गैर हिंदी भाषी प्रदेश कर्नाटक से मुंबई आकर बौलीवुड में अपनी एक अलग जगह बना लेने वाले अभिनेता गुलशन देवैया अब तक दर्शकों को आश्चर्य चकित करते रहे हैं. ‘‘शैतान’’और ‘‘गोलियों की लीलाः रमालीला’’में निगेटिव किरदार निभाकर गुलशन देवैया ने काफी चर्चा बटोरी थी. इन फिल्मों में उनके अभिनय को देखने के बाद जब लोग उन्हें दूसरी फिल्मों में भी निगेटिव किरदारों में ही देखने की बात सोच रहे थे, तभी गुलशन देवैया ने इरोटिक फिल्म ‘‘हंटर’’ में एक इरोटिक व सेक्सुअल किरदार निभाकर लोगों को आश्चर्य चकित किया. अब वह वासन बाला निर्देशित वेब सीरीज ‘‘स्मोक’’में लोगों को आश्चर्य चकित कर रहे हैं. ग्यारह एपीसोड की इस वेब सीरीज में गुलशन देवैया के संग कल्की कोचलीन, मंदिरा बेदी, टौम औल्टर, जिम सर्भ वगैरह भी हैं. इसके अलावा वह अपनी फिल्म ‘‘मर्द को दर्द नही होता’’ को लेकर भी काफी उत्साहित हैं. यह फिल्म हाल ही में ‘‘टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव’’में पुरस्कृत होने के बाद 25 अक्टूबर से एक नवंबर तक चल रहे ‘मामी’अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में ओपनिंग फिल्म के रूप में दिखायी गयी और दर्शकों ने इसे काफी पसंद किया.

आप कर्नाटक से हैं. लेकिन कर्नाटक में फिल्मों में अभिनय करने की बनिस्बत आप सीधे बालीवुड पहुंच  गए?

मैं कर्नाटक से जरूर हूं. मगर मैं कर्नाटकी फिल्में नहीं देखता. दक्षिण में अच्छी फिल्में बनती ही नही हैं. मेरे माता पिता भी हमेशा हिंदी फिल्में देखते थे. मेरे माता और पिता भारत हैवी इलक्ट्रिकल्स में नौकरी करने के साथ साथ थिएटर से भी जुड़े रहे हैं. मां को अभिनय करने का शौक रहा है. पिताजी को संगीत का शौक रहा हैं. मेरे पिताजी जब चित्रहार आता था, तो उसे रिकार्ड करके रखते थे. बाद में उसे देखकर मैं रिहर्सल किया करता था. मैं पढ़ने में ज्यादा होशियार नहीं था, इसलिए मैंने बंगलोर में निफ्टी से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया. दस साल तक फैशन डिजाइनर के रूप में काम किया. बंगलौर में स्कूलों की पोशाकें बनाया करता था. इसके अलावा एक‘विलिंग्डन फैशन इंस्टीट्यूट’में मैंने तीन साल तक प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाया भी. उसके बाद मुंबई आ गया. मुंबई में नाटकों से जुड़ा और फिल्मों तक पहुंच गया हूं. मुझे सबसे पहले अनुराग कश्यप की फिल्म ‘‘दैट गर्ल इन एलो बूट’’ में काम करने का मौका मिला. उसके बाद से पीछे मुड़कर देखने की जरुरत नहीं पड़ी. मैं अनुराग कश्यप, बिजय नांबियार, संजय लीला भंसाली सहित कई दिग्गज फिल्मकारों के साथ फिल्में कर चुका हूं. फिलहाल वेब सीरीज ‘स्मोक’’को लेकर उत्साहित हूं.

फिल्म ‘‘हंटर’’ के बाद वेब सीरीज ‘‘स्मोक’’के बीच काफी लंबा गैप हो गया?

जी हां! ‘‘हंटर’’के बाद मेरी दो फिल्में बीच में लटक गयीं. एक फिल्म ‘‘कैबरे’’ का प्रदर्शन ही निर्माता निर्देशक के आपसी झगड़े के चलते नहीं हो पाया. जबकि एक फिल्म‘‘लव अफेयर’’ की शूटिंग ही बीच में रूक गयी. इस फिल्म में सोनी राजदान, कल्की कोचलीन और अली फजल भी थे. मेरी आदत है कि मैं एक समय में एक ही फिल्म करता हूं. मैंने तो अपने हिसाब से अच्छे निर्माता निर्देशकों के साथ बेहतरीन फिल्में साइन की थी. लेकिन दुर्भाग्यवश मेरी यह दोनों फिल्में रिलीज नहीं हुई. मैं एक समय में एक ही फिल्म करता हूं. इस कारण दो फिल्मों के अटकने से लंबा गैप हो गया. मेरी काम करने की शैली जिस तरह की है, उसमें यदि एक दो फिल्में बीच में लटक जाती है, तो मेरे करियर में दो तीन साल का गैप आ जाता है.

