Hookup Culture: आजकल रिलेशनशिप का मतलब बदल चुका है. अब कई लोग रिलेशनशिप में सिर्फ इमोशनल कनैक्शन ही नहीं बल्कि फिजिकल कनैक्शन भी तलाशने लगे हैं खासकर जेनजी यानी 1997-2012 के बीच पैदा हुई जैनरेशन के बीच हुकअप कल्चर आम बात हो गई है.
हुकअप का सीधा मतलब है बिना किसी बंधन, बिना किसी वादे बस फिजिकल रिलेशनशिप. यह किसी एक रात का हो सकता है या कुछ मुलाकातों तक चल सकता है. इस में प्यार, शादी या भविष्य जैसी बातें जरूरी नहीं होतीं. कई लोग इसे फन और नो स्ट्रिंग्स अटैच्ड रिलेशन कहते हैं.
क्या यह कल्चर वाकई सब के लिए आसान है? क्या लड़कियों और लड़कों के लिए इस का असर एकजैसा होता है? हुकअप कल्चर क्यों बढ़ रहा है?
सोशल मीडिया और डेटिंग ऐप्स
टिंडर, बंबल, हिंज जैसे ऐप्स ने नए लोगों से मिलने और कैजुअल डेटिंग को बहुत आसान बना दिया है. अब किसी को पसंद करने के लिए कालेज, औफिस या पड़ोस पर निर्भर नहीं रहना पड़ता. एक स्वाइप कर के आप किसी नए इंसान से जुड़ सकते हैं.
फियर औफ कमिटमैंट
आज के नौजवान शादी या सीरियस रिलेशनशिप में नहीं बंधना चाहते. कैरियर, स्टडी और फ्रीडम को पहले रखते हैं. ऐसे में हुकअप उन्हें आसान रास्ता लगता है.
फ्रीडम
लड़केलड़कियां दोनों ही ऐक्सपैरिमैंट करना चाहते हैं. पहले सैक्स को बड़ा टैबू माना जाता था लेकिन अब इसे पर्सनल चौइस समझ जाने लगा है. आजकल बहुत सी रिलेशनशिप ऐसी होती हैं जहां न कोई क्लीयरिटी है न कमिटमैंट. ऐसे में लोग कहते हैं कि हुकअप कम से कम साफसाफ है न प्यार का झंझट, न धोखे का डर.
इस में लड़कियां कहां फंस जाती हैं
अगर लड़का हुकअप करे तो उस के दोस्त कहते हैं, ‘‘वाह यार, मजा ले रहा है.’’ लेकिन वही काम लड़की करे तो तुरंत उस के चरित्र पर उंगली उठ जाती है. उसे इज्जत खोने वाली, चरित्रहीन या बिगड़ी हुई कह दिया जाता है.
दिल्ली की 22 साल की शर्वरी ने एक डेटिंग ऐप पर मिले लड़के से हुकअप किया. दोनों की मरजी से यह हुआ लेकिन बाद में वही लड़का अपने फ्रैंड्स के बीच उस की बातें फैलाने लगा. शर्वरी को लगा कि हम दोनों बराबरी से इस में शामिल थे, लेकिन बदनाम सिर्फ मैं हो रही हूं.
गर्ल्स के लिए ज्यादा रिस्क
हुकअप के बाद अगर प्रैगनैंसी, एसटीडी (सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज) या इमोशनल ट्रामा जैसी दिक्कत आती है तो इस का बोझ ज्यादा लड़की पर ही पड़ता है. लड़का अकसर कह देता है यह तुम्हारी प्रौब्लम है.
ऐसा ही कुछ हुआ मुंबई की पूजा के साथ. वह एक लड़के के साथ कैजुअल रिलेशन में थी. वह प्रैगनैंट हो गई. लड़के ने साफ कहा कि यह तुम्हारा फैसला है, मैं शादी या रिस्पौंसिबिलिटी नहीं ले सकता. नतीजा यह हुआ पूजा को अकेले मैडिकल अबौर्शन कराना पड़ा और उस दौरान समाज से अलग झेलनी पड़ी तानेबाजी.
इमोशनल जुड़ाव
कई बार लड़कियां कहती हैं कि हम हुकअप को सिर्फ फन के तौर पर ले रहे हैं. लेकिन सच यह है कि कई बार इमोशंस जुड़ ही जाते हैं. जब लड़का गायब हो जाता है (घोस्टिंग) तो लड़की अकेली रह जाती है. हुकअप कल्चर देखने में जितना कूल और बिंदास लगता है उतना है नहीं खासकर लड़कियों के लिए, यह एक ऐसी राह है जहां एक तरफ आजादी है तो दूसरी तरफ समाज की दोहरी मानसिकता.
फिजिकल और मैंटल हैल्थ रिस्क
हुकअप में कई बार सेफ्टी को नजरअंदाज कर दिया जाता है. अनप्रोटैक्टेड सैक्स से न सिर्फ प्रैगनैंसी का खतरा होता है बल्कि सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज का भी रिस्क रहता है.
इस के अलावा, बारबार हुकअप करने से लड़कियों में मैंटल हैल्थ इशू जैसे डिप्रैशन, ऐंग्जौइटी आदि का खतरा बढ़ जाता है खासकर जब उन्हें समाज की जजमैंटल नजरों का सामना करना पड़ता है.
जब लड़की अपने दोस्तों से इस बारे में बात करती है तो उसे जज किया जाता है. लोग कहते हैं, ‘‘तुझे तो पता था ये सब रिस्की है, फिर क्यों किया?’’
जेन जी के लाइफस्टाइल का हुकअप कल्चर बन चुका है. यह उन लोगों के लिए आसान और आजादी वाला रास्ता है जो शादी या लौंगटर्म कमिटमैंट से बचना चाहते हैं. लेकिन समाज की दोहरी सोच और लड़कियों पर डाले गए इज्जत के बोझ की वजह से यह उन के लिए मुश्किल बन जाता है.
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