हर तीसरी पोस्ट पर स्त्री विमर्श और स्त्रियों के हक में ही लिखा जाता है. उस लेखन के जरीए स्त्री सम्मान की भावना को ले कर पुरुष को न जानें कितनी बातें सुनाई जाती हैं. लेकिन हमारे समाज में महिलाएं इसलिए पीछे नहीं कि उन की आवाज को, उन की प्रगति को पुरुष दबाते हैं, बल्कि इसलिए पीछे हैं क्योंकि दूसरी महिलाएं उन की आवाज नहीं बनतीं, साथ नहीं देतीं, सम्मान नहीं करतीं.

मर्द स्त्री का सम्मान करें न करें यह दूसरी बात है, पर क्या मां, बहन, बेटी, सास, बहू और सहेली इन सब के मन में खुद परस्पर एकदूसरे के लिए सम्मान की भावना होती है? क्या एक स्त्री दूसरी स्त्री का सम्मान करना जानती है?

राग, द्वेष, ईर्ष्या ग्रस्त मन जितना स्त्री का है उतना पुरुष का नहीं. यहां तक कि 2 जिगरजान कहलाने वाली 2 सखियों के मन में भी कहीं न कहीं एकदूसरे के लिए ईर्ष्या का भाव पनपता रहता है. ऐसे में सासबहू, देवरानीजेठानी या ननदभाभी के बीच सामंजस्य की आशा रखना गलत है.

भले हर औरत ऐसी नहीं होती पर

अधिकतर महिलाएं ऐसी ही होती हैं. मांएं बेटी को हर तरह के संस्कार देंगी, हर काम सिखाएंगी पर बेटी को यह नहीं सिखाया जाता कि अपनी सास को मां सम?ाना, जेठानी को बड़ी बहन और ननद को सहेली. इस से विपरित ससुराल को कालापानी की सजा बता कर अपनी बेटी को यही सिखाया जाता है कि सास से दबना नहीं, सारा काम अकेले मत करना, जेठानी का कहना बिलकुल मत मानना और ननद के नखरे तो बिलकुल मत उठाना.

यह भेदभाव क्यों

न ही सास अपनी बहू को बेटी सम?ाने की शुरुआत करती है. बहू कामकाजी है तो कितनी सासें औफिस से थकीहारी लौटी बहू को चाय पिलाती हैं या गरम रोटी बना कर परोसती हैं? या कौन सी जेठानी देवरानी को छोटी बहन सम?ा कर हर काम में हाथ बंटाती हैं? न ही ननद भाभी को वह सम्मान देती है. बहुत ही कम स्त्रियों में यह सम?ा होती है और औरतों की यही कमी परिवार को बांटने का काम करती है, परिवार में क्लेश पैदा करती है.

दहेज के लिए प्रताडि़त भी सास ही बहू को करती है, बेटी पैदा होने पर तानें भी सास ही बहू को मारती है. क्यों सास बहू के पक्ष में नहीं होती? कहा तो जाता है कि महिलाओं में क्षमा, दया, ममता जैसे प्राकृतिक गुण होते हैं, लेकिन आजमा कर देखिए उन की इस दरियादिली की बारिश में भीगने का अवसर पुरुषों को ही ज्यादा मिलता है. जब लड़की ब्याह कर जाती है तो ससुर, देवर और नन्दोई उस के लिए किसी देवता से कम नहीं होते, लेकिन बेचारी सास या ननद साक्षात विलेन का ही स्वरूप होती है. वह हर किसी को आसानी से माफ कर देती है, लेकिन सास को? इस पर तो शायद कोई लड़की सोचना ही पसंद नहीं करती.

बहू बेटी क्यों नहीं

जब जिंदगी एक ही छत के नीचे गुजारनी है, तो आखिर क्यों सास बहू को बेटी की जगह नहीं दे सकती और बहू सास को मां की जगह क्यों नहीं दे सकती, जबकि असल में यह रिश्ता सब से मजबूत होना चाहिए.

कहीं भी देख लीजिए महिला को महिला के विरुद्ध ही पाएंगे. फिर वह चाहे शिक्षित हो या निरक्षर. सदियों से यही चला आ रहा है और सदियों तक चलता रहेगा. बस एक बार सासबहू में बेटी का रूप देखें और बहू सास में मां का रूप. सच में ‘स्त्री ही स्त्री की दुश्मन’ कथन का साहित्य के हर पन्नों से विसर्जन हो जाएगा.

मगर गौसिप में माहिर स्त्रियां एक मौका नहीं छोड़तीं अपने आसपास बसी औरतों को नीचा दिखाने का. अकसर किट्टी पार्टियों में एक स्त्री दूसरी स्त्री को नीचा दिखाने का काम ही करती है. स्टेटस से ले कर पहनावा, पसंद और रहनसहन पर टिप्पणी करते खुद को सुंदर, सक्षम और सम?ादार दिखाने की स्त्रियों में होड़ लगी रहती है.

मर्द इस तरह की हरकतें बहुत कम करते होंगे. परिवार की नींव होती है स्त्रियां. हर मां का फर्ज है अपनी बेटी को ये सिखाना कि अपने जीवन में आने वाली हर स्त्री का सम्मान करो. जब तुम सामने वाले को मान दोगी, अच्छा व्यवहार रखोगी तभी तुम्हें सम्मान मिलेगा. पहले हर स्त्री को एकदूसरे को सम?ाने की जरूरत है, एकदूसरे को मान और सहारा देने की जरूरत है. चाहे दोस्ती हो, परिवार हो या समाज स्त्री जब दूसरी स्त्री का सम्मान करना सीख जाएगी तब विभक्त परिवार एक होंगे, अखंड परिवार की शुरुआत होगी, अपनेपन और शांति से भरे समाज का गठन होगा.

अपेक्षा स्त्रियों से भी हो

अगर कहीं भी सरेआम किसी स्त्री पर अत्याचार होता है, तब महिलाओं को एकत्रित हो कर दमनकारियों का सामना करना चाहिए. जैसे कुछ समय पहले मणिपुर में घटना घटी थी एक औरत को निर्वस्त्र कर के पूरे गांव में घुमाया गया. उस के बाद राजस्थान में भी एक पति ने अपनी पत्नी को निर्वस्त्र कर के घुमाया. जरा सोचिए उस औरत की मानसिक हालत के बारे में. तब अगर एकजुट हो कर दूसरी महिलाएं उन दरिंदों का विरोध करतीं तो उस औरत की बेइज्जती होने से बच सकती थी.

भीड़ से शेर भी घबराता है, इसलिए अब समय आ गया है कि राग, द्वेष, ईर्ष्या छोड़ कर महिलाओं के एकजुट होने का. जहां कहीं भी किसी महिला पर अत्याचार होता दिखे महिलाओं को ही आगे आ कर विद्रोह करना होगा. तभी कुछ हादसों पर रोक लगेगी.

सिर्फ मर्दों से यह आशा न रखें कि मर्द हर औरत का सम्मान करें स्त्रियों से भी यह अपेक्षा रखी जाए. हर बेटी को बचपन से ही यह सिखाया जाए तभी सदियों से चली आ रही परंपराएं टूटेंगी, सासबहू के संबंध मांबेटी जैसे बनेंगे और ईर्ष्या भाव का शमन होते ही समाज संस्कारवान दिखेगा.

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