भारत में विदेशियों का रहना मुश्किल होता जा रहा है. चाहे पश्चिमी देशों के गोरे हों या अफ्रीका के काले, हमारा रंग भेद इतना ज्यादा गहरा गया है कि किसी को नहीं बख्शा जा रहा. अकेली पर्यटन पर आई गोरी युवतियों को तो यहां गाइड, टैक्सी ड्राइवर, होटलों के कर्मचारी हरदम बिस्तर पर बिछने को तैयार मानते हैं और उन के नानुकर करने पर बलात्कार कर मार तक डालते हैं. कितनों का ही गैंगरेप किया जाता है.
अभी दिल्ली के निकट नोएडा में रह रहे कई सौ अफ्रीकी छात्रों के साथ बुरी तरह मारपीट की गई. आरोप वैसा ही था जैसा मुसलिम पर गौमांस रखने पर लगाया जाता है. कहा गया कि अफ्रीकियों ने एक स्थानीय युवक को नशे की आदत डाल दी और वह मर गया. इस पर सैकड़ों की भीड़ ने कालों पर हमले शुरू कर दिए. कभी मौल में तो कभी घरों के आसपास. एक युवती को टैक्सी में से घसीट कर बुरी तरह मारा.
नोएडा तो छोडि़ए जो उत्तर प्रदेश में आता है, दिल्ली में भी अफ्रीकियों को रंग की वजह से छेड़ा जाता है. अफ्रीकी दब्बू नहीं होते और प्रतिकार करते हैं तो भीड़ जमा कर ली जाती है. कई बस्तियों में इस तरह के कांड हो चुके हैं. आम आदमी पार्टी के एक मंत्री की एक बार अच्छी मुठभेड़ हुई और उन्होंने सभी अफ्रीकियों को किसी न किसी तरह का अपराधी घोषित कर दिया.
यह रंग भेद हमारी जाति, वर्ण भेद की उपज है. जाति हमारी रगों में इस बुरी तरह भरी है कि हर दूसरा व्यक्ति हमें या तो मजाक का पात्र लगता है या दुश्मन. रंग के कारण हमारे यहां की सांवली युवतियां अपनी पूरी जिंदगी मरमर कर बिता देती हैं. काले युवकों का भी यही हाल होता है. अफ्रीकियों को तो नीचा इसीलिए समझा जाता है कि उन का रंग हमारे गांवों के दलित मजदूरों का सा होता है.
दूसरी तरफ गोरे को हर कोई कच्चा चबा लेना चाहता है. गोरी युवतियों का चाहे देशी ही हों, घर से बाहर निकलना दूभर रहता है. उन की शादी तो आसानी से हो जाती है पर वे हर समय भयभीत रहती हैं कि कब, कौन आक्रमण कर दे.
हमारे समाज ने युवतियों और दूसरों को इज्जत से रखने का पाठ कभी नहीं पढ़ाया. हर कोई तानों व मजाक का निशाना रहता है. पहले मदरासी व बंगाली का मजाक उड़ता था. सरदारों पर बने चुटकुलों पर कोई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया.
अपने से अलग तरह के लोगों को न मिलाने की वजह से ही हमारी कुंडली मिला कर विवाह करने की आदत है जिस से हमें विविधता का ज्ञान ही नहीं होता. हमें अपने से अलग लोगों से मिलजुल कर रहने की आदत ही नहीं पड़ती. ‘क्वीन’ फिल्म में नायिका को एक अफ्रीकी, एक गोरे और एक पूर्व एशियाई के साथ कुछ दिन मौज उड़ाते दिखाया गया था पर यह हमारे जीवन का हिस्सा नहीं है.
नोएडा और दिल्ली में जो हो रहा है उस से अफ्रीका में भारत की छवि बहुत खराब हुई है. अफ्रीका प्रगति की दौड़ में खासा तेज है और किसी रोज कुछ देश एशिया को मात देने लगें तो आश्चर्य नहीं है. अफ्रीका के कितने ही देशों की प्रति व्यक्ति आय भारतीय प्रति व्यक्ति आय से बेहतर है. उन से पंगा लेना हमें बहुत महंगा पड़ेगा.