प्यार का सागर: आखिर सागर पर क्यों बरस पड़े उसके घरवाले

लेखिका : मंजरी सक्सेना 

सड़क पर गाड़ी दौड़ाते हुए बैंक्वेट हौल में जगमग शादियों के पंडाल देख और म्यूजिक की धुन से मु?ो लगा जैसे मेरे कानों में किसी ने गरम सीसा उड़ेल दिया हो. जिन आवाजों से मैं पीछा छुड़ा कर उस दिन शहर के बाहर यहां आई थी, वे यहां भी जहर घोलने चली आईर् थीं. सड़क पर कितनी ही बरातें दिखी थीं जो बैंक्वेट हौल के सामने नाचों में जुटी थीं.

न मालूम कितनी बातें मेरे दिमाग में बिजली की तरह कौंध गईं और एकाएक जैसे मैं आकाश से धरती पर आ गिरी. सोचने लगी, मैं कहां पहुंच गईर् थी उन मधुर कल्पनाओं में जो कभी साकार नहीं होंगी. लेकिन फिर सोचने लगी कि तो क्या मुझे इन्हीं कल्पनाओं के सहारे जीना पड़ेगा क्योंकि मेरी जिंदगी में जो उदासी और दर्द आ गया उस क अंत नहीं. अब क्या मेरी बरात में ऐसी धूमधाम नहीं होगी? कितनी प्लानिंग की थी अपनी शादी की मैं ने भी और मेरे मांबाप ने भी. अब मैं खुद तो दुखी हूं ही, साथ में मांबाप, भाईबहन भी चिंतित हैं.

काश, शादी से पहले मेरे पैर की हड्डी न टूटी होती तो मेरी मधुर प्लानिंग यों जल कर राख न होती.

नगाड़ों की धुन अब पास आती जा रही थी और मैं फिर सोचने लगी थी कि 10 दिन बाद मेरी बरात आएगी भी या नहीं, मेरी डोली उठेगी या नहीं और दुलहनों की तरह मैं भी कभी लाल जोड़ा पहन सकूंगी या नहीं या सबकुछ महीनों के लिए खा जाएगा.

मुझे दूसरे पहलू पर भी सोचना था. वैडिंग के लिए होटल बुक हो चुका था. लोगों ने टिकट भी खरीद लिए थे. इंतजाम तो सारे हो ही चुके हैं. हर सामान के लिए पहले से पैसा दिया जा चुका है जिस के लिए भैया को कितनी मशक्कत करनी पड़ी है और फिर सागर के बीचोंबीच हनीमून के लिए होटल के भी तो सारे इंतजाम कर लिए थे. शादीब्याह कोई गुडि़यों का खेल तो है नहीं कि उस का दिन टलता रहे. उन्होंने भी तो अब तक अपने रिश्तेदारों को आमंत्रित कर लिया था. आजकल लड़कों की शादियों पर भी सब खूब खर्च करते हैं. सागर ने बैचलर ट्रिप भी और्गेनाइज कर लिया था.

 

जिस दिन मेरी हड्डी टूटी थी, उस दिन की याद आते ही मैं कांप गई. हमेशा की तरह छत पर पढ़ रही थी. छत के शांत वातावरण में पढ़ना मु?ो बहुत अच्छा लगता था. कोई शोर, कोई चीखपुकार सुनाई नहीं देती थी. नीचे तो सड़क की आवाजें तथा फिल्मों के गाने आदि ध्यान को हटा देते थे. शहर के बीच में घर होने की वजह से मार्केट आने वाले रिश्तेदार और दोस्त घर भी चले आते, जिस से पढ़ाई में व्यवधान पड़ता था. उन के लिए चायनाश्ता तैयार करना पड़ता था या कभीकभी खाना भी बनाना पड़ता. इस से मु?ो बहुत परेशानी होती.

ऐग्जाम के दिनों में तो मम्मीपापा के रिश्तेदारों या अन्य लोगों का आना मुझे बहुत ही खराब लगता क्योंकि एक तो उन के आने से समय नष्ट होता, दूसरे वे यह पूछना कभी न भूलते कि अभी तक सरिता ने शादी का क्या इंतजाम किया है. सुन कर मेरे तनबदन में आग सुलग उठती.

