क्या होते हैं पैंटी लाइनर्स, जानें इसके बारे में कुछ खास बातें

योनि से स्राव होना एक आम और सामान्‍य घटना है. कुछ लोग अपने अंडरवियर को पूरे दिन सूखा, साफ और योनि के स्राव से मुक्‍त रखने के लिये पैंटी लाइनर्स का इस्‍तेमाल करते हैं. ये आपके सैनिटरी पैड की तरह ही होते हैं लेकिन ये सेनिटरी पैड से बहुत पतला होता है. जिसे पैंटी को सूखा रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन ये पतले, छोटे और कम सोखने की क्षमता वाले होते है इनका इस्तेमाल उन दिनों में किया जाता है, जब आपको वेजाइनल डिस्चार्ज और स्पौटिंग हो सकती यह किसी भी तरह की स्पॉटिंग होने से रोकने और आपके वैजाइनल एरिया को साफ-सुथरा और तरोताज़ा महसूस करने में मदद करता है.

पैंटी लाइनर्स के बारे में बता रही है डॉ. मंजू गुप्‍ता, सीनियर कंसल्‍टेन्‍ट ऑब्‍स्‍टेट्रिशियन एवं गाइनेकलॉजिस्‍ट, मदरहूड हॉस्पिटल, नोएडा.

क्या है पैंटी लाइनर्स-

योनि के स्राव या मासिक धर्म के हल्‍के बहाव को सोखने के लिये अंडरवियर की किनारी में पहने जाने वाले गीलापन सोखने वाले पैड को पैंटीलाइनर कहा जाता है. कुल मिलाकर, पैंटीलाइनर्स पतले पैड्स होते हैं. छोटे, पोर्टेबल पैंटीलाइनर्स से लेकर योनि के भारी स्राव और पीरियड के कम बहाव के लिये बनाए गए बड़े, सुरक्षात्‍मक पैंटीलाइनर्स तक, पैंटीलाइनर्स तरह-तरह के आकारों और परिवहन विकल्‍पों में उपलब्‍ध हैं. कमरबंद के साथ उपयोग में आने वाले पैंटीलाइनर्स की कुछ किस्‍में उपलब्‍ध हैं. डिस्‍पोजेबल पैंटीलाइनर्स का चिपकने वाला गोंद उन्‍हें सतहों से चिपका देता है. कुछ पैटर्न्‍स में विंग्‍स होते हैं, जो सपोर्ट बढ़ाने के लिये अंडरगारमेंट्स पर लिपट जाते हैं.

कॉटन के रियूजेबल पैंटीलाइनर्स भी हैं, जो कई रंगों, आकारों, मटेरियल, डिजाइन और सोखने की क्षमता के साथ आते हैं. इन्‍हें कुछ साल तक रियूज किया जा सकता है और बार-बार धोया जा सकता है. लिपटने वाले विंग्‍स को छोर पर एक साथ बाँध दिया जाता जो रियूजेबल पैंटीलाइनर्स को पकड़ कर रखते हैं.

पैंटीलाइनर्स किस काम के लिये होते हैं?

पैंटीलाइनर्स योनि से होने वाले नियमित स्राव, मासिक धर्म के अपेक्षित हल्‍के बहाव, मासिक धर्म की शुरूआत और अंत में हल्‍के दागों, धब्‍बों और संभोग के बाद के स्राव को सोखने के लिये बनाये जाते हैं. सुरक्षा बढ़ाने के लिये, पैंटीलाइनर्स को रूई के फाहे, पैड्स और मेंस्‍ट्रल कप्‍स के साथ पहना जा सकता है. कुछ लोगों के लिये पैंटीलाइनर्स पैड्स से ज्‍यादा अनुकूल और सुखद होते हैं. मासिक धर्म के दौरान कई कारणों से योनि से स्राव होता है और यह आम है, जैसे कि योनि को चिकना रखने, ओव्‍युलेशन (अंडोत्‍सर्ग), कामोत्‍तेजना, आदि में. अंडरवियर को सूखा और धब्‍बों से मुक्‍त रखने के लिये पैंटीलाइनर पहनना फायदेमंद हो सकता है. चूँकि जवानी के दौरान धब्‍बे लगना और कभी भी पीरियड आना हो सकता है, इसलिये पैंटीलाइनर्स रखने से मदद मिल सकती है.

पैंटीलाइनर्स के फायदे :

पैंटीलाइनर्स पेशाब रिसने, योनि के स्राव और आकस्मिक मासिक धर्म से नियमित सुरक्षा देते हैं.

पैंटीलाइनर्स गीलापन रोकने में मदद करते हैं.

मासिक धर्म के बाद भी हल्‍का-हल्‍का खून बहने पर पैंटीलाइनर्स फायदेमंद हो सकते हैं. अगर बहाव फाहा या पैड के मुकाबले बहुत हल्‍का है, तो पैंटीलाइनर काम आता है.

पैंटीलाइनर्स अंडरपैंट्स को साफ बनाये रखने में मदद कर सकते हैं.

पैंटीलाइनर्स वयस्‍क अवस्‍था के असंयम से बचा सकते हैं.

प्रसव के बाद हल्‍के बहाव में, जो बच्‍चे के जन्‍म के बाद कुछ हफ्तों या महीनों तक भी हो सकता है, पैंटीलाइनर्स काम आ सकते हैं.

पैंटीलाइनर से जुड़ी कुछ जरूरी सलाह-

पेंटीलाइनर्स का इस्‍तेमाल भारी बहाव के लिये नहीं होना चाहिये, इन्‍हें मासिक धर्म के पहले या बाद पहना जा सकता है.

पेंटीलाइनर्स अगर लेबिया (भगोष्‍ठ) से रगड़ाते हैं, तो लालिमा, जलन और खुजली हो सकती है.

सुगंधित अंडरवियर के केमिकल्‍स योनि के आस-पास के कोमल ऊत्‍तकों को नुकसान पहुँचा सकते हैं.

सिंथेटिक फाइबर्स से बनी अंडरवियर और पारगमन रोकने वाली परत वाले पैंटीलाइनर्स का नियमित इस्‍तेमाल प्रजनन अंगों में हवा के आवागमन को सीमित कर देता है, जिससे पसीना भाप बनकर नहीं उड़ पाता है. हवा की आवाजाही नहीं रोकने वाले और आपके कपड़ों को सूखा रखने वाले ब्रीदेबल लाइनर्स (हवादार लाइनर्स) का इस्‍तेमाल करने की सलाह विशेषज्ञ देते हैं.

पैंटीलाइनर्स के इस्‍तेमाल पर आसान दिशा-निर्देश

पैंटीलाइनर्स को पैड्स की तरह अंडरवियर के भीतर पहना जा सकता है और उन्‍हें बैठाने के लिये उनके भीतर चिपकने वाली एक पट्टी होती है.

पैंटीलाइनर को लम्बवत घुसाकर अंडरवियर की कोणिका (किनारों) को ढँकने और बांधने की ज़रुरत होती है.

अगर पैंटीलाइनर बहुत गीला हो जाए, तो उसे तुरंत बदल देना चाहिये.

रात में पैंटीलाइनर्स का इस्‍तेमाल न करें. संक्रमण का खतरा कम करने के लिये उन्‍हें जितना संभव हो, उतनी बार बदलना चाहिये.

सुगंधित पैंटीलाइनर्स के इस्‍तेमाल से बचें, क्‍योंकि उनसे खुजली और असहजता होती है. सुगंधित के बजाए ऑर्गेनिक कॉटन वाले पैंटीलाइनर्स का इस्‍तेमाल करें.

लोचिया या प्रसव के बाद खून बहने के मामले में पैंटीलाइनर्स को इस्‍तेमाल किया जा सकता है. लोचिया से नुकसान नहीं होता है और यह बच्‍चे के जन्‍म के बाद आठ सप्‍ताह तक रहता है.

