Winter Special: सर्दियों के अनूठे हॉट ड्रिंक्स

सर्दियों का मौसम है जरुरी है कि हम कुछ टेस्टी और अलग ट्राय करें तो ऐसे में रेडी है ऐप्पल टी और मसाला मिल्क जिसे हम घर पर असान तरीकों से बना सकते है. तो रेडी है कुछ सर्दियों के हॉट ड्रिंक्स की लिस्ट जिसे घर वालों के साथ बनाएं और पिएं भी. आइए आपको रेसिपी बताते है…

  1. ऐप्पल टी

सामग्री

1.  2 कप पानी

 2. सेब टुकड़ों में कटा

 3.  ग्रीन टी बैग

 4.  1 टुकड़ा दालचीनी का

 5.  थोड़ा सा शहद व नीबू का रस

 6.  थोड़ा सा अदरक बारीक कटा.

विधि

एक सौसपैन में पानी डाल कर उस में दालचीनी, ग्रीन टी बैग, ऐप्पल के टुकड़े व अदरक डाल कर 9-10 मिनट तक उबालें. फिर उसे छान कर उस में शहद व नीबू का रस डाल कर सर्व करें.

2. मसाला मिल्क

सामग्री

1.  1 कप बादाम

 2.  1 कप पिस्ता

 3.  1 कप काजू

 4.  1 छोटा चम्मच जायफल पाउडर

 5.  1 साबूत जावित्री

6.  थोड़े से केसर के धागे

7.  थोड़ी सी कालीमिर्च

8.  थोड़ी सी हलदी

9.  8-10 हरी इलायची

10. 1 1/2 छोटे चम्मच अदरक पाउडर

 11. 1 1/2 बड़े चम्मच गुलाब की सूखी पत्तियां.

विधि

पैन में नट्स को रोस्ट कर के एक तरफ रखें. फिर एक जार में नट्स, मसाले, गुलाब की पत्तियों व केसर को मिला कर मिश्रण तैयार करें. अब एक गिलास दूध में 2 छोटे चम्मच तैयार मसालों के साथ 1 छोटा चम्मच चीनी डाल कर उबालें. गरमगरम मसाला मिल्क तैयार है.

3. वैजिटेबल टोमैटो सूप

सामग्री

1. 3-4 टोमैटो

 2.  7-8 बींस

 3.  1 गाजर

 4.  आधा घीया

 5.  थोड़ा सा कालीमिर्च पाउडर

 6.  2 बड़े चम्मच टोमैटो कैचअप

7.  2 गिलास पानी

8.  थोड़े से ब्रैड क्रूटौंस

9.  नमक स्वादानुसार.

विधि

प्रैशर कूकर में टोमैटो कैचअप और क्रूटौंस को छोड़ कर बाकी सारी सामग्री डाल कर 2 गिलास पानी डालें. फिर 7-8 मिनट तक पकने दें. फिर सूप को ब्लैंड कर के छान लें. अब इस में टोमैटो कैचअप डालें. कू्रटौंस डाल कर गरमगरम सूप सर्व करें.

क्या है बेरियाट्रिक सर्जरी और कब की जाती है

मोटापा एक गंभीर वैश्विक स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या बन चुका है जिसके कारण कई तरह के क्रोनिक विकार जैसे कि मधुमेह (डायबिटीज़), हृदय रोग (कार्डियोवास्‍क्‍युलर डिज़ीज़) और जोड़ों की समस्‍याएं (बोन ज्‍वाइंट्स) पनपने लगती हैं. बेहद गंभीर किस्‍म के मोटापे से पीड़ि‍त लोगों के लिए बेरियाट्रिक सर्जरी एक ऐसे संभावित समाधान के रूप में सामने आयी है जो वज़न घटाने के साथ-साथ स्‍वास्‍थ्‍य में भी सुधार लाने में मददगार है. लेकिन यह याद रखना महत्‍वपूर्ण है कि बेरियाट्रिक सर्जरी सभी के लिए एक जैसे तरीके से उपयोगी साबित नहीं होती और लंबे समय तक इसकी कामयाबी के लिए अपने लक्ष्‍यों के लिए प्रतिबद्धता होना और लाइफस्‍टाइल में बदलाव लाना जरूरी होता है.

एक्सपर्ट व्यू

डॉ संजय वर्मा, डायरेक्‍टर, मिनीमल एक्‍सेस, जीआई एंड बेरियाट्रिक सर्जरी, फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स, ओखला रोड, नई दिल्‍ली बताते हैं कि बेरियाट्रिक सर्जरी में कई तरह की प्रक्रियाओं को शामिल किया जाता है, जिसमें गैस्ट्रिक बायपास, स्‍लीव गैस्‍ट्रैक्‍टमी, और एडजस्‍टैबल गैस्ट्रिक बैंडिंग प्रमुख हैं. ये प्रक्रियाएं या तो पेट में खाद्य पदार्थों के समाने की क्षमता सीमित करती हैं या न्यूट्रिएंट्स का अवशोषण घटाती हैं. जिसके चलते तेजी से न सिर्फ वज़न कम होता है बल्कि मोटापे से जुड़ी कई स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं भी दूर होती हैं. इस प्रक्रिया से मरीजों को न केवल ब्‍लड शुगर कंट्रोल होता है, वरन ब्‍लड प्रेशर और कलेस्‍ट्रॉल में भी सुधार होता है और इनसे जुड़े रोगों का जोखिम भी घटता है.

