फाइलेरिया यानि हाथी पाँव दुनिया की दूसरे नंबर की ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति को अपंग बना देती है. दुनिया की 52 देशों में करीब 85.6 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित है. लिम्फेटिक फाइलेरिया को ही आम भाषा में फाइलेरिया कहा जाता है. इस बारें में दिल्ली की नेशनल वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम की डिप्टी डायरेक्टर डॉ. छवि पन्त जोशी कहती है कि ये बीमारी काफी गंभीर बीमारी है, जो मच्छरों के काटने से होती है. इस बीमारी को सालों से इग्नोर किया गया है. उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के इस बीमारी को फ़ैलाने वाले मच्छर क्युलेक्स प्रजाति के होते है.

90 प्रतिशत ये बीमारी क्युलेक्स मच्छर के काटने से होती है. ये मच्छर गंदे पानी का है और गंदे पानी में ही पनपता है. गंदे पानी में पनपने के बाद जब ये मच्छर किसी मनुष्य को काटता है, तो इस बीमारी के संक्रमण, जिसे पैरासाइट कहा जाता है, मनुष्य में छोड़ देता है, ऐसे ही एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य को काटने से ये रोग फैलाता जाता है. इसके अलावा इस बीमारी के कुछ कीटाणु को निमेटोड भी कहते है, ये निमेटोड धागे की तरह होते है. इसे माइक्रोफाईलेरिया कहा जाता है. मरीज के एक्युट फेज में उसके खून में ये निमेटोड आता है. संक्रमित व्यक्ति को काटने से ये निमेटोड मच्छर में आ जाता है और 10 से 15 दिनों में ये मल्टीप्लाई होने और लार्वा बनकर इंसानों को काटने से वह व्यक्ति संक्रमित हो जाता है. ये बीमारी दो तरह की होती है, लिम्फेटिक फाइलेरियासिस और हायड्रोसिल.   

प्रारंभिक लक्षण 

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