मगर बौलीवुड में इससे करियर को बहुत नुकसान पहुंचता है?

आपने एकदम सही कहा. मैं इस बात को अच्छी तरह से समझता हू. मैं मानता भी हूं कि मेरे करियर को नुकसान पहुंचा. क्योंकि यहां यदि आप नजर से ओझल हुए, तो लोग आपको भूल जाते हैं. पर जो कुछ हुआ, उसमें मैं कुछ कर नहीं सकता था. यह सब मेरे भाग्य में लिखा था.

आपको नही लगता कि हेट स्टोरीया हंटरमें आपने इरोटिजम वाले किरदार निभाए, जिसका नुकसान हुआ?

मैं ऐसा नही मानता. फिल्मकारों ने इन दोनों फिल्मों को इरोटिक फिल्में कहा था, पर यह फिल्में इरोटिजम के बारे में नहीं थी. फिल्मों में मैंने किरदार निभाए थे, इरोटिजम वाला कोई मसला था ही नही. लेकिन ‘हेट स्टोरी’के बाद उसी तरह के किरदार का औफर आ रहे थे, तो मैंने कई फिल्में ठुकरा दी थी. मैंने अपने करियर व कला को ध्यान में रखते हुए सेक्स प्रधान फिल्में करने से मना किया है. मैं खुद को दोहराना नही चाहता. मैं पटकथा पढ़ने के बाद सोचता हूं कि इसमें मैं कुछ नया कर पाउंगा या नहीं. जब मेरी समझ में आता है कि मैं कुछ नया नहीं कर पाउंगा, तो मुझे लगता है कि यह फिल्म व किरदार किसी अन्य के लिए है, तब मैं उसे करने से इंकार कर देता हूं. यदि मैं वह फिल्में कर लेता, तो आज मेरे पास गिनाने के लिए ढेर सारी फिल्में होती. लेकिन मेरा मानना है कि जल्दबाजी करने की जरुरत नहीं है. मेरे भाग्य में जो फिल्में लिखी हैं, वह किसी अन्य के पास नहीं जाएंगी. माना कि दो वर्ष पहले मेरा भाग्य अच्छा नहीं था. पर इसके मायने यह नहीं है कि हमेशा ही ऐसा रहेगा. मैं भाग्य में यकीन करने के साथ साथ सकारात्म सोच वाला इंसान हूं.

अब आप किस तरह से अपना करियर आगे ले जाना चाहते हैं?

वेब सीरीज ‘‘स्मोक’’ से मेरे करियर की आगे की दिशा तय होने वाली है. इसके अलावा मेरी एक फिल्म ‘मर्द को दर्द नहीं होता’है. हाल ही में इस फिल्म को ‘मामी’फेस्टिवल में काफी सराहा गया. इस फिल्म से मुझे काफी उम्मीदें हैं. इसके अलावा मैं आदित्य दत्ता के निर्देशन में फिल्म ‘‘कमांडो 3’’ कर रहा हूं. इस फिल्म से भी मेरे करियर की आगे की दिशा तय होगी. कुछ फिल्मों की बात चल रही है. इस तरह आप देखेंगे, तो मैं विविधतापूर्ण काम ही कर रहा हूं. एक वेब सीरीज, एक कमर्शियल फिल्म तो एक लीक से हटकर फिल्म कर रहा हूं.

सिक्वअल फिल्म में पहली फिल्म से उसकी तुलना होती है. कमांडो 3’ भी सिक्वअल फिल्म है?

आपने एकदम सही कहा. वास्तव में फिल्म निर्माण टीम वर्क है. सब कुछ केवल हम कलाकार के हाथ में नहीं होता. यदि किसी ने भी अपने काम में कोताही बरती, तो इससे फिल्म कमजोर होती है और बाक्स आफिस पर अच्छे परिणाम नहीं मिलते. मुझे लगता है कि पांच वर्ष पहले मैं जिस स्तर का कलाकार था, उससे कहीं ज्यादा बेहतर कलाकार हो गया हूं. अब कहीं ज्यादा अनुभवी हो गया हूं. जब आप कुछ काम करके अनुभव हासिल करते हैं, तो आपके अंदर आत्म विश्वास आ जाता है. अब मैं आत्मविश्वास से लबालब हूं. मुझे अपने तजुर्बे का भी आत्म विश्वास है. इसके बावजूद सब कुछ हमारे हाथ में नहीं होता है. हम तो सब अच्छा बनाने की कोशिश करते हैं, पर फिल्म के साथ जुड़े सभी लोगों की सोच एक जैसी हो जाए, यह तो संभव नहीं है. तो अक्सर गड़बड़ियां हो जाती हैं. आप भी जानते हैं कि फिल्म निर्माण टीम वर्क है. हर इंसान यही सोचता है कि वह अच्छा काम करे, फिर भी किसी न किसी वजह से गड़बड़ियां होती हैं.

