फिल्मों की शूटिंग शुरू करने की इजाजत के लिए FWICE ने महाराष्ट्र CM से लगाई गुहार, पढ़ें खबर

कोरोना की दूसरी लहर के चलते महाराष्ट्र में पिछले दो माह से फिल्म,टीवी सीरियल,लघु फिल्मों व वेब सीरीज की शूटिंग सहित सारे काम काज बंद हैं. इससे फिल्म इंडस्ट्री को कई हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है. डेली वेजेस वर्करों की आर्थिक हालात जरुरत से ज्यादा खराब है. पिछले माह ‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज’और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई संगठनो ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मंुबई व उसके आसपास,जहां पर कोरोना के मामले कम आ रहे हैं,वहां पर शूटिंग शुरू करने की इजाजत देने की मांग की थी. लेकिन महाराष्ट् के मुख्यमंत्री के आश्वासन के बावजूद एक जून से छूट नही मिली,बल्कि प्रतिबंध ही लगे हुए हैं.

परणिामतः फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज (एफडब्लूआइसीई)  और कोआर्डिनेशन कमेटी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक बार फिर पत्र लिखकर मांग की है कि  इंटरटेनमेंट इंडस्ट्रीज का काम फिर से शुरू करने की वह अनुमति दें.   इस पत्र  में एफडब्लूआइसीई ने और कोआर्डिनेशन कमेटी  लिखा है कि कोरोना की दूसरी लहर ने इस साल भी फिल्म इंडस्ट्री को काफी नुकसान पहुंचाया है. महाराष्ट्र में कोरोना के बढ़ते केसेज के मद्देनजर अप्रैल 2021 के बाद से टीवी सीरियलों,फिल्म, वेब सीरीज की शूटिंग पर पाबंदी लगा दी गई थी. शूटिंग बंद होने के कारण एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से जुड़े कई कलाकार के हाथ से उनका काम निकल गया,जबकि कई लोग हैदराबाद, गुजरात, राजस्थान जैसे दूसरे शहर चले गए. फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉइज (एफडब्लूआइसीई) ने सोमवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को खत लिखकर मीडिया एंड एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को काम वापस शुरू करने,फिल्मों आदि की शूटिंग व अन्य पोस्ट प्रोडक्शन वर्क करने  की इजाजत देने का अनुरोध किया है.  इस पत्र में एफडब्लूआइसीई  के अध्यक्ष बीएन तिवारी,महासचिव अशोक दुबे, कोषाध्यक्ष गंगेश्वर लाल श्रीवास्तव, चीफ एडवाइजर अशोक पंडित और चीफ एडवाइजर शरद शेलार के हस्ताक्षर हैं.

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पत्र में एफडब्लूआइसीई ने लिखा कि उनकी तरफ से कई बार मुख्यमंत्री को इस विषय पर लिखा गया,पर मुख्यमंत्री ऑफिस ने इसका कोई जवाब नहीं दिया ना ही इसपर कोई फैसला लिया गया.  फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉयज (एफडब्लूआइसीई) ने कहा है कि लाखों कलाकार, वर्कर और टेक्नीशीयन पिछले डेढ़ साल से बेरोजगार हैं और फिल्म इंडस्ट्री ही उनका एकमात्र कमाई का जरिया है. लॉकडाउन की वजह से कई मजदूरों की जिंदगियां प्रभावघ्ति हुई है.

एफडब्लूआइसीई  ने आगे लिखा कि महाराष्ट्र में लॉकडाउन को अगले 15 दिन के लिए बढ़ाने से कलाकारों, वर्कर्स और टेक्नशीयंस को झटका लगा है और इंडस्ट्री की इकोनॉमी पर भी असर होगा. इसकी वजह से निर्माता भी प्रभावित हुए हैं जिन्होंने अपनी निर्माणाधीन फिल्मो में पैसे लगाए और लॉकडाउन के कारण वह फिल्में रुक गयी. पत्र में  एफडब्लूआइसीई के पदाधिकारियों ने समस्या बताते हुए लिखा कि उन्हें रोज कई फोन आते हैं और सभी काम दोबारा शुरू किए जाने का अनुरोध करते हैं.

