युवाओं में सॉलिड ऑर्गन अंग कैंसर के मामलों में वृद्धि है चिंताजनक

दुनिया भर में मृत्यु के प्रमुख कारणों में कैंसर से मृत्यु का आंकड़ा सबसे अधिक माना जाता है. ट्रेडिशनली इस रोग से बड़ी उम्र के लोग अधिक प्रभावित होते है, लेकिन, हाल में ही किये गए अध्ययनों से पता चला है कि कैंसर युवाओं में भी तेजी से फ़ैल रहा है, जिससे चिकित्सा के पेशेवरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनों में चिंता बढ़ रही है. यूवाओं में खासकर 15 से 19 साल के यूथ में सबसे कॉमन कैंसर ब्रेन ट्यूमर, थाइरोइड कैंसर, मेलिग्नेट बोन ट्यूमर आदि का होना है.

इस बारें में न्यूबर्ग सुप्राटेक रेफरेंस लेबोरेटरी के सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर भावना मेहता कहती है कि युवाओं में कैंसर वृद्धि होने की वजह बदलती जीवन शैली, अस्वास्थ्यकर आहार, शारीरिक गतिविधियों में कमी, पर्याप्त नींद न होना, पर्यावरण में विषाक्त पदार्थों से प्रदूषण, कीटनाशक, तंबाकू चबाने की आदत, धूम्रपान, शराब आदि है. इनमे सबसे अधिक योगदान शारीरिक गतिविधियों की कमी और अस्वास्थ्यकर आहार का होना है. ये समस्या हर दशक के बाद कम उम्र के लोगों में वृध्ही देखी जा रही है, जो चिंता का विषय है. दरअसल कैंसर का पता बहुत देर से चलना भी एक बड़ी समस्या है, जिससे इलाज में देर हो जाती है, हालंकि यह देखा गया है कि कम उम्र के युवाओं में जल्दी कैंसर का पता लगने पर इलाज संभव होता है, लेकिन यूथ को पहले विश्वास करना मुश्किल होता है कि उन्हें कैंसर है. तक़रीबन 70 हज़ार टीनएजर्स हर साल कैंसर डाग्नोस किये जाते है, जिनमे से 80 प्रतिशत यूथ सालों तक इलाज के बाद सरवाईव कर पाते है और ये एक अच्छी बात है. देर से जानकारी होने की मुख्य वजह निम्न है,

– कैंसर के बारे में जागरूकता की कमी,

-यूथ होने की वजह से नियमित जांच का न होना,

-कैंसर का पता चलने पर किसी से इस बात का न कह पाने की हिचकिचाहट

-आर्थिक समस्याएँ आदि है.

बेहतर स्क्रीनिंग और डायग्नोस्टिक टूल के कारण ऐसे कैंसर जिनके बारे में पहले पता ही नहीं चल पाता था, अब उनका शुरुआती चरणों में निदान किया जा रहा है, लेकिन इन सब के बावजूद, युवा आबादी के लिए कैंसर का ख़तरा बड़े पैमाने पर बना हुआ है. जिन युवाओं के कैंसर का निदान हुआ है उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे, शिक्षा और करियर में बाधा पड़ना, सामाजिक और भावनात्मक कठिनाइयों का होना और परिवार के लिए आर्थिक तनाव में वृद्धि. इसके अलावा कैंसर के कई उपचारों का प्रजनन क्षमता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है, इसलिए कैंसर से पीड़ित युवाओं को प्रजनन संबंधी अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इन निम्न समस्याओं के होने पर डॉक्टर की सलाह तुरंत लें,

– अचानक वजन का घटना,

– थकान का अनुभव करना,

– बार-बार बुखार आना,

– लगतार दर्द का अनुभव करना,

– त्वचा में परिवर्तन दिखाई पड़ना, मसलन तिल में बदलाव का दिखना, पीलिया का संकेत दिखाई देना आदि है.

इसके आगे डॉ. भावना कहती है कि कैंसर किसी भी अन्य बीमारी की तरह है और किसी को भी हो सकती है, लोगों को परिवार और समाज में भी इसके बारे में खुलकर चर्चा करनी चाहिए. कैंसर जैसी बीमारी के बारे में बात करने से होने वाली झिझक समाप्त होना बेहद जरूरी है. यह बात हर किसी को पता होनी चाहिए कि कैंसर का डाग्नोस जितना शुरुआती चरण में होता है, उपचार की प्रक्रिया और उसका असर बेहतर होता है. और कुछ कैंसर पूरी तरह निदान योग्य हैं.

