Left Handers: पड़ोस में रहने वाला 6 साल का सोनू हमेशा हर काम लेफ्ट हैंड यानि बाएं हाथ से करता है. लिखना, किताब खोलना, किसी को कुछ देना, खेलना आदि जो भी काम करता है, वह बाएं हाथ से ही करता है. उस की दादी उसे हमेशा टोकती रहती हैं कि बाएं हाथ से कोई काम मत करो, क्योंकि वह अशुभ होता है, लेकिन सोनू को यह समझ में नहीं आता है कि दादी उसे इतना डांटती क्यों हैं.

एक दिन तो उस ने दादी से पूछ ही लिया,”दादी, मेरे 2 हाथ हैं, जिन से काम करने में सुविधा होगी, उसी से करूंगा न, आप मुझे टोकिए मत, मुझे अच्छा नहीं लगता.”

इस पर दादी ने बड़े भाषण दे दिए कि बाएं हाथ का प्रयोग शौच के समय किया जाता है, इसलिए उसे गंदा हाथ मानते हैं.

सोनू का जवाब भी सटीक था. उस ने कहा,”दादी, शौच के बाद तो मैं साबुन से अच्छी तरह से हाथ धो लेता हूं, गंदगी कहां से रहेगी?”

दादी ऐसी बातें सुन कर आज के हालात को दोष मानती हैं, जहां छोटा बच्चा भी बात नहीं माना करता, क्योंकि पेरैंट्स इस पर ध्यान नहीं देते. यही वजह है कि कई बार इसी दबाव की वजह से बच्चे बाएं हाथ का ज्यादा सक्रिय होने के बाद भी दाएं हाथ से काम करने को मजबूर होते हैं, क्योंकि उन्हें बारबार दाहिने हाथ के प्रयोग करने के लिए टोका जाता है.

ब्रैन का डोमिनैंट होना है मुख्य कारण

असल में बहुत कम लोगों को पता होता है कि इस के पीछे मैडिकल रीजन है या साइंस है. इस विषय पर नवी मुंबई की कोकिलबेन धीरुबाई अंबानी हौस्पिटल की मनोचिकित्सक, डाक्टर पार्थ नागडा कहते हैं कि इसे हैंडिडनैस कहते हैं, जिस में व्यक्ति या तो राइट हैंडेड होता है या फिर लेफ्ट हैंडेड होता है. इस में हमारे मस्तिष्क के कुछ भाग अलग काम करते हैं. मसलन अगर राइट हैंड ऐक्टिव है तो लेफ्ट ब्रैन डोमिनैंट होता है, वैसे ही लेफ्ट हैंड वालों के राइट ब्रेन अधिक काम करता है. यह एक ऐनालिटिकल संरचना होती है, जो जन्म से बच्चे में आ जाती है इसे ही हैंडिडनैस कहा जाता है. यह अधिकतर जेनैटिक होता है. अगर किसी के परिवार में लेफ्ट हैंड वाला व्यक्ति है, तो आगे भी बच्चे का लेफ्ट हैंड होने के चांसेस होते हैं.

विकास में आती है बाधा

डाक्टर आगे कहते हैं कि यह कोई गलत या सही नहीं है, इस में सिर्फ मस्तिष्क के काम करने की इंटेसिटी को बताया जाता है, जो बच्चे में जन्म से निर्धारित हो जाता है. लेफ्ट हैंडेड वालों के राइट पार्ट इमोशन, आउट स्पोकेन और क्रिएटिव रहता है. वे किसी न किसी रूप में क्रिएटिव और प्रतिभावान अधिक होते हैं, क्योंकि उन के इमैजिनेशन की क्षमता अधिक होती है. ऐसे में जब पेरैंट्स बच्चों को स्विच करने के लिए बाध्य करते हैं, तब आप उन की उस क्रिएटिविटी को ब्रेक कर देते हैं, उस के कई उलटे प्रभाव होते हैं. मसलन, उस बच्चे के कौंसंट्रेशन में कमी आ जाती है. उस के नैचुरल प्रोसेस को रोक जाता है, बच्चा कई बार कन्फ्यूज हो जाता है और बच्चे में डिस्लेक्सिया के विकास होने का चांसेस रहता है. बच्चे का हैंडराइटिंग खराब हो जाता है, कई बार उस के स्पीच पर भी इस का प्रभाव देखा गया है. उस का कौन्फिडेंस भी कम हो सकता है. इसलिए पेरैंट्स को कभी भी इसे बदलने की जरूरत नहीं है, अगर वे बच्चे का सही विकास चाहते हैं.