इन सब झंझटों से मुक्ति पाने का मेरा एकमात्र स्थान छत थी. न मां मु?ो अपने सामने देखतीं और न कोई काम मुझसे कहतीं. जब मैं छत पर पढ़ रही होती तो काम के लिए मीता को ही पकड़ा जाता था वरना वह छोटी होने की वजह से बची रहती. शादी के लिए निश्चित तिथि के कुल 15 दिन बाद ही तो मेरी परीक्षा थी. डैस्टिनेशन मैरिज, सागर के भाई के विदेश से आने, हवाईजहाज के टिकटों के कारण तय हुआ था कि परीक्षा से पहले शादी होगी और परीक्षा के बाद हम हनीमून पर जाएंगे. शादी के बाद ठीक से पढ़ाई नहीं हो सकती थी इसलिए मैं अधिक से अधिक पढ़ाई कर लेना चाहती थी. यही सोच कर मैं छत के कोने में कुरसी कर निश्चिंतता से पढ़ रही थी कि बंदरों की कतार आती दिखी. बंदर तो हमेशा ही आते थे. उन से डर कर मैं नीचे उतर जाती थी, लेकिन उस दिन पता नहीं क्यों मैं यह सोच कर भागी कि कहीं बंदरों ने मु?ो नोच लिया और चेहरा विकृत हो गया तो क्या होगा. मैं जल्दी से नीचे भागी. फिर नीचे रखे गमले से टकरा कर एक चीख के साथ गिर पड़ी. फिर क्या हुआ, कुछ नहीं मालूम.

जब होश आया तो मां ने कहा, ‘‘यह क्या कर बैठी सरिता? अब क्या होगा?’’ मां का मतलब सम?ाते मु?ो देर नहीं लगी. पर उन से क्या कहती? क्या यह कि कहीं बंदर मेरा चेहरा न नोच लें इसीलिए मैं ने छलांग लागई थी और धोखे से गमले से टकरा कर गिर गई?

‘‘यह रोने का समय है क्या?’’ बड़े भैया चिल्लाए, ‘‘क्या पता हड्डी न टूटी हो सिर्फ मोच ही आ गई हो. चलो जल्दी अस्पताल चलो,’’ और उन्होंने मु?ो सहारा दे कर उठाया. मगर भैया की आंखों की भाषा मैं ने पढ़ ली थी. वे खुद भी तो इस बात से डरे हुए थे कि कहीं मेरे पैर की हड्डी न टूट गई हो. उन लोगों के चेहरे देख कर मैं अपना दर्द भूल सी गईर् थी. मेरा पैर सूज गया था इसलिए और मुश्किल थी.

‘अगर हड्डी टूट गई हो और ठीक से न जुड़ सकी तो? यदि कहीं हड्डी टूट कर उस में चुभ गई तो? कम से कम 3 महीने तक प्लास्टर ?ोलना पड़ेगा. हो सकता है औपरेशन करना पड़े. या रौड डले,’ यह विचार आते ही मैं कांप उठी.

‘‘बेवकूफ लड़की यह क्या कर बैठी?’’ जगदीश की आवाज मु?ो ?ाक?ोर गई. उन्होंने फिर कहा, ‘‘अब तेरी जगह क्या गीता को खड़ा करा जाएगा?’’ इस के साथ ही वे हंस पड़े, पर मेरा फक चेहरा देख कर शायद उन्हें अपनी गलती का आभास हुआ और वे गंभीर हो गए.

‘‘डाक्टर साहब, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि प्लास्टर न चढ़ाया जाए?’’ मां ने पूछा. ‘‘अभी कुछ भी कहना मुश्किल है. ऐक्सरे रिपोर्ट के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.’’ मां धीरेधीरे बड़बड़ा रही थीं.

‘‘मां, आप फिक्र क्यों करती हैं? शादी तो हो ही जाएगी. हां, सरिता को चलाने के  लिए व्हील चेयर और आंसू पोंछने के लिए किसी को साथ रखना पड़ेगा,’’ डाक्टर साहब ने शायद मु?ो हंसाना चाहा. पर मेरा मुंह शर्म तथा अपमान से लाल हो गया. का एक मीता को सामने देख कर मैं संभल गई, ‘‘क्या बात है मीतू?’’ ‘‘मैं कब से तुम्हें आवाज दे रही है. खाना तक लग गया है. सब लोग मेज पर तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं,’’ उस का स्वर ?ाल्लाया सा लगा.