एफडब्लूआइसीई की तरफ से मुख्यमंत्री  उद्धव ठाकरे से शूटिंग का काम दोबारा शुरू किए जाने की स्पेशल इजाजत मांगी गई है. इसके साथ ही एफडब्लूआइसीई ने यह आश्वासन दिया है कि वह काम के समय कोरोना से बचाव के लिए सरकार द्वारा जारी सभी नियमों का पालन करेंगे.

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बौलीवुड में बढ़ते कोरोना के बीच ‘FWICE’ उठाएगा बड़ा कदम, पढ़ें खबर

इस वक्त पूरा बौलीवुड ‘कोविड 19’ के शिकंजे में हैं. ‘कोविड-19’संक्रमण के चलते अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म‘राम सेतु’, धर्मा प्रोडक्शंस की ‘मिस्टर लेले’ से लेकर संजय लीला भंसाली की  फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ सहित कई फिल्मों तथा टीवी सीरियलों की शूटिंग रूक गयी हैं.

जबकि महाराष्ट् में सिनेमाघर बंद किए जाने के बाद ‘‘सूर्यवंशी’’ जैसी फिल्मों का प्रदर्शन अनिश्चित काल के लिए स्थगित किया जा चुका है.  कैटरीना कैफ ,अक्षय कुमार, विक्की कौशल,भूमि पेडनेकर,सीमा पहवा, गोविंदा, ऋत्विक भौमिक, रूपाली गांगुली, आदित्य नारायण और अभिजीत सावंत सहित करीबन 50 फिल्मी व टीवी सितारें और करीबन 60 वर्कर ‘कोविड-19’से से संक्रमित होने के चलते कई फिल्मों व सीरियलों की शूटिंग भी बंद होने की स्थिति आ गयी है. इतना ही नही 30 मार्च को रियालिटी टीवी सीरियल ‘‘डांस दीवाने’’ के युनिट के 18 सदस्य कोरोना से संक्रमित पाये गए थे,जिसके बाद निर्माताओं को एक हफ्ते के लिए इसकी शूटिंग रोकनी पड़ी.

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परिणामतः फिल्मों व टीवी सीरियलों शो से जुड़े तकनीशियनों की ३२ यूनियनों की मदर बॉडी फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलॉयज (एफडब्लूआईसीई)  इस बात पर विचार कर रही है कि क्यों ना फिल्मों और टीवी सीरियल से जुड़े वर्करों को दो दिन अवकाश दिया जाए. इसके लिए सभी प्रकार की शुटिंग शनिवार और रविवार को बंद  रखा जाए तथा बाकी दिन सात बजे शाम से पहले शुटिग समाप्त कर दिया जाए,ताकि सभी वर्कर और तकनीशियन समय पर अपने घर पहुंच जाएं. एफडब्लूआईसीई के अध्यक्ष बीएन तिवारी, जनरल सेक्रेटरी – अशोक दूबे, चीफ एडवाईजर- शरद शेलार, अशोक पंडित तथा ट्रेजरार गंगेश्वरलाल श्रीवास्तव (संजू भाई) के मुताबिक एसोसिएशन इस बाबत निर्माताओं और चैनल से बात कर रही हैं. बी एन तिवारी कहते हैं-‘‘हमारी प्रार्थमिकता है कि हमारे तकनीशियनों और मजदूरों को सुरक्षा मिले और उन्हे आर्थिक नुकसान भी ना हो. हम चाहते हैं कि निर्माता कोविड -१९ के लिए बनी सरकारी गाईड लाईन का पालन करें और हर सेट पर शुटिंग के लिए मौजूद तकनीशयनों और मजदूरों तथा सभी कलाकारों का कोविड टेस्ट कराया जाए तथा उनकी रिपोर्ट आने के बाद ही सेट पर जाने की अनुमति दी जाए. इतना ही नहीं कोरोना से बचाव के लिए टीकाकरण भी निर्माता द्वारा तकनीशियनों और मजदूरों का कराया जाए.  साथ ही बड़े स्टार शूटिंग के दौरान लाने वाले अपने स्टाफ में कटौती करें. ’’

फेडरेशन के जनरल सेक्रेटरी अशोक दुबे ने कहा-‘‘हम तो शुरू से मांग कर रहे हैं कि निर्माता तकनीशियनों को कोरोना से सुरक्षा दें,लेकिन कई निर्माता अब भी लापरवाही कर रहे हैं.  आज  वर्ष 2021 में वर्ष 2020 की पुनरावृत्ति प्रतीत हो रही है. ’’

