो कर

आसमान सिर पर उठा लिया था. मां आकाश को ले कर पुचकारते हुए बाहर आईं और बोलीं, ‘‘अरी, पहले अपने कोख जाए बच्चे का खयाल कर. क्या जिंदगी भर इसे ही सिर चढ़ाए रखेगी?’’

प्रिया, मां की बातों का अर्थ समझ पाई या नहीं, पता नहीं. परंतु मैं तत्काल बोल पड़ी, ‘‘यह क्या कह रही हैं मां? मेरे लिए प्रिया और आकाश दोनों ही बराबर हैं.’’

‘‘अरे, ये सब तो बोलने की बातें हैं. अपना खून अपना ही होता है और पराया, पराया ही होता है. देखो, तुम ने आकाश को लेने में देर कर दी तो बेचारे का रोरो कर गला ही सूख गया. जरा इसे दूध तो पिला दो,’’ कह मां ने आकाश को मेरी गोद में सुला दिया.

मेरा स्पर्श पाते ही वह पल भर में चुप हो कर दूध पीने लगा.

प्रिया का स्कूल शुरू होने के पश्चात मैं उसे व नन्हे आकाश को ले कर भोपाल यानी ससुराल आ गई. अब मैं आकाश के पालनपोषण में इतनी मशगूल हो गई कि प्रिया की ओर से मेरा ध्यान धीरेधीरे कम होता गया. प्रिया रात को मेरे पास सोने की जिद करती तो मैं उसे झिड़क कर रवि के पास भेज देती.

एक बार मैं रसोई में कुछ काम कर रही थी. चादर के झूले में सोए हुए 9 महीने के आकाश को प्रिया कोई कविता सुनाते हुए झूला झुला रही थी. अचानक जोर से कुछ गिरने की आवाज आई, फिर आकाश रोने लगा. एक ही सांस में मैं रसोई से और मांजी बैठक से लपके तो देखा कि आकाश जमीन पर गिर कर रो रहा है और प्रिया हैरान सी खड़ी है.

मैं ने आकाश को उठाया और गरजते हुए प्रिया से बोली, ‘‘यह क्या? तुम ने आकाश को कैसे गिराया?’’

प्रिया डरतेसहमते बोली, ‘‘मम्मी, मैं तो

आकाश को झुला रही थी, न जाने कैसे वह झूले से बाहर गिर पड़ा.’’

‘‘चुप रहो. तुम ने इतने जोर से झुलाया कि वह बाहर गिर पड़ा. तुम्हें इतनी अक्ल नहीं कि धीरे झुलाओ. इस के सिर में गहरी चोट आती तो? खबरदार जो आगे से कभी आकाश को हाथ भी लगाया,’’ कहते हुए तैश में आ कर मैं ने प्रिया के गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया.

इस के बाद मेरे और उस के बीच दूरियां

बढ़ती गईं. मेरी डांटफटकार से प्रिया फिर से उदास और गुमसुम रहने लगी. मांजी को प्रिया की यह दशा बिलकुल अच्छी न लगती. उन की आंखों की विवशता, मौन रह कर भी न जाने कितनी बातें कह जाती, पर मैं जान कर अनजान बनी रहती.

अपने प्रति मेरी अवहेलना सहन न कर पाने के कारण प्रिया चौथी कक्षा में आतेआते पढ़ाई मेें काफी पिछड़ गई थी.

इसी बीच मैं दूसरी बार गर्भवती हो गई. रवि तीसरा बच्चा तो नहीं चाहते थे, पर मेरी इच्छा का मान रखते हुए चुप हो गए. रेणु का जन्म भोपाल में ही हुआ.

7 साल के आकाश और ढाई साल की रेणु के बीच मैं इतनी व्यस्त हो गई कि

12-13 साल की प्रिया की ओर देखने का भी मुझे होश न रहता.

प्रिया के प्रति मेरी बढ़ती नाराजगी सहना जब मांजी के लिए नामुमकिन हुआ तो उन्होंने एक दिन मुंह खोल ही दिया, ‘‘बहू, प्रिया को तुम ही उस वक्त से पाल रही हो, जब वह मात्र 3 साल की थी. उस वक्त मैं ने कभी नहीं सोचा था कि आगे चल कर तुम उस से इतनी सख्ती से पेश आओगी. उसे तुम्हारे जरा से प्यार की जरूरत है, वह तुम से ज्यादा की अपेक्षा नहीं करती. उसे अपना लो, बहू,’’ मांजी के आंसू छलछला उठे.