मैं भारी कदमों से मीता के साथ डाइनिंगटेबल पर व्हीलचेयर में आ गई. खाने की मेज पर मां, पिताजी, भाभी, भैया सभी मेरे इंतजार में बैठे थे. मीता ने प्लेट में खाना परोस कर प्लेट मेरे सामने रखी तो मु?ो लगा मानो सभी लोग तरस खाईर् नजरों से मु?ो देख रहे हैं. अपने प्लास्टर चढ़े

पैर पर एक नजर डाल कर मैं चुपचाप खाने लगी थी. खाने के साथसाथ रुलाई भी छूट रही थी. कैसा अजीब वातावरण हो उठा था. पहले खाने की मेज पर बैठते ही पिताजी के कहकहे, भैया के चुटकुले, भाभी की चूडि़यों की खनखनाहट, मां की बनावटी ?ाल्लाहट से वातावरण खुशनुमा सा लगता था, लेकिन आज खाने से पहले हंसतेबोलने चेहरे मेज पर आते ही गुमसुम हो गए थे.

 

मैं सोच रही थी कि  घर में जो यह उदासी छा गई है, इस का कारण मैं ही तो हूं. मैं ने इसीलिए मां से कहा था कि मेरा खाना मेरे कमरे में पहुंचा दो, लेकिन वे तो रो पड़ीं. बोलीं, ‘‘तू अकेले कितना खाएगी, क्या मैं यह सम?ाती नहीं.’’ सुन कर मैं चुप हो गई. अचानक रात के 10 बजे

सागर आ गए. वे कार से आए थे. सामने देख कर मेरा खून बर्फ की तरह जम सा गया. हरकोई धड़कते दिल से अपनेअपने ढंग से अनुमान लगा रहा था. पिताजी ने सागर से कहा, ‘‘आप से

अनुरोध है कि शादी की तारीख कृपया न बदलें क्योंकि फिर बुकिंग न मिलने के कारण शादी अगले साल तक के लिए टल जाएगी. वैसे आप की जो इच्छा. आप की तसल्ली और विश्वास के लिए मैं सरिता का ऐक्सरे दे रहा हूं. कृपया बताएं क्या करें?’’ सागर ने आते ही मु?ो सब के सामने जोर से हग कर के सब को चौंका दिया. उस ने कहा, ‘‘सबकुछ वैसा ही होगा जैसा प्लान है, बस हनीमून कैंसिल. जब सरितता पूरी तरह ठीक होगी, तब देखेंगे,’’ सागर पूरी योजना सब को बता दी. उस ने साफ कह दिया कि शादी से पहले सरिता उस के मातापिता से नहीं मिलेगी क्योंकि न जाने वे क्या फैसले लें. शायद वे नहीं चाहेंगे कि उन की होने वाली बहू व्हीलचेयर पर शादी के मंडप में आए.

 

सागर ने हमारे 6 टिकट पहले करा दिए ताकि हम डैस्टिनेशन पर पहले पहुंच जाएं. मु?ो सोफे पर बैठा कर खूब तसवीरें ली गईं जिन में मेरे पैर छिपे हुए थे.

सब अपनेअपने कार्यक्रम के अनुसार डैस्टिनेशन होटल पहुंचे. सागर ने बहाना बना दिया कि प्री वैडिंग कार्यक्रमों में किसी कारण से मैं भाग नहीं ले पाऊंगी. सब मु?ा से कमरे में मिलने आते. मैं पलंग पर लेटेलेटे सब से मिलती. हम 6 यात्रियों में मम्मीपापा, मीता और भैया और भाभी के अलावा किसी को नहीं मालूम न था कि मेरे पैर की हड्डी टूटी है.

सागर के मातापिता भी आए. मु?ा से मिल कर गए. मैं डरी रही. सागर ने बड़ी बखूबी से मु?ो बैड पर लिटाए रखने के एक के बाद एक नए बहाने गढ़े. मेरे बिना कई रस्में हुईं और कईयों में मैं सब से पहले पहुंच कर बैठ जाती, बड़े से लंहगे में पैर छिपा कर और तभी उठती जब सब को सागर या मम्मीपापा किसी न किसी बहाने कहीं और ले जाते.

