दारोगा बलदेव राज शहर के बाईपास मोड़ पर अपनी ड्यूटी बजा रहे थे. सरकारी अफसर  हैं इसलिए जब मन में आता वाहनों को चेक कर लेते नहीं तो मेज पर टांगें पसार कर आराम करते थे.

जिस वाहन को वे रोकते उस से 100-50 रुपए झटक लेते. नियमों का शतप्रतिशत पालन वाहन चालक करते ही कहां हैं. वैसे इस की जरूरत होती भी नहीं क्योंकि जब चेकपोस्ट पर 100-50 रुपए देने ही पड़ते हैं तो इस चक्कर में पड़ कर समय और पैसा बरबाद करने का फायदा ही क्या है.

पुलिस वाले वाहन चालकों की इस आदत को अच्छी तरह से जानते हैं और वाहन चालक पुलिस का मतलब खूब समझते हैं.

बलदेव राज टैंट के भीतर जा कुरसी पर अधलेटी मुद्रा में पसर गए और अपनी रात भर की थकान उतारने की कोशिश करने लगे.

तभी एक सिपाही ने कहा, ‘‘साहब, ज्यादा थकान लग रही हो तो कमर सीधी कर लो. मैं चाय वाले के यहां से खटिया ला देता हूं.’’

अलसाए स्वर में मना करते हुए वह बोले, ‘‘अरे, नहीं सोमपाल, खटिया रहने ही दे. सो गया तो 2-3 बजे से पहले उठ नहीं पाऊंगा. अभी तो 8 ही बजे हैं और ड्यूटी 10 बजे तक की है. पुलिस वाले को ड्यूटी के समय बिलकुल भी नहीं सोना चाहिए.’’

‘‘क्या फर्क पड़ता है, साहब,’’ सिपाही सोमपाल बोला, ‘‘गाडि़यों को तो इसी तरह चलते रहना है, और फिर जब इस समय किसी को रोकना ही नहीं है तो एक नींद लेने में हर्ज ही क्या है.’’

तभी एक दूसरा सिपाही बड़े ही उत्साह में भरा हुआ टैंट के अंदर आया और बलदेव राज से बोला, ‘‘साहब, बाहर एक टैक्सी वाला खड़ा है. मैं ने तो यों ही उसे रोक लिया था लेकिन उस के पास ड्राइविंग लाइसेंस ही नहीं है. कहता है घर पर भूल आया है.’’

‘‘उस से तुम दोनों जा कर निबट लो. ध्यान रखना, अगर रोज का आनेजाने वाला हो तो हाथ हलका ही रखना,’’ बलदेव राज ने जम्हाई लेते हुए कहा.

सिपाही खुश हो कर बोला, ‘‘साहब, रोज वाला तो नहीं लगता है. गाड़ी भी किसी दूसरे जिले के नंबर की है.’’

‘‘फिर चिंता की क्या बात है,’’ बलदेव राज बोले, ‘‘उस की औकात देख कर जैसा चाहो वैसा कर लो. और हां, सुनो, मेरे लिए अच्छी सी चाय भिजवा देना. चाय वाले से कहना कि दूध में पत्ती डाल दे.’’

‘‘जी, साहब,’’ दोनों सिपाही एक साथ बोले और खुशीखुशी बाहर चले गए.

थोड़ी देर बाद चाय वाला चाय ले आया और बलदेव राज चाय की चुस्की लेने लगे.

लगभग 15 मिनट बाद दोनों सिपाही अंदर आए तो दोनों काफी खुश दिखाई दे रहे थे. बलदेव राज को वे कुछ बताना चाहते थे कि वह खुद ही बोल पड़े, ‘‘मुझे कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है. जाओ और जा कर रकम को आपस में बांट लो.’’