पर उन की भाषा ने मेरी क्रोधाग्नि को भड़काने का ही काम किया, ‘‘वाह मांजी, यह सिला दिया आप ने मेरी तपस्या का? क्या मैं प्रिया से सौतेला व्यवहार करती हूं? क्या सगी मांएं अपने बच्चों को कभी डांटती नहीं हैं? कभीकभार मैं प्रिया पर गरम हो गई तो आप ने मुझे ‘सौतेला’ करार दे दिया? सौतेली मां तो सौतेली ही होती है, चाहे वह अपनी जान ही क्यों न निछावर कर दे,’’ मैं भुनभुनाती हुई अपने कमरे में चली गई.

इस के बाद प्रिया के प्रति मेरा रवैया तटस्थ हो गया. एक बात को मैं स्वयं भी महसूस करती थी कि प्रिया को तकलीफ में देख कर मैं उफ तक न करती. जबकि आकाश व रेणु को जरा भी कष्ट होता तो मेरे दिल में हायतोबा मच जाती थी.

एक दिन अचानक दिल का दौरा पड़ने से

मांजी का निधन हो गया. 3 बच्चों में प्रिया को अपनी दादी से विशेष प्रेम था. दादी के

जाने के बाद वह स्वयं को और भी अकेला महसूस करने लगी. वह अकसर दादी की तसवीर हाथ में लिए रोती रहती. रवि के बहलाने पर भी न बहलती.

मुझे याद है वह दिन. दोपहर का वक्त

था. आकाश व रेणु छत पर खेल रहे थे. मैं काम में व्यस्त थी. अचानक मुझे रेणु के जोरजोर से रोने की आवाज सुनाई दी. मैं छत पर गई तो देखा, आकाश रेणु के हाथ से पतंग छीन कर खुद उड़ा रहा था. प्रिया एक ओर चुपचाप खड़ी क्षितिज की ओर देख रही थी.

मैं रेणु को गोद में ले कर प्रिया पर बरस

पड़ी, ‘‘छोटी बहन रो रही है, यह नहीं होता

कि उसे चुप कराओ. सब से बड़ी हो, पर

क्या फायदा?’’

तभी आकाश की पतंग कट कर 3-4 घरों के बाद की झाडि़यों में गिर गई. वह पतंग लाने के लिए सीढि़यां उतरने लगा कि उसे मैं ने टोका, ‘‘रुको, प्रिया जा कर पतंग लाएगी. जाओ प्रिया.’’

‘‘पर मम्मी, हर बार मैं ही नीचे जाजा कर पतंग लाती हूं. खेलते ये दोनों हैं, पर घर से बाहर पतंग या बौल कोई भी चीज गिरे तो मुझे लानी पड़ती है. सीढि़यां चढ़तेउतरते मेरे पांवों में दर्द हो रहा है. मैं नहीं लाती.’’

पहली बार प्रिया ने पलट कर जवाब दिया था. मेरे गुस्से का पारावार न रहा, ‘‘तुम्हारी यह मजाल. जबान लड़ाती हो? क्या तुम्हारे भाईबहन तुम से यही सीखेंगे? आज शाम को पापा से तुम्हारी ऐसी शिकायत करूंगी कि देखना. जा कर पतंग लाती हो या नहीं?’’ कहते हुए मैं ने प्रिया के गालों पर तड़ातड़

2-3 झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिए. वह फूटफूट कर रोने लगी और अपने लाल हुए गालों को सहलाते हुए सीढि़यां उतरने लगी. मैं उसे गेट खोल कर रास्ते पर नंगे पैर ही जाते हुए देख रही थी.

2-3 दिन पहले भारी बारिश हुई थी. जैसा कि अकसर होता है, बारिश का पानी सड़क के गड्ढों में जमा हुआ था. दौड़ती हुई प्रिया का एक पैर जैसे ही एक गड्ढे में पड़ा, प्रिया जोर से चिल्ला कर एक ओर लुढ़क गई.

मैं बच्चों को ले कर नीचे दौड़ी. पासपड़ोस के

लोग जमा हो गए थे. बिजली के खंभे से लाइव करंट का वायर उस गड्ढे में गिर गया था और पानी में करंट फैला हुआ था. प्रिया कीचड़ में लथपथ बेहोश पड़ी थी. किसी ने लकड़ी के डंडे की सहायता से प्रिया को बाहर निकाला और बिजली विभाग को फोन किया. प्रिया का शरीर नीला पड़ गया था. मैं उसे रिकशे में डाल कर अस्पताल ले गई. डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

रवि घर आए तो प्रिया की मृत देह देख कर किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर एक ओर बैठ गए. मुझे काटो तो खून नहीं. प्रिया का अंतिम संस्कार तो कर दिया, लेकिन हमारे दिलों में इतनी वीरानी छा गई कि 2 छोटे बच्चे भी हमारे अकेलेपन को कम न कर पाए.