यह डैस्टिनेशन वैडिंग एक  बड़े होटल में हो रही थी जिस में सर्विस लिफ्ट से व्हीलचेयर पर चुपचाप इधर से उधर जाना संभव था. मेरा कमरा एकदम सर्विस लिफ्ट के बराबर या इसलिए कम को ही शक हुआ.

बरात निश्चित समय मैरिज होटल के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंची. बरात में जो लड़कियां आई थीं, उन में मु?ो न देख कर खुसुरफुसुर हो रही थी. भाभी मेरे हाथों में मेहंदी लगा रही थीं. तभी 7-8 लड़कियां मु?ा से मिलने चली आईं. लेकिन मैं तो बैट पर लेटी थी और नकली छींके मार रही थी इसलिए देखते ही वे उलटे पैरों लौट गईं. जब पहली जयमाला वाली रस्म होनी थी तो मैं शान से व्हीलचेयर पर आई. सारे घर में सन्नाटा सा छा गया कि अब मुसीबत बेधड़क आ गई. असली ड्रामा तब शुरू हुआ जब विवाह मंडप में आयोजन के लिए बुलाया गया. मेरी और सागर की जिद के कारण मीता ही मु?ो लाल लहंगे में ले कर विवाह मंच पर पहुंची. सब के मुंह खुले रह गए. हमारी ओर के बरातियों के भी और सागर के संबंधियों को भी. सागर के पिता बरसने लगे, ‘‘यह क्या तमाशा है. क्या हम अपाहिज लड़की से शादी करने वाले हैं?’’

मैं अपमान से तिलमिला उठी. पापा ने सारी बात सागर के पापा को बताई तो भी वे शांत नहीं हुए. सागर इस दौरान चुप खड़ा रहा. तभी मैं बोल पड़ी, ‘‘नहीं करनी है मु?ो शादी, मेरा पैर कोई कट नहीं गया है. क्या जरूरत है पापा को गिड़गिड़ाने की? क्यों पापा दया की भीख मांग रहे हैं किसी के आगे?’’ बोलतेबोलते मेरा सारा शरीर कांपने लगा. तभी किसी रिश्तेदार ने कहा कि सागर की शादी मीता से कर दो, काम हो जाएगा. सागर यह सुन कर भी चुप था. पिताजी ने तो हां भी कह दी. लेकिन तभी सागर का असली रूप सामने आया. बोला, ‘‘पापा मेरा विवाह सरिता से ही होगा और शादी का जो समय तय है उसी में सबकुछ होगा. मु?ोे हड्डी टूटने की बात पहले दिन से पता है. यह सब मेरी इच्छा और हमारे भविष्य के सुख के लिए है.’’

सागर के प्रति मेरी सहानुभूति उमड़ आई. सोचने लगी कि मेरे लिए वह कितनी मुसीबत ?ोल रहा है. कुछ का उत्साह निचुड़ गया था. वातावरण में एक अजीब सा सूनापन भर उठा. पर फिर पूरे जोशखरोश से शादी का हर काम पूरा हुआ. मैं व्हीलचेयर पर और सागर मेरे

साथ खड़ा सैकड़ों फोटो में हमारा प्यार जाहिर हो रहा था.

उधर कुआ इधर खाई : मां की मौत के बाद नीमा के साथ क्या हुआ

उधर कुआ इधर खाई : मां की मौत के बाद नीमा के साथ क्या हुआ

मां की मौत के बाद नीमा अकसर गुमसुम रहने लगी थी. उस की सौतेले पिता से कभी बनी नहीं. एक दिन एक अजीब घटना घट गई…

कुछ  दिनों से नीमा कालेज जाते समय अपनेआप को असहज महसूस कर रही थी क्योंकि

वह जब कौलेज जाती तो चौराहे पर खड़ा एक लड़का उसे गंदी नजरों से रोज घूरता रहता. यह रोज रोज की बात हो गई थी. नीमा परेशान रहने लगी. उस ने सौतेले पिता से इस बारे में कोई बात नहीं की.

नीमा की मां का कैंसर के कारण कुछ  समय पहले देहांत हो गया था. जीते जी नीमा

की मां ने अपनी बेटी को समाज में हो रहे अत्याचारों से लड़ने की और अपने को कैसे सुरक्षित रखें अच्छी तरह बता दिया था. वह घर की अकेली बेटी थी.  मां की मृत्यु के बाद नीमा चुपचुप रहने लगी. उस की सौतेले पिता से कभी बौंडिंग बनी ही नहीं. वह सब बातें अपने मन में ही रखती. एक दिन तो हद हो गई. कालेज जाते समय उस लड़के ने नीमा का दुपट्टा खींच कर उस का नाम जानने की कोशिश की.