प्रैग्नेंसी के बाद ब्रैस्ट में क्यों होते हैं बदलाव

आमतौर पर प्रैग्नेंसी के दौरान और बाद एक महिला के शरीर में कई बदलाव होते हैं. प्रैग्नेंसी के बाद स्तनों में बदलाव होता ही है. क्‍या आप जानते हैं, स्तन लोब्‍युल्‍स से बने होते हैं, जो दूध बनाने वाली ग्रंथियाँ होती है और इनमें नलिकाएँ  हुती हैं, जो दूध को निप्‍पल तक ले जाती हैं और उनके इर्द-गिर्द ग्रंथीय, नसों वाले और चर्बीदार ऊत्‍तक होते हैं. उम्र बढ़ने के साथ ग्रंथीय ऊत्‍तक का आकार घटता है. प्रैग्नेंसी के दौरान स्‍तन का विकास इस प्रक्रिया का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है, क्‍योंकि उसे शिशु के लिये दूध बनाने के लिये बदलाव से गुजरना होता है. प्रैग्नेंसी से पहले के हॉर्मोन स्‍तन के ऊतकों में बदलाव लाते हैं. प्रैग्नेंसी के दौरान मिलने वाले शुरूआती संकेतों में स्‍तनों को संवेदी अनुभव होना शामिल है, जो शरीर में अतिरिक्‍त हॉर्मोन्‍स के बहने से होता है.

डॉ. तनवीर औजला, सीनियर कंसल्‍टेन्‍ट ऑब्‍स्‍टेट्रिशियन एवं गाइनेकलॉजिस्‍ट, मदरहूड हॉस्पिटल, नोएडा की बता रही हैं गर्भावस्था के दौरान स्तनों में क्या बदलाव होते है.

प्रैग्नेंसी के दौरान हमारे स्‍तनों में शिशु को दूध देने के लिये बदलाव होते हैं. प्रैग्नेंसी के दौरान होने वाले इन बदलावों में स्‍तनों का आकार बढ़ना और स्‍तनों तथा निप्‍पल का मुलायम या संवेदनशील होना शामिल है. इसमें निप्‍पलों और एरीयोला का रंग भी बदलता है और मोंटगोमरी ग्रंथियाँ स्‍पष्‍ट और बड़ी दिखाई देती हैं. स्‍तनों में ज्‍यादा खून आने लगता है, जिससे उनकी नसें गहरे रंग की हो जाती हैं. इस अवस्‍था में एस्‍ट्रोजेन और प्रोजेस्‍टेरॉन की मात्रा बढ़ जाती है और इन दोनों हॉर्मोन्‍स के मिलने से दूध बनने लगता है.

प्रैग्नेंसी के बाद प्रोजेस्‍टेरॉन और एस्‍ट्रोजेन का स्‍तर घट जाता है, जो प्रोलेक्टिन हॉर्मोन से संकेत मिलने के बाद होता है और प्रोलेक्टिन ही दूध बनाता है. शिशु के लिये दूध बनाने में आमतौर पर दो दिन लगते हैं. जन्‍म के बाद 3 से 5 दिन में लिम्‍फेटिक फ्लूइड के कारण स्‍तन बड़े हो जाते हैं. लिम्‍फेटिक फ्लूइड से ही स्‍तन की नलिकाएँ बनती हैं.

प्रैग्नेंसी के बाद भी स्‍तनों में बदलाव जारी रहते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-

स्‍तनों के भरने का मतलब प्रैग्नेंसी के बाद सामान्‍य रूप से उनका आकार बढ़ने से है और यह दूध बनने के दौरान होता है. स्‍तनों का भरना कम करने के लिये शिशु को बार-बार दूध पिलाना महत्‍वपूर्ण है, ताकि दूध बच्‍चे की भूख के अनुसार आता रहे.

ब्रैस्टफीडिंग कराते समय निप्‍पल में दर्द होता है, जिससे निप्‍पल कट सकती है या उसमें से खून आ सकता है. निप्‍पल क्रीम या स्‍तन का दूध इस दर्द से राहत देने में मदद कर सकता है. कभी-कभी निप्‍पल के कटने से यीस्‍ट का संक्रमण भी हो जाता है.

जब दूध की नलिकाएँ बाधित होती हैं, तब ‘मेस्‍टाइटिस’ नामक एक संक्रमण हो जाता है. यह एक स्‍तन से दूसरे स्‍तन में भी पहुँच जाता है. स्‍तन की स्किन पर लाल निशान, बाधित नलिका के इर्द-गिर्द स्किन का गर्म होना और स्‍तन में तेज दर्द इसके लक्षण हैं.

अगर उपर्युक्त मेस्‍टाइटिस या संक्रमण का उपचार न हो, तो फोड़ा हो जाता है और मवाद इकट्ठा होने लगता है, जिसके लिये फिर ऐंटीबायोटिक्‍स दिये जाते हैं और मवाद को सुई से निकाला जाता है.

स्‍तनों पर खिंचाव के निशान दिखते हैं, जो गायब होने में कुछ समय ले सकते हैं.

स्‍तनों को पुराने सामान्‍य आकार में ले जाने के लिये प्रभावित करने में शरीर के वजन की महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है. कई महिलाओं को ब्रैस्टफीडिंग और दूध बनने के कारण स्‍तनों में ढीलेपन का अनुभव होता है. इससे बचने के लिये पूरी प्रैग्नेंसी के दौरान और बाद में भी सपोर्टिव ब्रा पहनी जा सकती है और स्‍वास्‍थ्‍यकर आहार की आदत डाली जा सकती है, जो प्रैग्नेंसी के बाद स्‍तन से जुड़ी समस्‍याओं को रोकने में मदद करेगी.

करती हैं डेस्क जौब, तो जरूर करें ये एक्सरसाइज

डैस्क जौब आजकल की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गई है, जिस वजह से बहुत सारी महिलाएं पीठ दर्द, गरदन का दर्द, फ्रोजन शोल्डर जैसी कई समस्याओं से ग्रस्त हो जाती हैं.

अगर आप भी डैस्क जौब में हैं, तो हम आप को कुछ आसान व्यायाम बता रहे हैं, जो आप के शरीर को अधिक समय तक डैस्क जौब करने से उत्पन्न तकलीफों से छुटकारा दिला सकते हैं:

गरदन के व्यायाम

– अपने दोनों हाथ सिर के पीछे रखें. हाथ के दबाव से रोकते हुए अपने सिर को पीछे की तरफ ले जाने का प्रयास करें. कुछ मिनट तक इसी मुद्रा में रहें. थोड़ी देर तक इस प्रक्रिया को जारी रखें.

– डैस्क के सामने कई घंटों तक बैठे रहने के बाद कुछ देर अपने सिर को बाएं, दाएं, ऊपर और नीचे की दिशा में घुमाएं और फिर दोनों तरफ झुकाएं. इस व्यायाम को कुछ देर तक दोहराती रहें.

कंधों के व्यायाम

– अपने सिर के पीछे एक पैंसिल या पैन रखें तथा उसे अपने स्थान पर संतुलित बनाए रखने के लिए कंधों का इस्तेमाल करें.

– अपनी बांहों को ऊपर की तरफ फैलाएं और फिर कुछ सैकंड उसी अवस्था में रखें. इस प्रक्रिया को दोहराती रहें.

– अपने दोनों हाथों को कंधों पर दोनों तरफ रखते हुए कंधों को घड़ी की सूई की दिशा और विपरीत दिशा में बारीबारी से घुमाएं.

शरीर को सीधी मुद्रा में रखें

– अपनी कुरसी को ऐडजस्ट करते हुए उसे इतनी ऊंचाई तक रखें जहां से आप आरामदेह स्थिति में सीधे तरीके से बैठ सकें तथा आप की कंप्यूटर स्क्रीन आप की आंखों के समानांतर रहे.

– पालथी मार कर बैठने की कोशिश करें. अपने शरीर को उसी मुद्रा में रखें जिस तरह आप बैठती हैं ताकि आप आराम महसूस कर सकें.