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जबकि एफडब्लूआईसीई के कोषाध्यक्ष गंगेश्वरलाल श्रीवास्तव ने कहते हैं-‘‘एफडब्लूआईसीई फिल्मांकन गतिविधियों को निलंबित करने का जोखिम नहीं उठा सकता.  मगर यह भी सही है कि सेट पर कोरोना संक्रमण फैलने से रोकने के लिए सुरक्षा उपायों को बढ़ाने की जरूरत है. इसमें नियमित रूप से आरटीपीसीआर जांच करना शामिल हैं. फिल्म ‘‘राम सेतु’’ की शूटिंग कर सिर्फ अक्षय कुमार ही नहीं बल्कि फिल्म निर्माण दल के 45 सदस्य भी कोरोना से संक्रमित पाए गए हैं.  एहतियात के तौर पर अक्षय कुमार  को सोमवार को शहर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया. दूसरी ओर विक्की कौशल और भूमि पेडनेकर, फिल्म निर्माता शशांक खैतान की धर्मा प्रोडक्शंस की फिल्म ‘‘मिस्टर लेले’’ की कथित तौर पर शूटिंग कर रहे थे. ’’

Suicide के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए CINTAA ने उठाया ये कदम, पढ़ें खबर

बॉलीवुड के कलाकारों के चेहरे पर लगे मेक-अप के पीछे छिपा असली चेहरा तब सामने आता है, जब किसी के खुदकुशी करने जैसी भयावह खबर और उनके स्वास्थ्य की असलियत सबके सामने आ जाती है. उल्लेखनीय है कि बॉलीवुड के ऐसे चेहरों को समाज के लिए आदर्श माना जाता है.

CINTAA के ज्वाइंट अमित बहल कहते हैं, “एक एक्टर के मेक-अप की परतों के मुक़ाबले दबाव की परतें अधिक होती है.” वे कहते हैं, “सोशल मीडिया अक्सर कलाकारों के मन में सबकी नज़रों में बने रहने से संबंधित तनाव पैदा करता है. इंडस्ट्री महज़  सतत शोहरत और सतत आय का ज़रिया नहीं है. लॉकडाउन ने यकीनन लोगों की ज़िंदगी में काफ़ी तनाव पैदा कर दिया था, जिसने लोगों में अनिश्चित भविष्य के मद्देनजर डिप्रेशन में जाने पर मजबूर कर दिया. मगर सिने और टीवी आर्टिस्ट्स एसोसिशन (CINTAA) एक अमीर संस्था नहीं है.” वे कहते हैं, “हम अपने सदस्यों तक पहुंचने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं और सिर्फ़ महामारी के दौरान ही नहीं, बल्कि हमेशा एक-दूसरे के काम आते हैं. CINTAA ने अब ज़िंदगी हेल्पलाईन के साथ साझेदारी की है जो ऐसे जानकारों व हमदर्दों के केयर ग्रुप से बना है जो काउंसिंग कर लोगों की मदद करता है. CINTAA की कमिटी में साइकियाट्रिस्ट, साइकोथेरेपिस्ट, साइकोएनालिस्ट और साइकोलॉजिस्ट का शुमार है. हम इस मुद्दे को लेकर काफ़ी गंभीर हैं और इसे लेकर लोगों की सहायता करना चाहते हैं.”

CINTAA ने खुदकुशी जैसे मुद्दे को उस वक्त गंभीरता से लिया जब संस्था की सदस्य प्रत्युशा बैनर्जी ने 2015 को आत्महत्या कर ली थी. तब से लेकर अब तक संस्था की केयर कमिटी और आउटरीच कमिटी ने कई सेमिनारों और काउंसिंग सत्रों का आयोजन किया है, जिसके तहत मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य व योग के सत्रों व साथ ही तनाव, डिप्रेशन, आत्महत्या से बचाव जैसे उपायों पर अमल किया जाता रहा है.”

वे कहते हैं, “हमने यौन उत्पीड़न और #MeToo मूवमेंट में भी अग्रणी भूमिका निभाई थी. हमने इसपर एक वेबिनार भी किया था. ऐसे ही एक वेबिनारों का आयोजन हमने अंतर्राष्ट्रीय स्तर की मनोचिकित्सक अंजलि छाबड़िया के साथ भी किया है. हमने सोशल मीडिया पर कई सुइसाइड हेल्पलाइन और नंबर भी साझा किये हैं.” अमित कहते हैं कि CINTAA ऐसे बड़े फ़िल्म स्टूडियोज़, हितधारकों, ब्रॉडकास्टरों और कॉर्पोरेट कंपनियों को भी संपर्क करने की कोशिश कर रही है जो अपने CSR के तहत पैसों का योगदान दे सकते ताक़ि कलाकारों और तकनीशियनों के लिए एक 24/7  हेल्पलाइन स्थापित की जा सके.”