कैसे करती है कार्य

बेरियाट्रिक सर्जरी द्वारा लंबे समय के लिए वज़न कम होने की संभावना के पीछे एक प्रमुख कारण है कि यह भूख को नियंत्रित करती है. इस प्रक्रिया से आंतों और मस्तिष्‍क के बीच संचार में बदलाव होता है. जिसके परिणामस्‍वरूप भूख घटती है और मरीज को पेट भरा होने का अहसास बना रहता है. लेकिन बेरियाट्रिक सर्जरी की सफलता मरीज द्वारा स्वस्थ जीवनशैली अपनाने और उसका पालन करने पर निर्भर करती है. हालांकि सर्जरी के बाद से ही वेट लॉस की शुरुआत हो जाती है लेकिन वजन को बढ़ने नहीं देने के लिए आहार में सुधार, नियमित शारीरिक व्‍यायाम और मनोवैज्ञानिक सपोर्ट की आवश्‍यकता भी होती है.

 क्या व्यक्ति हमेशा के लिए वजन कम कर पता है

यह भी समझना होगा कि बेरियाट्रिक सर्जरी भविष्‍य में वजन न बढ़ने की गारंटी नहीं होती. इस प्रक्रिया को करवाने वाले मरीजों को आहार संबंधी निर्देशों और बतायी गई शारीरिक गतिविधियों का नियमित रूप से पालन करना जरूरी है, ताकि पेट की थैली में कोई फैलाव न हो. जिसकी वजह से वजन दोबारा बढ़ने लगता है. इसके अलावा, बेरियाट्रिक सर्जरी की उपयोगिता अलग-अलग व्‍यक्तियों पर अलग-अलग ढंग से अपना असर दिखाती है जो उनकी मेडिकल तथा मनोवैज्ञानिक स्थितियों पर निर्भर है.

यह सर्जरी कब है कामयाब

बेरियाट्रिक सर्जरी की सफलता काफी हद तक पोस्‍ट-ऑपरेटिव सपोर्ट तथा फौलो-अप पर टिकी होती है. चिकित्‍सक, आहार-विशेषज्ञ और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पेशेवरों की भी भूमिका अहम् होती है जो मरीजों को खान-पान की नई आदतों के मुताबिक ढालने की चुनौतियों और भावनात्‍मक स्‍तर पर आ रहे बदलावों के लिए तैयार करते हैं. नियमित जांच और लगातार दिया गया मार्गदर्शन मरीजों को वजन घटाने की राह में आने वाली परेशानियों से निपटने में भी सहायक साबित होता है.

निष्कर्ष

संक्षेप में, बेरियाट्रिक सर्जरी मोटापे को दूर करने का एक संभावनाशील समाधान है, जो तुरंत वेट लॉस की शुरुआत कर संबंधित स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं में भी सुधार ला सकती है. लेकिन यह समझना महत्‍वपूर्ण है कि सर्जरी अपने आप में कोई जादू की छड़ी नहीं. लंबे समय तक वजन नियंत्रित रखने के लिए काफी कुछ करना जरूरी है जैसे कि लाइफस्‍टाइल में बदलाव, खान-पान में सुधार, नियमित रूप से शारीरिक गतिविधियां और मनोवैज्ञानिक स्‍तर पर सपोर्ट. बेरियाट्रिक सर्जरी ऐसा टूल है जो मरीजों के समर्पण और सहयोगी हेल्थकेयर टीम के साथ मिलकर वेट लॉस के लक्ष्‍य को स्‍थायी रूप से साकार कर मरीजों के स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार का भरोसा भी दिला सकता है.

एक्सपर्ट के मुताबिक बेरियाट्रिक सर्जरी वास्‍तव में, मोटापे के खिलाफ एक महत्‍वपूर्ण टूल साबित हो सकता है, लेकिन इसके लिए मरीजों का अपना नजरिया और स्‍वस्‍थ जीवनशैली के लिए उनके खुद के प्रयास भी काफी मायने रखते हैं.

13 Baby Health tips: Monsoon बेबी स्किन केयर

बारिश का मौसम बहुत सुहावना होता है, मगर इस मौसम बच्चों से लेकर बड़ों तक को अपनी सेहत की खास देखभाल की जरूरत होती है. दरअसल, बारिश में मच्छरों और गंदे पानी से पैदा होने वाली बीमारियों से इन्फैक्शन का खतरा बढ़ जाता है. वैसे बरसात के खूबसूरत मौसम को बच्चे बहुत ऐंजौय करते हैं क्योंकि यह उन के लिए बहुत रोमांचक और मजेदार होती है. लेकिन मौनसून में बेबीज की स्किन को खास देखभाल की जरूरत होती है. उन की स्किन काफी नाजुक होती है.

