पत्रिका के पन्ने पलटते एक शीर्षक पर नजर अटक गई, ‘‘कह दो सारी दुनिया से, कर दो टैलीफोन कम से कम 1 साल चलेगा अपना हनीमून,’’ उत्सुकतावश पूरा लेख पढ़ गई.

इस में एक जोड़े के बारे में बताया था जो 5 साल से हनीमून मना रहा था. मुझे लगा इतना समय क्या घूम ही रहे हैं ये लोग. 5 साल तक पर पढ़ने के बाद कुछ और ही निकला. जैसे दोनों को साहित्य का शौक, दोनों को घूमनेफिरने का शौक, दोनों को पिकनिकपिक्चर का शौक, दोनों को दोस्तों से मिलनेजुलने का शौक, दोनों को होटलिंग का शौक, दोनों ही जिंदादिल और इस तरह से दोनों अपना हनीमून अभी तक मना रहे हैं.

उफ, पढ़ कर ही मन में गुदगुदी होने लगी. हाय, क्या कपल है… जैसे एकदूसरे के लिए ही बने हैं. एकदूजे के प्यार में आकंठ डूबे. 5 साल से हनीमून की रंगीनियत में खोए. यहां तो 5 महीने में ही 50 बार झगड़ा हो गया होगा हमारा. 8 दिनों के लिए शिमला गए थे हनीमून पर. 2-4 फोटो खिंचवाए, खर्च का हिसाबकिताब किया और हो गया हनीमून. श्रीदेवी स्टाइल में शिफौन की साड़ी पहन न सही स्विट्जरलैंड शिमलाकुल्लू की बर्फीली वादियों में ‘तेरे मेरे होंठों पे मीठेमीठे गीत मितवा…’ गाने की तमन्ना तमन्ना ही रह गई.

मगर यह लेख पढ़ कर दिल फिर गुदगुदाने लगा, अरमान फिर मचलने लगे, कल्पनाएं फिर उड़ान भरने लगीं. चलो ऐसे नहीं तो ऐसे ही सही. मैं भी ट्राई करती हूं अपनी शादीशुदा जिंदगी में हनी की मिठास और मून की धवल चांदनी का रंग घोलने की. पर कैसे? मैं ने दोबारा लेख पढ़ा.

पहला पौइंट मैं ने चुटकी बजाई. साहित्य, उन की पता नहीं पर मेरी तो साहित्य में रुचि है. आज ही एक बढि़या सी कविता बना कर सुनाती हूं उन्हें. फिर मैं जुट गई हनीमून का आरंभ करने में.

दिनभर लगा कर शृंगाररस में छलकती, प्रेमरस में भीगी, आसक्ति में डूबी एक बढि़या कविता तैयार की और खुद भी हो गई शाम के लिए तैयार. करने लगी इंतजार डोरबैल बजी तो मैं ने खुशी से दरवाजा खोला.

ये मुझे देखते ही बोले, ‘‘कहीं जा रही हो क्या? पर पहले मुझे चाय पिला दो. बहुत थक गया हूं.’’

मैं बुझ गई. मुझे देख तारीफ करने के बजाय, सुंदरता को निहारने के बजाय थक गया हूं. हुं पर कोई बात नहीं चाय के साथ सही. मैं ने बड़े मन से इन के लिए चाय बनाई, शानदार तरीके से ट्रे सजाई, साथ में ताजा लिखी हुई कविता रखी और चली इन के पास.

ये आंखें मूंदे सोफे पर पसरे हुए थे. मैं ने चूडि़यां बजाईं और प्यार से कहा, ‘‘चाय…’’

इन्होंने आंखें खोलीं, ‘‘इतनी चूडि़यां क्यों पहन रखी हैं गंवारों की तरह? इन्हें उतारो और कोई कड़ा पहनो.’’

मैं चुप. फिर भी स्वर को भरसक कोमल बनाते हुए कहा, ‘‘उतार दूंगी अभी सुनो न, आज मैं ने एक बहुत अच्छी कविता लिखी है. सुनाऊं?’’

ये ?ाल्ला कर बोले, ‘‘यह कवितावविता लिखना बेकार लोगों का काम होता है. सिर दुखता है मेरा ऐसी कविताओं से. दिनभर घर में खाली बैठी रहती हो कुछ जौबवौब क्यों नहीं ढूंढ़ती.