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ज़िंदगी हेल्पलाइन की संस्थापक अनुषा श्रीनिवासन कहती हैं, “अपने देश मानसिक बीमारी को कलंक समझा जाता है. कलाकारों को अमर शख़्सियतों के तौर पर देखा जाता है और डिप्रेशन और उत्कंठा को कुछ यूं समझा जाता है जैसे ये शब्द शब्दकोश में हैं कि नहीं. लेकिन उनकी ज़िंदगी व शोहरत संक्षिप्त होती है. वो दूसरों से मदद मांगने में भी असमर्थ होते हैं. गौरतलब है कि हाल के दिनों में दीपिका पा्दुकोण मानसिक बीमारी को लेकर काफ़ी सक्रिय रही हैं और लोगों के सामने वो एक मिसाल के तौर पर उभरी हैं और उन्होंने दूसरों की राह को और आसान बना दिया है. ऐसे में ज़िंदगी हेल्पलाइन एक अहम बदलाव लाने में कारगर साबित होगा.”

वे कहती हैं, “इस ग्रुप में जानकार और हमदर्द होंगे और मानसिक परेशानी से जूझ रहे लोगों की अच्छी देखभाल की जाएगी और उन्हें समय पर सहूलियतें मुहैया कराई जाएंगी. एक-दूसरे की मदद करना ही हमारा उद्देश्य है.

मनोचिकित्सक व साइकोथेरेपिस्ट, अमेरिका में REBT की एसोसिएट फेलो व सुपरवाइजर और ज़िंदगी हेल्पलाइन की मुख्य संस्थापक सदस्यों में से एक डॉ. श्रद्धा सिधवानी कहती हैं, “टेलीविज़न और फिल्म इंडस्ट्री में काफ़ी उतार-चढ़ाव आते हैं. कोरोना महामारी के पहले भी यही स्थिति थी. अब मनोचिकित्सकों का दखल देना ज़रूरी हो गया है. एक बार जब आपकी फिल्म रिलीज हो जाती है, तो आप नाम, शोहरत, पैसा बटोरने में व्यस्त हो जाते हो, लोगों से घिरे रहते हो और प्रमोशन के लिए लगातार यात्राएं करनी पड़ती हैं. फ़िल्म की रिलीज़ से पहले औए बाद में भी एक ख़ास किस्म की चिंता सताती रहती है. लोगों के आलोचनात्मक रवैये से जूझना भी एक अहम काम होता है. कोई भी शख्स ऐसी टिप्पणियों को निजी तौर पर ले सकता है. ऐसे में उसमें नकार दिये जाने की भावना घर कर जाती है और अगर प्रोजेक्ट सफ़ल साबित न हो, तो उन्हें ख़ुद की क़ाबिलियत पर भी शक होने लगाता है.”

सिधवानी का कहना है कि हम में से  अधिकांश लोग अपने काम के आधार पर ख़ुद को परिभाषित करते हैं, लेकि‍न कलाकारों को दर्शकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कलाकार ख़ुद  भी असहाय और बेकार मानने लगते हैं.”

वो कहती हैं, “एक्टिंग की दुनिया सामाजिक स्वीकृति और प्रतिद्वंद्वीता के इर्द-गिर्द घूमती है. कामयाब बनने की दौड़ में अथवा एक किरदार निभाने के लिए एक कलाकार अक्सर ख़ुद को भुला बैठते हैं. आप क्या हो और पर्दे पर आप कौन सा रोल निभाते हो, उसके बीच एक संकरी सी रेखा होती है.

चूंकि इस इंडस्ट्री में काम‌ मिलने में एक प्रकार की अनिश्चितता है, ऐसे में लोग इसी अनिश्चितता और अपनी ज़िंदगी को असुरक्षित ढंग से जीने पर मजबूर हो जाते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि कलाकारों को अपनी लाइफ़स्टाइल मेनटेन करने में काफी खर्च करना पड़ता है. ऐसे में उन्हें पीआर के द्वारा अपनी सामाजिक मौजूदगी दर्ज कराने के लिए भी काफी खर्च करना पड़ता है. अक्सर इस सबका दबाव कलाकारों की बेचैनी का सबब सा बन जाता है.”