पैरों, बाजुओं और कलाइयों के व्यायाम

– अपने पैरों को दीवार की तरफ तानें. घुटनों को मोड़े बगैर बाजुओं से पैर छूने की कोशिश करें.

– इसी अवस्था में अपने पैरों को ऊपर तथा नीचे गतिशील रखते हुए जौगिंग करें.

– पोरों को बजाएं. आप स्टैपलर की मदद से भी ऐसा कर सकती हैं.

– फुरसत के वक्त हवा में पैर चलाएं ताकि पैरों और बाजुओं की मांसपेशियां मुक्त हो सकें.

पीठ दर्द से मिले राहत

– घूमने वाली कुरसी का इस्तेमाल करें और एक से दूसरी तरफ घूमते हुए अपने पेट के निचले हिस्से को घुमाएं, फिर इसी तरह उलटी दिशा में घुमाएं.

– नियमित अंतराल पर ब्रेक लेती रहें. अपने काम का बोझ हलका करने के लिए औफिस के गलियारे में थोड़ी देर चहलकदमी करें.

डा. राजीव के. शर्मा

इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल, दिल्ली

भूलकर भी न करें पैरों मे हो रहे जलन को नजरअंदाज

पैरों में जलन की समस्या को आमतौर पर अधिकतर लोग नजरअंदाज करते हैं. उसे गंभीरता से नहीं लेते और सोचते हैं कि अपनेआप ठीक हो जाएगी. लेकिन जानकारों का मानना है कि इस में लापरवाही बरतना ठीक नहीं है. यह समस्या शरीर के बाकी हिस्सों में भी परेशानी पैदा कर सकती है.

रोजमर्रा की जिंदगी में कई बार हमें आने वाली बीमारी के बारे में कतई एहसास नहीं हो पाता और वह बीमारी विकराल रूप धारण कर लेती है जिस की वजह से घातक नतीजे भुगतने पड़ते हैं. ऐसी ही एक समस्या है पैरों में जलन. पैरों में जलन का मुख्य कारण है शरीर में विटामिन बी, फोलिक एसिड या कैल्शियम की कमी होना.

यह परेशानी न केवल एक खास आयुवर्ग के लोगों में होती है बल्कि यह किसी को भी अपना का शिकार बना सकती है.

क्या हैं कारण

पैरों में जलन हलकी, तेज और गंभीर हो सकती है. अकसर यह जलन तंत्रिकातंत्र में गड़बड़ी या शिथिलता के कारण होती है.

न्यूरोपैथी बीमारी भी पैरों की जलन का कारण हो सकती है, क्योंकि न्यूरोपैथी का असर सभी नसों पर पड़ता है. इसलिए यह मुख्य रूप से सभी अंगों और तंत्रों को प्रभावित कर सकती है. इस में पैरों में जलन, दर्द और चुभन काफी संवेदनशील तरीके से महसूस होती है.

विटामिन बी12 तंत्रिकातंत्र सहित हमारे शरीर के कई कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

पैरों में जलन हाईब्लडप्रैशर के कारण भी हो सकती है. हाईब्लडप्रैशर के कारण ब्लड सर्कुलेशन में भी परेशानी होती है. इस से त्वचा के रंग में बदलाव, पैरों की पल्सरेट और हाथपावों के तापमान में कमी रहती है, जिस से पैरों में जलन महसूस होती है.

किडनी संबंधी बीमारी होने पर भी पैरों में जलन होना मुमकिन है.

पैरों में जलन का प्रमुख कारण डायबिटीज होता है. इन लोगों में इस बीमारी के निदान के लिए किसी अतिरिक्त परीक्षण की जरूरत नहीं होती. और डाक्टर तुरंत इस पर नियंत्रण कर लेता है.

थायरायड हार्मोन का लैवल कम होने से भी पैरों में जलन की समस्या होती है.

दवाओं का दुष्प्रभाव, एचआईवी की दवाएं लेने और कीमोथेरैपी से भी पैरों में जलन हो सकती है.

जांच अवश्य कराएं

इलैक्ट्रोमायोग्राफी :  ईएमजी टैस्ट के लिए मांसपेशियों में सूई डाली जाती है और इस की क्रियाओं के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाती है.

लैबोरेटरी टैस्ट :  पैरों में जलन के कारणों का पता लगाने के लिए लैबोरेटरी में ब्लड, यूरिन और रीढ़ का लिक्विड टैस्ट किया जाता है.

नर्व बायोप्सी :  गंभीर परिस्थितियों में इस टैस्ट को भी किया जाता है. इस में डाक्टर शरीर से नर्व टिशू का एक टुकड़ा निकाल कर माइक्रोस्कोप से उस की जांच करते हैं.

घरेलू उपचार

पैरों की जलन से तुरंत राहत देने में सेंधा नमक कारगर है. मैग्नीशियम सल्फेट से बना सेंधा नमक सूजन और दर्द को कम करने में मददगार साबित होता है. इस के लिए एक टब कुनकुने पानी में आधा कप सेंधा नमक मिला कर पैरों को 10 से 15 मिनट तक उस में डुबो कर रखें. इस उपाय को कुछ समय तक नियमित करते रहें. सेंधा नमक के पानी का इस्तेमाल डायबिटीज, हाईब्लडप्रैशर या हार्ट डिजीज वालों के लिए सही नहीं है. इस के इस्तेमाल से पहले अपने डाक्टर से सलाह अवश्य लें.

सिरका भी पैरों की जलन से आराम दिलाता है. एक गिलास गरम पानी में 2 चम्मच कच्चा व अनफिल्टर्र्ड सिरका मिला कर पिएं. ऐसा करने से पैरों की जलन दूर हो जाएगी.

इस बीमारी के दौरान शाकाहारी लोगों को अपने खानपान का खास ध्यान रखना चाहिए. दूध, दही, पनीर, चीज, मक्खन, सोया मिल्क या टोफू का उन्हें नियमित सेवन करना चाहिए. जबकि मांसाहारियों को अंडे, मछली, रैडमीट, चिकन और सी फूड से विटामिन बी12 भरपूर मात्रा में मिलता है.

लौकी को काट कर उस का गूदा पैरों के तलवों पर मलने से भी जलन दूर होती है.

पैरों में जलन होने पर करेले के पत्तों के रस की मालिश करने से भी लाभ होता है.

हलदी में भरपूर मात्रा में पाए जाने वाला करक्यूमिन पूरे शरीर में ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करता है. हलदी में मौजूद एंटीइनफ्लेमेटरी गुण पैरों की जलन और दर्द को दूर करने में मददगार साबित होता है. हल्दी को दूध के साथ भी ले सकते हैं.

Weight Loss Tips : बिना एक्सरसाइज और डाइटिंग के आसानी से कम करें वजन

वजन कम करने के लिए लोग क्या क्या नहीं करते. एक्सर्साइज और डाइटिंग के लिए नए नए पैंतरों को आजमाते हैं. पर बहुत कम लोग ही होते हैं कि उन्हें इस परेशानी से निजात मिलती है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव कर आप कैसे अपना वजन कम कर सकती हैं. तो आइए जानें उन टिप्स के बारे में.

1. खूब करें फलों और सब्जियों का सेवन

सेहतमंद रहने के लिए जरूरी है कि आप ताजे और हरे साग, सब्जियों और फलों का सेवन करें. फ्रूट चाट के मुकाबले ताजे फलों का सेवन अधिक फायदेमंद होता है. इससे शरीर को भरपूर मात्रा में फाइबर मिलता है, जिससे डाइजेशन बेहतर बनता है.

2. समय पर सोएं

ज्यादातर कामकाजी लोग अपने नींद को लेकर गंभीर नहीं होते. पर पूरी नींद ना लेने से आपकी सेहत बुरी तरह से प्रभावित होती है. अगर आप स्वस्थ रहना चाहती हैं तो जरूरी है कि आप पूरी नींद लें.

