45 वर्षीय अश्विनी (काल्पनिक नाम) बैंगलुरु की रहने वाली हैं और पेशे से डेटा एनालिस्ट हैं. उनके जीवन में तब एक अप्रत्याशित मोड़ आया जब वे अपनी त्वचा की पुरानी समस्या के लिए डॉक्टर के पास गई थीं. कुछ समय से वे अपनी समस्या से कुछ ज्यादा परेशान थीं. उन्हें जरा भी एहसास नहीं था कि डॉक्टर से उनकी यह मुलाकात उन्हें एकदम अप्रत्याशित और मुश्किल रास्ते पर लेकर जाएगी.

डॉक्टर जब उनकी जांच कर रहे थे, अश्विनी ने प्रसंगवश बताया कि उन्हें अपनी ब्रेस्ट में थोड़ी बेचैनी महसूस होती थी. डॉक्टर ने तुरंत उनकी ब्रेस्ट की जांच की और उन्हें किसी ऑन्कोलॉजिस्ट (कैंसर रोग विशेषज्ञ) से दिखाने को कहा. ऑन्कोलॉजिस्ट ने मैमोग्राम कराने को कहा और इसमें उनकी ब्रेस्ट में संदेहास्पद गांठ का पता चला. आगे की गई और जांचों में उन्हें ब्रेस्ट कैंसर होने की पुष्टि हो गई. भारत में कैंसर सार्वजनिक स्वास्थ्य की गंभीर चिंता का विषय है, जबकि ब्रेस्ट कैंसर मृत्यु का प्रमुख कारण बना हुआ है. वर्ष 2020 में सभी प्रकार के कैंसर में ब्रेस्ट कैंसर का अनुपात 13.5त्न और सभी मौतों में 10.6त्न था.

इसके अलावा ब्रेस्ट कैंसर होने के बाद पहले 5 वर्षों तक केवल 66त्न रोगी ही जीवित रह पाते हैं, जबकि विकसित देशों में यह दर 90त्न है. बीएमसीएचआरसी हॉस्पिटल, जयपुर के डायरेक्टर और एचओडी मेडिकल ऑन्कोलॉजी, डॉ. अजय बापना के अनुसार, मुख्यत: जागरूकता और प्रेरणा, इन दो कारणों से महिलायें ब्रेस्ट कैंसर की जांच नहीं करातीं. डॉ. बापना ने कहा, ‘‘अगर महिलाओं को ब्रेस्ट में निप्पल पर या आस-पास की त्वचा में बदलाव जैसी कोई असमान्यता दिखती है, तो उन्हें सतर्क हो जाना चाहिए. अगर महिला की उम्र 40 से ज्यादा है, तो उसे इस प्रकार के बदलावों के प्रति ज्यादा सावधान रहना चाहिए और तुरंत अपनी जांच करानी चाहिए.’’अदृश्य लड़ाई में दृढ़ता: अश्विनी की बायोप्सी का नतीजा एचईआर2-पॉजिटिव ब्रेस्ट कैंसर के लिए पॉजिटिव पाया गया.

ऑन्कोलॉजिस्ट ने तेज उपचार की योजना बनाई जिसमें ट्रैस्टुजुमाब (हर्सेप्टिन) और पर्टुजुमाब (पर्जेटा) मोनोक्लोकल ऐंटीबॉडीज के साथ कीमोथेरेपी और उसके बाद रेडिएशन शामिल था. चूंकि इन दवाओं को खून की नली (आईवी) में दिया जाता है, इसलिए इसमें अस्पताल और रोगी, दोनों पर भारी दबाव पड़ता है. उपचार की प्रक्रिया आम तौर पर अनेक सत्रों में पूरी होती है जिसमें6 महीनों से लेकर एक वर्ष तक का समय लगता है. चूंकि प्रत्येक स्तर में कई-कई घंटे लग जाते हैं, इससे रोगी का दैनिक जीवन बाधित होता है और काम तथा पारिवारिक दायित्वों पर बोझ पड़ता है. अश्विनी ने बताया, ‘‘प्रतीक्षा अवधि विशेषकर लम्बी थी. मेरा मतलब है कि मुझे बिस्तर पर रहना होता और बिस्तर पर ही दवायें दी जायेंगी.

लेकिन मेरे पिता, जो मेरे साथ जाया करते थे, शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित हो गए थे. वे वृद्ध हैं और उन्हें मेरा उपचार पूरा होने तक दिन भर रुकना पड़ता था. कुछ विजिट्स के लिए मेरी बेटी भी मेरे साथ आती थी और वह भी थक जाती थी. हम रात में लौटते और मैं इतनी थकी रहती कि घर का काम नहीं कर सकती थी. मेरे परिवार को हर चीज की देखभाल करनी पड़ती थी.

अश्विनी ने आगे बताया, ‘‘कैंसर का नाम सुनते ही लोग काफी डर जाते हैं. मैं उन्हें सम?ा सकती हूं, क्योंकि यह केवल बीमारी का डर नहीं होता, बल्कि यह उपचार और होने वाली जांचों के असर का डर भी होता है. यह रोगी और परिवार, दोनों के लिए सदमे वाला अनुभव होता है. बंग्लादेश की एक महिला से मेरी दोस्ती थी. उसे चौथे चरण का ब्रेस्ट कैंसर था. हम कैंसर के अपने अनुभवों और परिवार की बातें साझा किया करते. दुर्भाग्य से, मेरे बाद के अपॉइंटमेंट में मुझे उसके गुजर जाने की जानकारी मिली. इस खबर से मुझे बहुत सदमा पहुंचा था.’’ब्रेस्ट कैंसर के रोगियों के लिए भर्ती-वार्ड दुधारी तलवार होती है.

