इंटरव्यू फेस करने पर अलग अलग लोगों की, अलग अलग प्रतिक्रियाएं होती हैं. कुछ लोगों को पसीना छूट जाता है, कुछ लोग सचमुच हंकलाने लगते हैं. कुछ लोग महीनों में याद की गई तमाम बातें उस क्षण भूल जाते हैं, अच्छे अच्छे वाचाल लोगों के मुंह से कई बार एक शब्द भी नहीं निकलता. जबकि कई लोग ऐसे भी होते हैं जो बड़ी सहजता से इंटरव्यूर को फेस करते हैं और कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो आम समय पर भले अपने को स्मार्ट ढंग से पेश न कर पाएं, लेकिन इंटरव्यू देते समय पता नहीं कहां से स्मार्टनेस आ जाती है और वह शानदार इंटरव्यू देते हैं.

सवाल है आखिरकार इंटरव्यू के संबंध में इतनी सारी अलग अलग प्रतिक्रियाएं क्यों होती हैं? न्यूर्याक की पैमेला स्किलिंग्स इंटरव्यू को बेहतर तरीके से देने की कोचिंग देती हैं. उनके मुताबिक इंटरव्यू फेस करना एक किस्म की कला है. यह कला बहुत कम लोगों में होती है. हालांकि पैमेला के मुताबिक इस कला को सीखा जा सकता है. दूसरे शब्दों में इंटरव्यू देते वक्त आत्मविश्वास से भरे होने की कला सीखी जा सकती है. इंटरव्यू देते समय किसी किस्म की दहशत में न आना, कूल बने रहना. ये तमाम कुशलताएं हम अभ्यास के जरिये सीख सकते हैं. ऐसा इंटरव्यू कला की कोचिंग देने वाली पैमेला स्किलिंग्स का मानना है.

क्या इंटरव्यू देने की कला न होने या न सीख पाने की वजह से हमें अपने जिंदगी में इसका नुकसान उठाना पड़ता है? इस सवाल का जवाब है बिल्कुल उठाना पड़ता है. पैमेला के पास ऐसे उदाहरणों की लंबी फेहरिस्त है, जो अच्छा इंटरव्यू न दे पाने की वजह से जिंदगीभर अपनी प्रतिभा और क्षमता से कम आंके गये या उन्हें अपनी क्षमता और प्रतिभा के बराबर सम्मान नहीं मिला. बहरहाल हम यहां ऐसे लोगों के बारे में नहीं जानना चाहते, इनके जिक्र का हमारा मकसद ये है कि हम कैसे इंटरव्यू देने की कला को सीखें, अपनी कमजोरियों से पार पाएं और हम जितने योग्य हैं, कम से कम अपनी योग्यता के बराबर का फल तो पाएं. सवाल है अच्छा इंटरव्यू देने के लिए क्या कला सीखनी होगी?

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