नीमा उस लड़के के दुपट्टा खींचने से भड़क गई. आव देखा ना ताव और उसे एक थप्पड़ जड़ दिया. उस लड़के को नीमा से ऐसी उम्मीद नहीं थी. भीड़ इकट्ठी होने के डर से यह कह तुझे तो मैं देख लूंगा, वह लड़का वहां से नौ दो ग्यारहा हो गया.

नीमा ने मजबूरीवश इन सब बातों से

बचने के लिए अपना रास्ता बदल लिया. वह रास्ता भी उस के लिए ठीक नहीं था. वहां छोटे तबके के लोग रहते थे और उस रास्ते का डिस्टैंस भी ज्यादा था लेकिन फिर भी मरती क्या न करती. संध्या का समय था. नीमा के सौतेले पिता ने नीमा को पुकारा. नीमा के आने पर  उस से पूछा, ‘‘कालेज जाते समय आज तुम ने अपना रास्ता क्यों बदला?’’  नीमा ने आश्चर्य से कहा, ‘‘आप ने कैसे जाना?’’  ‘‘मैंने बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं. मैं बाज की नजर रखता हूं.’’

नीमा ने कहा, ‘‘वह क्या है एक लड़का

रोज रास्ते में मु?ो छेड़ कर परेशान करता था, इसलिए.’’

‘‘तो तुम ने यह कैसे सोच लिया कि रास्ता बदल लेने से प्रौब्लम दूर हो जाएगी? ऐसा नहीं है. जिधर से तुम गुजरोगी वह लड़का वहां भी तुम्हें छेड़ने से बाज नहीं आएगा. मु?ो बताना तो चाहिए था.’’

‘‘हां, आप की बात ठीक है पर मैं ने

अपने मन में विचार किया है कि कालेज के फाइनल ऐग्जाम खत्म होने जा रहे हैं. फिर

‘मैं किसी अच्छी कंपनी में जौब के लिए

आवेदन करती हूं, कुछ समय मैं घर में ही

रहूंगी. फिर न बजेगा बांस, न बजेगी बांसुरी,’’ नीमा ने कहा.

‘‘मैं तुम्हारे इस फैसले से सहमत हूं,’’ सौतेले बाप ने कहा,’’ घर की चीज घर में ही

रहे वही अच्छा है,’’ इतना कह उस के पिता ने नीमा को अपनी ओर खींचा और प्यार से गालों पर हाथ फेरा.

इस छुअन से नीमा को असहजता सी महसूस हुई. वह ठीक से सम?ा भी नहीं पाई थी कि नीमा के पिता ने इधरउधर हाथ लगाते हुए कहा, ‘‘जरा बताना, उस लड़के ने यहांवहां, कहांकहां छुआ?’’

नीमा को बहुत गुस्सा आया. वह सोच  भी नहीं सकती थी कि यह सौतेला पिता उसे  इस नजर से देखता है. नीमा ने आड़े हाथों लिया. और कहा, ‘‘आप एक पिता हैं, आप को ऐसा करते शर्म नहीं आती? क्यों अपना अंत बिगाड़ रहे हैं? आप तो आस्तीन के सांप निकले.’’ ‘‘पिता होना और पिता कहलाने में बहुत फर्क है समझा’’ नीमा को पिता में अचानक आया यह बदलाव अच्छा नहीं लगा. उस ने देखा उन की आंखों में वासना साफ झलक रही थी. नीमा की आंखों में कितने चित्र बनते बिगड़ते रहे. वह मन में सोचने

लगी कि उधर कुआं तो इधर खाई. इस समय नीमा को बाप कहलाने वाला यह व्यक्ति उस लड़के से ज्यादा खतरनाक लग रहा था. पिता कहलाने वाला यह बाप हैवानियत पर न उतर आए, नीमा उनका हाथ ?ाटक दूर हट कर खड़ी हो गई.