उदाहरण के लिए अगर कोई राइट हैंड गाड़ी चलाता है और उसे लेफ्ट हैंड गाड़ी चलाने के लिए दे दिया जाए, तो उसे परेशानी होगी. वह गाड़ी धीरे चलाएगा और ऐक्सिडेंट होने का चांस भी होता है.

असल में यह शरीर की आम प्रक्रिया है, जो जैनेटिक, लर्निंग थ्योरी और मस्तिष्क की बनावट के साथ दूसरे कुछ कारणों पर निर्भर होती है.

दुनिया में करीब 70% लोग राइट हैंडर होते हैं, 30% लोग लेफ्ट हैंडर और बाकी 3% के दोनों हाथ अलगअलग काम के लिए सक्रिय होते हैं. जो दोनों हाथों से सक्रिय होते हैं, उन्हें क्रौस वायर्ड कहा जाता है. यह ऐक्स्ट्रा स्किल के अंतर्गत आता है. मसलन, क्रिकेटर जो राइट हैंड से बैटिंग करते हैं, लेकिन बौलिंग लेफ्ट से करते हैं.

लेफ्ट हैंड नहीं है अशुभ

इस प्रकार लेफ्ट हैंडेड मस्तिष्क की संरचना पर निर्भर करता है, जिस में पहला जैनेटिक थ्योरी, जबकि दूसरी और तीसरी थ्योरी सामाजिक और लर्निंग प्रोसेस है. मैडिकली यह कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक सामान्य प्रक्रिया है.

जिस तरह से कोई राइट हैंड से काम करता है, उसी तरह से कोई लेफ्ट हैंड से कर सकता है. इस में उस व्यक्ति को किसी प्रकार की समस्या नहीं होती. यह अलग बात है कि लेफ्ट हैंड को ज्यादा सक्रिय रखने वाले संख्या में बहुत कम हैं, क्योंकि लोग इसे अशुभ मान कर बदलने की कोशिश करते रहते हैं, जो उन के मस्तिष्क के बैलेंस को बिगाड़ती है. आइए, इसे समझते हैं :

 जैनेटिक थ्योरी

जैनेटिक थ्योरी में बच्चे के गर्भ में ही तय हो जाता है कि बच्चा राइट हैंडर है या लेफ्ट हैंडर. इस में कोई जीन कारगर है या नहीं, इस की जानकारी अभी तक नहीं मिला है.

लर्निंग और सामाजिक माहौल

लर्निंग और सामाजिक माहौल में कुछ बच्चे सीखने की प्रक्रिया में ही किसी एक हाथ का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं. बहुत से बच्चे दाएं हाथ से काम करने लगते हैं, जबकि कुछ बाएं हाथ से करने लगते हैं. धीरेधीरे उन का यही हाथ ज्यादा सक्रिय हो जाता है. इस में एक उदाहरण यह भी है कि बच्चा अपने किसी पसंदीदा चीज को लेने के लिए बाएं हाथ का इस्तेमाल करना शुरू करता है. मसलन, ब्रायन लारा या युवराज सिंह लेफ्ट हैंडर बल्लेबाज हैं. अगर उन्हें कोई बच्चा उन्हें पसंद करता है, तो उन्हीं की तरह बैटिंग करना चाहेगा. बाएं हाथ से काम करना चाहेगा, ऐसा करतेकरते वह खुद को बाएं हाथ से काम करने के लिए प्रेरित करता है.

यही बात सोशल इश्यू वाली थ्योरी पर लागू होती है. कभीकभी इस का एक और पहलू सामने आता है. मसलन, बच्चा बाएं हाथ का इस्तेमाल करता है और घर वाले उसे दाएं हाथ से काम करने को कहते हैं. ऐसी परिस्थिति में सोशल प्रेशर में वह दोनों हाथों का इस्तेमाल करता है. ऐसे लोग अलगअलग काम अलगअलग हाथ से करने लगते हैं.

सचिन तेंदुलकर दाएं हाथ से बल्लेबाजी करते हैं और लिखने का काम बाएं हाथ से करते हैं.

