Sad Story : अवंतिका औफिस में बैठी कुछ फाइलों के बीच अपनी आंखें जमाए हुए थी. बौस का आदेश था कि इन फाइलों का निबटारा जल्द से जल्द कर दिया जाए वरना उस की सैलरी यों ही अटकी रहेगी.
‘‘क्या हुआ अवंतिका? मुंह बना कर फाइलों को क्यों निहार रही हो?’’ अवंतिका के पास कुरसी खींच कर बैठते हुए यामिनी बोली. यामिनी उसी औफिस में काम करती थी.
‘‘क्या बोलूं?’’ अवंतिका ने गहरी सांस खींची, ‘‘इन फाइलों का निबटारा तो मैं कर ही नहीं पाई. पता नहीं कैसे दिमाग से उतर गया. बहुत जरूरी हैं. यदि 2 दिन के अंदर इन्हें सही नहीं किया तो बौस का लौस होगा तो होगा, साथ में मु?ो भी पता नहीं कब सैलरी मिले.
‘‘तुम कितनी तेजी से काम का निबटाती हो न. तुम्हारी मेहनत और काबिलीयत को देख कर ही तो बौस ने तुम्हें यह सब दिया था. अब क्या हुआ. सबकुछ ठीक तो है न.’’
‘‘अरे बाबा, सब ठीक है. वह घर में भी तो काम देखना पड़ता है न. दीप की 10वीं कक्षा की परीक्षा चल रही थी. उसी पर ध्यान देने में व्यस्त रही, इसलिए…’’
‘‘अच्छा चलो, जल्दी से अपना काम
निबटा लो,’’ यामिनी वहां से अपने कैबिन की तरफ चल दी.
शाम के समय औफिस से लौटते हुए अवंतिका सब्जियां आदि खरीदते हुए घर पहुंची. निखिल औफिस से आ चुका था. अवंतिका को देखते ही बोला, ‘‘बहुत सही समय पर आई हो. चलो, जल्दी से चाय पिला दो.’’
‘‘निखिल मैं बहुत थकी हुई हूं. बदन में भी खिंचाव महसूस हो रहा है. दीप को कहती हूं चाय बना कर ले आएगा.’’
‘‘अरे नहीं उसे चाय बनानी नहीं आती. कभी चायपत्ती अधिक डाल देता है तो कभी चीनी. चाय पीने का मजा किरकिरा कर देता है,’’ निखिल बोला.
‘‘ऐसा बिलकुल नहीं है. अब उसे मात्रा आदि समझा दी है. अच्छी चाय बना लेगा,’’ कह कर अवंतिका ने अपने बेटे दीप को चाय बनाने के लिए कहा.
अवंतिका मेहनती और टेलैंटेड महिला थी. उसे कुछ वर्ष ही हुए थे एक मल्टी नैशनल कंपनी में नौकरी करते. निखिल बैंक में कैशियर के पद पर कार्यरत था. अवंतिका के 2 बच्चे थे श्रुति और दीप. श्रुति 7वीं कक्षा में पढ़ रही थी और दीप 10वीं बोर्ड की परीक्षा दे दी थी. शुरुआती दिनों में सिंगल फैमिली होने के कारण अवंतिका ने एक गृहिणी बने रहना मंजूर किया था. लेकिन बच्चे जब बड़े होने लगे और अपनी पढ़ाई और दोस्तों में उन की व्यस्तता बढ़ने लगी तो अवंतिका को घरगृहस्थी के कामों के बाद खाली समय में अकेलापन महसूस होने लगा. निखिल भी अपने बैंक से लौटने के बाद शाम का समय दोस्तों के बीच ठहाके लगाने में बिताता. बैंक से आने के बाद शाम की चाय पी कर निखिल अपनी मित्र मंडली में जा बैठता. फिर तो उन के ठहाके और मनोरंजन का दौर थमता ही नहीं था. रात के 8-9 के पहले वह घर नहीं आता.