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3. चिप्स या तले हुए खाद्य पदार्थों से रहें दूर

जिस तरह की हमारी जीवनशैली हो गई है हम तले हुए चीजों की ओर तेजी से बढ़ने लगे हैं. अपने काम के बीच हम चिप्स जैसी चीजों को खाते रहते हैं जो हमारी सेहत के लिए काफी हानिकारक होता है. आपको बता दें कि सभी पैकेट वाली चीजों में प्रिजर्वेटिव पाए जाते हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ वजन भी बढ़ाते हैं.

4. नाश्ता कभी ना करें स्किप

नाश्ता दिनभर का सबसे जरूरी आहार है. अगर आप वजन कम करना चाहती हैं तो जरूरी है कि आप नाश्ता कभी ना छोड़ें. जो लोग नाश्ता नहीं करते, दूसरे वक्त में अधिक खाना खाते हैं. इस चक्कर में आपका वजन बढ़ जाता है.

5. खूब पीएं पानी

वजन कम करने के लिए जरूरी है कि आप अधिक पानी का सेवन करें. अगर आप सौफ्ट ड्रिंक की शौकीन हैं तो ये आपके लिए परेशानी की बात हो सकती है. कोल्ड ड्रिंक्स में कैलोरीज की मात्रा बहुत अधिक होती है, जो तेजी से वजन बढ़ाती हैं. वजन कम करने के लिए सॉफ्ट ड्रिंक्स की जगह ज्यादा से ज्यादा पानी का सेवन करें.

हेल्दी प्रैग्नेंसी के लिए ओरल हाइजीन क्यों है जरूरी

गर्भावस्था के कारण महिलाओं के शरीर में हारमोन से जुड़े कई बदलाव आते हैं. इन में से कुछ बदलाव के कारण उन्हें मसूड़ों की बीमारी होने का जोखिम बढ़ जाता है. गर्भावस्था के दौरान शरीर में प्रोजेस्टेरौन का स्तर बढ़ जाता है, जिस से प्लाक में मौजूद बैक्टीरिया के प्रति गतिविधि तेज हो जाती है और इस से मसूड़ों की बीमारी यानी सूजन (जिंजिवाइटिस) की समस्या हो सकती है. प्लाक वह परत होती है, जो दांतों पर जम जाती है. आमतौर पर अच्छी ओरल केयर वाली गर्भवती महिलाओं में भी प्रोजेस्टेरौन का स्तर बढ़ने के कारण यह समस्या हो सकती है, इसलिए अगर कोई महिला गर्भधारण करने की योजना बना रही है, तो बेहतर होगा कि वह डैंटल चैकअप करा ले और अगर जरूरत हो तो दांतों की समस्या का इलाज भी करा ले. यह गर्भधारण से पूर्व होने वाले चैकअप में शामिल होना चाहिए.

 

मसूड़ों की बीमारी जिंजिवाइटिस दांतों के आसपास मौजूद कोमल कोशिकाओं का एक संक्रमण होता है. इस में दर्द नहीं होता और यही वजह है कि इस पर ध्यान नहीं जाता और इसलिए इस का इलाज भी नहीं हो पाता है. इस के चेतावनी संकेतों में मसूड़ों का लाल या उन से खून निकलना, सूजन आना या कमजोर होना आदि शामिल है. ऐसे मसूड़े जिन की दांतों पर पकड़ ढीली हो गई हो या फिर वे दांतों से अलग हो रहे हों, इस बीमारी के संभावित संकेत हैं. मुंह में खराब स्वाद का रहना, सांस की बदबू या फिर स्थाई दांतों की पकड़ में बदलाव आना भी मसूड़ों में बीमारी होने का संकेत है.

अगर गर्भवती महिला के दांतों की बीमारी का इलाज नहीं किया गया तो इस से काफी गंभीर नतीजे निकल सकते हैं. कभीकभी मसूड़ों के किनारों और दांतों के बीच सूजन भी दिखाई देती है. यह सूजन नुकसानरहित होती है. लेकिन इस से भी खून निकलने लगता है. यह अकसर लाल शहतूत के आकार की होती है, जिसे गम ऐप्युलिस कहते हैं. इस सूजन को प्रैगनैंसी ट्यूमर भी कहते हैं, लेकिन इस की प्रवृत्ति कैंसर की नहीं होती है. यह गम ऐप्युलिस डिलिवरी के बाद अपनेआप गायब हो जाते हैं. लेकिन उस के बाद भी दिखाई दे, तो उसे डैंटल सर्जन लोकल ऐनेस्थीसिया दे कर निकाल सकता है.

अगर गर्भवती महिलाएं इन समस्याओं का उपचार न कराएं तो ये बहुत गंभीर रूप भी ले सकती हैं. मसूड़ों की समस्या और अचानक गर्भपात, समयपूर्व प्रसव, प्रीऐक्लंप्सिया और गैस्टेशनल डायबिटीज के बीच कुछ संबंध हो सकता है. कई शोधकर्ता इन विषयों पर काफी समय से शोध कर रहे हैं. इन शोधों के नतीजे कुछ भी हों, लेकिन इन से एक बात तो यह साफ है कि गर्भधारण की योजना बनाने से पहले यह तय करना बेहतर है कि आप के मुंह में किसी भी प्रकार का संक्रमण न रहे. अगर इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो प्रैगनैंसी जिंवाइटिस होने के कारण दांत को सपोर्ट करने वाली हड्डी को नुकसान भी पहुंच सकता है.

मसूड़ों की बीमारी बढ़ कर दांतों से सटी हड्डियों और दांतों को कसने वाली सस्पैंसरी ऐपेरेटस में भी पहुंच कर पेरियोडोंटल बीमारी की वजह बन सकती है. पेरियोडोंटल बीमारी से ऐसी गंभीर बीमारी हो सकती है, जिस में वांछित नतीजे हासिल करने के लिए डैंटल सर्जन की जरूरत होती है. पेरियोडोंटल बीमारी के लक्षण नहीं दिखते हैं, लेकिन यह लंबे समय में होने वाली बीमारी है और इस की वजह से दांत पसीजने लगते हैं और मसूड़ों पर जोर पड़ता है. दिन में मसूड़ों में लगा सफेद या पीला डिस्चार्ज दिखाई देता है, जिस से मुंह से बदबू आती है और स्वाद खराब रहता है. पेरियोडोंटल बीमारी से पीडि़त जच्चा शिशु के मुंह का चुंबन लेते समय ये कीटाणु उस के मुंह तक पहुंचा सकती है, जो उस के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

जर्नल औफ नैचुरल साइंस, बायोलौजी ऐंड मैडिसिन के अनुसार, मसूड़ों में जलन पैदा करने वाले बैक्टीरिया रक्तप्रवाह के साथ गर्भ में पल रहे भू्रण तक पहुंच सकते हैं. मसूड़ों की बीमारी से ऐसे ऐंडोटौक्सिंस उत्पन्न हो सकते हैं, जो साइटोकाइंस और प्रोस्टाग्लैंडिंस का उत्पादन बढ़ा देते हैं. पेरियोडोंटाइटिस (लंबे समय तक रहने वाली मसूड़ों की बीमारी) से पीडि़त गर्भवती महिला में समयपूर्व प्रसव होने की आशंका 4 से 7 गुना अधिक रहती है. मसूड़ों से जुड़ी समस्या को अकसर महिलाएं गंभीरता से नहीं लेती हैं, विशेषतौर पर तब जब उस में दर्द न हो रहा हो. लेकिन जब मसूड़ों की समस्या के कारण समयपूर्व प्रसव होता है या सामान्य से कम वजन के शिशु का जन्म होता है, तब इस के नतीजे भी गंभीर होते हैं.

बैक्टीरिया संक्रमण से निकले इस जानलेवा हानिकारक तत्त्व या जहर के कारण नवजात शिशु का वजन सामान्य से कम रह सकता है.

