मां बाप बनना किसी भी दंपती के लिए सब से बड़ा और सुखद अवसर होता है. शादी के कुछ समय बाद हर युगल अपना परिवार आगे बढ़ाने की चाह रखता है. 2-3 हो कर घरआंगन में बच्चों की किलकारियां सुनने को बेताब दंपती, पहले 1-2 साल कुदरती रूप से गर्भधान की कोशिश करते हैं. अगर कुदरती रूप से गर्भ नहीं ठहरता तब चिकित्सकों के चक्कर चालू हो जाते हैं.

आजकल फर्टिलिटी फैल्योर रेट दिनबदिन बढ़ता जा रहा है. बां?ापन को एक बीमारी के रूप में देखते हैं. 12 महीने या उस से अधिक नियमित असुरक्षित यौन संबंध के बाद भी गर्भधारण करने में सक्सैस न होने पर जोड़े को बांझ माना जाता है.  डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि भारत में बांझपन की दर 3.9 % और 16.8त्% के बीच है.

अगर संयुक्त परिवार में रहने वाला युगल शादी के 1-2 साल बाद भी कोई खुशखबरी नहीं देता तब घर वालों और रिश्तेदारों के सवालों का शिकार होते परेशान हो उठता है. घर के बड़ेबुजुर्गों को दादादादी बनने की जल्दी होती है. बहू के पीरियड्स आने पर कुछ सासों की भवें तन जाती हैं. एक तो गर्भ न ठहरने की चिंता ऊपर से घर वालों का व्यवहार और व्यंग्यबाणों से छलनी होती जिंदगी के प्रति पतिपत्नी उदास हो जाते हैं.

हर कुछ दिनों बाद इस मामले में पूछताछ करने वाले परिवार जन उन को दुश्मन लगने लगते हैं.तकरार की शुरुआतमगर जो दंपती अकेले रहते हैं उन को क्या बांझपन को ले कर कम परेशानी उठानी पड़ती है? हरगिज नहीं, ऐसे दंपती को लगता है जैसे पासपड़ोस वालों को छोड़ो अजनबी लोगों की नजरें भी जैसे यही सवाल करती हैं कि कब खुशखबरी दे रहे हो? दूर बैठे परिवार वाले और रिश्तेदार फोन कर के बातोंबातों में इस विषय पर जरूर पूछते हैं कि कब तक हमें दादादादी बनने का सुख प्राप्त होगा? तब पतिपत्नी आहत होते अपनों के फोन उठाने से भी कतराने लगते हैं.

बांझपन के शिकार युगलों को शारीरिक कमी की चिंता मानसिक रूप से डांवांडोल करते पूरे शरीर की व्यवस्था बिगाड़ देती है. न कह सकते हैं, न सह सकते हैं. बांझपन की वजह से तकरार की शुरुआत एकदूसरे पर शक और दोषारोपण से होती है. दोनों को खुद स्वस्थ और सामने वाले में कमी नजर आती है.कुछ मामलों में कभीकभी पति गलतफहमी का शिकार होते सोचता है कि शादी से पहले मुझे हस्तमैथुन की आदत थी कहीं उस की वजह से मुझ में कोई कमी तो नहीं आ गई? कहीं मेरा वीर्य तो पतला नहीं हो गया? कहीं शुक्राणुओं की संख्या तो कम नहीं हो गई? उस काल्पनिक डर की वजह से काम में तो ध्यान नहीं दे पाता साथ में सैक्स लाइफ पर भी उस का बुरा प्रभाव पड़ता है.

चाह कर भी न खुद चरम तक पहुंच पाता है, न ही पत्नी को सुख दे पाता है. इस की वजह से दोनों एकदूसरे से खिंचेखिंचे रहते हैं.हीनभावना से ग्रस्तऐसे ही किसी मामले में पत्नी भी खुद को दोषी सम?ाते सोचती है कि पीसीओडी की वजह से मेरे पीरियड्स अनियमित हैं. उस की वजह से तो कहीं गर्भाधान नहीं हो पा रहा या तो कभी किसी लड़की ने कुंआरेपन में किसी गलती की वजह से अबौर्शन कराया होता है तो वह बात न पति को बता सकती है न डाक्टर को, ऐसे में वह गिल्ट उसे अंदर ही अंदर खाए जाती है, जिस की वजह से अंतरंग पलों में पति को सहयोग नहीं दे पाती.

तब प्यासा पति या तो पत्नी पर शक करने लगता है या फिर पत्नी से विमुख हो किसी और के साथ विवाहेत्तर संबंध से जुड़ जाता है.कई बार संयुक्त परिवार से अलग रहने वाले युगल उन्मुक्त लाइफस्टाइल जीते हैं, जिस में आएदिन पार्टियों में आनाजाना लगा रहता है और आजकल युवाओं की पार्टियां शराब, सिगरेट और जंक फूड के बिना तो अधूरी ही होती है.

अत: अल्कोहल, तंबाकू और जंक फूड का सेवन भी गर्भाधान में बाधा डालने का कारण बन सकता है.कई बार यह भी देखा जाता है कि लाख प्रयत्न के बाद भी जब गर्भाधान में कामयाबी नहीं मिलती तब कुछ युगल नीमहकीमों या बाबाओं के चक्कर में पड़ कर समय और पैसे बरबाद करते हैं और ऐसे गलत उपचारों से निराश हो कर उम्मीद ही खो बैठते हैं.

ऐसी परिस्थिति में कुछ लोग हार कर कभीकभी प्रयत्न करना ही छोड़ देते हैं.मगर ऐसे हालात में अगर पतिपत्नी दोनों समझदार होंगे तो बांझपन के बारे में एकदूसरे पर दोषारोपण करने के बजाय खुल कर विचारविमर्श कर के डाक्टर के पास जा कर सारे टैस्ट करवा कर उचित रास्ता अपनाते हैं.

