50 वर्षीय गरिमा को जब अचानक पता चला कि उसे ब्लड कैंसर है तो उसे पहले अपने उपर विश्वास नहीं हुआ कि उसे इतनी बड़ी बीमारी है, लेकिन सारे टेस्ट पॉजिटिव होने के बाद उसने इलाज कर सही होने को ठानी. इसमें उसकी हिम्मत और साहस ही सबसे बड़ी थी जिसने उसे इलाज के लिए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया, लेकिन कीमोथेरेपी ने उसके इस हौसले को इतना पस्त कर दिया  कि उसने केवल 6 महीने में दम तोड़ दिया. कीमोथेरेपी की वजह से वह धीरे-धीरे कमजोर होती गयी गयी. उसके शरीर के अंग ख़राब होते गए और वह जिंदगी की जंग नहीं जीत पायी. यहाँ ये समझना जरुरी है कि आखिर वजह क्या थी कि 20 प्रतिशत कैंसर सेल्स होने के बावजूद वह जिंदगी से हार गयी.

असल में एक ब्रिटिश शोध में ये पाया गया है कि सीरियसली कैंसर के 27 प्रतिशत मरीज़ कीमोथेरेपी से ही मर जाते है न कि कैंसर से. जबकि 600 से अधिक लोग कीमोथेरेपी के प्रयोग से 30 दिन के अंदर ही दम तोड़ देते है. इस बारें में जानकार बताते है कि सही मात्रा में सही तरीके से शरीर में किमो देने पर मरीज़ का इलाज हो सकता है. जिसके लिए प्रशिक्षित डॉक्टर का होना बहुत जरुरी है. इसके अलावा कई बार कुछ कैंसर में किमोथिरेपी देने के बाद कैंसर सेल्स अधिक उग्र हो जाते है, क्योंकि कैंसर सेल के साथ-साथ व्यक्ति की इम्यून सिस्टम किमो से ख़राब हो जाते है. ऐसे में रोगी की सरवाईवल क्षमता कम हो जाती है.

मुंबई की रिजनेरेटिव मेडिसिन रिसर्चर Stem Rx  बायोसाइंस सलूशन्स प्राइवेट लिमिटेड. के डॉ. प्रदीप महाजन, जो एन के सेल और डी सी सेल पर रिसर्च करने के अलावा रेडियो थिरेपी और इम्यूनो थिरेपी पर भी एडवांस काम रहे है, उनका कहना है कि किमो से नार्मल और कैंसर दोनों के सेल मरते है, ऐसे में नए ट्रीटमेंट जिसे इम्यूनो थिरेपी कहते है, उसमें कैंसर सेल को टारगेट कर मार सकते है. कीमोथेरेपी और रेडियो थिरेपी से बॉडी को लाभ से अधिक नुकसान होता है.

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