पिछले कई सालों से आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस पर चर्चा हो रही है. इंटरनैट देश और दुनिया में तेजी से तरक्की कर रहा है जिस के साथसाथ नईनई टैक्नीकों का भी तेजी से विकास हो रहा है. आजकल एआई का इस्तेमाल सोशल मीडिया पर भी जोरोशोरों से हो रहा है. कंटैंट बनाना, आर्टिकल लिखना, कहानियां लिखना, किसी घटना विशेष के बारे में बताना. सब एआई से पौसिबल है.

इंस्टाग्राम रील और यूट्यूब वीडियोज बनाने में भी एआई का इस्तेमाल किया जा रहा है. आप वैब सर्च में एआई वीडियो या रील मेकल डाल कर देखिए, कितने ही रिजल्ट आ जाएंगे एआई की मदद से रील बनाने के.

एआई प्रोग्राम मिडजर्नी की सहायता से ऐसी तसवीरें तैयार की जा सकती हैं जिन का विश्वास करना मुश्किल है क्योंकि वह एक फोटोग्राफ की तरह ही लगती है. जौस एवरी जोकी एक फोटोग्राफर हैं, ने मिडजर्नी की सहायता से कितने लोगों को बेवकूफ बनाया.

एआई की मदद से किसी के चेहरे पर किसी का चेहरा लगाया जा रहा है. टैक्नीक इंप्रूवमैंट में शामिल कंपनियां आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस की मदद से आएदिन कोई न कोई नई तकनीक बाजार में उतार देती हैं. आइए जानते हैं इस के बारे में.

क्या है आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस

यह तकनीक किसी मनुष्य की तरह आप के सवालों के जवाब देती है और काम करती है. आप ने कंप्यूटर पर शतरंज का खेल तो खेला ही होगा. उस में भी आप की एक चलने के बाद जो चाल कंप्यूटर चलता है वह आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का ही एक हिस्सा है. ऐसे ही गूगल असिस्टैंट, ऐलैक्सा और सिरी वाइस असिस्टैंट भी इस के अच्छे उदाहरण हैं.

सन 1955 में अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक जौन मैकार्थी ने मशीनों को स्मार्ट बनाने की इस टैक्नीक को आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का नाम दिया था. तब से इंसानों की जरूरतों को पूरा करने की सम?ा लगातार मशीनों में विकसित करने की कोशिश की जा रही है. यूके स्थित इंजीनियर्ड आर्ट्स द्वारा बनाया गया ह्यूमनौइड रोबोट अमेका एआई तकनीक का सब से बड़ा उदाहरण है, जिस में मानव जैसे गुण डाले जा रहे हैं और ये सब से एडवांस रोबोट में से आता है.

एआई की दुनिया

आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस दुनिया की श्रेष्ठ तकनीकों में से एक है ऐसा कहा जाता है परंतु हर तकनीक के फायदे और नुकसान होते हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

80 के दशक में आई जेम्स कैमरून द्वारा निर्देशित हौलीवुड फिल्म ‘द टर्मिनेटर’ (1984) जिस में अर्नोल्ड श्वार्जनेगर ने एक रोबोट की भूमिका अदा की थी जो दुनिया को बचाने के लिए भविष्य से आता है.

यह फिल्म मशीनों से मशीनों की लड़ाई पर केंद्रित है जिस में इंसान एक असहाय पीडि़त सा दिखाई देता है. आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस मशीनों को इंसान बनाने के काम कर रहा है. यह समस्या अभी दूर है लेकिन आने वाले भविष्य में मशीनें इंसान की जगह ले लेंगी इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

इसी दिशा में काम कर रहे वैज्ञानिकों द्वारा मशीनों का दिमाग विकसित किया जा रहा है. मानव रोबोट अमेका जिस का जिक्र ऊपर किया गया है, डब्ड अल्टर 3, ्नक्त्ररू्नक्त्र-6 को ही ले लीजिए.

वर्तमान में भी मशीनें इंसानों की जगह ले रही हैं, जिस में आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस सब से बड़ा सहायक बन कर सामने आता है. मशीनों से जो बड़ी मात्रा में उत्पादन संभव हुआ है वह इस की वजह से ही है. सहयोगात्मक रोबोट, जिन्हें कोबोट भी कहा जाता है – मानव के साथ हाथों के एक अतिरिक्त सैट के तौर पर काम करते हैं.

फायदे हैं तो नुकसान भी

एआई के आने के बाद धीरेधीरे नौकरियों की संख्या लगातार गिरने लगी है और ऐसा आने वाले समय मे भी जारी रहेगा. संभावना है कि आने वाले समय में आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस टैक्नीक और भी नौकरियों की संख्या में कमी करने वाली है. जैसे कंटैंट क्रिएशन, फिल्म मेकिंग, ग्राफिक डिजाइनिंग आदि.

बड़ीबड़ी कंपनियां अब इस के लिए एआई के एक्सपर्ट को रखने लगे हैं जिस से सालों का अनुभव रखने वाले कलाकारों का रोजगार खतरे में पड़ गया है. आप जो भी बोलें जैसे भी तस्वीर या लेख चाहें केवल आप के सवाल टाइप कर देने भर से इंटरनैट पर मौजूद सैकड़ों एआई वैबसाइट्स मिनटों में आप को इस के परीणाम दे देंगी.

इस से आने वाले समय में नौकरियां और भी कम हो जाएंगी. इसी खतरे को देखते हुए इसी साल 2023 की शुरूआत में हौलीवुड में हजारों एक्टर्स एआई के खतरे के खिलाफ एसएजी-एएफटीआरए द्वारा रखे गए विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए क्योंकि अभिनेता बिना अनुमति के एआई की मदद से अपनी तसवीरों का उपयोग करने के हौलीवुड के प्रयासों के खिलाफ थे और लेखक स्क्रीनप्ले लिखने में एआई के इस्तेमाल के खिलाफ पहले से ही हड़ताल पर थे.

आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का दुरूपयोग भी उतने ही आसान तरीके से किया जा सकता है जितने आसान तरीके से इस का उपयोग. इस पर कोई सैंसरशिप नहीं है जो इस पर निगरानी रखता हो.

यह किसी तरह की गाइडलाइंस का पालन नहीं करता. इस्तेमाल करने वाले को जो भी चाहिए यह अलादिन के चिराग कि तरह उसे दे देता है. चाहे वह सही हो या गलत.

स्कूलों में एआई का इस्तेमाल हो रहा है नौर्मल सी बात है. यह बच्चों के सोचने और सम?ाने की ताकत पर असर डालेगी. बच्चों की क्रिएटीविटी पर इस से असर पड़ेगा. आजकल कितने ही ऐप प्लेस्टोर पर उपलब्ध हैं, जैसे चैटजीपीटी, बिंग, एआई चैटबोट जो किसी भी विषय के बारे में आप को पैराग्राफ से ले कर आर्टिकल तक लिख कर दे देंगे.

एआई की सहायता से साइबर क्राइम बढ़ने की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता. आजकल एक नागरिक की सारी जानकारी को एआई की सहायता से ढूंढ़ना कोई बड़ी बात नहीं है. किसी के चेहरे पर किसी का चेहरा लगा कर दस्तावेजों में गड़बड़ी की जा सकती है. उन तसवीरों का गलत और आपराधिक इस्तेमाल में लिया जा सकता है.

एआई कामों को आसान तो बना ही सकती है लेकिन इस के नैगेटिव असर को नकारा नहीं जा सकता. इस के लिए इस पर नजर रखना भी जरूरी है ताकि यह भविष्य में इंसानों के सिरर्दद का कारण न बन जाए.

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