ऐसे में अवंतिका ने एक मल्टी नैशनल कंपनी जौइन कर ली. व्यस्त दिनचर्या के साथ हाथ में सैलरी मिलने से उसे सुखद अनुभूति होने लगी. अब उसे छोटीमोटी जरूरत के लिए भी निखिल पर आश्रित नहीं रहना पड़ता. अपनी मेहनत और कार्यकौशल से उस ने औफिस में खास पहचान बना ली थी. लेकिन इधर कुछ समय से वह अपने कार्य को ले कर पहले जैसी तत्परता और सक्रियता नहीं दिखा पा रही थी. घर की जिम्मेदारी पहले की ही तरह निभा रही थी, उस पर औफिस का काम.
रात का खाना बनाने के बाद अवंतिका टेबल पर खाना लगा रही थी, ‘‘श्रुति, जरा खाना सर्व करो और दीप तुम पीने के लिए पानी ले आओ. आज मैं बहुत थकी हुई महसूस कर रही हूं. ज्यादा देर नहीं बैठ पाऊंगी. जल्दी से खा कर सोने जा रही हूं. तुम लोग खाना खा कर जूठे बरतन सिंक में डाल देना.’’
अगली सुबह फिर से पूरा परिवार अपनेअपने काम में व्यस्त हो गया. श्रुति और दीप अपनी पढ़ाई और दोस्तों के बीच तो निखिल भी दिन में ड्यूटी और शाम में दोस्तों के साथ मस्ती में व्यस्त रहते. अवंतिका समय पर औफिस पहुंच चुकी थी. उसे अभी भी 2 फाइलों के काम निबटाने थे और कल तक बौस की टेबल पर देनी थीं.
‘‘गुड मौर्निंग अवंतिका. और कहो, तुम्हारा पैंडिंग वर्क पूरा हो गया?’’ यामिनी ने पूछा.
‘‘नहीं यार, अभी तो 2 फाइलें बाकी हैं और कल सुबह तक बौस को टेबल पर चाहिए. प्लीज, जरा मेरी हैल्प कर दो न.’’
‘‘यह भारीभरकम उलझी फाइलों में सिर खपाना मेरे वश की बात नहीं, वह भी प्रैशर में. तुम्हें ध्यान नहीं शायद लेकिन यह सब तुम्हारी प्रतिभा के कारण मिला है. और दिखाओ बौस को अपनी प्रतिभा और काबिलीयत,’’ यामिनी टोंट करते हुए हंस दी.
‘‘देखो मजाक का वक्त नहीं है. तुम्हें पता है न बौस ने मु?ो इस महीने की सैलरी नहीं दी है? वे भी मेरी लापरवाही से नाराज हैं. यदि औफिस का नुकसान हुआ तो पूरी सैलरी खतरे में पड़ जाएगी. अब गंभीर बनो और कुछ रास्ता सुझाओ.’’
‘‘ओके, तुम अतुल की मदद ले लो.’’
‘‘कौन. वह लड़का जिस ने अभी कुछ महीने पहले ही कंपनी जौइन की है? उस नौसिखिए से क्या मदद लूं?’’
‘‘शायद तुम उसे ठीक से जानती नहीं हो. वह भी दिमाग का तेज है और युवा है तो काम के लिए उत्साह भी खूब भरा रहता है. पता है, पिछले महीने उस ने अमन की मदद की थी.’’
यह सुन अवंतिका अतुल से मदद लेने को तैयार हो गई. शाम होने लगी थी. अवंतिका ने अतुल को दोनों फाइलें दे कर काम समझा दिया और अगले दिन ले कर आने को कहा.
घर पहुंचने के बाद अवंतिका अपनी गृहस्थी वाले रूटीन वर्क में लग गई तभी…
‘‘ऊफ… फिर से पीरियड भी न…’’
पिछले कुछ महीनों से अवंतिका के पीरियड्स थोड़ा असामान्य हो गए थे. इस दौरान वह शारीरिक कष्ट को भी ?ोलने लगी थी. उस ने सोचा कि वर्क लोड और अनियमित खानपान के कारण यह सब हो रहा होगा. वह अपने पीरियड्स को ले कर कुछ विशेष चिंता नहीं करती. वैसे भी लोग कहते हैं कि 40+ की महिलाओं में माहवारी को ले कर कुछनकुछ समस्या रहती ही है.