ऐसे में जरा सी लापरवाही से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. इस मौसम में कई बार बच्चे बारिश के पानी में भीग जाते हैं, जिस कारण उन की स्किन में खुजली, रैशेज और त्वचा पर दानों की समस्या हो सकती है. इसलिए उन की स्किन की स्पैशल केयर बहुत जरूरी है.

  1. मौइस्चराइजिंग लोशन का प्रयोग करें

बच्चों की स्किन बहुत ही मुलायम और सैंसिटिव होती है. जब मौसम में अधिक ह्यूमिडिटी बढ़ जाती है तो बच्चों को अधिक खुजली और रैशेज की समस्या होने लगती है. इस से उन्हें राहत दिलाने के लिए आप एक मौइस्चराइजिंग लोशन का प्रयोग कर सकती हैं जो उन की स्किन को इस मौसम में ड्राई होने से और रैशेज आने से बचा सकता है. कुछ अच्छे मौइस्चराइजिंग लोशन ये हैं:

बेबी हग डेली मौइस्चराइजिंग लोशन, सेटाफिल बेबी डेली लोशन विद शीया बटर, हिमालया हर्बल बेबी लोशन, अवीनो बेबी डेली मौइस्चराइजिंग लोशन, मामाअर्थ मौइस्चराइजिंग डेली लोशन व्हाइट, चिकू बेबी मोमैंट्स बौडी लोशन, बेबी डव लोशन मौइस्चर, जौनसन बैबी लोशन फौर न्यू बोर्न आदि.

2. डायपर गीला न छोड़ें

बेबी को सूखा रखने के लिए उसे डायपर पहनाया जाता है, लेकिन कई बार इसे चैक न करने पर बेबी कई घंटों तक गीले डायपर में ही पड़ा रहता है. इसलिए कुछ अंतराल पर उस की नैपी को जरूर चैक करती रहें. बारिश में वातावरण में नमी बढ़ने से शिशुओं को भी डायपर रैशेज होने का खतरा रहता है.

इसलिए अपने बच्चे के डायपर को समयसमय पर बदलती रहें. उसे कुछ देर तक डायपर मुक्त रखें, साथ ही हवा की आवाजाही के लिए कौटन डायपर का प्रयोग करें. कुछ अच्छे डायपर ब्रैंड्स हैं: हिमालया बेबी डायपर, मैमीपोको पैंट, लिटिल ऐंजल डायपर, मीमी बेबी डायपर, सुपर बौटम्स नैप्पीज, पैंपर्स ऐक्टिव बेबी डायपर, पैंपर प्रीमियम केयर डायपर पैंट, हग्गीज वंडर पैंट्स डायपर आदि.

3. उपयोग किए जाने वाले प्रोडक्ट्स को जांचें

बेबीज के लिए मार्केट में मिलने वाले प्रोडक्ट्स ध्यान से खरीदें. आमतौर पर शिशुओं के कौस्मैटिक उत्पादों में पाया जाने वाला फेनोक्सीथेनौल बच्चे की त्वचा में ऐलर्जी पैदा कर सकता है. इसलिए किसी भी प्रोडक्ट में मौजूद इनग्रीडिऐंट्स जरूर पढ़ें और सुरक्षित प्रोडक्ट्स ही लें. हमेशा प्रोडक्ट के लेबल को देखें और पैराबेन, अल्कोहल आर्टिफिशियल कलर, सुगंध और डाई वाले उत्पादों से भी बचें.

4. मच्छरों से बचाएं

बारिश के मौसम में मच्छरों की संख्या भी अधिक बढ़ जाती है. इसलिए बच्चे को मौनसून में मच्छरों के काटने से बचाएं. उन की कोमल त्वचा पर जब मच्छर काटता है तो उन्हें बहुत तेज दर्द अनुभव होता है. उन की स्किन पर लाल निशान या सूजन भी हो सकती है.

इस मौसम में डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियां फैल जाती हैं. इन से बचाने के लिए आप को अपने बच्चों को मच्छरों से दूर रखना होगा. जब भी आप अपने बच्चे को सुलाती हैं तो यह ध्यान करें कि उस के बैड पर मच्छर का नैट जरूर लगा कर रखें.

बच्चों की स्किन पर कोई ऐसा डेलिकेट गैरविषैले और डीईईटी मुक्त मच्छर प्रतिरोधी लगाएं जो उन्हें मच्छरों से बचा सकें और घर में साफसफाई का भी ध्यान रखें ताकि घर में अधिक मच्छर न पनप सकें. बच्चों को शाम के वक्त घर के बाहर न ले कर जाएं. अगर ले कर जाना जरूरी हो तो पूरे कपड़े पहनाएं ताकि बच्चे मच्छर से बच सकें.