सोमपाल गद्गद हो उठा. उस ने बलदेव राज की स्तुति करते हुए कहा, ‘‘आप की इसी दरियादिली के कारण ही तो हर सिपाही आप का गुलाम बन जाता है, साहब. बर्फ की चोटी हो या रेत का मैदान, आप के साथ हर जगह ड्यूटी करने में मजा आ जाता है.’’

‘‘अच्छा, ज्यादा चापलूसी नहीं. मेरा तो सदा से ही जियो और जीने दो का सिद्धांत रहा है. देखो, 8 बज चुके हैं. अब से ले कर रात 8 बजे तक बड़ी गाडि़यों का शहर में घुसना मना है. तुम दोनों बाहर जा कर खड़े हो जाओ. कहीं ऐसा न हो कि कोई ट्रक चालक मौके का फायदा उठा कर ट्रक निकाल ले.’’

दूसरा सिपाही मुंह बना कर कटाक्ष करते हुए बोला, ‘‘सरकार ने भी कैसेकैसे नियम बना रखे हैं. सब जानते हैं कि इन नियमों को खुद बनाने वाले ही इसे तोड़ देते हैं फिर भी…’’

‘‘ये सब बातें तू नहीं समझेगा,’’ सिपाही की बात को बीच में ही काट कर बलदेव राज बोले, ‘‘जनता की मांग पर सरकार नियम नहीं बनाएगी तो कैसे पता चलेगा कि वह कुछ काम कर रही है. वैसे सरकार नियम न भी बनाए तो कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है. सरकार जानती है कि जनता ही नियमकानून बनवाती है और जनता ही उसे तोड़ती है.

‘‘कानून बनाने से कुछ होता तो जेलों में इतनी भीड़ नहीं होती, कोर्टकचहरी में मेले न लगे होते. फिर भी सरकार बनाती है, क्योंकि उसे पता है कि तेरी तनख्वाह इतनी नहीं है कि बीवीबच्चों के शौक पूरे कर सके. अब बता, एक नियम टूटने से तेरी घरवाली के शौक पूरे हो जाते हैं तो इस में बुराई क्या है?’’

सिपाही के बाहर जाते ही बलदेव राज फिर से कुरसी पर पसर गए.

अभी दारोगाजी ठीक से झपकी भी नहीं ले पाए थे कि सोमपाल अंदर आ कर बोला, ‘‘साहब, बाहर एक ट्रक आया है. ऊपर तक बोरियां लदी पड़ी हैं. ड्राइवर कह रहा है कि मुन्ना सेठ का माल है. शहर के अंदर जाना है.’’

‘‘इस मुन्ना सेठ ने तो खून पी रखा है. इस के आदमी जब मरजी तब मुंह उठाए चले आते हैं. बुला के ला तो उस ड्राइवर को.’’

कुरसी पर संभल कर बैठते हुए बलदेव राज ड्राइवर का इंतजार करने लगे. सोमपाल उसे अपने साथ ले आया. बलदेव राज ड्राइवर को देखते ही गुस्से से बोले, ‘‘क्यों बे नंदू, तू कभी सुधरेगा भी या नहीं. जानता है कि 8 बजे के बाद शहर में घुसना मना है. फिर भी सवा 8 बजे यहां पहुंच रहा है.’’

नंदू ने एक सलाम ठोका और दांत दिखाते हुए बोला, ‘‘मुझे पता था कि यहां पर आप ही मिलेंगे, इसलिए आराम से आ रहा था. गाड़ी में लोड भी कुछ ज्यादा ही है.’’

‘‘तो फिर रात 8 बजे तक खड़ा रह आराम से. तेरी आदत गंदी हो गई है. आज तुझे नहीं जाने दूंगा. कहीं कुछ गड़बड़ हो गई तो मैं हर एक को क्या जवाब देता फिरूंगा. सोमपाल, जा, इस का ट्रक किसी ढंग की जगह पर लगवा दे.’’

‘‘जी साहब,’’ सोमपाल ने कहा, मगर वहां से गया नहीं और न ही नंदू को उस ने बाहर चलने के लिए बोला.

