कई पतियों को अपनी पत्नियों से शिकायत होती है कि वे कभी सजती सवरती नहीं है? हमेशा वही बेकार से कपड़ों में नजर आती है फिर चाहे कितनी भी अलमारियां अच्छे कपड़ों से क्यों ना भरी हो. वाकई यह बात सही है महिलाओं के पास अकसर कपड़ों की कमी नहीं होती लेकिन वह उन्हें आने जाने में ही पहनना पसंद करती है और घर पर वही पुराने कपडे और बिखरे हुए बाल वाले अंदाज में रहती हैं. अगर उनसे पूछा जाए वे ऐसा क्यों करती है? तो उनका साफ है. घर में हम सारे दिन काम में लगे रहते हैं तो हमे कम्फर्ट चाहिए. दूसरे, घर में हमें कौन आकर देख रहा है जिसके लिए सजा जाएं जब कभी बहार जाएंगे तो तैयार भी हों लेंगें.
सच तो यह है अगर एक औरत कहे कि मुझे सुबह से उठकर इसी 2 कमरे के मकान में रहना है और कहीं जाना नहीं है. मेरी दाएं बाएं वाली पड़ोसन भी ऐसे ही रहती है. तो मैं ही क्यों सजधज कर बैठूं और कहां जाऊं. जिस औरत को हफ्ते के 6 दिन घर पर रहना है ना कहीं जाना है ना आना है. ना ही उसके घर पर किसी को आना है. तो हम टिप टौप होकर क्यों बैठे जबकि बरमूडा और टीशर्ट में हमे आराम मिलता है. उनकी बात सही हो सकती है. लेकिन यहां मेरा एक सवाल है?
घर में बैठी हो तो बहार क्यों नहीं निकलती हो? आप यूजलेस हैं क्या? क्या वाकई बाहर जाने के आपके पास कोई वजह नहीं है? या फिर आप आलसी हैं ? आपका कोई फ्रेंड सर्कल नहीं है? आखिर क्या वजह है ऐसे रहने की?
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