‘‘उफ, मेरे कान लाल हो गए. मेरी शृंगाररस की कविता करुणरस में बदल गई. संयोग के बादल बरसने से पहले वियोग की तरह छितरा गए. उखड़े मूड में मैं बैडरूम में गई. चेंज किया और पलंग पर पसर गई.

कुछ देर में ये आए, ‘‘आज खानावाना नहीं बनेगा क्या?’’

मैं भन्ना कर कुछ तीखा जवाब देने ही वाली थी कि हनीमून का दूसरा पौइंट याद आ गया-

किसी अच्छे रेस्तरां में कैंडल लाइट डिनर. मैं ने तुरंत अपनी टोन बदली, ‘‘नहीं, आज मन नहीं कर रहा. चलो न आज कहीं बाहर ही खाना खाते हैं. कितने दिनों से हम कहीं बाहर नहीं गए.’’

ये तलख स्वर में बोले, ‘‘अपने मांबाप के घर रोज ही बाहर खाना खाती थी क्या? तुम्हारी ये फालतू की फरमाइशें पूरी करने के पैसे नहीं हैं मेरे पास. तुम से बनता है तो बनाओ नहीं बनता तो मुझे कह दो मैं बना लूंगा.’’

छनछन… छनाक… और ये सपने चकनाचूर… मन तो हुआ कि 2-4 खरीखरी सुनाऊं इस कंजूस मारवाड़ी को. फालतू फरमाइश पूरी करने के पैसे नहीं हैं मेरे पास. रख ले अपने पैसे अपने पास. मुझे भी कोई शौक नहीं है ऐसे पैसों का. पर बोलने से बात और बिगड़ती ही मन में दबाई और उठ कर खाना बनाने चल दी. मन में यह ठान कर कि हनीमून तो मैं मना कर रहूंगी चाहे कैसे भी.

‘आज है प्यार का फैसला ए सनम आज मेरा मुकद्दर बदल जाएगा तू अगर संग दिल है तो परवाह नहीं मेरे बनाए खाने से पत्थर पिघल जाएगा…’

हनीमून का तीसरा पौइंट- बढि़या खाना

बना कर पेट से दिल में पहुंचें. यह भी क्या याद रखेंगे कि क्या वाइफ मिली है जो इतनी कड़वीतीखी बात सुनने के बाद भी इतना स्वादिष्ठ खाना बना सकती है. मेरे हाथ चलने लगे. फुरती से मैं ने बनाई लौकी के कोफ्ते की सब्जी, पनीर भुर्जी, दालचावल, सलाद, गरमगरम फुलके. फुलके उतारते मैं ने इन्हें आवाज दी, ‘‘आइए खाना तैयार हैं.’’

ये आए. खाना देखते ही बोले, ‘‘यह क्या मिर्चमसालों वाला खाना बना दिया. इतना तेल, मसाले खाने की आदत नहीं है मुझे. हरी सब्जियों को हरा ही क्यों नहीं रहने देती तुम?’’

लो पेट के रास्ते दिल तक पहुंचने का रास्ता तो बड़ा संकरा निकला. इस रास्ते से दिल तक पहुंचना तो मुश्किल ही नहीं नामुमकिन नजर आने लगा. मन मसोस कर बोली, ‘‘अभी तो खा लो कल से हरी सब्जी हरी ही बनाऊंगी.’’

एकदूसरे को निवाले खिलाने के अरमान दम तोड़ने लगे. उस में तो लिखा था आपस में एकदूसरे को प्यार से खिलाते हनीमून को ताजा करते रहते थे. अब मैं कैसे करूं. फिर भी कोशिश की. बड़े प्यार से निवाला बनाया और इन्हें खिलाने लगी तो इन्होंने हाथ ?ाटक दिया, ‘‘यह नाटकबाजी मुझे पसंद नहीं. खा लूंगा अपनेआप. कोई बच्चा नहीं हूं. एक तो ऐसा खाना ऊपर से इतनी नौटंकी.’’