औफिस का काम तो निबट गया. उसे राहत मिली. लेकिन पीरियड्स के दौरान होने वाले शारीरिक कष्ट शुरू हो गए. इसलिए अवंतिका खाना खा कर जल्दी से बैड पर आराम करने चली गई. हौट फ्लैश और पेड़ू कमर के दर्द से परेशान अवंतिका बिस्तर पर आते ही निढाल हो गई. निखिल भी कुछ देर के बाद बैडरूम में आ चुका था. वह रात की बेला में रूमानियत महसूस कर रहा था. बिस्तर पर लेटी अवंतिका किसी हुस्न परी का एहसास करा रही थी. निखिल अवंतिका के समीप आया है और उसे स्पर्श करते हुए अपने पास खींचने की कोशिश करने लगा.
‘‘नहीं निखिल, तबीयत बिलकुल ठीक नहीं है. हौट फ्लैश से परेशान हूं. मुझे आराम करने दो.’’
‘‘यह क्या हो गया है तुम्हें? जब देखो तब तबीयत खराब या थकान का बहाना करती रहती हो. औफिस जाने के लिए तुम तो एकदम तंदुरुस्त हो जाती हो. है न?’’
‘‘तुम कैसी बातें कर रहे हो. मेरी थकान, मेरी खराब तबीयत तुम्हें नाटक लगता है?’’
‘‘और नहीं तो क्या. मैं देख रहा हूं कि कुछ महीनों से तुम घरपरिवार पर पहले की तरह ध्यान नहीं दे रही हो और मुझ पर तो बिलकुल भी नहीं. कभी तबीयत खराब, कभी थकान, कभी पीरियड्स… तुम मुझ से दूर होती जा रही हो.’’
‘‘तुम कहना क्या चाहते हो निखिल? मैं दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हूं. घरपरिवार देखते हुए जौब भी कर रही हूं.’’
‘‘जिम्मेदारी? हुंह,’’ कह निखिल बिस्तर पर एक तरफ मुंह घुमा कर सो गया.
मगर अवंतिका की आंखों में नींद गायब हो गई. उसे निखिल की बातें चुभ गईं. वह जौब करने के लिए तब घर से बाहर निकली जब बच्चे थोड़े बड़े हो गए थे. निखिल भी तो अपनी दुनिया में व्यस्त रहता है. दोस्तों के साथ मस्ती भरे पल बिताता है.
‘‘क्या मेरी जरूरत सिर्फ घर के काम और बिस्तर तक ही सीमित है?’’ अचानक अवंतिका के मन में यह विचार कौंध गया और उस की आंखें डबडबा गईं.
अवंतिका थोड़ी चिड़चिड़ी होने लगी थी. निखिल को अवंतिका से शिकायत रहती. वहीं अवंतिका को निखिल से सम?ादारी की उम्मीद. उस की जिंदगी इसी तरह गुजरते जा रही थी. उस के मातापिता कुछ वर्ष पहले गुजर गए थे. एक भाई था तो वह भी विदेश में सैटल हो चुका था जो उस की कोई खोजखबर नहीं लेता. ससुराल में सासससुर भी नहीं थे. लेकिन ससुराल के नातेरिश्तेदार यदाकदा अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते, वह भी निखिल के लिए. अवंतिका को ससुराल पक्ष के रिश्तेदार हेय दृष्टि से देखते.
वे कहते, ‘‘इस का तो न मायका है न भाई पूछने वाला. हम न पूछें तो इसे कोई न पूछे. मरने पर कोई कफन देने वाला भी न मिले.’’
अवंतिका सब की बातों को सुनती और खून का घूंट पी कर रह जाती. मन में सोचती कि सही वक्त पर इस का जवाब देना उचित होगा. यही कारण था कि बच्चों के साथ वह अपने काम के प्रति भी पजैसिव हो गई थी. हालांकि उसे न तो प्रोत्साहन मिलता और न ही सपोर्ट. लेकिन वह खुद को काम में व्यस्त रखती.
औफिस में अवंतिका को यामिनी के रूप में एक अच्छी साथी तो मिली ही. लेकिन अब अतुल के रूप में भी उसे एक समझदार दोस्त मिल गया था. उम्र में वह अवंतिका से छोटा जरूर था मगर था बहुत समझदार और सहयोगी व्यवहार वाला. तभी तो उस ने अवंतिका के बिखरे काम को समेटने में मदद की. अवंतिका ने पैंडिंग फाइलें समय पर पूरी कर बौस को दे दीं.