डिप्रेशन से जूझ रहे छात्र और लेखक वेदांत गिल कहते हैं कि खुदकुशी और मानसिक बीमारी को लेकर लोगों की सोच अक्सर बहुत अटपटी सी होती है. वो कहते हैं, “लोगों को लगता है कि हम अपने काम से पलड़ा झाड़ रहे हैं और हमारा बर्ताव सही नहीं है. कई बार तो वो धर्म और भगवान को भी बीच में ले आते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कतई नहीं है कि डिप्रेशन का शिकार हर व्यक्ति खुदकुशी करना चाहता है और अगर कोई ऐसा करता भी है तो अपने दर्द के खात्मे के लिए करता है, न कि मौत को गले लगाने के लिए. ऐसे में सही समय पर कोई सहारा देनावाला, काउंसिलिंग करनेवाला और नियमित तौर पर ज़रूरी दवाइयां देनेवाला मिल जाये, तो यकीनन उसे इससे काफ़ी मदद मिलेगी. किसी व्यक्ति के लिए कमाना ना सिर्फ़ जीने का साधन होता है, बल्कि अपने होने का भी एहसास कराता है. थेरेपी में काफ़ी वक्त लगता है और ऐसे में धैर्य रखना काफ़ी अहम हो जाता है. इस नाज़ुक घड़ी में अभिभावकों, परिवार व समाज की सहायता किया जाना आवश्यक हो जाता है. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है जो उसे जज किये बग़ैर उसकी बातों को सुने. मानसिक रूप से परेशान शख्स इससे अधिक कुछ नहीं चाहता है.”

सिधवानी इसका बेहद आसान तरीका बताते हुए कहती हैं, “किसी तरह के नुकसान और अकेलापन‌ भी इस सफ़र‌ के अहम पड़ाव होते हैं. कई दफ़ा किसी शख्स पर नजरें गढ़ी होती हैं, तो कभी उसे अकेले छोड़ दिया जाता है और उनके पास कोई काम भी नहीं होता है. हर शख्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अकेले होने का मतलब अकेलापन नहीं है और ऐसे में अन्य तरह के शौक का विकसित किया जाना बेहद ज़रूरी हो जाता है. अपने परिवार के सदस्यों और पुराने दोस्तों से बेहतर ढंग से जुड़ा होना बेहद ज़रूरी होता है. इस बात को भी अच्छी तरह से समझना जरूरी है कि शो बिज़नेस के अलावा भी एक असली दुनिया है.”

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CINTAA के ज्वाइंट सेक्रेटरी अमित बहल कहते हैं, “CINTAA इस तरह की पहल के लिए तैयार है,‌ लेकिन इस काम के लिए पूरी इंडस्ट्री को साथ आना चाहिए, इसका मिलकर मुक़ाबला करना चाहिए और सभी की भलाई के लिए एक बेहतर वातावरण का निर्माण कर‌ना चाहिए. हम ठीक उसी तरह से काम करना चाहते हैं जैसे कि यूके और अमेरिका में हमारे सहयोगी काम कर रहे हैं. यूके में इक्विटी यूके और अमेरिका SAG-AFTRA US नाम से हेल्पलाइन मौजूद है, जो उनके सदस्यों के लिए काफ़ी लाभकारी है. उम्मीद है कि इस तरह की हेल्पलाइन की स्थापना में हम स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन और FWICE से जल्द गठजोड़ करेंगे. हम प्रोड्यूसर्स काउंसिल और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फ़ोरम के सदस्यों से भी लगातार इस संबंध में बातचीत कर रहे हैं ताक़ि भविष्य में कोई भी इस तरह का भयावह कदम न उठाए.