नीमा के मन में आया कि इस बाप कहलाने वाले व्यक्ति के मुंह पर थूके, लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया, ‘‘अगर इस जगह आप की अपनी बेटी होती तब? क्यों अपनी इज्जत मिट्टी में मिला रहे हैं. मेरी मां बीमार थीं मां को बेटी के भविष्य की चिंता थी.

‘‘उन्होंने संरक्षण के लिए आप से शादी की थी, जबकि आप उम्र में उन से काफी बड़े थे. देखा जाए तो मेरे नाना की उम्र के हैं आप. आप को यह सब करते लज्जा नहीं आई? अब मैं यहां रुकूंगी नहीं.’’ ‘‘भाग कर जाओगी कहां? तुम्हें लगता है कि तुम यहां से भाग जाओगी. उस  लड़के के पास,’’ सौतेले पिता ने कहा. ‘‘नहीं. यह आप की गलतफहमी है भागूंगी नहीं. मैं और यह मत सोचिए कि मैं डर गई. आप ने मु?ा पर गलत नजर डाली है.  आवाज उठाना मुझे आता है. बस मेरे एक फोन करने की देर है. फिर जेल की हवा खाते देर नहीं लगेगी सम?ो.’’

‘‘अरे बेटी… अरे बेटी…’’

‘‘बेटी मत कहो मुझे. आप की जबान

से बेटी शब्द सुनना अच्छा नहीं लग रहा.

आप की नजरों में रिश्तों की अहमियत ही

नहीं रही.’’

‘‘बेटी, तुम ने तो मेरी आंखें खोल दीं. मैं

तो बस यही देख रहा था कि तुम इस परिस्थिति

से कैसे मुकाबला करोगी. तुम अपनेआप में कितनी स्ट्रौंग हो.’’

‘‘अगरमगर मत करिए. आग बिना

धुआं नहीं उठता. मैं अभी पुलिस को फोन

करती हूं.’’

‘‘क्यों मेरी इज्जत मिट्टी में मिलाने

लगी हुई हो,’’ कह पिता ने नीमा के पैर पकड़

कर गिड़गिड़ाते हुए आगे कहा, ‘‘बेटी मु?ो

माफ कर दे, मेरे बुढ़ापे की लाठी तो तू ही है.

मैं स्वयं की बुराई को दूर कर अच्छाई को आत्मसात करूंगा… मैं न जाने क्यों इतना

विकृत हो गया जो तेरे पर गलत नजर डाली,’’ इतना कह पिता नीमा के पैरों पर सिर रख कर बिलख पड़ा.

कम जगह में कैसे बढ़ाएं प्यार

परिवार एक एकल इकाई है, जहां पेरैंट्स और बच्चे एकसाथ रहते हैं. इन्हें प्रेम, करुणा, आनंद और शांति का भाव एकसूत्र में बांधता है. यही उन्हें जुड़ाव का एहसास प्रदान करता है. उन्हें मूल्यों की जानकारी बचपन से ही दी जाती है, जिस का पालन उन्हें ताउम्र करना पड़ता है. जो बच्चे संयुक्त परिवार के स्वस्थ और समरसतापूर्ण रिश्ते की अहमियत समझते हैं, वे काफी हद तक एकसाथ रहने में कामयाब हो जाते हैं.

साथ रहने के फायदे

बच्चों के साथ जुड़ाव और बेहतरीन समय बिताने से हंसीठिठोली, लाड़प्यार और मनोरंजक गतिविधियों की संभावना काफी बढ़ जाती है. इस से न सिर्फ सुहानी यादें जन्म लेती हैं बल्कि एक स्वस्थ पारिवारिक विरासत का निर्माण भी होता है.

इस का मतलब यह नहीं है कि हमेशा ही सबकुछ ठीक रहता है. एक से अधिक बच्चों वाले घर में भाईबहनों का प्यार और उन की प्रतिद्वंद्विता स्वाभाविक है. कई बार स्थितियां मातापिता को उलझन में डाल देती हैं और वे अपने स्तर पर स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं तथा घर में शांतिपूर्ण स्थिति का माहौल बनाते हैं.  कम जगह में आपसी प्यार बढ़ाने के खास टिप्स बता रही हैं शैमफोर्ड फ्यूचरिस्टिक स्कूल की फाउंडर डायरैक्टर मीनल अरोड़ा :

व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्यवस्था : प्रत्येक बच्चे के लिए एक कमरे में व्यक्तिगत आजादी का प्रबंध करने से उन में व्यक्तिगत जुड़ाव की भावना का संचार होता है. प्रत्येक बच्चे के सामान यानी खिलौनों को उस के नाम से अलग रखें और उस की अनुमति के बिना कोई छू न सके. बच्चों में स्वामित्व की भावना परिवार से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है जिस से अनेक सकारात्मक परिवर्तन होते हैं. कमरे को शेयर करने के विचार को दोनों के बीच आकर्षक बनाएं.

