Lin Laishram: लिनथोइंगम्बी लैशराम यानि लिन लैशराम मणिपुर के इंफाल की रहने वाली हैं. वे एक पौपुलर मौडल, ऐक्ट्रैस और बिजनैस वूमन हैं. लिन ने ‘मैरी कौम’, ‘रंगून’, ‘उमरिका’, ‘ओम शांति ओम’ आदि कई फिल्मों में छोटी, मगर प्रभावशाली भूमिका निभाई है. लिन एक मौडल, अभिनेत्री और क्लाउड किचन की ओनर भी हैं.
खूबसूरत, हंसमुख, विनम्र लिन ने वर्ष 2008 में ‘मिस नौर्थ ईस्ट’ में अपने राज्य का प्रतिनिधित्व किया है और शिलांग में आयोजित प्रतियोगिता में प्रथम उपविजेता रहीं. लिन लैशराम पहली मणिपुरी मौडल हैं, जिन्होंने नैशनल टैलीविजन पर स्विमसूट पहना था. इस के लिए उन के होम टाउन में कई विवाद हुए, लेकिन उन्होंने वही किया, जो उन्हें पसंद है.
ग्लैमर की इस दुनिया के अलावा लिन का टैलंट तीरंदाजी में भी है. लिन ने 10 साल की उम्र में अपने पिता चंद्रसेन लैशराम, जो मणिपुर आर्चरी एसोसिएशन के अध्यक्ष थे, उन से प्रेरित हो कर तीरंदाजी के क्षेत्र में कदम रखा। वे तीरंदाजी में जूनियर नैशनल चैंपियन भी रह चुकी हैं. चोट के कारण उन्होंने खेल से दूरी बना ली, लेकिन तीरंदाजी के प्रति उन का प्यार कभी खत्म नहीं हुआ. आज वे मणिपुर आर्चरी एसोसिएशन की प्रेसिडैंट हैं और अपने पति और अभिनेता रणदीप हुड्डा के साथ मिल कर दिल्ली आर्चरी टीम पृथ्वीराज योद्धास की को ओनर भी हैं, ताकि इस खेल को दिशा मिले और खेलप्रेमी इस ओर रुख करें.
उन्होंने खास गृहशोभा के साथ बात की। पेश हैं, कुछ खास अंश :
आर्चरी से है प्यार
आर्चरी लीग की पहली बार को-पार्टनर और कपल के रूप में औनरशिप लेने की वजह से लिन बहुत खुश हैं। वे कहती हैं कि आर्चरी मेरे जीवन में काफी समय से महत्त्व रखता आया है। यह विधा मेरे लिए बहुत खास है, क्योंकि मैं ने इस खेल को करीब से देखा है और इस के ग्रोथ को देखना मुझे अच्छा लगता है। हालांकि इस की पौपुलैरिटी उतनी नहीं हुई है, जितनी होनी चाहिए थी, पर मैं इस दिशा में कुछ अच्छा करने की कोशिश कर सकती हूं.
जागरूकता की कमी
हालांकि तीरंदाजी हमारे देश में प्राचीनकाल से प्रचलित रहा है, लेकिन यह खेल के रूप में उतना फलाफूला नहीं। इस बारे में लिन का कहना है कि मैं इस बात से कुछ हद तक सहमत हूं कि आर्चरी हमारे रूट से जुड़ी हुई है, लेकिन इसे जो अटैंशन मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिली है. फिर भी इंडिया ने लिंबा राम, डोला बनर्जी, रीना कुमारी, दीपिका कुमारी, लालरामथांगा, पूर्णिमा महातो, शीतल देवी, ऋषभ यादव आदि जैसे कई खिलाड़ियों ने देश के लिए मैडल्स जीते. बिना कुछ अच्छी व्यवस्था के इन सभी ने खुद के बलबूते पर अच्छा परफौर्मेंस दिया है. इस खेल में संघर्ष बहुत है, लेकिन उन का प्रदर्शन अच्छा रहता है.
