Holi 2025 : इन बातों का रखें ख्याल, होली होगी और भी मजेदार

Holi 2025 : होली उमंग, उल्लास, उधम-कूद, भाग दौड़ का त्योहार है. मस्ती के इस मौके पर हमारी एक छोटी सी लापरवाही से किसी का बड़ा नुकसान हो सकता है. ऐसे में हम आपको कुछ खास बाते बताने वाले हैं, जिनको ध्यान में रख कर आप बेहतर ढंग से होली का लुत्फ उठा सकती हैं.

शुगर पर रखें काबू

इस बात का ख्याल रखना खासा जरूरी है. खास कर के जो लोग शुगर के मरीज हैं. त्योहारों में तेल और शक्कर से बने हुए पकवानो की भरमार होती है. डायबिटीज के मरीजों के लिए तेल और चीनी, दोनों ही नुकसानदायक होते हैं. मौज मस्ती में इन पकवानो का अधिक सेवन बाद में आपके लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं. इस लिए जरूरी है कि आप अपने खानपान पर अत्धिक ध्यान रखें और संयामित हो कर कुछ भी खाएं.

आंखों का रखें ख्याल

होली में खेले जाने वाले रंग रसायन से मिल कर बने होते हैं. अगर ये आंख में चले जाएं तो तेज जलन और कौर्निया को नुकसान पहुंचा सकते हैं. जो लोग लेंस लगात हैं, वो रंग खेलते वक्त अपने लेंस उतार लें. ऐसा ना करना उनकी आंखों के लिए खतरनाक हो सकता है.

दिल का रखें ध्यान

दिल की बीमारी झेल रहे लोगों को मिठाइयों, तेल के पकवानो से दूरी बनानी चाहिए. होली पर बनने वाले पकवान उनकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकते हैं. भारी खानपान से बेहतर कुछ हल्का फुल्का खाएं. त्योहार के उत्साह में कुछ भी ऐसा ना करें जिससे दिल पर जोर पड़े या धड़कन तेज हो जाए. अपनी दवाइयों को लेना ना भूलें.

किसी के नाक में ना जाए रंग

होली खेलते हुए हमें इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि रंग किसी की नाक में ना जाए. ये रंग आर्टिफीशियल होते हैं और तरह तरह के रसायनो से बने होते हैं. ऐसे में अगर रंग नाक में जाएगा तो गंभीर परेशानियां हो सकती हैं.

Holi 2025 : स्किन और बालों पर रंगों का न हो असर, फौलो करें ऐक्सपर्ट के ये टिप्स

Holi 2025 : आजकल रंग प्राकृतिक स्रोतों से नहीं बनाए जाते हैं. उन में रसायन, अभ्रक यहां तक कि सीसा भी मिला होता है, जो न केवल त्वचा में जलन पैदा करता है, बल्कि सिर की त्वचा में जम भी जाता है. चूंकि होली बाहर खेली जाती है, ऐसे में धूप का भी त्वचा पर बुरा प्रभाव पड़ता है. धूप के कारण त्वचा की नमी खत्म हो जाती है, त्वचा शुष्क हो जाती है. उस में टैनिंग भी हो जाती है. इसीलिए होली के बाद त्वचा की खूबसूरती कम हो जाती है. धूप में जाने से 20 मिनट पहले सनस्क्रीन लगाएं. सनस्क्रीन एसपीएफ 20 या इस से अधिक होना चाहिए. अगर आप की त्वचा पर धब्बे पड़ जाते हैं, तो ज्यादा एसपीएफ चुनें. ज्यादातर सनस्क्रीन में मौइश्चराइजर भी होता है. अगर आप की त्वचा बहुत सूखी है, तो पहले सनस्क्रीन लगाएं, फिर कुछ मिनट बाद मौइश्चराइजर लगाएं. दिन में हलका मेकअप करें. आंखों के लिए आईपैंसिल या काजल और होंठों के लिए लिपग्लौस का इस्तेमाल करें.

होली खेलने के बाद त्वचा से रंग निकालना सब से मुश्किल होता है. अपने चेहरे को तुरंत साबुन से न धोएं, क्योंकि साबुन क्षारीय होता है, जो त्वचा के सूखेपन को और बढ़ाता है. इस के बजाय किसी क्लींजिंग क्रीम या लोशन का इस्तेमाल करें. चेहरे पर इस की मसाज करें और फिर गीली रुई से पोंछ लें. आंखों के आसपास के हिस्सों को भी हलके हाथों से साफ करें. क्लींजिंग लोशन रंगों को घोल कर उन्हें आसानी से निकाल देता है.