काम को सही तरीके से करने के लिए बौस ने अवंतिका की तारीफ की, ‘‘वैरी गुड. रियली दैट्स नाइस. मुझे मालूम था कि तुम इसे पूरा कर लोगी. मैं तुम्हारी काबिलीयत को जानता हूं. लेकिन पता नहीं क्यों तुम इधर काम के प्रति थोड़ी लापरवाह होने लगी थी.’’
‘‘थैंक यू सर. दरअसल बेटे का 10वीं कक्षा का ऐग्जाम था तो उस पर ध्यान देने के चक्कर में यह काम दिमाग से उतर गया था. मेरी कोशिश रहेगी कि आइंदा ऐसा न हो.’’
‘‘चलो, कोई बात नहीं. मैं ने तुम्हारी सैलरी पास कर दी है और साथ में कुछ बोनस भी. अब एक बात ध्यान से सुनो, एक बड़े प्रोजैक्ट पर काम होने वाला है. उस में तुम मेरे साथ रहोगी. यदि तुम ने अपनी मेहनत से अच्छा कर दिखाया तो तुम्हारी प्रमोशन पक्की. मुझे पूरा विश्वास है कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी.’’
‘‘थैंक यू वैरी मच सर. मैं हार्ड वर्क से पीछे नहीं हटने वाली. मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मैं आप की उम्मीदों पर खड़ी उतरूं.’’
अवंतिका नए काम को पा कर बहुत खुश थी. उसे अब पूरी तरह से अपने नए प्रोजैक्ट पर फोकस करना था. उसे अपनी प्रमोशन के सपने खुली आंखों से दिखने लगे थे. लेकिन उस के इस उत्साह में निखिल का साथ बिलकुल नहीं मिल पा रहा था. अवंतिका निखिल से यह उम्मीद करने लगी थी कि घर की जिम्मेदारियों में निखिल थोड़ा सहयोग करे जिस से उसे अपना काम करने में सहूलियत हो. लेकिन निखिल का रवैया पहले जैसा ही था.
उस के रिश्तेदार भी निखिल से कहते, ‘‘देखा, सासससुर के न रहने पर कैसे अपने पंखों को फैला रही है. अब घरपरिवार उसे कहां से रास आएगा. मातापिता के रहते तुम से किसी ने घर में कोई काम करवाया? लेकिन देखो, अब महारानी तुम्हें गृहस्थी के कामों में उलझना चाहती है. सावधान रहना, तुम भी तो नौकरी करते हो.’’
निखिल शुरू से अवंतिका को कम और रिश्तेदारों को अधिक महत्त्व देता रहा. लेकिन अवंतिका सामंजस्य स्थापित कर के रिश्ते को निभाने की कोशिश करती रहती. अभी वह चाहती थी कि निखिल शाम के वक्त घर पर बच्चों को समय दे या सब्जी आदि खरीद कर ले आए. लेकिन वह अपने दोस्तों के बीच रहना अधिक जरूरी समझौता. कहता, ‘‘मेरी भी तो अपनी लाइफ है. ड्यूटी से आ कर दोस्तों के साथ मन बहलाना भी जरूरी है नहीं तो सारा समय कामकाम और बस काम.’’
‘‘लेकिन निखिल, मेरी स्थिति भी समझ. एक अच्छा अवसर हाथ में आने वाला है. मैं इस गोल्डन मौके को गंवाना नहीं चाहती. मुझे घर के कामों में थोड़ा सहयोग कर दो ताकि इस प्रोजैक्ट को बेहतर मन से कर पाऊं.’’
‘‘तुम ने यह सब क्यों चुना? घरपरिवार ज्यादा जरूरी है. तुम्हें तो पता है, शुरू से मैं स्वच्छंद रहा हूं. मांबाबूजी ने बड़े प्यार से पाला है. ऊपर से किसी भी रिश्तेदार के घर जाता हूं तो बैठेबैठे आवभगत होती है. ऐसे में मुझे घर में कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी. यदि तुम से नहीं हो पा रहा तो प्रोजैक्ट छोड़ दो.’’