यह पौइंट भी बेकार गया. कोई बात नहीं. अभी और भी फौर्मूले हैं. दिनभर काम कर के थक जाते हैं बेचारे. रोजरोज वही रूटीन, वही बोरिंग लाइफ, कुछ चेंज तो होना चाहिए. हनीमून मनाने का चौथा पौइंट याद किया. 2 दिन बाद ही संडे है. मित्रों के साथ पिकनिक का प्रोग्राम होना चाहिए. दोस्तों की छेड़छाड़, हंसीमजाक, धमाचौकड़ी के बीच सब की नजर बचा कर प्यार के कुछ पल शरारत भरे. मन में फिर गुदगुदी सी हुई. मैं ने इन की तरफ करवट बदली. ये हलके खर्राटे भरते नींद में गुम. मैं गुमसुम. मैं ने फिर करवट बदली और नींद को बुलाने लगी. सुबह बात करूंगी इन से पिकनिक के बारे में.

सुबह इन की झल्लाती आवाज से नींद टूटी, ‘‘कितनी देर तक सोती रहोगी? उठने का इरादा है या नहीं? चायवाय नहीं मिलेगी आज?’’

मेरा मन फट पड़ने को हुआ कि अजीब आदमी है सिवा चाय और खानेपीने के और कुछ सू?ाता ही नहीं इसे. सुबह नींद की खुमारी में डूबी, खूबसूरत, सिर्फ 15 महीने पुरानी बीवी को प्यार से, शरारत से उठाना तो दूर ऐसे उठा रहे हैं जैसे 25 साल पुरानी बीवी हो. न कभी खूबसूरती की तारीफ, न कभी खाने की, न कहीं शौपिंग, न बाहर खाना. उफ, हनीमून तो छोड़ो कैसे कटेगी जिंदगी इस बोर, उबाऊ, नीरस व्यक्ति के साथ. गुस्से से चादर झटकती, पैर पटकती मैं उठी. चाय का प्याला इन के सामने पटका और बाथरूम में जा घुसी. अब क्या करूं इन से पिकनिक की बात. फिर भी एक चांस तो और लेना ही पड़ेगा.

सो नाश्ता परोसते झूठ ही कहा, ‘‘कल श्वेता का फोन आया था. वह और नीरज इस संडे पिकनिक का प्रोग्राम बना रहे हैं आप के सभी दोस्तों के साथ. हमें भी चलने को कहा है. क्या कहूं?’’

सोचा अगर ये हां कह देंगे तो मैं खुद श्वेता को फोन कर प्रोग्राम बना लूंगी पर सपाट जवाब, ‘‘मना कर दो.’’

मैं हैरान, ‘‘क्यों?’’

ये हलकी चिढ़ से बोले, ‘‘क्यों क्या. सप्ताह में 1 दिन मिलता है थोड़ा रिलैक्स करने का, आराम करने का उसे भी फालतू दोस्तों के साथ आनेजाने में बिगाड़ दूं मैं नहीं चाहता.’’

उफ, अब मनाओ हनीमून. क्याक्या लिखा था उस लेख में. एकदूसरे को कविता सुनाओ, प्यारी रोमांटिक बातें करो, अच्छा खाना बनाओ, प्यार से एकदूसरे को खिलाओ, सजसंवर कर तैयार रहो, बीचबीच में प्यार का इजहार करो, बाहर जाओ, आइसक्रीम खाओ, खाना खाओ, शौपिंग पर जाओ, पिकनिक जाओ, पिक्चर जाओ. यहां तो लग रहा है कि अब सीधे अपने मायके जाओ. इन्होंने तो सब पर पानी फेर दिया. मैं ने मन ही मन में सोचा और इन्हें वह लेख पढ़ा दिया.

लेख पढ़ कर बोले, ‘‘ऐसे वाहियात लेख पढ़ कर ही तुम्हारा दिमाग खराब होता है. मेरी ऐसी वाहियात बातों में कोई रुचि नहीं समझ. बेहतर यही होगा कि दिनभर घर पर खाली बैठ कर यह फालतू मैगजीन पढ़ने के बजाय कुछ जौबवौैब करो ताकि घर में चार पैसे आएं और इस महंगाई में गुजारा हो सके.’’

अब मुझे पता चल गया मेरा हनीमून 5 साल तो क्या 2 साल भी नहीं चलेगा. तलाक समस्या का समाधान नहीं तो खुद को व्यस्त करना ही बेहतर उपाय लगा. अब मैं एक टीचर हूं और सब को व्यस्त रहने का ज्ञान बांटती रहती हूं.

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