Cooking Skills: हाल ही में कलर्स टीवी शो ‘बिग बौस 19’ में प्रतियोगी 61 वर्षीय कुनिका और 30 वर्षीय तानिया के बीच एक मुद्दे पर बहस हो गई. बहस इस बात पर हुई कि कुनिका ने तानिया को इस बात पर झाड़ दिया कि 30 साल की उम्र में भी उस की मां ने उस को खाना बनाना तक नहीं सिखाया. बात छोटी सी थी लेकिन मुद्दा बहुत गंभीर है कि अमीर हो या गरीब, एक लड़की को खाना बनाना आना कितना जरूरी है, इनफैक्ट लड़की ही नहीं एक नवयुवक को भी खाना बनाना आना कितना जरूरी है? 30 वर्षीय तान्या को खाना बनाना न आने पर कुनिका द्वारा बेइज्जती करना कितना सही है?

आज के जमाने में जबकि सबकुछ रैडीमेड मिलता है और बच्चे भी पढ़ेलिखे और काबिल हैं और इतना तो कमा लेते हैं कि बाहर से खाना और्डर कर के भी खाना खा सकते हैं, रैडीमेड रेडी टू कुक वाले कई सारे प्रावधान हैं. इस के अलावा तुरंत खाना मंगाने के लिए कई सारे फूड ऐप जैसे स्वीगी और जोमैटो जैसे ऐप्स भी हैं. इस के अलावा कई सारे होटल और ढाबे भी हैं जहां दिनरात खाना उपलब्ध रहता है. खानेपीने को ले कर इतनी सारी व्यवस्था होने के बावजूद एक लड़की या एक लड़के का खाना बनाना आना इतना जरूरी क्यों है? बड़ी उम्र के लोगों का ऐसा मानना क्यों है कि कम से कम लड़कियों को बेसिक खाना बनाना आना चाहिए या आज की मां का भी मानना है की बेटी ही नहीं बेटे को भी बेसिक खाना जैसे दाल, चावल, रोटी, सब्जी बनाना आना जरूरी है.

सिर्फ आम लोग ही नहीं कई बौलीवुड सितारे भी अपने यूट्यूब चैनल के जरीए लोगों को खाना बनाना सिखाते हैं जबकि उन के पास मेड की कमी नहीं होती, फिर भी वे खुद अपने घर वालों के लिए समय निकाल कर भी खाना बनाना क्यों पसंद करते हैं? सवाल यह भी उठाता है कि आज के समय में मांबाप और बुजुर्गों के हिसाब से बच्चों को कम से कम बेसिक खाना बनाना आना क्यों जरूरी है? बेसिक खाना न बनाना आने पर किनकिन मुश्किलों से गुजरना पड़ सकता है और अगर बच्चों या यंग जैनरेशन को खाना बनाना आता है तो उस के क्या फायदे हैं? पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

खाना बनाना भी एक कला

जिस को यह कला आती है वह न तो कभी खुद भूखा रहता है और न ही किसी को भूखा रहने देता है. कई युवा पीढ़ी के लोग खाना बनाने वालों को कमतर आंकते हैं. उन के हिसाब से जो लोग खाना बनाते हैं वे डाउन मार्केट और नौकर टाइप होते हैं. अमीर व पढ़ेलिखे, बड़ी पोस्ट पर काम करने वाले लोग खाना बनाना नहीं पसंद करते और न ही उन्हें खाना बनाना आता है क्योंकि यह काम उन का नहीं बल्कि नौकरों का है.

इसी धारणा के तहत सिर्फ लड़के ही नहीं बल्कि कई सारी लड़कियों को भी खाना बनाना नहीं आता. ऐसे में जब शादी के बाद या अकेले रहने पर खाना बनाने की नौबत आ जाती है तो इन लड़कियों को दिन में तारे नजर आने लगते हैं.

ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है. पिछले कुछ सालों में कोविड के दौरान जब हर किसी को घर में कैद होना पड़ा था, सारे होटल बंद थे और घरों में कोई आजा नहीं सकता था, उस दौरान जिनजिन लोगों को खाना बनाना नहीं आता था वह मुसीबत में थे और घर में फाके के दिन गुजार रहे थे और जिन लोगों को खाना बनाना आता था वे अच्छीअच्छी डिश बना कर लौकडाउन में भी मजे कर रहे थे.