‘‘छोड़ दो,’’ अवंतिका को निखिल की बात बुरी लगी. वह मन ही मन सोचने लगी कि क्यों हर बार हर चीज स्त्री को ही छोड़नी पड़ती है ताकि गृहस्थी सुचारु रूप से चल सके. लड़की मायके और वहां से जुड़ी हर बात छोड़ कर आती है ससुराल में. एक नए रूप और अस्तित्व के साथ ससुराल में रहती है. सभी के साथ सामंजस्य स्थापित करने में न जाने कितना कुछ छोड़ती चली जाती है. इस सब के बावजूद क्या वह एक अपनी खुशी या सपने को ले कर आगे नहीं बढ़ सकती? आज जिस काम से उसे खुशी मिल रही है, उस का वजूद निखर रहा है, उसे भी वह छोड़ दे ताकि पारिवारिक जिम्मेदारियां सही से निभा पाए? माना कि निखिल प्यार में पला, कभी कोई जवाबदेही नहीं उठाई. मगर अभिभावक और घर का मुखिया बनने के बाद भी उस में जिम्मेदारी का भाव नहीं आना चाहिए? एक पति और हमसफर के तौर पर क्या उसे अपनी पत्नी का सहयोग नहीं करना चाहिए? आखिर मैं भी तो बचपन से ही जिम्मेदारियां उठाने की आदी नहीं?
तरहतरह की बातें मन में सोचते हुए अवंतिका खुद से ही जाने कितने सवाल पूछ बैठी. फिर भी, मन ही मन सोचा है कि यह मौका हाथ से नहीं जाने दूंगी. जिस को जैसे चलना है चले. मैं भी अपनी मेहनत बढ़ा दूंगी. एक बार प्रमोशन हो जाए बस.’’
अवंतिका निखिल के व्यवहार और दूसरों की सोच को दरकिनार करते हुए अपने काम में लगी रहती. बच्चों से भी कुछ काम में हाथ बंटाने का आग्रह करती ताकि उसे थोड़ा सी सपोर्ट मिल जाए. उस ने अपनी मेहनत बढ़ा दी लेकिन जल्दीजल्दी होने वाले पीरियड्स के कारण परेशान भी होने लगी थी. महीने में एक बार होने वाला कभीकभी 2 बार भी होने लगा. इस दौरान वह शारीरिक, मानसिक कष्ट महसूस करती. उसे बातबात पर गुस्सा भी आने लगा था. लेकिन निखिल उस की परेशानी समझाने के बजाय उस पर बरस पड़ता. इन सब की वजह से अवंतिका का कार्य भी प्रभावित होने लगा.
यामिनी ने अवंतिका की परेशानी को देख कर उसे डाक्टर से मिलने की सलाह दी. डाक्टर ने अवंतिका को बताया कि वह मेनोपौज के दौर से गुजर रही है. कभीकभी किसी को समय से पहले भी मेनोपौज हो जाता है. ऐसे में चिड़चिड़ापन, नकारात्मक सोच, थकान, कमजोरी आदि शारीरिकमानसिक दिक्कतें होनी सामान्य बात है. उसे अभी अपने सही खानपान के साथ सकारात्मक खुशहाल माहौल बनाए रखना भी जरूरी है. आवश्यक दिशानिर्देश और दवाइयां देने के साथ डाक्टर ने अवंतिका को मेनोपौज के संबंध में विस्तार से समझाया.
अवंतिका ने अपनी परेशानी निखिल से साझा की है. उसे उम्मीद थी कि यह सब जान कर निखिल को अब कोई शिकायत नहीं होगी बल्कि वह अपनी पत्नी की परेशानियों को समझाते हुए उस को मानसिक मजबूती प्रदान करेगा. लेकिन अवंतिका की सोच यहां उलटी पड़ गई. निखिल ने अवंतिका और डाक्टर की बातों को अधिक महत्त्व नहीं दिया.
‘‘यह सब क्या नई बातें ले कर बैठ गई? मासिकचक्र कोई नई बात है क्या? महिलाओं के लिए तो यह आम बात है. अब जा कर तुम्हें मनोवैज्ञानिक पहलू समझ में आने लगा? यह सब ज्यादा पढ़लिख जाने के कारण है. नौटंकी तो ऐसे कर रही हो जैसे कोई बहुत बड़ी बीमारी हो गई है. हुंह.’’