एक ओर तो यह जीवन की भंगुरता के प्रति अरक्षित करता है तो दूसरी ओर लड़ने की शक्ति की परीक्षा भी लेता है. भर्ती वार्ड में शुरुआती ब्रेस्ट कैंसर के रोगी, जिनके जीने की संभावना बेहतर होती है, उन्हें भी इस सदमे से गुजरना पड़ता है, क्योंकि उनकी आंखों के सामने कैंसर के ज्यादा गंभीर चरण वाले लोग भी होते हैं. पीड़ा का अत्यंत दुखदायी दृश्य, परिवारों की वेदना और खो चुके जीवन रोगी को भयाक्रांत और हतोत्साहित कर देते हैं.

ठीक अश्विनी की तरह ही अनेक महिला रोगी शारीरिक और भावनात्मक बोझ का सामना करती हैं जिसके कारण उनकी यात्रा ज्यादा कठिन हो जाती है. इसके अलावा, जिन रोगियों को लम्बे समय तक कीमोथेरेपी कराने की जरूरत होती है, उन्हें एक कीमो पोर्ट के माध्यम से दवा दी जाती है, जो सीधे खून के प्रवाह में जाती है. कुछ रोगी इस पोर्ट का इस्तेमाल करने से इनकार करते हैं या इससे झिझकते हैं.डॉ. बापना ने कहा, ‘‘यह प्रतिरोध चीरे या सूई चुभाने की प्रक्रिया, संक्रमण होने और कुल खर्च के डर से पैदा होता है. साथ ही, बहुत कम रोगियों को कैंसर के उपचार में हुई प्रगति की अच्छी जानकारी होती है.

दूर-दराज के इलाकों में, चुनौतियों में स्वास्थ्य देखभाल की विशेषज्ञ सुविधाओं की सीमित सुलभता और भारी वित्तीय बोझ शामिल हैं.’’उपचार में नई खोज: विगत वर्षों में कैंसर के अनुसंधान और उपचार में काफी महत्त्वपूर्ण खोज और प्रगति हुई हैं. इनसे कीमोथेरेपी की मुश्किलों और साइड इफैक्ट को कम करने में मदद मिली है. उदाहरण के लिए, फेस्गो (क्क॥श्वस्त्रहृ) एक नई नियत खुराक वाला उपचार है जिसमें ट्रैस्टूटुमाब और पर्टुटुमाब का मिश्रण है. इसे जांघ में अध:त्वचीय सूई (सबक्यूटेनियस इंजेक्शन) के रूप में दिया जा सकता है और परम्परागत आईवी में लगने वाले 6-7 घंटे की तुलना में महज 5-8 मिनट समय की जरूरत होती है.

इसे अध:त्वचीय (जांघ की त्वचा के नीचे) सूई से देने से रोगी और डॉक्टर, दोनों का समय बचता है. चूंकि, इसे प्रशिक्षित नर्स द्वारा दिया जा सकता है, इसलिए इस विधि के कारण हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स पर दबाव घट जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें कीमो पोर्ट की जरूरत नहीं होती, जिससे रोगी इसे पसंद करती हैं.जैसाकि अश्विनी ने कहा, ‘‘मेरा उपचार जब फेस्गो विधि से होने लगा, तब मैं एक घंटे में अस्पताल से वापस आने में समर्थ हो गई और थकान महसूस किये बगैर घर के काम समाप्त करने में सुविधा होने लगी. समय की बचत के कारण मेरे लिए अपनी बेटी के साथ समय बिताना, उसका मनपसंद खाना पकाना और उसके होमवर्क में मदद करना आसान हो गया.

साथ ही, मुझे अपने ऑफिस से छुट्टी लेने की जरूरत नहीं रही. मैं अस्पताल जाने के दिन को छोड़कर हर दिन काम करती थी, यहां तक कि सप्ताहांत के दिन भी. फेस्गो ने मुझे पीड़ादायक उपचार की प्रक्रिया से बचाया और कैंसर से लड़ने में अपनी इच्छाशक्ति बनाए रखने में मदद की.’’सबक्यूटेनियस इंजेक्शन से मिली सुविधा के कारण रोगियों और उनकी देखभाल करने वालों के जीवन की गुणवत्ता सुधरी है. इसका एक प्रमुख लाभ यह है कि रोगी कीमो वार्ड के बाहर उपचार प्राप्त कर सकती हैं.

यह अस्पताल में लगने वाला समय कम करता है और कीमो वार्ड के परेशानी भरे माहौल से बचने में मदद करता है. नतीजतन, रोगी में सामान्य अवस्था, आत्मनिर्भरता और निजता का एहसास ज्यादा अच्छी तरह बना रह सकता है.इस विषय में डॉ. बापना ने कहा, ‘‘मेरी सभी रोगी सबक्यूटेनियस थेरेपी से काफी खुश हैं. वे 30 मिनट में घर जाने और सामान्य दैनिक कार्य करने में सक्षम हैं.’’फेस्गो प्रक्रिया में कम से कम समय लगता है, इस प्रकार इससे हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स का समय बचता है और वे ज्यादा रोगियों के उपचार में समय देने में समर्थ हो पाते हैं.

लेकिन किसी भी मेडिकल ट्रीटमेंट की तरह लोगों को अपने लिए उपचार की सबसे बढि़या रणनीति तय करने के लिए हेल्थकेयर टीम के साथ अपनी अवस्था पर खुल कर बात करनी चाहिए. इस प्रकार कैंसर के डरावने रोग से लड़ने के लिए शीघ्र जांच के महत्त्व के बारे में जागरूकता से लेकर रोगी का समय और ऊर्जा बचाने वाले गुणवत्तापूर्ण उपचार तक एक बहुआयामी दृष्टिकोण समय की मांग है.

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