ब्रेन वाली थ्योरी में रिसर्चर्स मानते हैं कि मस्तिष्क 2 गोलार्द्ध में बंटा होता है-बायां और दायां. मैडिकल जगत में भी यह साफ है कि बायां गोलार्द्ध शरीर के सीधे तरफ यानि दाईं ओर के हिस्से को संचालित करता है और दायां गोलार्द्ध बाएं ओर के हिस्से को ऐक्टिव रखता है. इस का अर्थ यह हुआ कि जिन लोगों में मस्तिष्क का बायां हिस्सा ज्यादा सक्रिय होता है, उन के शरीर के दाहिने हिस्से यानि दायां हाथ, दायां पैर और यहां तक कि दाहिनी आंख ज्यादा सक्रियता से काम करते हैं.

इस के विपरीत, जिन के मस्तिष्क का दायां हिस्सा ज्यादा सक्रिय होता है, उन के शरीर में बायां हाथ, बायां पैर ज्यादा सक्रिय होते हैं. मसलन क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, जो बल्लेबाजी राइट हैंड से करते हैं, लेकिन लिखने का काम लेफ्ट हैंड से करते हैं, ऐसे लोगों के मस्तिष्क में दोनों हिस्से सक्रिय होते हैं. कहने का अर्थ यह है कि हमारी सामाजिकता नहीं, हमारे दिमाग की व्यक्तिगत कार्यप्रणाली तय करती है कि कोई व्यक्ति राइट हैंडर होगा या लेफ्ट हैंडर या क्रौस वायर्ड. ऐसे में अपने बनाए कायदे थोपने और बच्चों को तरीका बदलने पर मजबूर करने पर बच्चे का दिमाग उलझन में फंस सकता है.

लेफ्ट हैंडर्स को ले कर शोध

जर्नल औफ ट्रौमैटिक स्ट्रेस में प्रकाशित शोध के अनुसार, बाएं हाथ से काम करने वाले लोगों के मस्तिष्क का दाहिना भाग अधिक सक्रिय होता है. कई बार ये लोग थोड़े डरपोक किस्म के होते हैं. शोधकर्ता कैरोलिन के अनुसार, बाएं हाथ से काम करने वाले लोग डर के प्रति अधिक सक्रिय होते हैं, इसलिए उन्हें पोस्ट ट्रौमैटिक स्ट्रेस डिसऔर्डर (पीटीएसडी) की आशंका अधिक होती है.

इस के अलावा गणित और संगीत में बाएं हाथ से काम करने वाले लोग बेहतर होते हैं.

शोधकर्ताओं ने अपने शोध के आधार पर पाया कि संगीत और गणित जैसे विषयों में उन का मन अधिक लगता है और वे इन क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक अच्छा प्रदर्शन देते हैं.

जागरूकता बढ़ाना जरूरी

लेफ्ट हैंड वालों के प्रति जागरूकता कौशल और योगदान को सम्मान देने के लिए इंटरनैशनल लेफ्ट हैंडर्स दिवस हर साल 13 अगस्त को मनाया जाता है. दुनिया में जिस तरह से वे अपनी पहचान बनाते हैं, वह अद्वितीय है, चाहे वह औजारों का उपयोग हो, नोटबुक में लिखना हो या दाएं हाथ वालों को ध्यान में रख कर बनाए गए उपकरणों का संचालन हो. इस का उद्देश्य बेहतर जागरूकता को बढ़ावा देना होता है.

मान्यताएं भी कम नहीं

बाएं हाथ का उपयोग शौच और साफसफाई जैसे कामों में होता है, इसलिए इसे अशुद्ध माना जाता है, जो सालों से चली आ रही है. यही वजह है कि परिवार में बड़ेबुजुर्ग इसे अशुभ बताने से पीछे नहीं हटते. यह भी सही है कि एक लड़की को विवाह के बाद वामांगिनी कहा जाता है, यानि लड़की का दाहिना हाथ लड़का बाएं हाथ से पकड़ता है, यानि पुरुष गंदे हाथ से उसे पकड़ना सही मानता है और उस की जगह वह बाएं हाथ के लायक समझता है. हालांकि यह समाज और परिवार की बेड़ियां हैं, जिसे आज की पढ़ीलिखी लड़की तोड़ रही है.

दुनिया के मशहूर लेफ्ट हैंडर्स

दुनिया के कई मशहूर लोग लेफ्टी यानि बाएं हाथ से काम करने वाले हैं, जिन में महात्मा गांधी, बराक ओबामा, बिल गेट्स, लियोनार्डो दा विंची, अमिताभ बच्चन, आइजक न्यूटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, चार्ली चैपलिन आदि महान वैज्ञानिक, नेता और कलाकार शामिल हैं.

खेल जगत से सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और विज्ञान और कला से स्टीव जौब्स, पाबलो पिकासो जैसे नाम भी लेफ्टी में शामिल हैं.

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