जीवन एक बाजार है जिस में हर दूसरा जना एक कस्टमर है. आप के रिश्तेदार, दोस्त, बच्चे तक आप के तब तक हैं जब तक आप उन्हें वह दे रहे हैं जो वे चाहते हैं और आप तब तक ही देते हैं जब तक वे उस की कीमत चुकाते हैं. इस जीवन के बाजार में हर चीज पर एमआरपी रुपयों में नहीं लिखी होती. यहां बार्टर सिस्टम चलता है. तुम मेरे लिए करते रहो, मैं तुम्हारे लिए करता रहूं.

बहुत से दुख इसलिए होते हैं कि जीवन के संबंधों में एक जना बारगेन कर के या नाजायज कीमत मांग कर अपना फायदा बढ़ाना चाहता है. यहीं से टकराव शुरू होता है चाहे मांबेटे का रिश्ता ही क्यों नहीं हो. छोटा 5 साल का बेटा मां को ‘आई लव यूं’ कह कर चिपक कर एक सुख देता है और उस के बदले वह मां का प्यार, दुलार, सुरक्षा और जीने की आवश्यक चीजें पाता है.
यह सोचना कि जीवन का व्यापार एकतरफा हो सकता है, सब से बड़ी कठिनाइयां पैदा करता है. इस में शक नहीं कि बाजार में धोखा देने वाले भी सैकड़ों होते हैं जो सुंदर पैकिंग में खाली डब्बा पकड़ा देते हैं. सैकड़ों इस तरह की खरीद के शिकार होते हैं, हर रोज रोतेकलपते नजर आते हैं.

सदियों से धर्म और राजाओं ने बिना कुछ बदले में दिए पैसा, अनाज, जमीन वसूलने का तरीका अपनाया. उन्होंने कहा कि वे लुटेरों से रक्षा करेंगे, आपस में विवादों में न्याय करेंगे, वे जीवन जीने के नियम बनाएंगे, घरों को सही चलाने में सहायता करेंगे, गांवोंशहरों का प्रबंध करेंगे. पर बदले में उन्होंने दूसरों पर फालतू में उस चीज के पैसे मांगने शुरू कर दिए जो दी नहीं गई, दूसरों पर आक्रमण कर के जान मांगनी शुरू कर दी.
जंगली जानवरों, प्रकृति, बीमारियों, बाहरी लुटेरों ने समय से पहले उतनी जानें नहीं ली होंगी जितनी धर्म और राजाओं ने बिना उतना दिए जितना लिया कह कर ली हैं. धर्म ने राजाओं से ज्यादा लिया है, दिया नहीं. धर्मों के दुकानदारों ने घरों में घुस कर स्त्रीपुरुष के बैड पर क्या होगा इस की दलाली कीमतें तय करनी शुरू कर दीं.

घर के बाजार में धर्म और सरकार का कानून एक छिपी जीएसटी के अनेक रूप में छा गया. कब प्रेम किया जाए, कैसे किया जाए, किस से किया जाए, बच्चों को कैसे पाला जाए, भाइयों, बहनों से संबंध कैसे हों, दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ कैसे निभाएं, किन के साथ उठेंबैठें, सब पर नियम लागू कर दिए और प्यार के लेनदेन से आधाअधूरा ही हाथ में बचने लगा.

आम जना अपनी पत्नी, रिश्तेदारों, बच्चों, दोस्तों से परेशान रहता है तो इसलिए कि उन से बाजार वाले नियमों के अनुसार आपसी लेनदेन कर के एक सुखद फैसले पर नहीं पहुंचा जा सकता. औरतों को गुलाम बना कर उन की कीमत घटा दी गई. वे प्यार देती हैं, बच्चे देती हैं, घर चलाती हैं पर उन्हें सुरक्षा नहीं बस जीने भर का एहसास मिलता है. वे बराबर की हकदार नहीं हैं.
जीवन को सुखी रखना है तो जो मिल रहा है, उस की वाजिब कीमत दो, चाहे कुछ दे कर के,
बना कर या कुछ प्यार दे कर.

एक बेटी की करुणामयी पुकार
सुनें, ‘‘मैं अपनी मां से परेशान हूं क्योंकि वे चाहती हैं कि मैं अपनी नौकरी छोड़ कर दूसरी बहन की तरह रिसर्च करूं और अरेंज्ड मैरिज करूं. पर मैं दोनों नहीं करना चाहती. न करने पर मां आपा खो बैठती हैं, सिर पटकने लगती हैं. क्या करूं? बेटी से ज्यादा कीमत वसूलने के चक्कर में मां भी लेनदेन का सिद्धांत भूल गईं.
सैकड़ों परिवारों में बेटे
अपनी पत्नी को ले कर मां को छोड़ कर चले जाते हैं क्योंकि मां द्वारा आपसी लेनदेन सही कीमत पर नहीं देने पर प्यार का बैलेंस बिगड़ जाता है.
संबंध सुधार कर रखने हैं तो इस का ध्यान रखें कि जो चाह रहे हो, उस की सही कीमत दो.

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