यूएस नैशनल लाइबे्ररी औफ मैडिसिन, नैशनल इंस्टिट्यूट्स औफ हैल्थ जैसे विश्वसनीय सैंटरों द्वारा प्रकाशित किए गए शोध में सामने आया है कि समयपूर्व प्रसव और कम वजन वाले बच्चों के 1 महीना भी जीवित न रहने की आशंका 40 गुना अधिक होती है. 1 महीने तक जीवित रहने वाले ऐसे बच्चों में न्यूरोडैवलपमैंटल गड़बड़ी, स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं और जन्मजात विकार का जोखिम काफी ज्यादा होता है, बल्कि समयपूर्व प्रसव होना ही लंबी अवधि की सभी न्यूरोलौजिकल परिस्थितियों में से करीब आधे से ज्यादा मामलों की वजह है. समयपूर्व प्रसव के बाद जन्मे शिशुओं में फेफड़ों की जन्मजात बीमारी, आंतडि़यों में जख्म, कार्डियोवैस्क्युलर विकार, कमजोर शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता और श्रव्य व दृश्य समस्याएं होती हैं. व्यावहारिकता के लिहाज से कम संभावनाओं के साथ जन्म लेने वाले शिशुओं में मृत्यु दर बहुत अधिक होती है. उन में जटिलताओं की दर भी काफी ज्यादा होती है.

मसूड़ों की बीमारी से ऐसे ऐंडोटौक्सिंस उत्पन्न हो सकते हैं, जो साइटोकाइंस और प्रोस्टाग्लैंडिंस का उत्पादन बढ़ा देते हैं. गर्भवती महिलाओं में साइटोकाइंस के उच्च स्तर से गर्भाशय की झिल्ली फट सकती है और इस तरह समयपूर्व प्रसव हो सकता है. (साइटोकाइंस ऐसे नियामकीय प्रोटीन होते हैं, जो कोशिकाओं के बीच संदेशवाहक के तौर पर काम करते हैं) बैक्टीरिया संक्रमण से निकले इस जानलेवा तत्त्व या जहर के कारण नवजात का वजन सामान्य से कम रह सकता है. बैक्टिरियल संक्रमण से निकलने वाले इस जानलेवा जहर के कारण सामान्य से कम वजन वाले शिशु जन्म ले सकते हैं. समयपूर्व प्रसव और नवजात शिशु का वजन सामान्य से कम रहने के करीब 30 से 50 फीसदी मामलों की वजह ऐसे संक्रमण होते हैं. मसूड़ों की समस्या भी उन संक्रमणों में से एक है, जिन के कारण ऐसे नतीजे आते हैं.

फिर भी अच्छी खबर यह है कि मसूड़ों की बीमारियों का आसानी से इलाज संभव है और इन की रोकथाम भी आसानी से की जा सकती है. इन का इलाज कराना बहुत आसान है. अत: अगर आप गर्भधारण की योजना बना रही हैं, तो सब से पहले अपने डैंटिस्ट के पास जाएं और जांच कराएं कि आप को दांतों से संबंधित कोई समस्या तो नहीं है. अगर है तो उस का तुरंत इलाज करवाएं.

गर्भावस्था के दौरान क्या करें

जैसे ही आप गर्भधारण करें, तुरंत डैंटिस्ट से मसूड़ों का चैकअप कराएं.

कम से कम दिन में 2 बार ब्रश करें. 1 बार फ्लास करें और गर्भावस्था में जिंजिवाइटिस से बचने के लिए ऐंटीमाइक्रोबियल सौल्यूशन से कुल्ला करें.

ज्यादा मीठे खाद्य या पेयपदार्थों से परहेज करें. ऐसे खाद्यपदार्थों को तरजीह दें, जो प्रोटीन, कैल्सियम, फासफोरस और विटामिन ए, सी, डी के साथसाथ फौलिक ऐसिड के भी अच्छे स्रोत हों.

गर्भावस्था के दौरान नियमित चैकअप और स्केलिंग व क्लीनिंग से डैंटिस्ट को आप के मसूड़ों के स्वास्थ्य पर नजर रखने में मदद मिलेगी और किसी भी आने वाली समस्या का इलाज समय पर हो सकेगा.

गर्भावस्था के दौरान अगर मसूड़ों में किसी भी समस्या का संकेत मिलता है, तो तुरंत डैंटिस्ट से मिलें.

शिशु को जन्म देने के बाद भी डैंटिस्ट से जरूर मिलें विशेषतौर पर पहले तीन महीनों तक. शिशु के 12 महीने के होते ही उसे डैंटिस्ट के पास जरूर ले कर जाएं.

बारबार उबकाई और उलटी आने की समस्या से जूझ रही गर्भवती महिलाओं को दांतों की सतह को नुकसान से बचाने के लिए सलाह :

कमकम मात्रा में संपूर्ण आहार लें. दिन भर के दौरान कम मात्रा में ऐसा भोजन खाएं, जो प्रोटीन से भरपूर हो जैसे पनीर.

उलटी करने के बाद अच्छे टूथपेस्ट या 1 चम्मच बेकिंग सोडा (सोडियम बाईकार्बोनेट) को 1 कप पानी में मिलाएं या फिर फ्लोराइड युक्त कोई भी माउथवाश से कुल्ला करें. इस से दांतों की सतह पर मिनरल लौटाने में मदद मिलती है.

उलटी करने के तुरंत बाद ब्रश न करें, क्योंकि मुंह के ऐसिड से दांतों की सतह काफी कमजोर हो जाती है और तुरंत ब्रश करने से इन्हें और नुकसान पहुंच सकता है.

एक कोमल टूथब्रश और फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट से दिन में 2 बार ब्रश करें, इस से दांत मजबूत होंगे.

जिंजिवाइटिस मसूड़ों की बीमारी का शुरुआती चरण होता है और इसे पेशेवर स्कैलिंग व क्यूरेटेज से हटाया जा सकता है. डीप स्कैलिंग और क्यूरेटेज में प्लाक और टार्टर को मसूड़ों की ऊपरी और निचली सतह से हटा कर दांतों की पौलिशिंग की जाती है. मसूड़ों की समस्या का इलाज करने के लिए रूट प्लानिंग भी की जा सकती है, जिस के बाद दांतों की पौलिशिंग होती है. रूट प्लानिंग के दौरान दांतों की सतह पर मौजूद खुरदरे धब्बों को समान किया जाता है, जिस से मसूड़ों को चिपकने के लिए साफ सतह मिलती है. फ्लैप सर्जरी और म्यूको जिंजिवल सर्जरी जैसी सर्जिकल प्रक्रियाओं का इस्तेमाल कर मसूड़ों की ज्यादा गंभीर बीमारियों को दूर किया जा सकता है. हड्डियों को और नुकसान से बचाने के लिए बोन ग्राफ्टिंग भी की जा सकती है, जिस से दांत को टूटने और ऐक्सफौलिएशन से बचाया जा सकता है.

-लैफ्टिनैंट जनरल डा. विमल अरोड़ा चीफ क्लीनिकल औफिसर, क्लोव ड

Monsoon Special: बारिश में इंफेक्शन से रहना है दूर, तो खाएं Immunity बूस्टर फूड्स

मौनसून आ गया है, ऐसे में चिलचिलाती गरमी से छुटकारा मिलता है. जीभर कर इस मौसम को जी लेने का मन करता है, फ्रैंड्स व अपनों के साथ इस मौसम में मस्ती करने को मन बेताब रहता है. इस मौसम में खानेपीने का भी अपना ही मजा होता है, लेकिन यह मौसम दिल व दिमाग को जितना सुकून पहुंचाता है, उतना ही इस मौसम में अपनी इम्यूनिटी को बूस्ट करने की भी जरूरत होती है क्योंकि बारिश के मौसम में इन्फैक्शन व फ्लू जैसी बीमारियों का खतरा सब से ज्यादा होता है.

ऐसे में स्ट्रौंग इम्यूनिटी वाला व्यक्ति ही हैल्दी लाइफ जीने के साथसाथ बीमारियों को खुद पर हावी होने से रोक पाता है.