घर पर क्लींजर बनाने के लिए 1/2 कप ठंडे दूध में 1 चम्मच तिल, जैतून या सूरजमुखी का तेल मिला कर उस में रुई भिगो कर त्वचा को साफ करें.

तिल के तेल का भी शरीर से रंग निकालने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इस से न केवल त्वचा में लगा रंग निकल जाएगा, बल्कि त्वचा भी सुरक्षित रहेगी. तिल का तेल धूप से होने वाले नुकसान को भी ठीक करने में मददगार होता है. नहाते समय लूफा की मदद से शरीर को हलके से स्क्रब करें. नहाने के तुरंत बाद जब त्वचा थोड़ी गीली हो, चेहरे और शरीर पर मौइश्चराइजर लगाएं. इस से त्वचा में नमी समा जाती है.

होली के अगले दिन आप को धूप के कारण त्वचा सूखी या टैनिंग युक्त लग सकती है. अत: 2 बड़े चम्मच शहद 1/2 कप दही में मिलाएं. इस में 1 चुटकी हलदी डालें. इसे चेहरे, गरदन और बाजुओं पर लगाएं. 20 मिनट बाद पानी से धो दें. शहद त्वचा को मुलायम बनाता है. दही त्वचा को पोषण प्रदान कर के अम्लक्षार का संतुलन बनाए रखता है. यह टैनिंग को भी निकालता है. रंगों के कारण सिर की त्वचा पर जलन होती है और बाल रूखे हो जाते हैं. होली खेलने से पहले बालों पर लीवऔन कंडीशनर या हेयरसीरम लगाएं. इस से बालों पर एक परत बन जाएगी जो इसे रंगों, धूप और प्रदूषण से बचाएगी. इस से बालों की चमक बनी रहेगी.

बाल धोते समय पहले बहुत सारे पानी से धो कर सूखे रंगों और अभ्रक के कणों को निकालें. इस के बाद माइल्ड हर्बल शैंपू लगा कर उंगलियों से सिर की त्वचा पर मसाज करें. फिर पानी से अच्छी तरह धोएं. एक मग पानी में एक नीबू का रस मिला कर बालों को धोएं. इस से सिर की त्वचा के अम्लक्षार का संतुलन बना रहता है.

अगर खुजली हो तो 2 चम्मच सिरका 1 मग पानी में डाल कर आखिरी रिंस के लिए इस्तेमाल करें. इस से खुजली समाप्त हो जाएगी. अगर खुजली फिर भी न जाए तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं. अगले कुछ दिनों के भीतर बालों को पोषक उपचार दें. अंडे की जर्दी को बादाम या जैतून के तेल में मिला कर बालों और सिर की त्वचा पर लगाएं. तौलिया गरम पानी में भिगो कर निचोड़ें. फिर उसे सिर पर लपेट कर 5 मिनट तक रखें. इस प्रक्रिया को 3-4 बार दोहराएं. इस से बाल और सिर की त्वचा तेल को अच्छी तरह से सोख लेगी. 1 घंटे बाद बालों को धो लें. मेहंदी बालों के नुकसान को ठीक करने में मदद करती है और उन्हें नई चमक देती है. मेहंदी पाउडर में 4 चम्मच नीबू का रस, कौफी, 2 अंडे, 2 चम्मच तेल और दही मिला कर पेस्ट बनाएं. इसे बालों में लगा कर 1 घंटे बाद धो लें.         

Holi 2025 : घर पर ही बनाएं इंस्टेंट दही बड़ा मिक्स, मेहमान पूछेंगे रेसिपी

Holi 2025 : आजकल बाजार में इडली, डोसा, भजिया, पकोड़ा, केक, जैसे अनेकों खाद्य पदार्थों का इंस्टेंट मिक्स उपलब्ध है, इंस्टैंट अर्थात तुरन्त यानी ऐसा मिक्स जिससे आप जब सोचें तब मनचाही डिश बना लें. ऐसा ही इंस्टेंट मिक्स है दही भल्ला का. दही भल्ला अथवा दही बड़ा बनाने के लिए जहां एक दिन पहले से सोचकर दाल भिगोकर पीसनी पड़ती है वहीं इंस्टैंट मिक्स से आप चुटकियों में बिना दाल भिगोए चुटकियों में दही बड़ा बना लेतीं हैं. यही नहीं आप इस मिक्स को एयरटाइट जार में भरकर एक माह तक आसानी से प्रयोग कर सकतीं हैं.