5. शरीर की मालिश

बरसात के मौसम में नहाने से पहले अपने बच्चे की मालिश जरूर करें. जैतून का तेल या बादाम का तेल सर्दियों में शिशु की मालिश के दौरान त्वचा के लिए फायदेमंद होता है खासकर जैतून का तेल एक बहुत ही समृद्ध मौइस्चराइजर है और ओमेगा 3, 6 और 9 का एक अच्छा स्रोत है जो त्वचा को हाइड्रेट करता है और त्वचा की प्राकृतिक नमी को सील करता है.

चाहें तो बच्चे की त्वचा की मालिश अच्छे प्राकृतिक तेलों जैसे कि वर्जिन कोकोनट औयल बेस्ड बेबी औयल से करें. इस में कई पोषक तत्त्व होते हैं जो आप के बच्चे की स्किन को आवश्यक और सुरक्षित पोषण प्रदान करते हैं.

6. हाथों की सफाई भी जरूरी

अपने बेबी के नाखूनों को हमेशा छोटा रखें. हाथों की गंदगी से बच्चों की सेहत पर भी असर पड़ सकता है. पेरैंट्स भी अपने हाथों को अच्छे हैंड वाश से धोते रहें और बच्चों को भी ऐसा ही सिखाएं खासकर खाने से पहले उन्हें हाथ धोने को जरूर कहें.

7. स्किन को ड्राई रखें

मौनसून के मौसम में उमस काफी ज्यादा रहती है, जिस कारण पसीना आता रहता है और कई बार बारिश में भीगने के कारण भी स्किन भीग जाती है. ऐसे में कोशिश करें कि स्किन को पहले साफ पानी से वाश करें, फिर सूखा टौवेल ले कर बच्चों की स्किन को साफ करें. स्किन को ड्राई रखने की कोशिश करें.

8. कौटन के कपड़े पहनाएं

मौनसून के मौसम में बच्चों को कौटन के कपड़े ही पहनाएं क्योंकि इस तरह के कपड़े आसानी से पसीने को सोख लेते हैं और स्किन भी सांस ले पाती है. बच्चों को इस मौसम में टाइट कपड़े पहनाने से बचें क्योंकि टाइट कपड़े पहनाने से उन की स्किन पर रैशेज हो सकते हैं.

9. बेबी का सामान शेयर न करें

इस मौसम में जरा सी लापरवाही के कारण बेबी की स्किन पर कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं. बेबी को साफसुथरा रखने के साथसाथ उस के पर्सनल सामान की भी नियमित सफाई करती रहें. बेबी के तौलिए, कपड़े और कंघी को किसी को भी देने से बचें.

10. ऐंटीफंगल पाउडर का प्रयोग करें

बच्चों की स्किन की देखभाल के लिए ऐंटीफंगल पाउडर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इस पाउडर को लगाने से स्किन पर बैक्टीरिया का विकास नहीं होगा, साथ ही बच्चों को नहलाने के समय पानी में ऐंटीसैप्टिक लिक्विड का भी इस्तेमाल करें.

11. क्लींजर का इस्तेमाल करें

मौनसून में उमस के कारण बच्चों की स्किन ड्राई हो सकती है. ऐसे में उन की स्किन पर साबुन का इस्तेमाल न करें क्योंकि यह बच्चों की स्किन को और अधिक ड्राई कर सकता है. बच्चों की स्किन का पीएच बैलेंस बनाए रखने के लिए औयल फ्री क्लींजर का इस्तेमाल करें.

12. बच्चों के कपड़े सूखे रखें

अगर बच्चे बारिश के मौसम में भीग जाते हैं या कपड़े धोने के बाद वे अच्छे से सूख नहीं पाते हैं तो आप को उन्हें ऐसे ही अलमारी में नहीं रख देना चाहिए. आप को बच्चों के कपड़ों को अच्छी तरह से सुखाना चाहिए और अगर सूख नहीं रहे हैं तो प्रैस कर सुखा लें क्योंकि अगर वे गीले कपड़े पहनेंगे तो इन के शरीर पर खुजली और रैशेज आदि की समस्या देखने को मिल सकती है.

13. स्वस्थ आहार

मौनसून में बच्चों को स्वस्थ और संतुलित आहार देना बहुत महत्त्वपूर्ण है. इस मौसम में खांसी, जुकाम और बुखार जल्दी हो जाता है. बच्चों को विटामिन सी और जीवाणुरोधी खाद्यपदार्थ जैसे अमरूद, आंवला, नारंगी, पपीता आदि का सेवन कराना चाहिए. बच्चों को फल और गरम सूप दें. पानी को उबाल कर देना एक अच्छा तरीका है. पानी को उबालने पर उस के अंदर के कीटाणु भी मर जाते हैं.

Women: प्रजनन स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित करने वाले कारक और फर्टिलिटी को बेहतर बनाने के तरीके

मां बनने का सुख सिर्फ शब्‍दों में बयान नहीं किया जा सकता. यह किसी भी महिला के जीवन का सबसे अतुलनीय अनुभव होता है, जो उसके जीवन में खास अर्थ भरता है. लेकिन हर महिला अपने जीवन में इस सुख का अनुभव करने में समर्थ नहीं होती, और इसका कारण बांझपन या इंफर्टिलिटी होता है.