निखिल की बात से अवंतिका एक बार फिर खीझ गई. वह मन ही मन सोचने लगी कि चाहे जो हो मुझे हिम्मत से काम लेना होगा. भावनात्मक सहारा मिले न मिले लेकिन अपने अंदर सकारात्मक ऊर्जा को जरूर भरना होगा. समय के ऊबड़खाबड़ रास्ते पर अवंतिका के जीवन की गाड़ी यों ही बढ़ते जा रही थी. इधर औफिस के साथ घर की जिम्मेदारियां पूरा करते हुए अवंतिका मेनोपौज के दौर से भी गुजर रही थी. निखिल का रूखा व्यवहार पतिपत्नी के रिश्ते में खटास भरने का काम करने लगा था. अवंतिका को ऐसे में अपने मातापिता की बहुत याद आती कि काश वे होते तो उन से कुछ अपना दुख बांट लेती.
यामिनी ने अवंतिका की परेशानियों को समझाते हुए उसे पुन: सलाह दी कि प्रोजैक्ट में अतुल को शामिल कर के उस की मदद ले ले. कुछ तो राहत मिलेगी और यह बात उन तीनों तक ही रहेगी, बौस को जानकारी नहीं होने देंगे.
अवंतिका को यामिनी की बात जंच गई. उस ने इस नए प्रोजैक्ट में अतुल को अपने साथ मिला लिया. अतुल अवंतिका की बड़ी इज्जत करता था. सहयोगी व्यवहार के कारण वह एक बार फिर अवंतिका के काम में सहयोग करने के लिए तैयार हो गया.
अब अवंतिका ने थोड़ी राहत की सांस ली. काम को ले कर अतुल और अवंतिका की बातचीत औफिस के बाद घर पर भी फोन से होने लगी. निखिल को यह बात भी खटकने लगी. अवंतिका निखिल की इस मानसिक सोच से अनभिज्ञ अपनी दिनचर्या में मसरूफ थी. घर आने के बाद भी अतुल का काम के सिलसिले में कभी कौल तो कभी मैसेज आ जाता. इस बार का प्रोजैक्ट बड़ा महत्त्वपूर्ण था और अवंतिका कोई गलती नहीं करना चाहती थी. इसलिए 1-1 बारीकी पर वह अतुल से बात करती.
अतुल के सहयोग से अवंतिका का काम आसान तो हो गया मगर निखिल के साथ रिश्ते कठिन होने लगे.
एक शाम अवंतिका रसोई में खाना बना रही थी कि तभी अतुल का फोन आया. प्रोजैक्ट फाइल में कहीं कुछ मिसिंग था. उस को ले कर वह अवंतिका से कुछ जरूरी चीज पूछने लगा. उस में से मैटर बताने के लिए अवंतिका हौल की तरफ बढ़ गई और वहीं बैठे निखिल को गैस पर चढ़ी सब्जी देखने को बोल दिया.
इधर अवंतिका फाइल समेट कर वापस रसोई में आई तो सब्जी जल चुकी थी. वह निखिल से अपनी बात बोली तो उस ने न सुनने की बात कह कर पल्ला झाड़ लिया. ऊपर से अवंतिका पर ही बरसने लगा, ‘‘मैं देख रहा हूं कि तुम्हें अब कोई और भाने लगा है. घर की जिम्मेदारी तो छोड़ो अब खाना बनाने में भी मन नहीं लग रहा है. सीधेसीधे बोल दो कि तुम स्वतंत्र होना चाहती हो.’’
‘‘निखिल, तुम यह क्या बोल रहे हो? बच्चे क्या कहेंगे यह सब सुन कर? मैं तुम्हें सब्जी देखने के लिए बोल कर फाइल देखने चली गई थी.’’
‘‘अच्छा, तुम्हें नहीं दिखा कि मैं क्रिकेट मैच देख रहा हूं?’’
‘‘यदि तुम्हें नहीं देखना था तो बोल देते, मैं बच्चों को बोल देती. खैर, बात खत्म करो. आइंदा मैं बच्चों से ही बोल कर कुछ सहयोग ले लिया करूंगी.’’