नकारात्मक स्थितियों से बचाएं बच्चों को : भाईबहनों में दृष्टिकोण के अंतर के कारण आपस में झगड़े होते हैं. इस के कारण वे कुंठा को टालने में कठिनाई महसूस करते हैं और किसी भी स्थिति में नियंत्रण स्थापित करने के लिए झगड़ते रहते हैं, आप अपने बच्चों को ऐसे समय इस स्थिति से दूर रहने के लिए गाइड करें.

हमें अपने बच्चों को झगड़े की स्थिति को पहचानने में सहायता करनी चाहिए और इसे शुरू होने के पहले ही समाप्त करने के तरीके बताने चाहिए.  व्यक्तिगत सम्मान की शिक्षा दें : प्रत्येक व्यक्ति का अपना खुद का शारीरिक और भावनात्मक स्थान होता है, जिस की एक सीमा होती है, उस का सभी द्वारा सम्मान किया जाना चाहिए. बच्चों को समर्थन दे कर उन की सीमाओं को मजबूत करें.

उन्हें दूसरे बच्चों की दिनचर्या और जीवनशैली का सम्मान करने की शिक्षा भी दें. यदि दोनों भाईबहन पहले से निर्धारित सीमाओं से संतुष्ट हैं तो उन के बीच पारस्परिक सौहार्द बना  रहता है.

क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करें : कभी ऐसा भी समय आता है, जब एक बच्चा दूसरे बच्चे की किसी चीज को नुकसान पहुंचा देता है या उस से जबरन ले लेता है. ऐसे में पेरैंट्स को चाहिए कि जिस बच्चे की चीज ली गई है उस बच्चे की भावनाओं का खयाल कर उस के लिए नई वस्तु का प्रबंध करें और गलत काम करने वाले बच्चे को उस की गलती का एहसास करवाएं.

इस से परिवार में अनुशासन और ईमानदारी सुनिश्चित होगी. इस से भाईबहनों को भी यह एहसास होता है कि  पेरैंट्स उन का खयाल रखते हैं और घर में न्याय की महत्ता बरकरार है.  चरित्र निर्माण में सहयोग : एकदूसरे के नजदीक रहने से दूसरे के आचारव्यवहार पर निगरानी बनी रहती है. किसी की अवांछनीय गतिविधि पर अंकुश लगा रहता है. यानी कि बच्चा चरित्रवान बना रहता है. किसी समस्या के समय दूसरे उस का साथ देते हैं. दूसरी और, सामूहिक दबाव भी पड़ता है और बच्चा गलत कार्य नहीं कर पाता. अत: मौरल विकास अच्छा होता है.

बच्चे की जागरूकता की प्रशंसा करें : यदि कोई बच्चा समस्या के समाधान की पहल करता है और नकारात्मक स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश करता है तो उस की प्रशंसा करें.

समस्या के समाधान के सकारात्मक नजरिए को सम्मान प्रदान करें, क्योंकि इस से उस का बेहतर विकास होगा और वह परिपक्वता की दिशा में आगे बढ़ेगा. प्रोत्साहन मिलने  से हम अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं.  इस से बच्चों को अपनी उपलब्धियों पर गर्व का एहसास होगा और वे इस स्वभाव को दीर्घकालिक रूप से आगे बढ़ाएंगे. हमेशा बच्चे द्वारा नकारात्मक स्थिति में सकारात्मक समाधान तलाशने के प्रयास की प्रशंसा करें.  याद रखें इन नुस्खों को अपना कर आप अपने बच्चों को संभालने में आसानी महसूस करेंगे. भाईबहन एकदूसरे के पहले मित्र और साझीदार होते हैं, जो एक सुंदर व स्वस्थ समरसता को साझा करते हैं, इस से कम जगह में भी पूरा परिवार खुशीखुशी जीवन व्यतीत कर सकता है.

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