डॉ. मालती मधु, सीनियर कंसल्टेंट- फर्टिलिटी एंड आईवीएफ, अपोलो फर्टिलिटी, नोएडा का कहना है कि- इंफर्टिलिटी की वजह से न सिर्फ भावनात्‍मक विषाद पैदा होता है, बल्कि इसकी वजह से महिलाओं में लंबे समय तक एंग्‍ज़ाइटी और डिप्रेशन भी घर कर सकता है. भारत में इंफर्टिलिटी की समस्‍या तेजी से आम और काफी चिंताजनक बनती जा रही है.

सैंपल रजिस्‍ट्रेशन सर्वे डेटा के मुताबिक, देश में, करीब 30% महिलाएं लो ओवेरियन रिज़र्व से जूझ रही हैं. इसका एक बड़ा कारण उनकी लाइफस्‍टाइल संबंधी आदतें भी हैं.

 1.फर्टिलिटी को प्रभावित करने वाले कारक-

 महिलाओं की फर्टिलिटी पर असर डालने वाले कई कारण हो सकते हैं जिनके चलते मां बनने का उनका सपना अधूरा रह जाता है.

2.शराब का सेवन 

शराब किस तरह से महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित करती है, इसका सही-सही कारण अभी मालूम नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि इसकी वजह से फॉलिक्‍यूलर ग्रोथ, ओवुलेशन, ब्‍लास्‍टोसाइट और इंप्‍लांटेशन की प्रक्रियाएं प्रभावित होती हैं. मेडिकल पत्रिका लान्‍सेट में प्रकाशित एक अध्‍ययन के मुताबिक, 15 से 39 वर्ष की 5.39 मिलियन भारतीय महिलाएं शराब का सेवन करती हैं.

3. धूम्रपान

धूम्रपान खुद किया जाए या परोक्ष (एक्टिव अथवा पैसिव) हो, इसका महिलाओं की प्रजनन प्रक्रिया के प्रत्‍येक चरण में नुकसानकारी प्रभाव हो सकता है. तंबाकू के धुंए में मौजूद दो रसायन – कैडमियम और कोटिनाइन विषाक्‍त होते हैं और इनके कारण डिंब निर्माण (ऍग प्रोडक्‍शन) और एएमएच लैवल्‍स पर असर पड़ता है. धूम्रपान की वजह से फर्टिलिटी पर पड़ने वाले अन्‍य नकारात्‍मक प्रभावों में निषेचन और विकास क्षमता का कम होना शामिल है, जो गर्भ धारण की दरों में कमी लाता है.

4. तनाव

प्रजनन क्षमता या फर्टिलिटी, वास्‍तव में, भावनात्‍मक उतार-चढ़ाव की तरह होती है, और यह समझना महत्‍वपूर्ण होता है कि कई बार तनाव, दबाव और चिंताओं आदि से, जिनकी वजह से बांझपन बढ़ता है, बचा जा सकता है. तनाव आज के दौर में ऐसा पहलू है जिससे बचना नामुमकिन है, और इसका असर महिलाओं की फर्टिलिटी पर पड़ता है.

 5. बीएमआई

हार्मोनल असंतुलन के चलते डिंबस्राव (ओवुलेशन) की प्रक्रिया प्रभावित होती है जिसका असर किसी महिला के गर्भवती होने पर पड़ता है, देखा गया है कि सामान्‍य से कम वज़न (18.5 से कम बीएमआई) होने पर फर्टिलिटी प्रभावित होती है. जिन महिलाओं का वज़न सामान्य से कम होता है, वे स्‍वस्‍थ वज़न वाली महिलाओं की तुलना में गर्भधारण करने में एक साल से ज्‍यादा समय ले सकती हैं. इसी तरह, अधिक वज़न (35 से अधिक बीएमआई) होने से भी हार्मोनल संतुलन बिगड़ सकता है, प्रेगनेंसी के जोखिम बढ़ते हैं और साथ ही, फर्टिलिटी उपचार के लिए जरूरी दवाओं का सेवन/खर्च भी बढ़ता है.

 आधुनिक दौर की व्‍यस्‍त जीवनशैली में, महिलाओं को अपने निजी और पेशेवर जीवन में बहुत-सी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में, कई बार वे लाइफस्‍टाइल संबंधी गलत चुनाव भी कर बैठती हैं जिससे उनकी फर्टिलिटी पर असर पड़ता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि स्थितियां अंधकारपूर्ण ही हैं। अब ऐसे कई तौर-तरीके और विकल्‍प उपलब्‍ध हैं जो महिलाओं को अपनी फर्टिलिटी को बेहतर बनाने में मदद कर करते हैं.