मनोचिकित्सक व साइकोथेरेपिस्ट, अमेरिका में REBT की एसोसिएट फेलो व सुपरवाइजर और ज़िंदगी हेल्पलाइन की मुख्य संस्थापक सदस्यों में से एक डॉ. श्रद्धा सिधवानी कहती हैं, “टेलीविज़न और फिल्म इंडस्ट्री में काफ़ी उतार-चढ़ाव आते हैं. कोरोना महामारी के पहले भी यही स्थिति थी. अब मनोचिकित्सकों का दखल देना ज़रूरी हो गया है. एक बार जब आपकी फिल्म रिलीज हो जाती है, तो आप नाम, शोहरत, पैसा बटोरने में व्यस्त हो जाते हो, लोगों से घिरे रहते हो और प्रमोशन के लिए लगातार यात्राएं करनी पड़ती हैं. फ़िल्म की रिलीज़ से पहले औए बाद में भी एक ख़ास किस्म की चिंता सताती रहती है. लोगों के आलोचनात्मक रवैये से जूझना भी एक अहम काम होता है. कोई भी शख्स ऐसी टिप्पणियों को निजी तौर पर ले सकता है. ऐसे में उसमें नकार दिये जाने की भावना घर कर जाती है और अगर प्रोजेक्ट सफ़ल साबित न हो, तो उन्हें ख़ुद की क़ाबिलियत पर भी शक होने लगाता है.”

सिधवानी का कहना है कि हममें अधिकांश लोग अपने काम के आधार पर ख़ुद को परिभाषित करते हैं, लेकिन कलाकारों को दर्शकों की नकारात्मक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कलाकार ख़ुद  भी असहाय और बेकार मानने लगते हैं.”

वो कहती हैं, “एक्टिंग की दुनिया सामाजिक स्वीकृति और प्रतिद्वंद्वी के इर्द-गिर्द घूमती है. कामयाब बनने की हदौड़ में अथवा एक किरदार निभाने के लिए एक कलाकार अक्सर ख़ुद को खो देते हैं. आप क्या हो और पर्दे पर आप कौन सा रोल निभाते हो, उसके बीच एक पतली सी रेखा होती है.

चूंकि काम‌ मिलने में एक प्रकार की अनिश्चितता है, ऐसे में लोग इसी अनिश्चितता और अपनी ज़िंदगी को असुरक्षित ढंग से जीने पर मजबूर हो जाते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि कलाकारों को अपनी लाईफ़स्टाइल मेनटेन करने में काफी खर्च करना पड़ता है. ऐसे में उन्हें पीआर के द्वारा अपनी सामाजिक मौजूदगी दर्ज कराने के लिए भी काफी खर्च करना पड़ता है. अक्सर इस सबका दबाव कलाकारों की बेचैनी का सबब सा बन जाता है.”

डिप्रेशन से जूझ रहे छात्र और लेखक वेदांत गिल कहते हैं कि खुदकुशी और मानसिक बीमारी को लेकर लोगों की सोच अक्सर बहुत अटपेट से होते हैं. वो कहते हैं, “लोगों को लगता है कि हम अपने काम से पलड़ा झाड़ रहे हैं और हमारा बर्ताव सही नहीं है. क ई बार तो वो धर्म और भगवान को भी बीच में ले आते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कतई नहीं है कि डिप्रेशन का शिकार हर व्यक्ति खुदकुशी करना चाहता है और अगर कोई ऐसा करता भी है तो अपने दर्द के खात्मे के लिए करता है, न कि मौत को गले लगाने के लिए. ऐसे में सही समय पर कोई सहारा देनावाला, काउंसिलिंग करनेवाला और नियमित तौर पर ज़रूरी दवाइयां देनेवाला मिल जाये, तो यकीनन उसे इससे काफ़ी मदद मिलेगी. किसी व्यक्ति के लिए कमाना ना सिर्फ़ जीने का साधन होता है, बल्कि अपने होने का भी एहसास कराता है. थेरेपी में काफ़ी वक्त लगता है और ऐसे में धैर्य रखना काफ़ी अहम हो जाता है. इस नाज़ुक घड़ी में अभिभावकों, परिवार व समाज की सहायता किया जाना आवश्यक हो जाता है. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है जो उसे जज किये बग़ैर उसकी बातों को सुने. मानसिक रूप से परेशान शख्स इससे अधिक कुछ नहीं चाहता है.”

सिधवानी इसका बेहद आसान तरीका बताते हुए कहती हैं, “किसी तरह के नुकसान और अकेलापन‌ भी इस सफ़र‌ के अहम पड़ाव होते हैं. क ई दफ़ा किसी शख्स पर नजरें गढ़ी होती हैं, तो कभी उसे अकेले छोड़ दिया जाता है और उनके पास कोई काम भी नहीं होता है. हर शख्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अकेले होने का मतलब अकेलापन नहीं है और ऐसे में अन्य तरह के शौक का विकसित किया जाना बेहद ज़रूरी हो जाता है. अपने परिवार के सदस्यों और पुराने दोस्तों से बेहतर ढंग से जुड़ा होना बेहद ज़रूरी होता है. इस बात को भी अच्छी तरह से समझना जरूरी है कि शो बिज़नेस के अलावा भी एक असली दुनिया है.”