तो आइए जानते हैं इस संबंध में वाशी के फोर्टिस हीरानंदानी हौस्पिटल के इंटरनल मैडिसिन की डाइरैक्टर डाक्टर फराह इंगले से:

क्या है इम्यूनिटी

इम्यूनिटी जिसे रोगप्रतिरोधक क्षमता भी कहते हैं शरीर की आंतरिक प्रतिरक्षा प्रणाली होती है, जो शरीर को बाहरी तत्त्वों से सुरक्षा प्रदान करने में मदद करती है. जैसे ही कोई वायरस, बैक्टीरिया शरीर पर हमला करता है, तो यह प्रतिरक्षा प्रणाली उस पर हमला करने के लिए सक्रिय हो जाती है. यह प्रक्रिया थोड़ी मुश्किल होती है क्योंकि इस कार्य में अलगअलग तरह की कोशिकाएं लगी होती हैं, जो बाहरी तत्त्वों से शरीर को सुरक्षा प्रदान कर के उसे हैल्दी बनाए रखने की कोशिश करती हैं.

इम्यूनिटी कई तरह की होती है जैसे ऐक्टिव इम्यूनिटी. यह हमारे शरीर को तब मिलती है, जब हम किसी बैक्टीरिया, वायरस के संपर्क में आते हैं. ऐसे में हमें पहले से मिली ऐंटीबौडीज व इम्यून सैल्स उस बाहरी तत्त्व को नष्ट करने में जुट जाती हैं.

इम्यूनिटी का दूसरा प्रकार है पैसिव इम्यूनिटी, जिस में वायरस बगैरा से सुरक्षा प्रदान करने के लिए बाहरी मदद से ऐंटीबौडीज प्रदान की जाती हैं. लेकिन शरीर तभी बाहरी तत्त्वों से लड़ने में सक्षम हो पाता है, जब वह अंदर से स्ट्रौंग हो और शरीर को अंदर से स्ट्रौंग बनाने के लिए जरूरी है अच्छे खानपान के साथसाथ कुछ हैल्दी हैबिट्स को भी अपनाने की खासकर के मौनसून के मौसम में.

ईट राइट फूड

शरीर की भूख को शांत करने के लिए खाना तो सभी खाते हैं, लेकिन हमें यह सम?ाना बहुत जरूरी है कि सिर्फ पेट भर लेने से शरीर की इम्यूनिटी बूस्ट नहीं होती है बल्कि सही फूड का चुनाव करना बहुत जरूरी है ताकि शरीर की न्यूट्रिशन संबंधित जरूरतें पूरी होने से आप की इम्यूनिटी भी बूस्ट हो सके. इस के लिए बारिश के मौसम में इन चीजों को अपनी डाइट व रूटीन में जरूर शामिल करें. ये फूड्स आप को हैल्दी रखने के साथसाथ आप को पूरा दिन ऐनर्जेटिक भी रखने का काम करेंगे.

विटामिन सी रिच फूड्स

अगर आप अपनी इम्यूनिटी पर वर्क कर रहे हैं, तो खासकर के मौनसून के मौसम में अपनी डाइट में विटामिन सी रिच फूड्स व फ्रूट्स जैसे अनार, औरेंज, केला, ऐप्पल, अंगूर, कीवी, ब्रोकली, यलो बेल पेपर्स, टमाटर, पपीता, हरी पत्तेदार सब्जियां जरूर शामिल करें क्योंकि ये सभी न्यूट्रिएंट्स से भरे होने के साथसाथ ऐंटीऔक्सीडैंट्स में भी रिच होते हैं, जो बैक्टीरिया, वायरस से शरीर को फुल प्रोटैक्शन देने के साथसाथ हमें अंदर से स्ट्रौंग बनाने का काम भी करते हैं.

इस से हम मौसमी बीमारियों जैसे कोल्ड व फ्लू से भी बच सकते हैं. शरीर खुद से विटामिन सी उत्पन्न नहीं करता है, इसलिए इस की शरीर में जरूरत को पूरा करने के लिए हमें फूड्स व सप्लिमैंट से ही इसे लेने की जरूरत होती है.

गुड इन्टेक औफ प्रोटीन

आप भले ही बाहर क्या हो रहा है, उसे कंट्रोल करने में असमर्थ हो सकते हों, लेकिन आप के शरीर में क्या हो रहा है इसे आप काफी हद तक अपनी डाइट से कंट्रोल कर के अपनी इम्यूनिटी को बूस्ट कर सकते हैं. इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए विटामिन ए, सी, डी, बी6 व विटामिन बी12 बहुत जरूरी होते हैं, लेकिन जितने जरूरी ये विटामिंस होते हैं, उतना ही जरूरी न्यूट्रिएंट इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए होता है.

एक औसत स्वस्थ वयस्क को प्रतिदिन अपने वजन के हिसाब से हर किलोग्राम पर 1 ग्राम प्रोटीन लेने की जरूरत होती है जैसे अगर आप का वजन 60 किलोग्राम है तो आप को रोजाना 60 ग्राम प्रोटीन लेना होगा.

इस के लिए आप अपनी डाइट में मूंग दाल, एग, सोयाबीन, पनीर, मिक्स्ड स्प्राउट्स, बेक्ड रागी चकली, ओट्स ब्रैड, सीड्स, नट्स, डेयरी प्रोडक्ट्स, पीनट बटर, दालें आदि को अपनी डाइट में शामिल करें. इस से आप खुद को फिट रखने के साथसाथ अपनी इम्यूनिटी को बूस्ट कर के खुद को बीमारियों से भी बचा सकेंगे.

मिनरल्स भी बेहद जरूरी

अगर आप को खुद को स्वस्थ रखना है तो विटामिंस के साथसाथ शरीर की मिनरल्स संबंधित जरूरतों को भी पूरा करना होगा. मिनरल्स हड्डियों को मजबूत बनाने और मांसपेशियों को दुरुस्त रखने के लिए जरूरी होते हैं. लेकिन अगर शरीर में इन की कमी हो जाए तो न्यू हैल्दी सैल्स नहीं बन पाते हैं, जो हमारी इम्यूनिटी को लो करने के साथसाथ हमें इन्फैक्शन होने का भी ज्यादा डर बना रहता है. ऐसे में हमें अगर अपनी इम्यूनिटी पर वर्क करना है और मौनसून में बीमारियों से खुद को बचाए रखना है तो अपनी डाइट में जरूरी मिनरल्स को शामिल करना न भूलें.

इस के लिए आप आयरन, जिंक, मैग्नीशियम, पोटैशियम, सेलेनियम को अपनी डाइट में शामिल करें. इन से मांसपेशियां मजबूत होने के साथसाथ दिमाग के विकास में तो मदद मिलती ही है, साथ ही नई कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद मिलती है.

खुद को रखें हाइड्रेट

चाहे मौसम कोई भी क्यों न हो, खुद को हर मौसम में हाइड्रेट रखना बहुत ही जरूरी है खासकर मौनसून के सीजन में क्योंकि सुहावना मौसम व मौसम में ठंडक के कारण हमारे शरीर को पानी की जरूरत भले ही महसूस न हो, लेकिन पानी शरीर में बहुत ही अहम रोल निभाता है. यह शरीर की कोशिकाओं तक औक्सीजन पहुंचाने का काम करता है, जिस से शरीर सुचारु ढंग से काम करने में सक्षम हो पाता है. यह शरीर से टौक्सिंस को बाहर निकाल कर आप की इम्यूनिटी पर इस का खराब प्रभाव होने से रोकने में भी मददगार होता है.

हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली हमारे रक्त प्रवाह में पोषक तत्त्वों पर अत्यधिक निर्भर होती है और हमारी ब्लड स्ट्रीम यानी रक्त प्रवाह काफी हद तक पानी पर, लेकिन अगर हम पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पीते हैं तो हर और्गन सिस्टम तक न्यूट्रिएंट्स आसानी से व ठीक से नहीं पहुंच पाते हैं, इसलिए खुद को हाइड्रेट रखने व बौडी को डिटौक्स करने के लिए रोज 9-10 गिलास पानी का सेवन जरूर करें. इस के लिए आप नीबू पानी, नारियल पानी, जूस का भी सहारा ले सकते हैं.

क्वालिटी स्लीप

आप ने कुछ लोगों को कहते सुना होगा कि हम ने 10-12 घंटे की नींद भी ली, लेकिन फिर भी हम खुद को फ्रैश फील नहीं कर रहे हैं. लेकिन कोई व्यक्ति 5 घंटे की नींद के बाद भी खुद को काफी रिफ्रैश फील करने लगता है. बता दें कि क्वालिटी स्लीप हमारे इम्यून सिस्टम को सपोर्ट करने का काम करती है. अनेक स्टडीज से पता चला है कि जो लोग पूरी व अच्छी नींद नहीं लेते हैं, वे जल्दीजल्दी बीमार होने के साथासथ उन्हें कोल्ड वायरस होने का खतरा भी सब से ज्यादा रहता है.

इसलिए खुद को रिचार्ज करने व इम्यून सिस्टम को स्ट्रौंग बनाने के लिए हर व्यक्ति को रोजाना 7-8 घंटे की पर्याप्त नींद जरूर लेनी चाहिए क्योंकि यह शरीर का रक्षा नैटवर्क होता है, जो शरीर में संक्रमण को रोकता व सीमित करता है.

स्ट्रैस बस्टिंग ऐक्सरसाइज

ऐक्सरसाइज न सिर्फ स्ट्रैस से दूर रखने का काम करती है, बल्कि आप की मांसपेशियों व हड्डियों को मजबूती प्रदान करने के साथसाथ आप की इम्यूनिटी को स्ट्रौंग बनाने का भी काम करती है. यही नहीं बल्कि ऐक्सरसाइज ब्लड सर्कुलेशन को इंप्रूव करने, वेट को मैनेज करने के साथसाथ आप के गुड स्लीप में भी मददगार होती है. इसलिए रोज 30 मिनट ऐक्सरसाइज जरूर करें. डीप ब्रीथ, ब्रिस्क वाक, साइक्लिंग, डांसिंग, रनिंग, जौगिंग, ऐरोबिक्स जैसी ऐक्सरसाइज करें.

Pregnancy के बाद महिलाओं में आंखों की समस्या को न करें नजरअंदाज

प्रेगनेंसी के समय महिलाओं में कई प्रकार के हार्मोनल परिवर्तन होते रहते है,जिससे मानसिकऔर शारीरिक बदलाव कुछ न कुछ होते है. एक बदलाव आँखों की समस्या का होता है, जिसमें किसी-किसी महिला को धुंधला दिखाई पड़ता है या आँखों की रौशनी कम हो जाती है. पहले इसे समझना मुश्किल होता है, क्योंकि अधिकतर बढती उम्र के साथ ही महिलाओं में आंखो की समस्या दिखाई पड़ती है, इसलिए गर्भावस्था में आँखों की रौशनी कम होने पर भी महिलाएं इग्नोर करती है. इससे बाद में आँखों की समस्या बढ़ जाती है.

करवाएं जाँच धुंधलेपन की

मुंबई की अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल की नेत्र विशेषज्ञ,डॉ. पल्लवी बिप्टे का इस बारें में कहना है कि असल में गर्भावस्था के दौरान हॉर्मोनल बदलाव के कारण कुछ महिलाओं को आंखो की समस्या का सामना करना पडता है.हालाँकि यह बदलाव अधिकतर अस्थायी होता है, लेकिन कई बार ये गंभीर भी हो सकती है, इसलिए गर्भावस्था में महिलाओं को अपनी आंखो की सेहत का ख्याल रखना जरूरी है.नई माओं को आंखो से धुंधलापन दिखने पर तुरंत उसकी जांच करवा लेना आवश्यक होता है.बढ़ना मात्रा

टिश्यूज में फ्लूइड की मात्रा का बढ़ना

विशेषज्ञों के अनुसार, गर्भावस्था या फिर प्रसव के बाद हॉर्मोन्स के कारण कर्ई बार टिश्यूज में फ्लूड की मात्रा बढने से आँखों की पुतली का आकार बदल सकता है, जिससे महिला को ठीक से दिखाई नहीं पड़ती, आंखो में ड्राईनेस की समस्या भी हो सकती है. इसके अलावा आँखों का लाल होना, आंखो से पानी आना, जलन होना आदि कई समस्याएं हो सकती है.अगर किसी महिला को गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की समस्या है, तो रेटिना में बदलाव होने की समस्या हो सकती है. इससे भी महिला को धुंधला दिखता है. यह समस्या अधिकतर महिलाओं को गर्भावस्था के दूसरी तिमाही में होती है.समय पर सही इलाज न मिलने पर गर्भावस्था के तीसरी तिमाही और प्रसव के बाद यह समस्या बढ सकती है.

समस्या उच्च रक्तचाप की

इसके आगे डॉक्टर कहती है कि कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप की समस्या होती है. इसे प्रीक्लैंप्सिया कहा जाता है.इसमें गर्भवती महिला का ब्‍लड प्रेशर लेवल बढ़ जाता है और किडनी असामान्‍य रूप से कार्य करने लगती है. जिसके कारण आंखो में धुंधलापन छा जाता है. इसलिए प्रेगनेंसी में महिलाओं को अपने ब्‍लड प्रेशर लेवल पर नजर रखनी चाहिए.इसके अलावा काफी कम महिलाओं को प्रसव के बाद पिट्यूटरी एडिनोमा की शिकायत होती है. इसमें महिलाओं के शरीर की पिट्यूटरी ग्रंथि में ट्यूमर विकसित होने लगती है,इससे शरीर में हार्मोंस के स्राव की सामान्‍य क्रिया में रुकावट आती है जो कि प्रेगनेंसी के बाद आंखों से संबंधित समस्‍याओं का कारण बन सकती है.

समस्या वाटर रिटेंशन की

गर्भावस्था में वाटर रिटेंशन यानि जल जमाव के कारण, कॉर्निया सूज जाता है और दृष्टि धुंधली हो जाती है. इसके अलावा गर्भावस्था में, आंसू का उत्पादन कम होता है और आंखों में सूखापन होता है.इसमें प्री-एक्लेमप्सिया या उच्च रक्तचाप से धुंधली दृष्टि, प्रकाश की चमक, फ्लोटर्स और यहां तक अस्थायी अंधापन भी हो सकता है. हालाँकि आंखों की अधिकांश समस्याएं अस्थायी होती है और गंभीर नहीं होती, लेकिन प्रसव के बाद में या पहले, आँखों में किसी भी लक्षण के नजर आने पर तुरंत नेत्र रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए, जो निम्न है.

लक्षण

  • किसी चीज का डबल दिखाई देना,
  • आंखों में दर्द होना,
  • आंखो में खुजली होना,
  • धुंधलापन या चक्कर का आना,
  • अक्षर को पढ़ने में कठिनाई महसूस करना,
  • आंखों पर दबाव महसूस होना,
  • प्रकाश में आते ही आंखों पर इसका प्रभाव पड़ना आदि कई है.

आंखो की समस्या का ध्यान

  • आंखो में समस्या दिखाई दे, तो तुरंत विशेषज्ञ की सलाह से आईड्रॉप का इस्तेपाल करें,
  • अगर यह समस्या पिट्यूटरी ग्रंथि के कारण हो रही है, तो डॉक्टर इसके लिए एस्ट्रोजन हार्मोन के विकास के कारण होने वाले ट्यूमर को रोकने की दवाई का देना,
  • वजन पर नियंत्रण रखना और अपना ब्लडप्रेशर को एक नियमित अंतराल पर चेक करवाते रहना,
  • शुगर लेवर पर अधिक ध्यान देना, ताकि जेस्टेशनल डायबिटीज से बचाव हो सके.