फर्टिलिटी बेहतर बनाने के उपाय

  1. संतुलित भोजन करें:-

जो महिला गर्भधारण का प्रयास कर रही होती है, उसे संतुलित भोजन यानि सेहतमंद खानपान पर ध्‍यान देना चाहिए. आमतौर पर, कुछ स्‍पेशल खुराक जैसे कि वेजीटेरियन या लो-फैट डाइट्स उन महिलाओं के लिए उचित होती हैं जो इस लाइफस्‍टाइल को चुनती हैं. गर्भधारण के लिए प्रयासरत महिलाएं फॉलिक एसिड सप्‍लीमेंट भी ले सकती हैं जो न्‍यूरल ट्यूब की असामान्‍यताओं से बचाव करता है (इस मामले में मेडिकल स्‍पेश्‍यलिस्‍ट से सलाह करें). साथ ही, वे अपनी खुराक में विटामिन डी भी शामिल कर सकती हैं, जो कि डिंब निर्माण और उनकी परिपक्‍वता में भूमिका निभाता है.

 2. धूम्रपान और शराब का सेवन करने से बचें:-

जो महिलाएं गर्भधारण के लिए प्रयासरत होती हैं, उन्‍हें धूम्रपान और शराब के सेवन से हर हाल में बचना चाहिए. इन आदतों के चलते, इंफर्टिलिटी यानि बांझपन के जोखिम बढ़ सकते हैं लेकिन इनसे बचने पर स्‍वस्‍थ प्रेग्‍नेंसी और खुशहाल परिणाम मिलने की संभावना बढ़ सकती है.

 3. तनाव का प्रबंधन:-

गर्भधारण का प्रयास करने और फर्टिलिटी उपचार लेने के दौरान, अपने संपूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य (शारीरिक और मानसिक) पर ध्‍यान देना जरूरी है. ऐसे में, घर-परिवार के स्‍तर पर ठोस सपोर्ट उपलब्‍ध होने से भी फर्टिलिटी में मदद मिलती है.

 4. विशेषज्ञ से सलाह लें:-

यदि बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या बनी रहे और गर्भधारण करने में कठिनाई हो, तो ऐसे में म‍ेडिकल एक्‍सपर्ट से सलाह-मश्विरा करना फायदेमंद हो सकता है जो आपकी मदद कर सकते हैं. अब टैक्‍नोलॉजी में सुधार होने से, फर्टिलिटी स्‍पेश्‍यलिस्‍ट लोगों को रिप्रोडक्टिव केयर के हर पहलू के बारे में मदद करते हैं. इसके लिए उन्‍हें इंफर्टिलिटी थेरेपी, फर्टिलिटी के यथासंभव प्रीज़र्वेशन और गर्भाशय संबंधी मामलों में मदद शामिल है. फर्टिलिटी स्‍पेश्‍यलिस्‍ट आमतौर पर, पूरी मेडिकल हिस्‍ट्री के बारे में जानकारी लेते हैं और यदि आपने पूर्व में कोई फर्टिलिटी जांच या उपचार करवाया होता है, तो उसके अलावा कुछ और उपाय करना चाहते हैं. इन तमाम जानकारियों के आधार पर, वे आपको कुछ उपयोगी समाधान दे पाते हैं.

फर्टिलिटी, आपकी लाइफस्‍टाइल संबंधी आदतों समेत अन्‍य कई कारणों से प्रभावित होती है।.इसलिए, अगर आप गर्भधारण करने और मां बनने का सपना देख रही हैं, तो अपनी बुरी और गैर-सेहतमंद आदतों को दूर करें और उनके स्‍थान पर स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक आदतों को अपनाएं.

रातभर भिगोकर रखें ये 5 चीजें, सुबह उठकर खाने से हर बीमारी हो जाएगी दूर

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

बात जब हमारी सेहत की हो, तो व्यक्ति खुद को फिट रखने के लिए हर मुमकिन उपाय करता है. चाहे वह जिम में घंटों वर्कआउट करना हो, ढेर सारा पानी पीना हो या फिर कोई डाइट फॉलो करना. लेकिन यह समझना बहुत जरूरी है कि स्वस्थ और फिट रहने के लिए इन सबके साथ सही खाना-पान की जरूरत होती है. पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ न केवल हमें ऊर्जा देते हैं, बल्कि हमें हर बीमारी से बचाए रखने में भी कारगार साबित होते हैं. कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे हैं, जिन्हें आपको सुबह जल्दी उठकर खाना चाहिए. लेकिन इन्हें रात में भिगोकर रखना जरूरी है. विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसा करने से ये शरीर में आसानी से पच जाते हैं. तो आइए हम यहां आपको ऐसे 5 नट्स और बीज के बारे में बता रहे हैं, जो आपकी पेट की समस्या, इम्यूनिटी , वजन घटाने और गठिया जैसी मुख्य स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में मदद करेंगेे.

1. मेथी के बीज-

रात में मेथी को भिगोकर  रख दें और सुबह उठने के बाद इन भीगे हुए बीजों को खा लें या इनका पानी पी लें. ऐसा करने से आपको जोड़ों के दर्द से राहत मिलेगी, जो महिलाओं में एक आम समस्या है. वैसे मेथी का दाना पेट के लिए भी बहुत फायदेमंद है. कब्ज से राहत के लिए यह सबसे अच्छा घरेलू नुस्खा भी  है. आंतों को साफ करने के साथ यह पाचन में भी सुधार करता है. मेथी मधुमेह रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद मानी जाती है, वहीं इसके सेवन से मासिक धर्म में होनेा वाला दर्द भी दूर हो जाता है.