बांझपन के कारणबां?ापन के कई कारण हो सकते हैं. एक तो आज के दौर में कैरियर औरिएंटेड लड़के, लड़कियां शादी को टालमटोल करते 30-32 के हो जाते हैं. ऊपर से शादी के बाद कुछ समय घूमनेफिरने और ऐश करने में गंवा देते हैं, जबकि हर काम उम्र रहते हो जाना चाहिए यह नहीं सोचते.ऊपर से मौजूदा जीवनशैली, गलत खानपान, पर्यावरणीय फैक्टर और देरी से बच्चे पैदा करने सहित विभिन्न कारणों की वजह से बांझपन आम हो गया है.

माना जाता है कि गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग ने भी बां?ापन के बढ़ते मामलों में योगदान दिया है.बांझपन मैडिकल कंडीशन यानी एक बीमारी है जहां कई दंपती कई वर्ष तक प्रयास करने के बाद भी गर्भधारण करने में असमर्थ होते हैं. यह समस्या दुनियाभर में एक चिंता का विषय है. इस बीमारी से लगभग 10 से 15त्न जोड़े प्रभावित होते हैं साथ में ओव्यूलेशन की समस्या महिलाओं में बांझपन का सब से आम कारण है. एक महिला की उम्र, हारमोनल असंतुलन, वजन, रसायनों या विकिरण के संपर्क में आना और शराब, सिगरेट पीना सभी प्रजनन क्षमता पर प्रभाव डालते हैं.क्या कहते हैं ऐक्सपर्टडाक्टर के अनुसार प्रैगनैंट होने के लिए सही उम्र 18 से 28 मानते हैं.

इसलिए इन वर्षों के बीच बच्चे के लिए किए गए प्रयास अधिक सफल होते हैं.सब से पहले तो शादी सही उम्र में कर लेनी चाहिए और यदि शादी लेट हुई है तो बच्चे की प्लानिंग में देरी नहीं करनी चाहिए वरना प्रैगनैंसी में दिक्कत हो सकती है.पतिपत्नी की सैक्स लाइफ हैल्दी होनी चाहिए. जब तक आप बारबार मैदानएजंग में नहीं उतरेंगे तब तक आप समस्या से लड़ेंगे कैसे जीतेंगे कैसे? इसलिए प्रैगनैंसी के लिए सब से जरूरी है कि पीरियड्स के बाद जिन दिनों गर्भाधान की संभावना ज्यादा होती है उन दिनों में अपने पार्टनर के साथ नियमित सैक्स करना चाहिए.

जितना अधिक सैक्स होगा प्रैगनैंसी की संभावना भी उतनी ही अधिक बढ़ जाएगी.जब कुदरती रूप से गर्भाधान में कामयाबी नहीं मिलती तब डाक्टर दंपती के सामने कुछ औप्शन रखते हैं जैसेकि:आईवीएफ पद्धति से प्रैगनैंसीयह एक सामान्य फर्टिलिटी ट्रीटमैंट है. इस प्रक्रिया में 2 स्टैप ट्रीटमैंट किया जाता है. यदि महिला के अंडाशय में एग का सही तरह से निर्माण नहीं हो रहा है और वह फौलिकल से अलग नहीं हो पा रहा है, पुरुष साथी में शुक्राणु कम बन रहे हैं या वे कम ऐक्टिव हैं तो ऐसे में महिला को कुछ इंजैक्शन दिए जाते हैं, जिस से ऐग फौलिकल से सही तरह से अलग हो पाता है.

इस के बाद पुरुष साथी से शुक्राणु प्राप्त कर उन्हें साफ किया जाता है और उन में से क्वालिटी शुक्राणुओं को एक सिरिंज द्वारा महिला के गर्भाशय में छोड़ा जाता है. इस के बाद की सारी प्रक्रिया कुदरती रूप से होती है. इस की सफलता की दर 10 से 15त्न होती है.

कुछ मामलों में आईयूआई से सफलता मिल जाती है, लेकिन यदि समस्या किसी और तरह की है तो आईवीएफ ही सही उपचार होता है.समस्या का निवारणइन्फर्टिलिटी की समस्या से पीडि़त दंपतियों को इनविट्रोफर्टिलाइजेशन की तकनीक की सलाह दी जाती है. यह पद्धति तब उपयोग में ली जाती है जब फैलोपियन ट्यूब में किसी भी कारण से कोई रुकावट हो जाए या खराब हो जाए.

महिला के ओव्यूलेशन में समस्या होने पर आईवीएफ की मदद से गर्भधारण किया जा सकता है. टैस्ट ट्यूब बेबी तकनीक अब नई नहीं रही. अनुभवी डाक्टर से करवाया गया उपचार परिणाम जरूर देता है.कृत्रिम रूप से गर्भवती होने में थोड़ा जोखिम तो है और इन प्रक्रियाओं में कुछ जटिलताओं का भी सामना करना पड़ सकता है.

लेकिन इस का मतलब यह हरगिज नहीं कि जो महिलाएं इनविट्रो फर्टिलाइजेशन या कृत्रिम गर्भाधान से गुजरती हैं उन्हें निश्चित रूप से स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आजकल उन्नत चिकित्सा विधियों की बदौलत कृत्रिम गर्भाधान की सफलता दर में काफी सुधार आया है. इसलिए इन्फर्टिलिटी के शिकार युगलों को हारे बिना, गबराए बिना सही निर्णय ले कर सही उपचार द्वारा समस्या का निवारण करना चाहिए.

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