मगर फिल्म की असफलता के लिए कलाकार को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है?

हां!! इसकी वजह यह है कि दर्शक फिल्म की कहानी को हमारे जैसे कलाकारों द्वारा निभाए गए किरदारों के माध्यम से ही देखता है. तो दर्शक कहानी को हमारे किरदार के नजरिए से ही अनुभव करता है. हम परदे पर रोते, गाते या हंसते हैं, तो उससे दर्शक प्रभावित होता है. इसलिए फिल्म की सफलता का श्रेय या असफलता का खामियाजा हमें ही मिलता है. यह दुनिया का दस्तूर है. इसमें बुरा मानने वाला मामला भी नही है. इसलिए मैं इनसे प्रभावित नही होता. क्योंकि मैं नकारात्मक सोच रखता ही नहीं हूं.

वेब सीरीज‘‘स्मोक’’को लेकर क्या कहेंगे?

गोवा शहर में आधारित क्राइम ड्रामा है. फिल्म ड्रग्स के बारे में नहीं है, पर गोवा में ड्रग्स का व्यापार भी है. कई दूसरे व्यापार भी हैं. तो इसमें कई काले धंधों की बात की गयी है. हर इंसान की एक भूख है. किसी को नीचे से उपर जाना है, तो कोई ऐसा भी इंसान है, जो उपर गद्दी पर बैठकर सब पर शासन कर रहा है. वह अपना शासन खोना नहीं चाहता. तो इस ग्यारह एपीसोड की सीरीज में हर इंसान की अपनी चाहत की बात है. इसमें दिखाया गया है कि लोग पावर के लिए क्या क्या कर सकते हैं.

गोवा के अपराध कल्चर पर कई फिल्में बन चुकी हैं. उनसे यह सीरीज अलग कैसे है?

यह सीरीज केवल उस गोवा के बारे में नही है,जिसकी एक ईमेज हम सभी के दिमाग में है. मैं उदाहरण देना चाहूंगा. देखिए, 80 के बाद के कश्मीर को आतंकवाद के लिए जानते हैं, जबकि ऐसा नही है. जब तक आप कश्मीर नही जाएंगे, तब तक आपकी समझ में नही आएगा कि कश्मीर में सब आतंकवादी नही है. पर पौपुलर मीडिया में कश्मीर को जिस तरह से दर्शाया जा रहा है, यह आप जानते हैं. मैं अपनी एक फिल्म की शूटिंग के लिए कश्मीर में था. हमारे पास से गुजर रहे कश्मीरियों ने कहा कि यह लोग फिल्म में हमें टेररिस्ट ही दिखाएंगे. गोवा की भी इसी तरह से ड्रग्स वाली पहचान बन गयी है. लोग सोचते हैं कि शराब की पार्टी करने या ड्रग्स के लिए ही गोवा जाना चाहिए. जबकि ऐसा नहीं है. इस वेब सीरीज से आपको गोवा की खूबसूरती या वहां के असली माहौल का अंदाजा लगेगा. मैं दावे के साथ कहता हूं कि हमारी वेब सीरीज ‘स्मोक’गोवा या गोवा के ड्रग्स के बारे में नही है. पर सारे किरदार गोवा में बसे हुए हैं. इस वेब सीरीज को देखते हुए लोग किरदारों में इस कदर रम जाएंगे कि भूल जाएंगे, यह गोवा है.

इसमें आपका करियर पौजीटिव है या निगेटिव?

इसमें हर कोई पौजीटिव है, हर कोई निगेटिव है. हर किसी को किसी न किसी चीज का लालच है. हर किसी को कुछ पाने की भूख है. वेब सीरीज ‘‘स्मोक’’ में मैंने बिहारी युवक जयराम झा का किरदार निभाया है, जो कि लालची और अतिमहत्वाकांक्षी है. उसे पावर की भूख है. वह बिहार से गोवा पहुंचने के बाद गोवा में ही बसने का निर्णय ले लेता है. लोमड़ी की तरह तेज दिमाग वाले जयराम की भी इच्छा यही है कि वह उंचाई पर पहुंचकर लोगों पर राज करे. उसके मुंह से गालियां तो हमेशा निकलती हैं. प्यार में भी और गुस्से में भी.

आप निगेटिव किरदारों में ज्यादा नजर आते हैं?