युवा आबादी देश का भविष्य है और उन्हें बचाना सभी की जिम्मेदारी है. सही जीवन शैली अर्थात जल्दी उठना और जल्दी सोना, स्वस्थ और संतुलित आहार लेना, किसी भी रूप में दैनिक शारीरिक गतिविधियों जैसे टहलना, स्ट्रेचिंग व्यायाम, योग और सबसे बड़ी बात, ऐसा वातावरण बनाना जहां कोई भी बिना किसी हिचकिचाहट के कैंसर के बारे में बात कर सके और प्रारंभिक निदान और उपचार के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों और शोधकर्ताओं द्वारा किए गए प्रयास का लाभ उठा सके.

अब कैंसर, अल्जाइमर और पार्किन्सन जैसी बीमारियों का जल्दी इलाज संभव

कैंसर और न्युरोलोजिकल डिसऑर्डर मसलनअल्जाइमर,पार्किन्सनजैसी बिमारियों के इलाज में सकारात्मक परिणाम के उद्देश्य से भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी-एम) और मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी (एमआईटी) अमेरिका के वैज्ञानिकों ने 3D प्रिंटेड बायोरिएक्टर की सहायता से मानव मस्तिष्क के टिश्यु को विकसित किया है, जिसे ‘ऑर्ग़ेनॉइड’ कहा जाता है. ये रिसर्च हेल्थकेयर और फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री के लिए वरदान होगी,जहाँ सेल कल्चर के द्वारा किसी बीमारी को पहचान कर सही दवा देने में आसानी होगी.

इस डिवाइस का उद्देश्य मस्तिष्क के टिश्यु के विकास को ओब्जर्ब करना और एक ऐसी तकनीक का विकास करना, जो कैंसर अल्जाइमर और पार्किन्सन की जैसी न्युरोलोजिकल बीमारी की चिकित्सा और चिकित्सीय खोजो को जल्दी करने में समर्थ हो सकें. इस बारें में डिपार्टमेंट ऑफ़ इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग (आईआईटी-मद्रास ) के प्रोफेसर अनिल प्रभाकर कहते है कि यह एक 3डी प्रिंटेड माइक्रो-इनक्यूबेटर और इमेजिंग चैंबर को एक हथेली के आकार के प्लेटफॉर्म में बनाया गया है,जिसे लंबे समय तक मानव मस्तिष्क कोशिकाओं की कल्चर और रीयल-टाइम इमेजिंग के लिए सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया गया. इस 3D प्रिंट के द्वारा काफी दूर तक इंजिनियरिंग किया जा सकता है, क्योंकि एक डिवाइस में अलग-अलग चैनल बनाकर किसी में कम तो किसी में अधिकन्यूट्रीएंट्स, तापमान के आधार पर डालते है. इन न्यूट्रीएंट्स का सही बैलेंस ‘ऑर्ग़ेनॉइड’ ग्रोथ के लिए बहुत जरुरी होता है. इसमें फायदा यह होता है कि 30 ऐसे ऑर्ग़ेनॉइड’ ग्रो करने पर अधिक काम करने वाली न्यूट्रीएंट्स की कंडीशन के बारें में पता चलता है औरउसके अनुसार किसी में अधिक ड्रग और किसी में कम ड्रग डालने पर कोशिकाओं की स्ट्रेंथ के बारें में पता चल जाता है. इससे बीमारी जल्दी पकड़ में आने के अलावा इलाज करने में आसानी होती है. ऐसी कोशिकाओं को ग्रो करने में 3 सप्ताह लग जाते है. करीब एक सेंटीमीटर होने तक कंट्रोल करना पड़ता है, जिसे डिवाइस में डाला गया है.

