Avanti Patel: बचपन से ही संगीत में रुचि रखने वाली खूबसूरत और हंसमुख अवंति पटेल शास्त्रीय और प्ले बैक सिंगर हैं. रियलिटी शो के सीजन 10 में आने के बाद वे पौपुलर हुईं.
मुंबई से संगीत में स्नातकोत्तर की डिगरी पूरी करने वाली अवंति के पिता पंकज पटेल गुजरात के एक वैस्कुलर सर्जन हैं, जबकि मां महाराष्ट्र की एक यूरोलौजिस्ट हैं. डाक्टर परिवार में पलीबड़ी हुईं अवंति को हमेशा हर काम की आजादी रही है. उन्होंने केवल 5 वर्ष की उम्र से शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू कर दिया था. पहले उन्होंने गुरु वर्षा भावे से शास्त्रीय गायन में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की और संगीत विशारद पूरा किया और हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की. वे वर्तमान में विदुषी अश्विनी भिड़े देशपांडे की शिष्या हैं, जो जयपुर अतरौली घराने से हैं.
13 साल की उम्र में अवंति ने फैसला लिया कि उन्हें संगीत के क्षेत्र में ही जाना है और उसी दिशा में प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया. उन की अलबम मोगरा मिस्क काफी चर्चित रही, जिस में उन्होंने ‘दमादम मस्त कलंदर…’, ‘तेरे बिन रसिया…’, ‘केसरिया बालम…’ आदि कई गाने गाए हैं. इस के अलावा वे कई गुजराती और मराठी फिल्मों की प्लेबैक सिंगर रही हैं.
तवायफों के गानों में छिपी होती है संघर्ष की कहानी
इन दिनों अवंति शास्त्रीय संगीत को यूथ में फैलाने और उस के महत्त्व को समझाने के लिए कई शो ‘ओ गानेवाली’ हर बड़े शहरों में कर रही हैं, जिस में वे ठुमरी, दादरा जैसे गानों को एक मनोरंजक तरीके से परफौर्म करती है.
वे कहती हैं कि मैं ने रिसर्च किया, तो पता चला कि इन संगीत के बारे में आज के यूथ को बहुत कम जानकारी है. खासकर दादरा और ठुमरी गानों को तो वे जानते ही नहीं हैं, जिस में तवायफों के खुद के संघर्ष के साथसाथ सामाजिक और पोलिटिकल संघर्ष क्या थे, उन्हें वे जानते नहीं हैं. मीडिया से ले कर फिल्मों में जिस तरह से तवायफों के संगीत के बारे में कहा और दिखाया जाता है, वह उन सभी के जीवन से काफी अलग है.
“उस जमाने की सिद्देश्वरी बाई से ले कर रसुलन बाई सभी ने साड़ी पहन कर दादरा, ठुमरी जैसे गाने गाए हैं और उन के गाने का मकसद क्या था इन सभी बातों को गाने और कहानियों के माध्यम से बताने की कोशिश कर रही हूं. मैं उस जमाने की तवायफों के लिए एक ट्रिब्यूट है, जिसे मैं मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरु, कोलकाता आदि कई शहरों में प्रस्तुत करती जा रही हूं,” अवंति ने बताया.
दादरा और ठुमरी है क्या
अवंति आगे कहती हैं कि दादरा और ठुमरी गाने वाली स्त्रियां बहुत कम उम्र से संगीत की तालीम ले रखी होती थीं, जिस में वे अपने मन के भाव को सब के सामने बिना झिझक रखती थीं. ठुमरी और दादरा दोनों हलके भारतीय शास्त्रीय गायन रूप हैं, जिन में ठुमरी की गति धीमी और विस्तृत होती है, जबकि दादरा तेज और अधिक चंचल होता है. दोनों में श्रृंगार रस, प्रेम या विरह के विषय होते हैं, लेकिन दादरा को अकसर इस्टर्न स्टाइल की ठुमरी का हलका संस्करण माना जाता है और इस में अधिक स्वतंत्रता व उन्मुक्तता होती है.