अब मैं इससे बचने की कोशिश कर रहा हूं. लेकिन मेरे करियर की शुरुआत में ‘शैतान’ या ‘हेट स्टोरी’ जैसी फिल्मों में मैंने निगेटिव किरदार निभाए, तो मेरे पास निगेटिव किरदारों के औफर बहुत आते हैं. ज्यादातर फिल्मकार भी यही सोचते हैं कि में निगेटिव किरदार ज्यादा बेहतर ढंग से निभा सकता हूं. इसलिए वह मेरे पास इसी तरह के किरदार लेकर आते हैं. बहुत कम लोग सोचते हैं कि मैं दक्षिण भारतीय होते हुए भी बिहारी किरदार निभा पाउंगा. पूजा भट्ट ने भी अपनी दो फिल्मों में अलग किरदार दिए थे. दुर्भाग्यवश वह फिल्में बाजार में नही आ पायी. मेरी नजर में आज की तारीख में कोई भी किरदार सिर्फ सफेद या सिर्फ काला नही है. हर इंसान में खामियां हैं.

क्या डिजीटल मीडियम सिनेमा पर हावी हो सकता है?

मुझे लगता है कि ऐसा एक दिन होगा. पर यह भी गलत होगा, यदि लोग फिल्म देखने के लिए सिनेमाघरां में नहीं जाएंगे. मुझे इसकी चिंता है. क्योंकि मैं चाहता हूं कि हर कहानी लोगों तक पहुंचे. सिनेमा का जादू हमेशा से लोगों के सिर पर रहा है. सेल्यूलाइड के परदे पर कहानी व किरदारों को देखने का अपना एक अलग आनंद है. एक अलग अनुभूति है, वह अनुभूति डिजीटल माध्यम में संभव नहीं. यही वजह है कि सिनेमा पिछले सौ वर्षों से अडिग है. लोगों के मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन बना हुआ है. पहले लोगों ने सोचा था कि सिनेमा पर टीवी हावी हो जाएगा, पर ऐसा नहीं हो पाया. पर मेरी राय में सिनेमा व डिजिटल दोनों माध्यम सतत बने रहेंगे. दोनों एक दूसरे से कुछ न कुछ सीखते रहेंगे.

आपने संजय लीला भंसाली जैसे निर्देशक के साथ काम किया. फिर भी आपके करियर में खास प्रगति नही हुई?

मैंने संजय लीला भंसाली के साथ फिल्म ‘‘रामलीला गोलीयां की रासलीला’’ में काम किया था. मेरे किरदार को काफी प्रशंसा मिली थी, पर उसका फायदा नही मिला. तो अच्छा ही है. क्योंकि मैं उस तरह के किरदार बार बार करना नहीं चाहता. उसके बाद मुझे कई बड़े निर्देशकों की तरफ से फोन आए. पर मैंने खुद स्वीकार नहीं किया. क्योंकि सामने वाला मुझे जिस तरह के किरदार औफर कर रहा था, वह मैं नहीं करना चाहता. मुझे पता है कि मेरे अंदर टैलेंट है. तो फिर मैं बार बार क्यों अपने आपको दोहराउं. संजय लीला भंसाली के साथ काम करने का मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा. मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा. तर्जुबा भी आया.

फिल्म ‘‘मर्द को दर्द नहीं होता’’ को लेकर का कहेंगें?

यह एक्शन कामेडी फिल्म है. इसमें मनोरंजन के साथ साथ कहानी भी मजेदार है. यह कहानी प्योरिटी और भोलेपन की है. इसमें मैंने मनी और जिम्मी की दोहरी भूमिका निभायी है.

किस तरह की तैयारी करनी पड़ी?

इस फिल्म के लिए शारीरिक रूप से मुझे काफी तैयारी करनी पड़ी. इसमें कर्राटे युद्ध है, तो मुझे खास तरह के कर्राटे ‘क्योकुशीन कर्राटे’’की ट्रेनिंग लेनी पड़ी. जबकि उससे तीन माह पहले मेरे पैर के घुटनों का आपरेशन हो चुका था. उससे पहले मैंने कभी कर्राटे की कोई ट्रेनिंग नहीं ली थी. मैंने अभिनेता व कर्राटे चैंम्पियन प्रतीक परमार से मैंने कर्राटे की बेसिक शिक्षा हासिल की. उसने मुझसे कर्राटे के अलावा विंग चुन, वुषु व बौकि्ंग आदि भी करवाया. उसने मुझे कैमरे के सामने पंचेस देना भी सिखाया.

सोशल मीडिया को लेकर क्या सोच है?

मैं सोशल मीडिया पर बिलकुल समय नही देता. मैं दूर रहना पसंद करता हूं. मेरे लिए सोशल मीडिया अपने काम को प्रचारित करने के लिए है. हां! फेशबुक की वजह से हम अपने पुराने दोस्तों के साथ जुड़े रहते हैं, जिनसे हम मिल नही पाते हैं. पर सोशल मीडिया नुकसानदायक ज्यादा है. लोग फ्रीडम औफ एक्सप्रेशन का जिम्मेदारी से उपयोग नहीं करते हैं.

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