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इसके आगे प्रोफेसर अनिल कहते है कि कैंसर में अलग कोशिकाए होती है. अगर ब्रैस्ट कैंसर के बारें में पता करना है तो मेमेलिया सेल को डिवाइस में डालना पड़ेगा और उसी तरीके से किसी कोशिका में कमड्रग, किसी में अधिक तो किसी में ड्रग नहीं डालने पर सेल्स की कंडीशन का पता चलता है. इस काम में मेरे साथ कैंसर सेल की स्टडी करने वाले बायोटेक्नोलोजिस्ट डॉ. शांतनु और कई रिसर्चर है. ये डिवाइस माइक्रो लेवल पर काम करेगी और इससे जांच करना, आज की तुलना में खर्चा भी कम होगा. इसमें मेडिकल कॉलेज की भी सहायता लेकर काम किया जायेगा.

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वातावरण का प्रभाव सेल्स पर अधिक होने की वजह से उसका भी ध्यान रखा गया है. अभी मैंने 6 वेल्स बनाये है, आगे 32 वेल्स बनांएगे, 32 के अच्छा काम करने पर 64 वेल्स बनायेंगे, क्योंकि जितने अधिक कोशिकाओं में न्यूट्रीएंट्स डाले जायेगे, उतने अधिक बीमारी को पकड़ने और इलाज में सहायता मिलेगी. इस तकनीक का पेटेंट भारत में कराया गया है.

इसप्रकार यह जीवविज्ञानी या प्रयोगशाला टेक्निशियनों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-असिस्टेड ऑटोमेटेड सेल कल्चर प्रोटोकॉल द्वारा संचालित यूजर-फ्रेंडली सिस्टम के साथ ऑर्गेनॉइड के विकास को संचालित, नियंत्रित और मॉनिटर करने में सक्षम करेगा.

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आखिर क्यों होती है कीमोथेरेपी से मौत, जानें क्या-क्या हैं Side Effects

50 वर्षीय गरिमा को जब अचानक पता चला कि उसे ब्लड कैंसर है तो उसे पहले अपने उपर विश्वास नहीं हुआ कि उसे इतनी बड़ी बीमारी है, लेकिन सारे टेस्ट पॉजिटिव होने के बाद उसने इलाज कर सही होने को ठानी. इसमें उसकी हिम्मत और साहस ही सबसे बड़ी थी जिसने उसे इलाज के लिए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, लेकिन कीमोथेरेपी ने उसके इस हौसले को इतना पस्त कर दिया  कि उसने केवल 6 महीने में दम तोड़ दिया. कीमोथेरेपी की वजह से वह धीरे-धीरे कमजोर होती गयी गयी. उसके शरीर के अंग ख़राब होते गए और वह जिंदगी की जंग नहीं जीत पायी. यहाँ ये समझना जरुरी है कि आखिर वजह क्या थी कि 20 प्रतिशत कैंसर सेल्स होने के बावजूद वह जिंदगी से हार गयी.

असल में एक ब्रिटिश शोध में ये पाया गया है कि सीरियसली कैंसर के 27 प्रतिशत मरीज़ कीमोथेरेपी से ही मर जाते है न कि कैंसर से. जबकि 600 से अधिक लोग कीमोथेरेपी के प्रयोग से 30 दिन के अंदर ही दम तोड़ देते है. इस बारें में जानकार बताते है कि सही मात्रा में सही तरीके से शरीर में किमो देने पर मरीज़ का इलाज हो सकता है. जिसके लिए प्रशिक्षित डॉक्टर का होना बहुत जरुरी है. इसके अलावा कई बार कुछ कैंसर में किमोथिरेपी देने के बाद कैंसर सेल्स अधिक उग्र हो जाते है, क्योंकि कैंसर सेल के साथ-साथ व्यक्ति की इम्यून सिस्टम किमो से ख़राब हो जाते है. ऐसे में रोगी की सरवाईवल क्षमता कम हो जाती है.

मुंबई की रिजनेरेटिव मेडिसिन रिसर्चर Stem Rx  बायोसाइंस सलूशन्स प्राइवेट लिमिटेड. के डॉ. प्रदीप महाजन, जो एन के सेल और डी सी सेल पर रिसर्च करने के अलावा रेडियो थिरेपी और इम्यूनो थिरेपी पर भी एडवांस काम रहे है, उनका कहना है कि किमो से नार्मल और कैंसर दोनों के सेल मरते है, ऐसे में नए ट्रीटमेंट जिसे इम्यूनो थिरेपी कहते है, उसमें कैंसर सेल को टारगेट कर मार सकते है. कीमोथेरेपी और रेडियो थिरेपी से बॉडी को लाभ से अधिक नुकसान होता है.

