शादी के बाद सुरुचि ससुराल पहुंची. सारे कार्यक्रम खत्म होने के बाद 3-4 दिनों में सभी मेहमान एकएक कर के वापस चले गए. लेकिन, उस की ननद और उस के 2 बच्चे 2 दिनों के लिए रुक गए. उस के साससुसर ने तो बहुत पहले ही इस दुनिया से विदा ले ली थी, इसलिए उस की ननद ने, जितने दिन भी रहीं, सुरुचि को भरपूर प्यार दिया ताकि उस को सास की कमी न खले.

भाई के विवाह की सारी जिम्मेदारी वे ही संभाल रही थीं. सुरुचि ने उन के सामने ही घर के कामों को सुचारु रूप से संभालना शुरू कर दिया था. उस ने अपने स्वभाव से उन का दिल जीत लिया था. ननद इस बात से संतुष्ट थीं कि उन के भाई को बहुत अच्छी जीवनसंगिनी मिली है. अब उन्हें भाई की चिंता करने की जरूरत नहीं है.

विदा लेते समय ननद ने सुरुचि को गले लगाते हुए कहा, ‘‘मेरा भाईर् दिल का बहुत अच्छा है, तुझे कभी कोई तकलीफ नहीं होने देगा, तू उस का ध्यान रखना और कभी भी मुझ से कोई सलाह लेनी हो तो संकोच नहीं करना. मैं आती रहूंगी, दिल्ली से सहारनपुर दूर ही कितना है.’’

‘‘दीदी, आप परेशान मत होइए, मैं इन का ध्यान रखूंगी,’’ सुरुचि ने झुक कर उन के पैर छुए. उस की ननद तो औटो में बैठ गई लेकिन बच्चे खड़े ही रहे. सुरुचि ने उन से कहा, ‘‘जाओ, ममा के साथ बैठो.’’

‘‘नहीं, अब तो तुम आ गई हो, इसलिए ये यहीं रहेंगे…’’ ननद आगे कुछ और कहतेकहते जैसे रुक सी गईं.

सुरुचि यह सुन कर अवाक रह गई. अभी विवाह को दिन ही कितने हुए हैं, इसलिए कोई भी सवाल करना उसे ठीक नहीं लगा. उन के जाने के बाद उस के दिमाग में सवालों ने उमड़ना शुरू कर दिया था, कहीं दीदी इसलिए तो मुझ पर इतना स्नेह नहीं उड़ेल रही थीं कि अपने बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर डाल कर आजाद होना चाह रही थीं. उन के छोटे से शहर में अच्छी पढ़ाई होती नहीं है, लेकिन एक बार मुझ से अपनी योजना के बारे में बता कर मेरी भी तो मरजी जाननी चाहिए थी. जल्दी से जल्दी अपने शक को दूर करने के लिए वह पति के औफिस से लौट कर आने का इंतजार करने लगी.

सुंदर के आते ही उस ने उसे चाय दी. उस के थोड़े रिलैक्स होते ही, यह सोच कर कि उसे यह न लगे कि उस की बहन के बच्चे रखने में उसे आपत्ति है, उस ने धीरे से पूछा, ‘‘दीदी के बच्चे यहीं रहेंगे क्या?’’

‘‘दीदी के नहीं, वे मेरे ही बच्चे हैं. पत्नी की मृत्यु के बाद दोनों बच्चों को अपने पास रख कर उन्होंने ही उन को पाला है. तुम्हें…’’

‘‘क्या तुम शादीशुदा हो? तुम ने हमें पहले क्यों नहीं बताया? हमें धोखा दिया…? अपने पति की बात पूरी होने से पहले ही वह लगभग चीखती हुई बोली. उसे लगा जैसे वह किसी साजिश की शिकार हुई है, इस स्थिति के लिए वह बिलकुल तैयार नहीं थी.

सुंदर भौचक सा थोड़ी देर तक उस की तरफ देखता रहा, फिर धीरे से बोला, ‘‘मैं ने तुम्हारे भाई से सबकुछ बता दिया था. उन्होंने तुम्हें नहीं बताया? मैं ने तुम्हें धोखा नहीं दिया. फिर भी तुम मेरी ओर से आजाद हो, कभी भी वापस जा सकती हो.’’

अब चौंकने की बारी उस की थी. ‘तो क्या, मेरे अपने भाई ने मुझे छला है.’ उस को लगा उस के माथे की नसें फट जाएंगी, उस ने दोनों हाथों से जोर से सिर पकड़ लिया और रोतेरोते, धम्म से जमीन पर बैठ गई. कहनेसुनने को अब बचा ही क्या था. उस के सारे सपने जैसे टूट कर बिखर गए थे. शरीर से जैसे किसी ने सारी शक्ति निचोड़ ली हो, वह किसी तरह वहां से उठ कर सोफे पर निढाल हो कर लेट गई.

सुरुचि के दिमाग में विचारों ने तांडव करना शुरू कर दिया था, अतीत की यादों की बदली घुमड़घुमड़ कर बरसने लगी. उस के पिता तो बहुत पहले ही चले गए थे, उस की मां ने ही उसे और उस के भाई को नौकरी कर के पढ़ायालिखाया. जब वह कालेज में पढ़ती थी, उस के भविष्य के सपने बुनने के दिन थे, तभी अचानक हार्टअटैक से मां की मृत्यु हो गई. भाई उस से 5 साल बड़ा था, इसलिए उस का विवाह मां के सामने ही हो गया था.