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2. किशमिश-

आयरन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर किशमिश आपकी सेहत के लिए एक वरदान है. जब आप रात में भिगोई हुई किशमिश सुबह उठकर खाते हैं तो  यह आपकी त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बना देती है. बहुत सी महिलाओं में आयरन की कमी देखी जाती है . ऐसे में भीगी हुई  किशमिश  शरीर में आयरन की पूरी करने का एक बेहतरीन विकल्प है. इसके स्वास्थ्य लाभों का फायदा लेने के लिए रोजाना सुबह उठकर  किशमिश  का पानी पीएं.

3. अलसी-

आपके स्वास्थ्स को बेहतर बनाने के लिए रोजाना एक चम्मच अलसी का सेवन ही काफी है. इसके बीजों को रातभर पानी में भिगो दें और सुबह इनका सेवन कर लें.  ये बीज, फाइबर, आयरन और प्रोटीन से भरपूर होते हैं, जो वजन घटाने में आपकी बहुत मदद करेंगे. इन बीजों का नियमित रूप से सेवन करने पर न केवल आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी बल्कि आप मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियों से भी बच रहेंगे.

4. अंजीर-

अंजीर विटामिन, फाइबर, मैग्नीशियम और पोटेशियम से भरपूर होता है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स, फ्लेवेनॉइड्स और पॉलीफेनॉल्स भी होते हैं, जो शरीर को फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से बचाते हैं. बीमारियों से बचने के लिए एक अंजीर रात में पानी में भिगों दें और सुबह खा लें. बहुत फायदा मिलेगा.

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5. बादाम-

ज्यादातर लोग दिमाग को तेज करने के लिए सुबह उठकर भीगे हुए बादाकम खाते हैं. दिमाग की सेहत को अच्छा रखने के अलावा यह वजन घटाने में भी बहुत मदद करता है. बादाम में मैग्रीशियम बहुत अच्छी मात्रा में होता है, जो ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल की समस्या से निपटने वालों के लिए बहुत अच्छा है.

ध्यान रखें इन बीजों और नट्स का सेवन कम मात्रा में ही करें. क्योंकि इनकी तासीर गर्म होती है इसलिए इनके जरूरत से ज्यादा सेवन से मुहांसे और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

हैल्दी लाइफस्टाइल है जरूरी

काव्या आईटी कंपनी में काम करती है. उम्र 28 साल. अविवाहित है. लौकडाउन के बाद कंपनी ने वर्क फ्रौम होम शुरू कर दिया. शुरू में जैसे हालात थे उन से लगता था कि जिंदगी 2-3 महीने में वापस अपने पुराने ढर्रे पर आ जाएगी. लेकिन कोरोना का ऐसा कहर बरपा कि स्थिति सामान्य होने के बजाय और भी खराब हो गई. काव्या की कंपनी ने सभी को साल के अंत तक वर्क फ्रौम होम करने की हिदायत दी.

शुरू में घर पर रहते हुए काव्या ऐक्टिव थी. सुबह 6 बजे तक उठ जाती थी. वाक पर जाती थी. वाक पर नहीं जा पायी तो घर पर आधा घंटा ऐक्सरसाइज करती. खानपान पर ध्यान देती थी. लेकिन जैसेजैसे वक्त बीतता गया घर पर ही रहते हुए काव्या को आलस ने घेरना शुरू कर दिया. औफिस जाना नहीं था तो सुबह 8-9 बजे तक भी सोई रहती. वाक पर जाना बंद हो गया, क्योंकि 10 बजे तक उसे औफिस कौल पर लैपटौप के आगे बैठना होता था. तलाभुना, अनहैल्दी फूड खाने का चसका कुछ ज्यादा ही लग गया. टाइम की कोई पाबंदी नहीं, इसलिए वक्तबेवक्त खाने के लिए मुंह चलता ही रहता.

कहां तो पहले 9 बजे तक डिनर कर 11 बजे तक हर हाल में सो जाती थी, लेकिन अब डिनर करने का कोई टाइम ही नहीं था. देर रात तक वैब सीरीज देख कर अपनी नींद खराब करती और इसलिए सुबह देर से उठती.

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अब अकसर उस का पेट खराब रहने लगा था. कुछ दिन से महसूस कर रही थी कि कुछ मेहनत वाला काम करती है तो जल्दी थक जाती है.

एक रात जब सोने लगी तो उसे पेट में दर्द होना शुरू हो गया, जो धीरेधीरे बढ़ता गया. किसी तरह रात निकाली. अगले दिन डाक्टर को दिखाया. जांच के बाद पता चला कि उसे अपैंडिक्स हो गया है. चूंकि अभी बीमारी आरंभिक स्तर पर थी, इसलिए सर्जरी के बाद काव्या जल्दी ठीक हो गई.