नंदू भी शायद जानता था कि साहब का गुस्सा बनावटी है. वह लगातार हंसे ही जा रहा था और हंसते हुए ही कहने लगा, ‘‘आप भी कमाल की बात करते हैं साहब. मैं तो हमेशा आप की कही हुई बात याद रखता हूं. आप ही तो कहते हैं

कि ये नियमकानून सब ढकोसलेबाजी है. कुछ होना न होना तो ऊपर वाले के ही हाथ में है. जो होना है वह तो हो ही जाता है. बाजार में ट्रक के घुसने से क्या फर्क पड़ता है.’’

‘‘वाह बेटा, मैं ने एक बार कह दिया तो तू जीवन भर इसी तरह से मंत्र ही जपता रहेगा क्या? और यह भूल गया कि मैं ने यह भी तो कहा था कि नियम अच्छा हो या बुरा, उसे तोड़ना ठीक नहीं होता.’’

नंदू और जोर से हंसा और जेब से 200 रुपए निकाल कर मेज पर रखते हुए बोला, ‘‘आप का नियम कौन तोड़ रहा है, साहब, अब मैं जाऊं?’’

‘‘बड़ा समझदार हो गया है, और यह क्या 200 रुपए की भीख दे रहा है? मैं क्या जानता नहीं कि दिन भर यहां खड़ा रहेगा तो तेरा कितना नुकसान होगा.’’

नंदू खुशामदी स्वर में बोला, ‘‘रोज का मिलनाजुलना है, साहब, इतना लिहाज तो चलता है. आपसी संबंध भी तो कोई चीज होती है.’’

‘‘तू मानेगा नहीं,’’ बलदेव राज गहरी सांस ले कर बोले, ‘‘ठीक है जा, मुन्ना सेठ से कहना ज्यादा लालच न किया करे. और सुन, कोई पूछे तो कहना चेकपोस्ट से 8 बजे से पहले ही निकल आया था.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है, साहब,’’ नंदू ने कहा और सलाम ठोंक कर चला गया.

‘‘चल भई, सोमपाल, थोड़ी देर अब बाहर ही चल कर बैठते हैं. 10 बजे घर जा कर तो सोना ही है,’’ बलदेव राज ने कहा और बाहर आ गए.

सिपाहियों से गपशप करते बलदेव राज को अभी 20 मिनट ही हुए थे कि अचानक शहर से आ रही एक गाड़ी के चालक ने खबर दी कि मुन्ना सेठ का बोरियों से भरा ट्रक शहर में एक टैंपो से टकराने के बाद उलट गया है.

‘‘क्या?’’ बलदेव राज का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘कोई मरा तो नहीं?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘मरा तो शायद कोई नहीं, साहब, लेकिन कुछ बच्चों को चोटें आई हैं. टैंपो बच्चों को स्कूल छोड़ने जा रहा था.’’

बलदेव राज थोड़ा परेशान से हो गए. अपने साहब की परेशानी देख कर सोमपाल बोला, ‘‘मुझे तो पहले ही शक हो रहा था कि कहीं आज वह कोई गड़बड़ न कर दे. लोड बहुत ही ज्यादा कर रखा था उस ने.’’

बलदेव राज थोड़ा उत्तेजित स्वर में बोले, ‘‘अहमक ने टक्कर मारी भी तो स्कूल जाते टेंपों को. अब बच्चों के मांबाप तो आसमान सिर पर उठा ही लेंगे.’’

‘‘हां जी, साहब, जांच तो जरूर होगी कि ‘नो एंट्री’ टाइम में ट्रक शहर में कैसे घुस आया,’’ सोमपाल ने चिंता जताई.

बलदेव राज तुरंत बोले, ‘‘देखो, कोई कितना भी कुरेदे, दोनों यही कहना कि ट्रक यहां से 8 बजे से पहले ही निकल गया था.’’