महंगी है स्पोर्ट
इस के अलावा तीरंदाजी एक महंगी स्पोर्ट है और इस के लिए अच्छी मेंटरशिप और इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है, जो भारत सरकार नहीं दे पा रही है. खासकर मणिपुर में, जहां बच्चे के जन्म के 5वें दिन, स्त्री के भाई को चारों दिशाओं में तीर मारना एक परंपरा है।
आर्चरी हमारे संस्कृति में है, जिसे महत्त्व देना जरूरी है, जिस में लीग, टीम को दूसरे देशों में जा कर खेलने पर खिलाड़ियों को मानसिक, शारीरिक और तकनीकी सपोर्ट मिलता है और मैं इसी पर काम कर रही हूं. क्रिकेट का खेल जो ब्रिटिश लोग यहां लाए थे, आज उसे ही अधिक प्रमुखता दी जाती है, जबकि यहां बहुत सारे ऐसे खेल हैं, जिसे नजरंदाज कर दिया जाता है.
बचपन मणिपुर में
वे कहती हैं कि मैं मणिपुर से हूं और वहां हर गलीनुक्कड़ पर लोग कुछ न कुछ स्पोर्ट्स की प्रैक्टिस करते रहते हैं, जिसे लोग जानते भी नहीं हैं. सरकार की तरफ से इन खेलों में थोड़ा सहयोग और खेलों के प्रति लोगों की जागरूकता होना बहुत आवश्यक है. कई लोग आर्चरी की गेम को करते हुए घबरा जाते हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें चोट लग जाएगी, जबकि ऐसा नहीं होता.
लड़कियां करती हैं अच्छा प्रदर्शन
लिन का कहना है कि तीरंदाजी के इस खेल में लड़कियां काफी हैं और वे वर्ल्ड चैंपियनशिप में अच्छा परफौर्म करती हैं। लड़के भी हैं और इस क्षेत्र में काफी स्ट्रौंग होते हैं. उन की इक्विपमैंट, तकनीक, प्रैक्टिस आदि सब स्ट्रौंग होता है. मेरे समय में भी अमेरिका और साउथ कोरिया के कोचेस आते रहे हैं, लेकिन ग्रासरूट लेवल पर काम होना अभी बाकी है, क्योंकि किसी भी गेम में आगे आने के लिए तकनीक मुख्य होता है.
इसलिए मेरा यंग एथलीट को अच्छी ट्रैनिंग और इक्विपमैंट देने की कोशिश करते रहना है, ताकि वे वर्ल्ड लेवल पर खुद को स्टैब्लिश कर सकें. जब मैं टाटा आर्चरी अकादमी में तीरंदाजी की ट्रैनिंग ले रही थी, मैं ने देखा है कि बिहार के आदिवासी बच्चे बहुत अच्छा तीरंदाजी करते थे, लेकिन उन्हें इक्वल औपरच्युनिटी नहीं मिलता, जिस से वे आगे नहीं बढ़ पाते, क्योंकि वे इस स्पोर्ट को अफोर्ड नहीं कर सकते.
आर्चरी से फिल्मों का सफर
आर्चरी से फिल्मों में आने के बारे में पूछने पर लिन हंसती हुई बताती हैं कि फिल्मों में आने की मेरी कोई प्लानिंग नहीं थी. मेरे पिता स्पोर्ट पर्सन रहे हैं। वे आर्चरी एसोसिएशन की प्रेसिडेंट थे। बहुत सारे स्पोर्ट्स वे करते थे। बौलीवुड इंडस्ट्री, मौडलिंग, ऐक्टिंग से दूरदूर तक कोई नाता नहीं था. मेरे पेरैंट्स ने पढ़ाई के लिए मुंबई भेजा। मैं ने हाई स्कूल और कालेज की पढ़ाई मुंबई से की है। उसी समय मुझे ऐक्सपोजर मिला, क्योंकि मैं लंबी और इग्जौटिक दिखती थी। केश और स्किन अच्छे होने की वजह से मुझे काम मिलने लगा. मैं मध्यवर्गीय परिवार से हूं, इस क्षेत्र में आने के बारे में कोई प्लानिंग नहीं थी.
मैं ने अभी भी काम करना छोड़ा नहीं है, ब्रेक लिया है. शादी के बीच में मैं ने एक फिल्म ‘बन टिक्की’ की शूटिंग की है, जो अगले साल रिलीज होगी. इस में मेरे साथ अभिनेत्री शबाना आजमी, जीनत आमन और अभय देओल हैं। इस में मैं ने एक अलग भूमिका निभाई है. मैं ने अभी प्रोजैक्ट लेना बंद कर दिया है और शादी के बाद लाइफ को प्रायोरिटी दे रही हूं. रणदीप के साथ समय बिताने की कोशिश करती हूं, साथ ही एक प्रभावशाली भूमिका की तलाश में हूं. इस के लिए मैं ने एक व्यवसाय मुंबई में मणिपुरी क्लाउड किचन का शुरू किया है. इस में मेरा अधिक समय निकल जाता है.