मगर ये सब हुआ क्यों? काव्या के पूछने पर डाक्टर ने बताया कि खानेपीने की गलत आदत की वजह से यह बीमारी होती है.

काव्या अपने खानेपीने और हैल्थ को ले कर बहुत लापरवाह हो गई थी. कुछ बीमारियां हो जाती हैं, लेकिन कुछ बीमारियों को हम खुद बुलावा देते हैं जैसेकि काव्या के साथ हुआ. इसलिए अपने को हैल्दी रखना है तो हैल्दी लाइफस्टाइल अपनाना बहुत जरूरी है.

यदि आप हैल्दी लाइफस्टाइल अपनाना चाहते हैं लेकिन सम झ नहीं आ रहा है कि कैसे, क्या, कहां से शुरुआत करें तो फौलो करें इन टिप्स को:

ऐक्सरसाइज और सैर करना:

यों तो गरमी के मौसम में बाहर जा कर वर्कआउट करना या सैर करना फिट रहने का सब से अच्छा विकल्प है, मगर सर्दी के मौसम में आउटडोर वर्कआउट की सलाह नहीं दी जाती. ऐसे में घर पर रह कर भी डांस इत्यादि के जरीए फिटनैस को बरकरार रखा जा सकता है. फिजिकल ऐक्टिविटी का मतलब है ऐसी कोई भी ऐक्सरसाइज, जिस से शरीर से पसीना निकले और आप को उस के लिए ऐक्स्ट्रा मेहनत करनी पड़े. इस से व्यक्ति की मांसपेशियां मजबूत होती हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. ज्यादा नहीं तो कम से कम रोज 30 मिनट तक ऐक्सरसाइज जरूर करें.

पौष्टिक भोजन करें :

खानेपीने का हमारे शरीर पर बहुत ज्यादा असर पड़ता है. पौष्टिक भोजन से शरीर को ऐनर्जी मिलती है. सिंपल कार्बोहाइड्रेट के लिए पोहा, उपमा, स्टीम्ड इडली, ओट्स, मूसली और प्रोटीन के लिए अंडा, मलाई रहित दूध ले सकते हैं. फैट के लिए बादाम, अखरोट, अलसी के बीज खाएं. शाम के समय कोई भी सब्जियों से बना सूप या ग्रीन टी लें. रात के भोजन में एक कटोरी सलाद या उबली सब्जियों अथवा पपीते का सेवन करें. सब्जियों में प्याज और लहसुन भी डालें.

डाइट को 6-7 बार टुकड़ों में बांट लें. यदि 3 बार ही खाते हैं तो बीच में स्प्राउट्स, मौसमी फल, सब्जियों का सलाद खाने व जूस पीने की आदत डालें.

गेहूं की रोटी के बजाय सर्दियों में मक्का व बाजरा खाएं. सफेद के बजाय ब्राउन राइस खाएं. इन में मौजूद प्रोटीन, कैल्सियम, मैग्नीशियम, फाइबर, पोटैशियम जैसे तत्त्व वजन को नियंत्रित कर पाचन क्रिया और ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित रखते हैं.

पर्याप्त मात्रा में पानी पीना:

रोज 8-10 गिलास पानी तो पीना ही चाहिए. सुबह उठते ही 1 गिलास पानी पीना अपनी आदत में शामिल करें. इस से पेट साफ रहता है. पानी पीने से स्किन में रूखापन नहीं आता. मांसपेशियों का 80% भाग पानी से बना होता है. इसलिए पानी से मांसपेशियों की ऐंठन भी दूर होती है.

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चीनी व नमक का कम मात्रा में सेवन:

अगर खाने में नमक, चीनी व तेल की मात्रा कम रखा जाए तो मोटापा, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज और हृदय रोगों से दूर रहा जा सकता है. चीनी में कैलोरी की मात्रा अधिक होती है. चीनी में कोई विटामिन, मिनरल या पौष्टिक तत्त्व नहीं होता. यह सिर्फ शरीर को ऊर्जा देती है. पूरे दिन में 25 ग्राम से ज्यादा चीनी न लें. ऐसे ही सिर्फ 6 ग्राम नमक ही खाना चाहिए.

नशे व धूम्रपान से दूर रहें:

ज्यादा शराब पीने और धूम्रपान करने से व्यक्ति की सेहत तो खराब होती ही है, वह समय से पहले बूढ़ा भी नजर आने लगता है. शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम हो जाती है.

आज के दौर में बहुत सारी बीमारियां फैल रही हैं, जिन का समय रहते इलाज  कराया जाए तो कई फायदे होते हैं जैसे व्यक्ति  का वजन संतुलित रहता है, दिल की बीमारी  होने की संभावना कम होती, संक्रमण से बचे  रहते हैं, व्यक्ति  लंबी जिंदगी जीता है, अपने  को तरोताजा महसूस करता है, जिस से खुश  रहता है. आज लोगों के लिए हैल्दी लाइफस्टाइल अपनाना बहुत जरूरी है तो फिर सोच क्या रहें हैं.  चलिए, आज ही से शुरुआत करें अपने रूटीन को बदलने की.

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