इसलिए अचानक नजर में धुंधलापन या डबल दिखने लगे, तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेकर दवाई लेना आवशयक है, ताकि समय रहते आँखों का इलाज कर लिया जाय.

भूखे रहने से नहीं, खाने से होगा पेट कम

क्या आप भी बढ़ते वजन, निकलते पेट और कमरा रूपी कमर से परेशान हैं? क्या आप भी अपने पुराने फिगर को मिस कर रही हैं? मोटापा आज के समय की एक बहुत बड़ी समस्या है. यह सिर्फ वयस्कों की ही समस्या नहीं है पर बच्चों और टीनेजर में भी मोटापा फैल रहा है.

मोटापे को कंट्रोल करने के लिए, सबसे पहले आपको अपने डाइट पर नजर रखनी होगी. कुछ महिलायें ये समझती हैं कि मोटापे को नियंत्रित करने के लिए खाना बंद कर देना चाहिए. डाइटिंग का मतलब भूखे रहना नहीं होता है. इसके साथ ही रेगुलर एक्सरसाइज करना बहुत जरूरी है. डाइटीशियन की मानें तो सही समय पर सही डाइट से आप अपना वजन कम कर सकती हैं. वजन कम करने के लिए सही मात्रा में फल सब्जियां लेना बहुत जरूरी है. फलों में भरपूर मात्रा में विटामिन और फाइबर होता है. इससे आपकी इम्युनिटी भी बढ़ती है.

इन फलों को खाकर आप मोटापा कम कर सकती हैं:

1. सेब

सेब प्रोपर डाएजेशन के लिए बहुत फायदेमंद हैं. सेब खाने से आपकी भूख भी कंट्रोल में रहती है. सेब लाल और हरे दोनों ही रंगों में पाया जाता है. सेब में कई विटामिन और मिनरल होते हैं. इसमें भरपूर फाइबर भी पाया जाता है.

2. चेरी

चेरी भी वजन कम करने बहुत कारगर है. खाली पेट चेरी खाना स्वास्थय के लिए बेहद फायदेमंद होता है.

3. स्ट्रॉबेरी

स्ट्रॉबेरी न सिर्फ आपके एक्सेस फैट को कंट्रोल करता है बल्की आपकी खूबसूरती को भी निखारता है. प्रतिदिन 5-6 स्ट्रॉबेरी खाना आपको अंदर से फिट और बाहर से कुदरती निखार देगा.

4. अनार

अनार खाने से न सिर्फ आपका पेट कम होगा बल्कि आपके शरीर में खून की मात्रा भी बढ़ेगी. अनार खाने या अनार का रस पीने से आप फिजीकली फिट रहेंगी. जिन महिलाओं को खून की कमी है उनके लिए अनार खाना बहुत फायदेमंद है. दिन भर आपको पूरे घर की देखभाल करनी पड़ती है, वर्किंग महिलाओं के लिए ये और मुश्किल हो जाता है. पर सिर्फ एक अनार खाने से आप अपने शरीर की कुछ हद तक देखभाल कर सकती हैं.

5. प्लम

प्लम के आकार पर मत जाइए. सुबह प्लम खाने से आप पूरे दिन एनर्जेटिक फील करेंगी. कमर घटाने के साथ ही यह आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है.

महिलाओं को होने वाले 5 सामान्‍य स्‍त्री रोग, हो सकते हैं चिंता का कारण

लगभग हर महिला अपने जीवनकाल में किसी न किसी स्त्रीरोग समस्याओं से पीड़ित रहती हैं. इनमें कुछ मामले हल्के और उपचार योग्य हो सकते हैं, तो वहीं कुछ गंभीर हो सकते हैं और जटिलताओं को जन्म दे सकते हैं.

डॉ तनवीर औजला, सीनियर कंसल्टेंट ऑब्स्टेट्रिशन और गाइनेकोलॉजिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा.

कहना है- वैसे तो अनियमित माहवारी या मासिक धर्म में होने वाली तकलीफ कुछ ऐसी आम समस्याएं होती हैं, जो महिलाओं को प्रभावित करती हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इसे हल्के में लिया जाए.

5 ऐसे स्त्री रोग है जो कि चिंता का कारण होने चाहिए.

1. ओवेरियन सिस्ट

ओवेरियन सिस्ट तरल पदार्थ से भरी एक थैली होती है जो अंडाशय पर और उसके आसपास विकसित होती है, ये विभिन्न आकार की हो सकती है और यह ट्यूमर हो भी सकता है और नहीं भी. कई महिलाएं इन सिस्ट की उपस्थिति को महसूस किए बिना भी स्वस्थ जीवन जीती हैं. इसकी काफी संभावना होती है कि ये अपने आप ही घुल जाएं, यदि नहीं, तो आपका डॉक्टर उन्हें खत्म करने में मदद करने के लिये ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव गोलियां लिख सकते हैं. वैसे भी, समय-समय पर उन पर नजर रखना जरूरी है.

2. एंडोमेट्रियोसिस

एंडोमेट्रियोसिस तब होता है जब गर्भाशय की परत के समान ऊतक गर्भाशय की दीवारों के बाहर बढ़ने लगता है. ऊतक आमतौर पर एंडोमेट्रियल ऊतक की तरह सूज जाता है और उससे खून बहता है,  लेकिन खून और अपशिष्ट उत्तक के बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता. हालांकि, यह कैंसर नहीं है, यह जख्म और स्राव पैदा कर सकता है और फैलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध कर सकता है. इससे सिस्ट हो सकते हैं जो रक्त के अवरोध का कारण बन सकता है. इसके लक्षणों में दर्द, असामान्य रक्तस्राव शामिल हो सकते हैं और गर्भधारण में परेशानी पैदा हो सकती है.

3. पीसीओएस या पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) एक ऐसी स्थिति है जो एक महिला के शरीर में हॉर्मोनल स्तर को प्रभावित करती है. शरीर में पुरुष हॉर्मोन की मात्रा एंड्रोजन की वृद्धि हो सकती है. इस समस्या वाली महिला में लंबे समय तक या कम मासिक धर्म हो सकता है और अंडाशय पर कई फोलिकल्स दिखाई दे सकते हैं, जो अंडे रिलीज करने में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं. पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को पेट पर चर्बी, मुंहासे, बालों का असामान्य विकास, मासिक धर्म की असामान्यता का अनुभव हो सकता है या बांझपन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.

4. यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआई)

हर आयु वर्ग में यह सबसे आम स्त्रीरोगों में से एक है. आमतौर पर यह योनि या मलद्वार में बैक्टीरिया की मौजूदगी की वजह से होता है, जोकि मूत्रमार्ग और मूत्राशय तक पहुंच जाता है और कई मामलों में किडनी तक भी. इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन यह प्रेग्नेंसी, इंटरकोर्स या डायबिटीज की वजह से हो सकता है. इसके लक्षणों में पेशाब करने के दौरान जलन महसूस होना, पेट में मरोड़, पीड़ादायक सेक्स और बार-बार पेशाब का आना शामिल है.

5. फाइब्रॉयड्स

फाइब्रॉएड मस्क्यूलर ट्यूमर होते हैं जो एक महिला के गर्भाशय के अंदर बन सकते हैं जो शायद ही कभी कैंसरकारी होते हैं. वे आम तौर पर स्थान, शेप और साइज में भिन्न होते हैं. यह तब होता है जब हॉर्मोन या आनुवंशिकी परेशानी पैदा करती है, यह फाइब्रॉयड्स का कारण बन सकता है. इसकी वजह से भारी मासिक चक्र होता है, पेट के निचले हिस्से में दबाव महसूस होता है, साइकिल के बीच में रक्तस्राव होता है या यौन संबंध के दौरान दर्द महसूस होता है.

हालांकि, अपने स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास समय पर जाना और अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इन समस्याओं को रोका जा सकता है.

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