मां के जाने के बाद भाईभाभी का उस के प्रति व्यवहार बिलकुल बदल गया. वे उसे बोझ समझने लगे थे. गे्रजुएशन के बाद उस की पढ़ाई पर भी उन्होंने रोक लगा दी थी. भाभी भी औफिस जाती थी. सुरुचि सुबह से शाम घर के काम में जुटी रहती थी. उस के विवाह के लिए कई प्रस्ताव आए, लेकिन ‘अभी जल्दी क्या है’ कह कर भाईभाभी टाल दिया करते थे, मुफ्त की नौकरानी जो मिली हुईर् थी.

इसी बीच, उन के 2 बच्चे हो गए थे. जब पानी सिर से गुजरने लगा और रिश्तेदारों ने उन्हें टोकना शुरू कर दिया, तो उन्होंने उस की शादी के बारे में सोचना शुरू किया, जिस की परिणति इस रिश्ते से हुई. जिस उम्र की वह थी, उस में बिना खर्च के इस से अच्छा रिश्ता क्या हो सकता था. उस का मन भाईभाभी के लिए घृणा से भर उठा.

अचानक, सुंदर को सामने खड़े देख कर उस के विचारों को झटका लगा. सुंदर ने उस के पास बैठते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे साथ जो भी हुआ, बहुत बुरा हुआ. लेकिन दुखी होने से बीता वक्त वापस नहीं आएगा. अभी उठो और शांतमन से इस का हल सोचो. जो तुम चाहोगी, वही होगा. तब तक तुम मेरी मेहमान हो. तुम कहोगी तो मैं तुम्हारे भाई के पास छोड़ आऊंगा.’’

?‘‘भाई के पास जा कर क्या होगा. यदि, उन्हें मेरी खुशी की परवा होती तो ऐसा करते ही क्यों. मुझे नहीं जाना उन के पास,’’ वह बुदबुदाईर् और आंखों के आंसू पोंछ कर घर के काम में लग गई.

अगले दिन सुबहसुबह उस की ननद का फोन आया. सुरुचि समझ गई कि कल की घटना के बारे में वे जान चुकी हैं, इसीलिए उन का फोन आया है. उधर से आवाज आई, ‘‘सुरुचि बेटा, हम ने तुम्हारे भाई से कुछ भी नहीं छिपाया था. फिर भी यदि तुम्हें बच्चों से समस्या है, तो वे पहले की तरह मेरे पास ही रहेंगे, लेकिन मेरे भाई को मत छोड़ना, बहुत सालों बाद उस के जीवन में तुम्हारे रूप में खुशी आई है. बड़ी मुश्किल से वह विवाह के लिए राजी हुआ था.’’ वे भरे गले से बोलीं.

‘‘जी,’’ इस के अलावा वह कुछ बोल ही नहीं पाई. इस से पहले कि सुरुचि कुछ फैसला ले कर उन्हें बताए, उन्होंने ही उस की सोच को दिशा दे दी थी.

उस ने नए सिरे से सोचना शुरू किया कि भाई के घर वापस जा कर वह फिर से उस नारकीय दलदल में फंसना नहीं चाहती और बिना किसी सहारे के अकेली लड़की की इस दुनिया में क्या दशा होती है, यह सब जानते हैं. यदि उस का विवाह किसी कुंआरे लड़के से होता, तो क्या गारंटी थी वह सुंदर की तरह उसे समझने वाला होता. उस की कोई गलती नहीं है, फिर भी वह उसे आजाद करने के लिए तैयार है. इतना प्यार करने वाली मां समान ननद, कहां सब को मिलती है. भाईबहन का प्यार, जिस में दोनों एकदूसरे की खुशी के लिए कुछ भी त्याग करने के लिए तैयार हैं, जो उसे कभी अपने भाई से नहीं मिला.

बच्चे जो शुरू में उसे दूर से सहमेसहमे देखते थे, अब सारा दिन उस के आगेपीछे घूमते रहते हैं. इतने सुखी संसार को वह कैसे त्याग सकती है. जो खुशी प्यार और अच्छे रिश्तों से हासिल हो सकती है, बेशुमार धनदौलत या ऐशोआराम से नहीं मिल सकती. इतना प्यार, जिस की उस के जीवन में बहुत कमी थी, हाथ फैलाए उस के स्वागत के लिए तैयार है.

समाज में अधिकतर बहुओं को घर में निचला दर्जा दिया जाता है, वहां एक लड़की को विवाह के बाद इतना प्यार और मानसम्मान मिल जाए, तो उसे और क्या चाहिए. उसे अपने समय से समझौता कर लेने में ही भलाई लगी. शक व चिंता की स्थिति से वह उबर चुकी थी.

आत्मसंतुष्टि के लिए उस ने दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया और पूछा, ‘‘बेटा, मैं जा रही हूं, तुम दोनों, पहले की तरह, अपनी बूआ के साथ रहोगे न?’’

‘‘नहींनहीं, वहां पापा नहीं रह सकते, हमें आप दोनों के साथ रहना है. आप हमें छोड़ कर मत जाइए, प्लीज. आप हमें बहुत अच्छी लगती हैं.’’ इतना कह कर दोनों सुबकने लगे.

सुरुचि ने दोनों को गले से लगा लिया. उस का भी दिल भर आया, इतना तो उसे कभी, उस के भतीजों ने महत्त्व नहीं दिया था, जिन को उस ने वर्षों तक प्यारदुलार दिया था.

सुरुचि ने अपनी ननद को अपने फैसले से अवगत कराने के लिए फोन मिलाया और बोली, ‘‘दीदी, मैं यहीं रहूंगी. कहीं नहीं जाऊंगी. दोनों बच्चे भी मेरे साथ रहेंगे.’’ अभी उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि उस की नजर पीछे खड़े, सुंदर पर पड़ी, जो उस की बात सुन कर मुसकरा रहा था. आंखें चार होने पर वह नवयौवना सी शरमा गई, भूल गई कि वह अपनी ननद से बात कर रही थी.

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