Satire Story: ‘‘जो कुत्तों के भूंभूं से परेशान न हों वही सभ्य और सच्चे पड़ोसी,’’ नमन के घर के दरवाजे पर चिपका यह स्टिकर हर आनेजाने वाले का ध्यान खींचता है. दरअसल, नमनजी अपने कुत्तों को तो नियंत्रित नहीं कर सके, उलटा उन्होंने अपने पड़ोसियों के लिए यह उपदेश वाक्य स्टीकर पर लिख कर चिपका दिया.
गुरुग्राम के सब से पौश कहे जाने वाले इलाके की सब से ऊंची सोसाइटी (ऊंची सोसाइटी से तात्पर्य बहुमंजिला इमारत से नहीं बल्कि इस में रहने वाले लोगों की उच्च शिक्षा, उच्च जीवनशैली इत्यादि से भी है) सब से ऊंचे फ्लोर पर नमनजी अपने प्यारे, मासूम 3 अलगअलग विदेशी नस्ल के कुत्तों टौमी, जैकी एवं रौकी के साथ मस्त अकेली जिंदगी काट रहे थे.
एक दिन उन के सामने के खाली पड़े फ्लैट में अमनजी अपनी पूरी फैमिली के साथ रहने आ गए. मुश्किल से सालभर नहीं हुआ अमनजी की शिकायतों से नमन परेशान हो उठे. अमनजी को हमेशा कुत्तों के दिनरात भूंकने से शिकायत रहती और वे अकसर उन के दरवाजे की घंटी बजा कर उन्हें कुत्तों को शांत रखने की हिदायत देते. कभी अमन के बच्चों का ऐग्जाम होता तो कभी किसी की तबीयत खराब. ऐसे में पड़ोसी के घर से आ रही कुत्तों के भूंकने की आवाजों से उन की परेशानी और बढ़ जाती. लाख शिकायतों के बाद भी नमनजी के घर से आने वाली कुत्तों के भूंकने की आवाजें बदस्तूर जारी रहतीं. उन के घर में 3 अलगअलग विदेशी नस्लों के कुत्तों का आपस में एकदूसरे पर भूंकना, एकदूसरे पर गुर्राना पूरी बिल्डिंग में गुंजायमान रहता. उन का एकदूसरे पर भूंकना, गुर्राना, एकदूसरे पर झपटना ठीक वैसे ही होता जैसे दुनिया के बड़ेबड़े देशों के राष्ट्राध्यक्षों की आपसी तूतूमैंमैं और झगड़े इन दिनों हो रहे हैं.
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