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कैसे करे कीमोथेरेपी

किमो देते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरुरी होता है, ताकि रोगी की बीमारी कम हो और उसे किसी प्रकार की असुविधा न हो, शरीर में कैंसर के प्रकार, उसकी मात्रा, वजन उम्र, कोई अन्य बिमारी आदि सभी को देखते हुए कीमोथेरेपी देने की जरुरत होती है, ये हमेशा कॉम्बिनेशन में दिया जाता है, जो रोगी की कैंसर के प्रकार के आधार पर दिया जाता है, इसके अलावा प्रशिक्षित डॉक्टर की निगरानी में इसे दिया जाना चाहिए.

कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट

किमो देने के बाद कैंसर सेल के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता और नार्मल सेल भी मर जाते है, जिसकी वजह से कैंसर, जितना कम होता है उससे अधिक इम्यून सिस्टम ख़राब हो जाती है, जिससे उससे बार-बार इन्फेक्शन होना, कमजोरी लगना, वजन का कम होना, हड्डियों का कमजोर पड़ना, बाल झड़ना, किडनी और लीवर का ख़राब हो जाना, महिलाओं में ओवेरी का ख़राब हो जाना,पुरुषों में प्रजनन क्षमता का कम हो जाना आदि कई समस्याएं आ जाती है,

इसके आगे डॉ. महाजन का कहना है कि किमो की खुराक कभी अधिक नहीं होती. एक्सपर्ट डॉक्टर रोग की अधिकता को देखते हुए दवा देते है. अगर कैंसर सेल अधिक मात्रा में है तो उसे कम करने के लिए जरुरी मात्रा में कीमोथेरेपी देने पड़ते है, ऐसे में स्वास्थ्य लाभ की संभावना कम हो जाती है.

सही इलाज

ग्लोबली आजकल इम्यूनो थेरेपी पर अधिक जोर दिया जाता है और एंटी बॉडीज पर फोकस किया जाता है, ताकि टारगेट कर कैंसर सेल को मारकर, इम्युन सिस्टम को बूस्ट कर और लाइफ स्टाइल को बदलकर कैंसर को काफी हद तक कंट्रोल में किया जाना है. अर्ली स्टेज में पूरी तरह से क्योर होना भी संभव हो सकेगा. असल में कैंसर की कोई भी इलाज सस्ता नहीं है. रेडियोथेरेपी और सर्जरी कोई भी सस्ता नहीं. नई थिरेपी की अगर तुलना करें, तो 10 से 15 प्रतिशत तक इसका खर्चा अधिक होता है, पर इसका लाभ रोगी को बहुत अधिक होता है. अभी कैंसर को बीमारी नहीं, लाइफस्टाइल बीमारी का नाम दिया जाने लगा है, क्योंकि गलत आदतें, गलत लाइफस्टाइल और तनाव की वजह से ये बिमारी आजकल अधिक हो रहा है.

इम्यूनो थिरेपी में रोगी की लाइफस्टाइल और फ़ूड हैबिट्स को पूरी तरह से बदल दिया जाता है. खाना ऐसा दिया जाता है, जिसमें उसकी इम्युन सिस्टम बूस्ट होगी, एंटी कैंसर एक्टिविटी शरीर में चालू होगी और कैंसर को मारने वाले सेल्स भी एक्टिव हो जायेंगे. इसके लिए हाई डोज विटामिन डी, सी ,विटामिन बी 17, क्रुकोमिन जैसे एंटी कैंसर ड्रग और इम्यूनो थेरेपी आदि दिए जाते है. इसके अलावा आजकल नयी पद्यति का प्रयोग भी इन सबके साथ किया जाता है, जिसमें इंटेंसिव पल्स प्रेशर देकर शारीरिक रूप से कैंसर सेल को ख़त्म करने का काम किया जाता है. आजकल विज्ञान बहुत आगे है. महंगा इसलिए है, क्योंकि नया है, धीरे-धीरे इसका प्रयोग होने और रोगी ठीक होने पर मूल्य भी घट जायेगा, लेकिन इससे परिणाम बहुत अच्छा रहता है.