एक रोज आकाश प्रिया की एक कापी ले आया. मैं उसे एक नजर देख कर रखने ही वाली थी कि प्रिया की लिखाई देख कर उत्सुकतावश पढ़ने लगी. पढ़तेपढ़ते मैं बिलखबिलख कर रोने लगी.

हरेक पन्ने पर प्रिया ने अपने दिल का

दर्द बयान किया था. मेरा निष्ठुरता से बारबार उस का दिल तोड़ना, उस के कोमल मन को बर्बरता से रौंदना, उस का अकेलापन, उस की मायूसी, मां की ममता के लिए तड़पता उस

का प्यासा मन सब कुछ मेरे सामने बेपरदा

हो गया था. नन्ही सी बच्ची दिल में कितना

दर्द समाए जीती रही और मैं कितनी पत्थर

दिल बिना किसी गलती के उसे प्रताडि़त

करती रही.

शाम को रवि घर में आए तो कापी उन के हाथ में दे कर मैं बेतहाशा रोने लगी. रवि मौन हो कर पढ़ते हुए अपने आंसू पोंछ रहे थे. काफी समय बाद भी जब वह कुछ न बोले तो मुझ से रहा न गया.

‘‘मुझे मेरा घरसंसार आप जैसा शालीन और सच्चरित्र पति, यह भरीपूरी गृहस्थी जिस बच्ची की वजह से मिला उसे ही भुला कर

मैं अपने सुखों में मग्न हो गई. मैं ने प्रिया को कितना प्रताडि़त किया. मुझे मेरे अपराधों

की कोई तो सजा दीजिए. आप कुछ बोलते

क्यों नहीं? यों चुप न रहिए,’’ मैं लगातार रोती जा रही थी.

काफी समय पश्चात रवि ने मौन तोड़ा

और बोले, ‘‘तुम अपनी बात छोड़ो,

मैं ने उस के साथ कौन सा न्याय किया?

मैं ने भी उस की ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया. उस के अकेलेपन को न समझा. उसे वह प्यार न दिया, जिस की वह हकदार थी. शायद इसी अपराध की सजा देने के लिए कुदरत ने हम से उसे छीन लिया. अब हमारे लाख पछताने से भी क्या प्रिया वापस आ जाएगी? कभी नहीं. जब तक जीएंगे, इस अपराधबोध का भार ढोते हुए ही हमें जीना होगा, यही हमारी सजा है,’’ रवि बिलखबिलख कर रो

रहे थे.

कहते हैं वक्त हर जख्म को भर

देता है. 26-27 वर्ष हो गए हैं प्रिया की मौत को, पर आज तक हमारी आत्मग्लानि कम

नहीं हुई.

प्रिया की मृत्यु के बाद जब मेरा मन पश्चात्ताप की आग में जलने लगा, तब एक दिन पड़ोस की झुग्गी में रहने वाली रमिया

को एक नन्ही सी जान सड़क के किनारे

शाल में लिपटी हुई मिली. रमिया जब मेरे

पास बच्ची को छोड़ गई तो उस की कोमल त्वचा को न जाने कितनी चींटियां काट

चुकी थीं.

उस की प्राथमिक चिकित्सा कराने के दौरान 1 हफ्ते में उस फूल सी बच्ची के साथ

न जाने कब मेरा दिल का रिश्ता जुड़ गया. जब उसे कोई लेने न आया तो मैं ने ही उसे पालने का निर्णय लिया. इस के कुछ महीनों बाद, रिकशा चलाने वाला रामदीन सड़क पर भीख मांग रहे 2 बच्चों को छोड़ गया, जिन का

कोई न था.

देखतेदेखते 1 वर्ष के अंदर बच्चों की

संख्या बढ़तेबढ़ते 15 हो गई, तो मैं ने मदद के लिए 2 आया रख लीं और घर के बाहर ‘प्रियाज हैप्पी होम’ का बोर्ड लगा दिया. बोर्ड लगने की देर थी कि समाज के विभिन्न तबकों की

कुंआरी मांएं ‘हैप्पी होम’ के पालने में अपने बच्चों को छोड़ जातीं. बच्चों की संख्या तो

बढ़ती गई, साथसाथ मुझे अपनी संस्था के लिए विभिन्न लोगों व संस्थाओं (निजी व सरकारी) से डोनेशन भी मिलते गए व आगे का सफर आसान होता गया.

रवि ने इस सफर में मेरा हर कदम पर साथ दिया है. हर बच्चे में मुझे प्रिया का अक्स नजर आता है. पश्चात्ताप की अग्नि में जलते हुए इस मन को हर बच्चे के होंठों पर मुसकान खिलते हुए देख कर सुकून मिलता है.

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