रणदीप हुड्डा से मिलने के बारे में पूछने पर लिन कहती हैं कि मैं रणदीप से 14 साल पहले मोटली थिएटर ग्रुप में मिली थी। वहां वे सीनियर ऐक्टर थे और मैं ने उन के साथ कई नाटकों में काम किया है. धीरेधीरे हम दोस्त बने, एकदूसरे से अपनी बातें शेयर करने लगे. मुझे उन की फिल्में बहुत अच्छी लगती थीं. उन का काम करने का तरीका मुझे बहुत पसंद था. फ्रैंडशिप अच्छी थी। मैं अभिनय की बारीकियों के बारे में उन से चर्चा करती थी.
मुझे सीखने का बहुत जनून है और वे एक सच्चे इंसान हैं। इस से दोस्ती आगे बढ़ी और प्यार में बदल गई, फिर शादी हो गई.
वर्कलाइफ बैलेंस नहीं मुश्किल
वर्कलाइफ बैलेंस के बारे में लिन कहती हैं कि रणदीप बहुत व्यस्त रहते हैं। शूटिंग नहीं तो कुछ दूसरे इवेंट में जाते रहते हैं. ऐसे में मेरा बिजी रहना जरूरी है, ताकि मैं खुद खुश रह सकूं. फ्री हो कर जब हम मिलते हैं, तो एक अच्छा समय बिताते हैं, क्योंकि सिंगल होना और शादी के बाद लड़की के लिए चीजें काफी बदल जाती हैं, क्योंकि आप को एकदम से एक नए परिवार में जाना पड़ता है। ऐसे में अगर पतिपत्नी में अच्छा प्यार हो तो सब हो जाता है. मैं ने 30 साल में शादी की और अभी तो सालभर ही हुए हैं, लेकिन रिश्ता अच्छा बना रहे इस के लिए हम दोनों का ही सम्मिलित प्रयास रहता है। रणदीप एक डेडिकेटेड ऐक्टर हैं।
स्पेस देना जरूरी
मुझे याद है कि शादी के बाद रणदीप की फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ की शूट हो रही थी, जिस में वे मुख्य भूमिका में थे. उन्होंने एक दिन मुझ से कहा था कि इस फिल्म में मेरी भूमिका काफी सीरियस है, लेकिन मुझ से शूटिंग नहीं हो पा रहा है, क्योंकि घर आ कर तुम्हें देखते ही मेरा चरित्र हिल जाता है. पहले तो मुझे समझ में नहीं आया कि वे कह क्या रहे हैं, क्योंकि तब उन्हें ‘जेल’ की शूटिंग करनी थी. फिर मैं समझी कि उन्हें इमोशन को पकड़ कर रखने में मुश्किल हो रही है. उन्होंने मुझ से पूछा कि क्या मैं होटल में रह कर इसे करूं, मैं तुरंत हां कर दी.
जब वे राइटिंग मोड में होते हैं, तो मैं उन्हें जरा भी डिस्टर्ब नहीं करती. यही स्पेस एकदूसरे को शादी के बाद ग्रो करने के लिए देना बहुत जरूरी है, ताकि रिश्ते में घुटन न हो. यहां एक आइडिया या एक ट्रिक कभी नहीं चलता. समझदारी, रिस्पैक्ट और प्यार ही इस रिश्ते को बनाए रखता है. मेरी इच्छा है कि दोनों साथ मिल कर किसी फिल्म में अभिनय करें.
आर्चरी में आगे आने के लिए लिन का संदेश है कि आजकल कई सारे एकेडमी है, जहां जा कर कोई भी इस खेल को सीख सकता है और आगे बढ़ सकता है. वहां जाएं, प्रशिक्षण लें और लीग में शामिल हों. इस के अलावा लाइफ में हर किसी को खुश रहने की आजादी है, उसे करें, हालांकि पूरा विश्व अभी अनरेस्ट है, लेकिन खुद कैसे जीना है, उसे हर व्यक्ति को समझना है, तभी सुखशांति विश्व में आएगी और इस की जिम्मेदारी हरेक इंसान के पास है.
Lin Laishram