‘‘हांहां, ले लो बच्चों का सहयोग. तुम नौकरी करो और बच्चों की पढ़ाई छुड़वा कर उन से घर के काम करवाओ.’’
‘‘अब इस में पढ़ाई छुड़वाने की बात कहां से आ गई? घर में छोटेमोटे कुछ काम देख लेने से उन की पढ़ाई छूट जाएगी? कितने बच्चे शहरों में अकेले रह कर पढ़ाई करते हैं. वे अपना काम खुद करते हैं.’’
अवंतिका समझ कर बात खत्म करना चाहती थी. लेकिन निखिल का गुस्सा 7वें आसमान पर था. उस दिन की तकरार से अवंतिका का मन टूट गया. उस ने एक पल को औफिस छोड़ने का मन बना लिया. अगले दिन औफिस में अवंतिका ने अतुल से प्रोजैक्ट पर काम करना बंद करने के लिए कहा. यह सुन कर अतुल चौंक गया. तब अवंतिका ने उसे अपनी पारिवारिक समस्याएं बताईं.
अतुल ने समझाया, ‘‘अवंतिकाजी, बड़ी सफलता के लिए कड़ी मेहनत के साथ संघर्ष भी करना पड़ता है. आप संघर्ष करते हुए सफलता के करीब आने वाली हैं. ऐसे में जौब छोड़ने का फैसला गलत होगा.’’
अब तक यामिनी भी अवंतिका के पास आ चुकी थी और सारी बातें जानने के बाद उस ने भी अवंतिका को जौब न छोड़ने की सलाह दी.
एक तो अवंतिका मेनोपौज के दौर से गुजर रही थी उस पर निखिल का व्यवहार. औफिस में महत्त्वपूर्ण प्रोजैक्ट उस के कैरियर को एक टर्निंग पौइंट देने वाला बन चुका था इसलिए अतुल और यामिनी की बात मान कर अवंतिका अपने काम और पारिवारिक परिस्थितियों में सामंजस्य रखने की सोची. यामिनी और अतुल यह सुन कर मुसकरा दिए.
‘‘दैट्स लाइक ए गुड गर्ल. देखो अवंतिका, मेनोपौज के दौर से गुजर रही महिलाओं की मानसिकशारीरिक स्थिति कुछ अलग होती है, लेकिन बेहतर खानपान और योग के द्वारा इन स्थितियों से निबटा जा सकता है. तुम वादा करो, किसी भी सिचुएशन में खुद को कूल रखोगी.’’
यामिनी की बात सुन कर अवंतिका ने स्वयं को कूल रखने का वादा किया. प्रोजैक्ट को 3-4 दिन में पूरा कर लेना था. निखिल के व्यवहार को देखते हुए अवंतिका ने तय किया कि वह औफिस से 1 घंटा लेट निकलेगी. यहीं अतुल के साथ बैठ कर काम का निबटारा कर लेगी ताकि घर जा कर प्रोजैक्ट वर्क पर बात करने की जरूरत न पड़े. अतुल भी इस बात को सही माना.
2-3 दिन अवंतिका औफिस से घर लेट पहुंची तो निखिल अवंतिका पर शक करने लगा. उस ने औफिस से जानकारी ली तो अतुल और अवंतिका के लेट तक रुकने का पता चला. निखिल का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया लेकिन अपने क्रोध को छिपाते हुए उस ने एक शाम अतुल को बहुत जरूरी काम बोल कर बहाने से घर बुलाया.
‘‘अतुल इस आमंत्रण को सम?ा न सका. लेकिन उस ने निखिल के घर जाने का निर्णय लिया. अतुल को घर बुलाने के बाद निखिल ने उस को खूब फटकार लगाई और अवंतिका से दूर रहने की चेतावनी दी.
‘‘यह आप क्या कह रहे हैं? हमारे लिए आप के मन में क्या चल रहा है?’’ अतुल ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘मेरे मन में नहीं तुम्हारे मन में चल रहा है और वह भी अवंतिका के लिए. तुम्हें शर्म नहीं आती किसी की गृहस्थी को बरबाद करते?’’ निखिल गुस्से में बोला.