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कैसे करें सही डॉक्टर का चुनाव

इस बारें में डॉ. प्रमोद कहते है कि ये बहुत मुश्किल नहीं जब भी रोगी किसी डॉक्टर से सम्पर्क करता है तो ऑनलाइन उसकी रिव्यु देखें और पढ़ लें, इसके अलावा सेकंड ओपिनियन डॉक्टर से अवश्य लें, ताकि आपका इलाज सही हो.

कैंसर बढने की वजह

इसके आगे डॉक्टर महाजन का कहना है कि कैंसर बढ़ने की मूल वजह आजकी फ़ूड हैबिट है. लोग रात-रात तक काम करते है इसके अलावा आर्सेनिक युक्त भोजन करना, प्रदूषण में रहना, तनावयुक्त जीवन बिताना आदि है, जिससे इम्युन सिस्टम कमजोर पड़ने लगती है म्युटेशन बढ़ता है. बॉडी एसिडिक हो जाती है, जिसमें कैंसर के सेल का फैलाव अधिक होने लगता है.यही वजह है कि ये बढ़ रहा है.

कैसे करें कम

  • इसे कम करने के उपाय निम्न है,
  • फ़ूड हैबिट्स बदले,
  • समय पर भोजन करें,
  • अपनी नीद पूरी करें,
  • तनाव को अपने से दूर रखें,
  • खाने में नट्स,फल और सब्जियों का प्रयोग अधिक करें,
  • योग और मेडिटेशन पर अधिक ध्यान दें.

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कैंसर के क्षेत्र में कारगर साबित हो रही है, नई तकनीक हाइपैक और पेरिटोनेक्‍टोमी, जानें यहां

32 वर्षीय रश्मि को पेरिटोनियल बीमारी के साथ ओवेरियन कैंसर था, कीमोथेरेपी देने के बाद भी उसकी बीमारी बनी रही. वह युवा थी और पहले से ही वह माँ बन चुकी थी, ऐसे में रश्मि का इलाज हाइपैक तरीके से किया गया. चार साल बाद भी वह स्टेज 4 कैंसर से जंग जीतकर  बेहतर जिंदगी जी रही है, जो इस इलाज की पद्यति से संभव हो पाया.

65 वर्षीय महिला अनीता एपेंडिसाइटिस ट्यूमर से परेशान थी, जो उसके लीवर, पेट और कई अन्य अंगों में फैल गया था, हाइपैक के बाद, स्टेज चार कैंसर के बावजूद, वह पिछले दो वर्षों से ठीक है.

असल में कैंसर का सही इलाज आज तक संभव नहीं हो पाया है, लेकिन इसकी संख्या लगातार बढ़ रही है. अब तो इसे लाइफ स्टाइल डिसीज की संज्ञा भी दी जाने लगी है. हाल ही में एक शोध से पता चला है कि आज सबसे अधिक ब्रैस्ट कैंसर, फिर लंग्स कैंसर और इसके बाद प्रोस्टेट कैंसर का आता है और इसकी संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. इस बारें में नवी मुंबई के रिलायंस हॉस्पिटल के ओंको सर्जन डॉ. डोनाल्ड जॉन बाबू का कहना है कि कैंसर का सबसे बड़ा खतरा यह है कि ये कई बार पूरे शरीर में फैल जाता है, जिसके चलते इसका इलाज और मुश्किल हो जाता है. खासकर एब्डोमिनल कैविटी  (पेरिटोनियम या पेरिटोनियल गुहा) की लाइनिंग जैसी मुश्किल जगहों में होने वाले कैंसर का इलाज अधिक चुनौतीपूर्ण होता है. पेरिटोनियम, एब्डोमिन से लगे झिल्लीनुमान उत्‍तक का आवरण होता है. पेरिटोनियम, पेट के अंगों को सहारा देता है, साथ ही तंत्रिकाओं, रक्त वाहिकाओं और लिम्फ के गुजरने के लिए एक सुरंग के रूप में कार्य करता है. पेरिटोनियल गुहा (कैविटी) में डायफ्राम, पेट और पेल्विक कैविटीस की वॉल्‍स के साथ पेट के अंग भी होते है.