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CINTAA के ज्वाइंट सेक्रेटरी अमित बहल कहते हैं, “CINTAA इस तरह के बहल के लिए तैयार है,‌ लेकिन इस काम के लिए पूरी इंडस्ट्री को साथ आना चाहिए, इसका मुक़ाबला करना चाहिए और सभी की भलाई के लिए एक बेहतर वातावरण का निर्माण कर‌ना चाहिए. हम ठीक उसी तरह से काम करना चाहते हैं यूके और अमेरिका में हमारे सहयोगी काम कर रहे हैं. यूके में इक्विटी यूके और अमेरिका SAG-AFTRA US नाम से हेल्पलाइन मौजूद है, जो उनके सदस्यों के लिए काफ़ी लाभकारी है. उम्मीद है कि इस तरह की हेल्पलाइन की स्थापना में हम स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन और FWICE से जल्द गठजोड़ करेंगे. हम प्रोड्यूसर्स काउंसिल और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फ़ोरम के सदस्यों से भी लगातार इस संबंध में बातचीत कर रहे हैं ताक़ि भविष्य में कोई भी इस तरह का भयावह कदम न उठाए.

 

आर्थिक तंगी झेल रहे Hamari Bahu Silk की टीम की मदद के लिए आगे आया CINTAA और FWICE, कही ये बात

कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण फिल्मों से लेकर टीवी सीरियल्स तक की शूटिंग रूक गई है, जिसके कारण स्टार्स और फिल्मी दुनिया से जुड़े वर्कर्स को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. हाल ही में टीवी सीरियल’हमारी बहू सिल्क’ (Hamari Bahu Silk) के सितारों ने उनकी पेमेंट ना मिलने के कारण शो के मेकर्स को सुसाइड की धमकी दी थी. लेकिन अब क्रू मेंबर्स की मदद के लिए  CINTAA (Cine And TV Artistes’ Association) और FWICE (Federation of Western India Cine Employees) सामने आ गए हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है मामला…

सपोर्ट में उतरी इंडस्ट्री

पेमेंट के मामले में अब CINTAA (Cine And TV Artistes’ Association) और FWICE (Federation of Western India Cine Employees) इन कलाकारों की मदद के लिए हाथ बढाया है. CINTAA के सीनियर ज्वॉइंट सेक्रेटरी अमित बहल का ने एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने सभी कलाकारों से बात करने की कोशिश की हैं और उन्हें थोड़ा सा सब्र के साथ काम लेने को कहा है. अमिल बहल का ये भी कहना है कि इस सीरियल के कुछ ही कलाकारों ने अपनी शिकायत दर्ज करवाई है और लॉकडाउन के चलते उन्हें भी ढंग से पूरी बात समझ में नहीं आ पा रही है. अमित ने ये भी कहा है कि वो नहीं चाहते है कि कोई भी कलाकार इस वजह से खुद को नुकसान पहुंचाए. इस वजह से ही उन्होंने चैनल से भी बात की है ताकि वो प्रोड्यूसर से बात करके जल्द से जल्द सभी कलाकारों की शिकायत को दूर किया जा सके.

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जान खान ने कही थी ये बात

सीरियल के लीड एक्टर जान खान ने एक इंटरव्यू में बताया है कि सीरियल ‘हमारी बहू सिल्क’ के प्रोड्यूसर ने सभी कलाकारों को सिर्फ 15 दिन के ही रुपए दिए है और अब वो बाकी फीस देने से इंकार कर रहे हैं. बीते दिनों ही इस सीरियल की पूरी कास्ट ने प्रोड्यूसर को ये धमकी तक दे डाली है कि अगर उन्हें उनकी फीस नहीं मिली तो वो अपनी जान भी ले लेंगे.

बता दे, बीते दिनों आर्थिक तंगी के कारण एक टीवी एक्टर ने सुसाइड कर लिया था. वहीं टीवी एक्ट्रेस सायंतनी घोष ने भी आर्थिक तंगी की बात कही थी.

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