‘‘निखिलजी आप बहुत गलत सोच रहे हैं. ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं अवंतिकाजी की बहुत इज्जत करता हूं,’’ अतुल ने सम?ाने का प्रयास किया.
अवंतिका निखिल के इस रवैए से बहुत गुस्सा हुई. अतुल के सामने ही अवंतिका और निखिल में अच्छीखासी बहस हो गई.
गुस्से में निखिल ने अवंतिका से कहा, ‘‘ठीक है, तुम दोनों के बीच यदि कुछ भी गलत नहीं है तो अभी मेरे सामने तुम अतुल को राखी बांधो और इसे अपना भाई बना कर दिखाओ.’’
‘‘निखिल तुम इतनी गिरी हुई सोच के हो जाओगे यह मैं ने कभी नहीं सोचा था. मुझे तुम से नफरत हो गई है. क्या एक स्त्री और पुरुष मित्रवत व्यवहार के साथ नहीं रह सकते?’’
‘‘तुम बात घुमाने की कोशिश मत करो. अभी इसे राखी बांध कर इसे अपना भाई मानो.’’
अतुल भी निखिल के व्यवहार से क्रुद्ध हो गया है. लेकिन खुद को सामान्य बनाते हुए बोला, ‘‘अवंतिकाजी, आप इन की बात मान लीजिए. आप मेरी कलाई पर धागा बांध कर मुझे भाई के रूप में स्वीकार कीजिए.’’
अवंतिका अतुल की बात सुन कर कुछ बोलती उस से पहले ही अतुल ने फिर से अपनी बात दोहराई. अवंतिका को माहौल शांत करने का यही एकमात्र रास्ता नजर आया. वह मौली उठा कर ले आई और उसे अतुल की दाहिनी कलाई पर राखी के रूप में बांध दिया.
कलाई पर मौली बंधवाने के बाद अतुल अपने क्रोधावेग को बढ़ाते हुए बोला, ‘‘सुनो निखिल, मैं तुम्हें चेतावनी देता हूं कि इसी पल से तुम अवंतिका के साथ न तो बुरा बरताव करोगे और न ही उसे किसी प्रकार का मानसिक कष्ट देने की कोशिश करोगे. अभी से यह मेरी बड़ी बहन है और यदि उस की आंखों में तुम्हारी वजह से आंसू आए तो मु?ा से बुरा कोई न होगा. याद रखना यह अवंतिका के भाई की चेतावनी है.’’
निखिल अतुल का यह रूप देख कर अवाक रह गया. वे इस प्रकार के जवाब की बिलकुल उम्मीद नहीं की थी. आगे वह किस बात पर बहस करे?
उस को चुप देख कर अतुल बोला, ‘‘मैं अवंतिकाजी को बड़ी बहन के रूप में ही इज्जत करता था लेकिन आज तुम ने हमारे रिश्ते को इस धागे से मजबूत बना दिया है. अब यह मत सम?ाना कि अवंतिका अकेली है. मैं इस का भाई सदैव इस के लिए खड़ा रहूंगा. चलता हूं अवंतिकाजी अपना खयाल रखिएगा और हां, आप को अपने काम पर पूरा फोकस करना है. यह प्रमोशन का अवसर आप के हाथ से जाने न पाए. अब मैं चलता हूं.’’
अतुल वहां से जा चुका था मगर निखिल के पैर अब भी जस के तस ठिठके थे.
‘‘आज तुम ने विश्वास की आखिरी डोर को भी तोड़ दिया. तुम ने मुझे जो दर्द की सिलवटें दी हैं वे हृदय में जीवनभर चुभती रहेंगी. निखिल, भले ही मैं यहां इस घर में रहूंगी वह भी अपने बच्चों की खातिर मगर मेरे मन में तुम्हारे लिए
न तो पहले जैसी भावना रहेगी और न इज्जत. अपनी गंदी सोच से गृहस्थीरूपी
प्रेमालय को तुम ने मैला कर दिया है. तुम न तो अपनी जिम्मेदारियां समझ सके और न ही अपनी पत्नी को,’’ कह कर अवंतिका गुस्से से कमरे में चली गई और निखिल वहीं खड़ा अपनी सोच पर पछतावा करता रहा.