जाने कीमोथेरेपी के साइड इफ़ेक्ट 

कीमोथेरेपी के क्षेत्र में हाल में हुई कई प्रगतियों के बावजूद, कीमोथेरेपी के संपूर्ण रूप से आरोग्यकारी होने की संभावना निश्चित नहीं होती और कई बार इसके दुष्प्रभावों को सहन कर पाना रोगियों के लिए मुश्किल होता है. हालांकि, जब ये कैंसर पेरिटोनियल कैविटी तक सीमित होते हैं, तो हाइपैक अर्थात हाइपरथेराटिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी का प्रयोग ऐसे रोगियों के लिए एक अच्छा विकल्प बन जाता है.

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विधि  

डॉ. पॉल हेड्रिक सुगरबेकर द्वारा खोजी गयी, यह एक अमेरिकी कांसेप्ट है और इसे सुगरबेकर प्रोसेस के रूप में भी जाना जाता है. हाइपैक से पहले, सर्जन द्वारा पेरिटोनियल कैविटी से सभी दिखायी देने वाले ट्यूमर को सर्जिकल रूप से हटा दिया जाता है. इसे पेरिटोनोक्‍टॉमी सर्जरी कहा जाता है. इस सर्जरी के बाद, सर्जन द्वारा ऑपरेटिंग सेटिंग में हाइपैक उपचार किया जाता है.

हाइपैक है क्या 

हाइपैक का अर्थ हाइपरथेराटिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी है. हाइपैक एक बड़ी सर्जरी है. ‘इंट्रापेरिटोनियल’ शब्द का अर्थ यह है कि इसके द्वारा एब्डोमिनल कैविटी का इलाज किया जाता है. यह कैंसर का एक ऐसा इलाज है, जो पेट में कीमोथेरेपी दवाओं के हीट को पंप कर बाहर निकाल देता है. इसलिए कीमोथेरेपी की एक बड़ी खुराक जब दी जाती है, तो यह उतना टॉक्सिक नहीं होता. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ड्रग्स को खून की धमनियों में इंजेक्ट नहीं किया जाता, इसलिए ये आईवी (इंट्रावेनस) के जरिए दिये जाने वाले कीमोथेरेपी को शरीर के अंदर फ़ैलाने में असमर्थ होता है.

इसके अलावा हाइपरथेराटिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी में दवाओं को लगभग 106-109 डिग्री फॉरेनहाइट तक गर्म किया जाता है. कैंसर कोशिकाएं इतनी गर्मी सहन नहीं कर सकती और गर्मी की वजह से दवाओं को अधिक आसानी से एब्सोर्ब करने और कैंसर सेल्स पर बेहतर काम करने में मदद करती है.

हाइपैक से इलाज  

हाइपैक प्रक्रिया के दौरान, सर्जन द्वारा कीमोथिरेप्‍यूटिक एजेंट वाले हीटेड स्‍टराइल सॉल्‍यूशन को पूरी पेरिटोनियल कैविटी में अधिक से अधिक दो घंटे तक लगातार सर्कुलेट किया जाता है. हाइपैक प्रक्रिया का प्रयोग इसलिए किया जाता है, ताकि कैंसर की बाकी बची कोशिकाओं को नष्ट किया जा सकें. यह प्रक्रिया शरीर के बाकी हिस्सों में न्यूनतम जोखिम के साथ दवा अवशोषण और प्रभाव में भी सुधार करती है. इस तरह से कीमोथेरेपी के सामान्य दुष्प्रभावों से बचा जाता है. इस विधि से इलाज करने में 6 से 10 लाख तक का खर्चा होता है, लेकिन मरीज़ इसके लिए ओंकोलोजिस्ट से बात कर निर्णय ले सकते है.

किन-किन कैन्सर्स के लिए है उपयोगी 

हाइपैक का उपयोग कठिन कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है, जैसे एपेंडिक्‍स, कोलोरेक्टल कैंसर और पेरिटोनियल मेसोथेलियोमा (पेट के अस्तर का एक कैंसर, जो अक्सर एस्बेस्टस में सांस लेने के कारण होता है) इस प्रक्रिया ने डिम्बग्रंथि और गैस्ट्रिक कैंसर की उपचार के लिए भी एक अच्छा विकल्प है.