दोनों सिपाहियों ने सहमति में गरदन हिला दी.

तभी फोन की घंटी घनघना उठी. बलदेव राज ने फोन उठाया. दूसरी ओर से उन की पत्नी का रोताबिलखता स्वर आया, ‘‘आप जल्दी से आ जाइए, जगदेव के टैंपो को स्कूल जाते समय किसी ट्रक वाले ने टक्कर मार दी है. सीधे अस्पताल आ जाइए, मैं वहीं से बोल रही हूं.’’

‘‘क्या?’’ बलदेव राज के हाथों से रिसीवर छूटतेछूटते बचा. वह घबराए स्वर में बोले, ‘‘मैं आता हूं, 5 मिनट में पहुंचता हूं. तुम घबराना मत.’’

रिसीवर रख कर वह मोटरसाइकिल की ओर बढ़ते हुए बोले, ‘‘मैं जा रहा हूं, सोमपाल, जिन बच्चों को चोटें आई हैं उन में मेरा बच्चा भी है.’’

रास्ते में बलदेव राज के मन में तरहतरह के विचार आते रहे. यदि जगदेव को कुछ हो गया तो वे कैसे अपनी पत्नी से आंखें मिला सकेंगे. जगदेव ही क्यों, दूसरे बच्चे भी तो अपने मातापिता के दुलारे हैं. उन में से किसी को भी कुछ हो गया तो वे कैसे अपनेआप को माफ कर सकेंगे.

कितना गलत सोचते थे वह कि नियमकानून बेवजह बनाए गए हैं. आज पता चल गया था कि हर नियम और कानून का इस समाज के लिए बड़ा ही महत्त्व है. खुद उन के लिए भी महत्त्व है. वह भी तो इसी समाज का हिस्सा हैं.

कुछ ही देर बाद बलदेव राज अस्पताल में पहुंच गए. वहां काफी भीड़ लगी हुई थी. डाक्टर लोग बच्चों का उपचार करने में जुटे हुए थे और उन के मातापिता के आंसू थामे नहीं थम रहे थे.

उन्हीं में उन की पत्नी भी शामिल थी. जगदेव सहित बाकी बच्चों का शरीर पट्टियों से ढका हुआ था और वे लगातार कराहे जा रहे थे. इस करुणामय दृश्य ने उन के कठोर दिल को भी पिघला कर रख दिया था.

अचानक एक बिस्तर पर घायल नंदू भी उन्हें दिखाई दे गया. वह पुलिस के संरक्षण में था. गुस्से की एक तेज लहर उन के शरीर में कौंधी और वे उस ओर बढ़े भी किंतु फौरन ही रुक गए. मन के किसी कोने से आवाज आई थी, ‘क्या अकेला नंदू ही दोषी है?’

बाहर कुछ लोग कह रहे थे, ‘‘ट्रक ड्राइवर का दोष है और उसे सजा मिल भी जाएगी मगर चेकपोस्ट पर पुलिस वाले सोए हुए थे क्या, जो इतने खतरनाक ढंग से लदे ट्रक को नहीं देख सके. टैंपो वाला समझदारी न दिखाता तो इन बेकुसूरों में से कोई भी नहीं बच पाता.’’

‘‘पुलिस वालों को इस से क्या सरोकार, उन्होंने तो 100-50 का नोट देख कर अपनी आंखें बंद कर ली होंगी.’’

इसी तरह की और भी बहुत सी बातें, तीर बन कर बलदेव राज के दिल को भेदने लगीं.

वह पत्नी के पास आ कर खड़े हो गए. पत्नी की आंसुओं से भीगी आंखों में जब उन्होंने अपने प्रति एक सवाल तैरते देखा तो असीम अपराध बोध से उन का चेहरा खुद ही झुकता चला गया और पश्चात्ताप आंसू बन कर आंखों से बाहर छलकने लगा.

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