किए शोध
अवंति कहती हैं कि इन गानों को मंच पर लाने के लिए मैं ने कई किताबें और पेपर्स पढ़ी हैं, जिन में सबा दीवान की किताब ‘तवायफनामा’, यतींद्र मिश्र की ‘अख्तरी : बेगम अख्तर का जीवन और संगीत’ आदि हैं, जिस में तवायफों के जीवन की चुनौतियां और संघर्ष की कहानी विस्तार से लिखी गई है, ताकि लोग उन की भावनाओं को अच्छी तरह से महसूस कर सकें. हालांकि यह शो पिछले कई सालों से चला आ रहा है और यंग जैनरेशन इसे पसंद भी कर रही है. इस में मेरे साथ सिंगर ऋतुजा लाड गाते हैं. इस के अलावा इन सब गानों की एक अलबम भी बनाती हूं, जो औनलाइन कई जगहों पर फ्री में सुनने को मिलते हैं.
रास्ता था कठिन
आज की जैनरेशन को ऐसे गाने पसंद नहीं आते, ऐसे में इन्हें रुचिकर बनाना आसान नहीं था. वे कहती हैं कि पहले मेरे शो पर कम दर्शक आते थे, लेकिन जब कुछ युवाओं ने मेरी प्रस्तुति को देखा, तो उन्हें अच्छा लगा और माउथ टू माउथ इस की जानकारी एकदूसरे को मिली और वे अब पसंद करने लगे हैं. इस में मेरी कोशिश यह रहती है कि उन्हें मेरी बातें समझ में आएं, इसलिए मैं हिंदी के अलावा इंग्लिश में भी कहानियों को कहती हूं, जिस से उन्हें समझने में आसानी होती है और वे बारबार सुनने चले आते हैं.
मिली प्रेरणा
संगीत के क्षेत्र में आने की प्रेरणा के बारे में अवंति कहती हैं कि मेरे पेरैंट्स डाक्टर हैं, संगीत से उन का कोई संबंध नहीं है, लेकिन उन्हें कला और साहित्य पसंद हैं. मैं ने 5 साल की उम्र से संगीत की तालिम लेनी शुरू कर दी है. इसी वजह से मुझे संगीत से लगाव हुआ. थोड़ी बड़ी होने पर मुझे बेगम अख्तर और शोभा गुर्टू के गाने सुनना अच्छा लगता था. इस के बाद अश्विनी भिड़े देशपांडे से संगीत की तालिम लेनी शुरू की.
परिवार का सहयोग
अवंति का कहना है कि मेरी मां के परिवार में डाक्टर होने के बावजूद सभी संगीत सीखे हुए हैं. वे सब गाते हैं, लेकिन प्रोफैशनल सिंगर नहीं हैं. मैं जब छोटी थी, तभी मां को पता चल गया था कि मेरे अंदर संगीत की प्रतिभा है, इसलिए उन्होंने इस की तालिम छोटी उम्र से दिलाना शुरू कर दिया था. इस के बाद 13 साल की उम्र में रियलिटी शोज में भाग लिया और तभी से संगीत की दिशा में मेरा कैरियर शुरू हुआ, क्योंकि रियलिटी शो की वजह से लोग मुझे जानने लगे थे. वहां मैं ने परफौर्मेंस करना सीखा. मैं ने स्कूल में पढ़ाई करते हुए ही मंच पर प्रस्तुति देना शुरू कर दिया था. मैं ने मराठी और गुजराती के लिए प्लेबैक सिंगिंग भी किया है.
अच्छे लिरिक्स लिखने वालों की है कमी
गानों में अच्छे लिरिक्स का अभाव के बारे में पूछने पर अवंति कहती हैं कि आज के गीतकार कुछ नया नहीं लिखना चाहते. वैस्टर्न सोसाइटी को फौलो कर गाने लिखते जाते हैं. अगर नई जैनरेशन को अच्छे बोल, मेलोडियस गाने सुनने को मिलें, तो वे उन्हें जरूर पसंद करेंगे. यूथ की गलती नहीं है, उन्हें तो अच्छे लिरिक्स ही सुनने को नहीं मिलते. अगर कोई लिखेगा नहीं, तो उन्हें उस का स्वाद कैसे मिल सकेगा?
एक यंग आर्टिस्ट होने के नाते यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं यूथ को बढ़िया संगीत से परिचय करवाऊं. इस के लिए मैं केवल लाइव शो ही नहीं, रिकौर्डिड गाने भी उन तक पहुंचाने की कोशिश कर रही हूं.
आगे की योजना
अवंति इस शो को विदेशों में भी परफौर्म करने की इच्छा रखती हैं. इस के लिए वे वहां की भाषा में स्क्रिप्ट को ट्रांसलेट करने की कोशिश कर रही हैं, ताकि उन्हें समझ में आए. यह उन के लिए चुनौती है, लेकिन मुश्किल नहीं.