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पेरिटोनेक्टोमी के साथ हाइपैक के उपयोग के फायदे 

इसके आगे डॉ.डोनाल्ड का कहना है कि जब कैंसर केवल अंगों की सतह पर हो और रक्त प्रवाह में नहीं फैले, तो कुछ रोगियों के लिए हाइपैक के साथ साइटोरिडक्टिव सर्जरी को अच्छा माना जा सकता है. इसके अलावा इसके कई फायदे निम्न है,

  • यह ट्यूमर के वॉल्‍यूम को काफी कम करता है, शेष बचे कोशिकाओं को कीमोथेरेपी दवाओं के द्वारा इफेक्टिव तरीके से कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकती है,
  • हाइपैक सभी आयु वर्गों के लिए प्रभावी है,
  • हाइपैक का परिणाम 60-70 प्रतिशत रोगियों के लिए अच्छा पाया गया है और इसके बाद लास्‍ट स्‍टेज कैंसर में भी 5 वर्षों से अधिक समय तक जीवन प्रदान करने की क्षमता देखी गयी है,
  • इस प्रक्रिया को करने के लिए किसी विशेष एहतियात या देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन कैंसर रोगी को नियमित देखभाल की आवश्यकता होती है.

कैंसर रोगियों को मानसिक और शारीरिक रूप से फिट बनाएगी डांस थेरेपी

– डाॅ. तेजिन्दर कटारिया, कैंसर इंस्टीच्यूट, मेदांता-द मेडिसिटी

जब किसी व्यक्ति को कैंसर होने का पता चलता है तो उन के मन में यह सवाल जरूर होता है कि क्या वह कभी सामान्य जीवन जी सकेगा. कैंसर के इलाज में केवल रेडिएशन ही शामिल नहीं होता बल्कि और भी कई चीजें शामिल होती हैं जैसे कीमोथिरेपी और जरूरत पड़ने पर सर्जरी भी.

कैंसर के मरीज भी अच्छा जीवन जीना चाहते हैं. ऐसे में डांस थिरेपी कैंसर मरीजों के लिए बहुत ही उपयोगी साबित हो सकती है. आज अस्पताल तथा कैंसर चिकित्सा केन्द्र कैंसर के मरीजों को शारीरिक एवं भावनात्मक पीड़ा से उबारने के लिए डांस थिरेपी के फायदों को लेकर अध्ययन कर रहे हैं.

ऑस्ट्रेलिया और अमरीका में डांस थिरेपी को डांस मूवमेंट थिरेपी (डीएमटी) के रूप में तथा ब्रिटेन में डांस मूवमेंट साइकोथिरेपी (डीएमपी) के रूप में जाना जाता है. डांस थिरेपी का कैंसर के मरीजों की सामान्य मानसिक और शारीरिक बेहतरी पर समग्र सकारात्मक प्रभाव देखा गया है. हालांकि यह याद रखा जाना चाहिए कि कैंसर का पता चलने पर ओंकोलाॅजिस्ट अगर सर्जरी, रेडिएशन या कीमोथिरेपी की सलाह देते हैं तो उस के विकल्प के तौर पर डीएमटी/डीएमपी को अपनाया नहीं जाना चाहिए. दरअसल डीएमटी/डीएमपी एक ऐसा माध्यम है जिस के जरिए मरीज अपनी मानसिक वेदना से राहत पा सकता है.

डीएमटी/डीएमपी कैसे काम करता है

यह ज्ञात हो चुका है कि डीएमटी/डीएमपी एंडोर्फिन नामक न्यूरोट्रांसमीटर के उत्पादन को बढ़ाता है जिस से शरीर में विभिन्न प्रणालियों की सक्रियता में वृद्धि होती है. कैंसर के मरीजों में होने वाले साकारात्मक भावनात्मक एवं व्यवहारात्मक सुधार का यही आधार है और इस से शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता भी बढ़ती है.