खाना न मिलने पर जब विदेश में बच्चे मां के हाथ का खाना खाने को तरसे

पढ़ाई या नौकरी के लिए जब युवा विदेश जाते हैं तो उन को मां के हाथ का खाना याद आता है, क्योंकि जो स्वाद मां के हाथ के खाने में बच्चों को मिलता है वह फाइव स्टार होटल में भी नहीं मिलता.

हमारे देश में भले ही खाना बनाने को ले कर कई सारी सुविधाएं हैं जैसे मेड, होटल, ढाबे, खाना मंगवाने वाले ऐप आदि, लेकिन विदेश में अगर लड़का या लड़की शिक्षा के लिए या नौकरी करने के लिए जाता है, तो उसे खाने को ले कर बहुत सारी दिक्कतें हो जाती हैं क्योंकि अगर और्डर कर के बाहर से मंगवाते हैं तो बहुत महंगा होता है और विदेश में नौकरों का सिस्टम नहीं होता. वहां पर खुद ही नौकर बनना पड़ता है और सारे काम खुद ही करने पड़ते हैं. ऐसे में अगर खुद खाना बनाना नहीं आता तो भूखे रहने की नौबत आ जाती है.

वहीं अगर बेसिक खाना भी बनाना आता है जैसे खिचड़ी, दालचावल आदि तो यह खाना बना कर पेट तो भरा ही जा सकता है.

भारत में खाने वाली चीजों से ज्यादा मेकिंग और डिलिवरी की कीमत

गौरतलब है कि खाने के आइटम की कीमत इतनी ज्यादा नहीं होती जितनी की डिलीवरी और पैकिंग की होती है, जैसेकि खाना भेजने वाले डिलिवरी बौय की फीस, डिलिवरी करने के लिए आए लड़के की बाइक या स्कूटर में भरे जाने वाले पैट्रोल की कीमत भी ग्राहकों से वसूली जाती है. इस के अलावा खाना न तो पूरी तरह ताजा होता है और न ही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक क्योंकि बाहर के खाने में सोडा, तेल और मसाला ज्यादा मात्रा में डाला जाता है जो सेहत के लिए हानिकारक होता है. वहीं अगर घर में खाना बनाने की कला आती है तो झटपट कुछ ही मिनटों में ताजा और स्वादिष्ठ खाना तैयार हो जाता है.

बौलीवुड सितारे भी खाना बनाने की कला का प्रचार करते नजर आते हैं

कहते हैं कि मां के हाथ का बना खाना में जो स्वाद होता है वह फाइव स्टार होटल के खाने में भी नहीं होता. इस के पीछे खास वजह यह है कि मां जब अपने बच्चों के लिए खाना बनाती है तो वह पूरे दिल से बनती है. यही वजह है कि बच्चों को अपनी मां के हाथ का बना कुछ भी खाना अच्छा लगता है. बौलीवुड सितारे भी जो अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं वे कितने ही व्यस्त क्यों न हों अपने बच्चों के लिए खुद अपने हाथों से खाना बनाते हैं, जैसे निर्माता, निर्देशक व कोरियोग्राफर फराह खान और कौमेडी क्वीन कहलाने वाली भारती सिंह भी अपने बच्चों के लिए खुद खाना बनाती हैं.

बौलीवुड के यह सेलेब्स खाना बनाने की कला को मेडिटेशन भी मानते हैं, क्योंकि कुछ समय के लिए ही सही जब हम खाना बनाने में व्यस्त होते हैं तो सारी टैंशन और दुख भूल जाते हैं और अपना पूरा ध्यान खाना बनाने में ही लगा देते हैं. शायद यही वजह है कि फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई सारे लोग आजकल यूट्यूब चैनल पर खाना बनाना सिखा रहे हैं और कई सैलिब्रिटीज मांएं भी अपने बच्चों को खाना बनाना सिखाती हैं ताकि किसी भी सिचुएशन में उन के बच्चों को भूखा न रहना पड़े.

इन बातों से यही निष्कर्ष निकलता है कि खाना बनाने की कला सभी को आनी चाहिए ताकि अच्छा खाना खाने के लिए किसी पर निर्भर न रहना पड़े और मौका पड़ने पर खुद अच्छा खाना बना कर खाया जा सके. फास्ट फूड या बाहर के खाने पर निर्भर न होना पड़े जो सेहत के लिए तो हानिकारक है ही, गंभीर बीमारियों के आगमन के लिए भी खतरे का संकेत है.

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