Private School : पेरैंट्स के लिए स्कूली ऐजुकेशन एक बड़ा चैलेंज है और ऐडमिशन से ले कर क्लास 12 तक पेरैंट्स स्ट्रैस में रहते हैं. मथुरा रोड, दिल्ली से शुरू हुआ दिल्ली पब्लिक स्कूल आज सैकड़ों स्कूल अपने ब्र्रैंड नाम से चला रहा है पर पिछले दिनों उस का दिल्ली के द्वारका का स्कूल न्यूज में आया क्योंकि उस ने 32 स्टूडैंट्स को फीस न देने की वजह से ऐक्सपैल कर दिया. स्कूल के 102 पेरैंट्स ने एक और मामले में हाई कोर्ट में फीस बढ़़ाने के फैसले को वापस लेने की पिटीशन दायर कर रखी है.

डिपार्टमैंट औफ ऐजुकेशन और हाई कोर्ट के कहने पर ये 32 स्टूडैंट्स तो वापस ले लिए गए पर यह सवाल खड़ा रहता है कि आखिर स्कूली ऐजुकेशन इतनी महंगी क्यों है कि पेरैंट्स जो ऐडमिशन कराते समय रातदिन सिफारिशें करते फिरते हैं और मोटी रकम देने को तैयार रहते हैं, बाद में फीस नहीं देते?

स्कूल ने हाई कोर्ट में कहा कि पिछले साल उसे क्व49 करोड़ का नुकसान हुआ जो सिर्फ फीस बढ़ा कर पूरा करा जा सकता है. जो स्टूडैंट्स बढ़ी फीस नहीं दे सकते उन्हें ऐक्सपैल करने के अलावा स्कूल कुछ नहीं कर सकता. 9.64 एकड़ में फैला हुआ स्कूल 2,096 स्क्वेयर मीटर पक्की बिल्डिंग में है. 25 हजार स्क्वेयर मीटर का प्लेग्राउंड है. वैबसाइट के अनुसार स्कूल को 1,95,096 फीस हर साल देनी होती है. जो फीस बढ़ाई गई है वह इस के बाद है यह स्पष्ट नहीं है. स्कूल से घर तक बस के चार्जेज क्व5,200 से क्व3,700 महीना डिस्टैंस के हिसाब से है.

यह स्कूल दक्षिणी दिल्ली के अमीर इलाके में नहीं, कंपैरेटिव थोड़े साधारण इलाके में है जिस में डाबड़ी, ककरोला, महावीर ऐन्क्लेव, राजापुरी, मंगलापुरी, लाजवंती गार्डन, नारायणा, मायापुरी, पालम गांव, उत्तम नगर जैसे इलाकों के स्टूडैंट्स आते हैं. स्टाफ 200-300 के बीच का है जिस में प्रिंसिपल का वेतन लाखों में है क्योंकि वाइस प्रिसिंपल सुषमा अंशवाल का सरकारी ग्रेड के हिसाब से वेतन क्व2 लाख के लगभग है. प्राइमरी टीचर्स का वेतन भी क्व75 हजार के लगभग है.

जब इतना तामझाम चाहोगे तो फीस तो देनी ही होगी. अगर स्कूल कहता है कि उसे 2 लाख की फीस लेने पर भी नुकसान है तो या तो पेरैंट्स अपने बच्चों को सस्ते प्राइवेट स्कूलों में ले जाएं या फिर सरकारी मुफ्त स्कूलों में. अगर अनएडेड स्कूल में भेजना है तो फीस तो देनी ही होगी और जब बजट इतना बड़ा होगा तो कौन सा पैसा कहां जाता है यह सवाल पेरैंट्स नहीं कर सकते. उन्हें डीपीएस के लेबल के भी पैसे देने ही होंगे. स्कूल के रिजल्ट अच्छे हैं. सभी स्टूडैंट्स पास होते हैं. 12वीं क्लास के ऐग्जाम में 95% की फर्स्ट डिवीजन आती है. 98.9% वाली स्टूडैंट टौपर्स 2025 में. क्लास 10 में 229 स्टूडैंट्स में से 83 स्टूडैंट्स के 90% से ज्यादा मार्क्स थे. 83 के ही 80 से 90% के बीच मार्क्स थे. 75 से 81% के बीच 31 स्टूडैंट्स थे. 229 में से 209 स्टूडैंट्स के मार्क्स 70% से ज्यादा थे.

अब जब बड़े स्कूल में जाओगे, अच्छे रिजल्ट वाले स्कूल में जाना हो, सोशल, स्पोर्ट्स कल्चरल ऐक्टिविटीज चाहिए हों तो फीस तो देनी ही होगी और वह फीस देनी होगी जो स्कूल मांगता है न कि वह जो सरकार कहती है. ऐजुकेशन अब एक बिजनैस है. लागत और उस पर प्रौफिट स्टूडैंट्स से वसूलना उस का असली ऐम है. जिसे महंगी ऐजुकेशन नहीं लेनी है वह अपने बच्चों को न पढ़ाए. यह समाज बेहद हार्टलैस हो गया है. यहां ऐजुकेशन देश या समाज के भविष्य के लिए नहीं ली जा रही, बड़े दान पर अच्छी नौकरी पाने के लिए खरीदी जा रही है. इस में रोनेधोने की बात नहीं. कोर्ट्स के दरवाजे खटखटाना भी बेकार है क्योंकि कोर्ट्स भी केवल महंगे वकीलों की सुनते हैं. जो पैसा पेरैंट्स के पास होगा ही नहीं और यदि कहीं कोई पेरैंट जीत भी गया तो स्कूल के पास उस के बेटीबेटे को तंग करने के हजार बहाने रहेंगे. स्टूडैंट, टीचर और स्कूल का प्रेम होगा तो पढ़ाई हो सकती है.

पेरैंट्स जिन के पास पैसा नहीं है अपने बच्चों को महंगे स्कूलों में ऐडमिशन दिला तो देते हैं पर बाद में फीस न देने पर या अच्छी पौकेट मनी देने में असमर्थ रहने पर अपने बच्चों को बेहद स्ट्रैस में डाल देते हैं. बच्चों की कंपनी में अगर ज्यादा खर्च करने वाले हैं तो उन्हें जो ह्यूमिलेशन हलकी पौकेट ले कर जाने पर होती है, वह बस एस्टिमेट की जा सकती है. असल में ये पेरैंट्स अपने बच्चों की पूरी जिंदगी बरबाद कर देते हैं क्योंकि जो स्ट्रैस पैसों की वजह से स्टूडैंट्स को ?ोलना पड़ता है वह कोर्ट्स के कौरीडोरों से निकले जजमैंट्स से दूर नहीं हो सकता.

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