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नृत्य की भंगिमाओं एवं गतियों में क्रिएटिव डांस, इंटरैक्टिव गेम्स, रिलैक्सेशन तकनीकें, एक्सप्रेसिव गतिविधियां, इम्प्रोवाइजेशन और अभिनय प्रस्तुति शामिल है. इन शारीरिक और मानसिक गतिविधियों से चिकित्सीय या मनोचिकित्सा संबंधी प्रभाव पैदा होते हैं. इस का लाभदायक प्रभाव मन पर पड़ता है जो शरीर को शारीरिक एवं मानसिक तौर पर स्वस्थ्य रखता है तथा अलगाव और दोबारा कैंसर होने के भय को दूर करता है.

कैंसर के ज्यादातर मरीजों में सर्जरी के बाद अपने शरीर की छवि को लेकर नकारात्मक भावना होती है जिस का मरीज के ठीक होने पर नाकारात्मक प्रभाव पड़ता है. डीएमटी/डीएमपी किसी व्यक्ति के आत्मसम्मान को बढ़ा सकता है, अभिव्यक्ति में सुधार करता है और कैंसर के मरीजों को हंसा कर उन में बेहतर होने की भावना को भरता है। मानसिक तनाव को घटाता है. शारीरिक दर्द को कम करता है. मैस्टेक्टोमी सर्जरी कराने वाली महिलाओं में एक सप्ताह में दो से तीन बार डांस थिरेपी के डेढ़ घंटे के सत्र के बाद ये फायदे देखे गए.

ग्रुप डीएमटी / डीएमपी

इस के अलावा समूह में दी जाने वाली डांस थिरेपी अलगाव की भावना को दूर कर सकती है तथा आत्मविश्वास को मजबूत कर सकती है. डीएमटी/डीएमपी बातचीत के कौशल को बेहतर बनाने में मदद करता है तथा कैंसर रोगियों को स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, अन्य कैंसर रोगियों और अपने स्वयं के देखभालकर्ताओं और परिवारजनों के साथ जीवंत संबंध बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है. ये मरीज अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना तथा उन्हें अभिव्यक्त करना शुरू करते हैं. इन समूहों में एक ही तरह के कैंसर के मरीज होते हैं या अलग-अलग तरह के मरीज मिले-जुले होते हैं.

डीएमटी/डीएमपी के हीलिंग चरण

नृत्य के लय एवं हाव-भाव का शरीर एवं मन से घनिष्ठ संबंध होता है. यह सबंध विभिन्न नृत्य चरणों या गतियों का उपयोग करके स्थापित किया जाता है जिसमें मुख्य रूप से चार चरण शामिल होते हैं, जैसे कि नियोजन, परिपक्वता, जागरूकता और मूल्यांकन.

1.   नियोजन में चिकित्सक किसी खास मरीज की शारीरिक और मानसिक स्थिति को समझने का प्रयास करता है. इस में कुछ वार्मअप व्यायाम शामिल हो सकते हैं.

2.  लयबद्ध गतियों के माध्यम से शांति एवं एकाग्रता प्राप्त होने पर परिपक्वता की प्राप्ति होती है. वे तनाव तथा एंग्जाइटी को बेहतर तरीके से नियंत्रण कर पाते हैं.

3.  जागरूकता के चरण में मरीज को पर्याप्त शारीरिक एवं मानसिक ताकत प्राप्त होती है जिस से रोग का मुकाबला करने की क्षमता विकसित होती है और उसमें आशा की भावना जागृत होती है.

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4. मूल्यांकन के दौरान, रोगियों में डांस थेरेपी के स्पष्ट लाभ स्पष्ट तौर पर प्रकट होते हैं तथा एक दूसरे के बीच संपूर्ण अनुभवों को साझा करने के साथ सत्र का समापन किया जा सकता है. पूरा सत्र 9 से 10 सप्ताह से अधिक का हो सकता है.

इसी तरह जीवनशैली में थोड़ा सा बदलाव रोगियों को बेहतर जीवन स्तर की ओर ले जाता है और उन्हें कैंसर जैसी कई बीमारियों से दूर रहने में मदद करता है. सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने दैनिक आहार में फलों को शामिल करें. नियमित रूप से योग बहुत प्रभावी है. सूर्य नमस्कार अतिरिक्त कैलोरी को खपाने का एक प्रभावी उपाय है. अधिक कैलोरी के सेवन का संबंध कैंसर के विकास से है.

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