यदि आप इसे फ्रिज में रखतीं हैं तो यह दो माह तक भी खराब नहीं होता. इस इंस्टेंट मिक्स से आप केवल दही भल्ला ही नहीं बल्कि मूंगलेट, मूंग चीला, मूंग उत्तपम, मूंग के कोफ्ते भी मिनटों में बना सकेंगी. बाजार में मिलने वाले इंस्टेंट मिक्स की अपेक्षा घर में बनाने से यह सस्ता तो पड़ता ही है साथ ही बिना किसी प्रिजर्वेटिव के बनाये जाने से हैल्दी भी रहता है. आप होली के लिए अभी से दही भल्ला इंस्टेंट मिक्स बनाकर रखें और होली से एक दिन पूर्व झटपट बना लें. तो आइए जानते हैं कि आप इसे कैसे तैयार कर सकतीं हैं-

कितने लोंगों के लिए 8
बनने में लगने वाला समय 20 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

धुली मूंग की दाल 3/4 कप
धुली उड़द दाल 1/4 कप
हींग चुटकी भर
जीरा 1/4 टीस्पून
दरदरी काली मिर्च 1/4 टीस्पून
नमक 1/2 टीस्पून

विधि

मूंग और उड़द दाल को साफ पानी से दो बार धोकर साफ सूती कपड़े पर 30 मिनट के लिए फैला दें ताकि पानी सूख जाए. अब दोनों दालों को एक पैन में मंदी आंच पर सुनहरा होने तक भूनें. जब दाल हल्की सुनहरे रंग की हो जाये तो गैस बंद कर दें. ठंडा हो जाने पर दोनों दालों को मिक्सी में फाइन पाउडर फॉर्म में पीस लें. तैयार पाउडर को एक बाउल में डालकर जीरा, हींग, नमक और काली मिर्च अच्छी तरह मिलाएं. तैयार इंस्टेंट मिक्स को एयरटाइट जार में भरकर रखें और इच्छानुसार प्रयोग करें.

कैसे बनाएं दही भल्ला

जब भी आप दही भल्ला बनाना चाहें तो एक कप इंस्टेंट मिक्स में 1 कप पानी धीरे धीरे मिलाकर गाढ़ा बैटर तैयार करें. 10 मिनट तक ढककर रखें. 1 छोटी गांठ किसा अदरक और 4 कटी हरी मिर्च मिलाकर एक ही दिशा में बैटर के हल्का होने तक फेंटे और गरम तेल में मद्धिम आंच पर सुनहरा होने तक तलकर नमक मिले गरम पानी डालें. निचोड़कर दही और मनचाही चटनियां डालकर सर्व करें.
इसी प्रकार उत्तपम, मूंगलेट और चीला बनाने के लिए पानी में इंस्टैंट मिक्स और मनचाही सब्जियां और मसाले डालें और झटपट बनाएं.

Writer- Pratibha Agnihhotri

Short Best Story : उलझन

Short Best Story : ‘‘मम्मी, आप को फोटो कैसी लगी?’’ कनिका ने पूछा, ‘‘अभिषेक कैसा लगा, अच्छा लगा न, बताओ न मम्मी… अभिषेक अच्छा है न…’’

कनिका लगातार फोन पर पूछे जा रही थी पर प्रेरणा के मुंह में मानो दही जम गया हो. एक भी शब्द मुंह से नहीं निकल रहा था.

‘‘आप तो कुछ बोल ही नहीं रही हो मम्मी, फोन पापा को दो,’’ कनिका ने तुरंत कहा.

प्रेरणा की चुप्पी कनिका को इस वक्त बिलकुल भी नहीं भा रही थी. उसे तो बस अपनी बात का जवाब तुरंत चाहिए था.

‘‘पापा, अभिषेक कैसा लगा?’’ कनिका ने कहा, ‘‘मैं ने उस के पापा व मम्मी की फोटो ईमेल की थी…आप ने देखी, पापा…’’ कनिका की खुशी उस की बातों से साफ झलक रही थी.

‘‘हां, बेटे, अभिषेक अच्छा लगा है अब तुम वापस इंडिया आ जाओ, बाकी बातें तब करेंगे,’’ अनिकेत ने कनिका से कहा.

कनिका एम. टैक करने अमेरिका गई थी. वहीं पर उस की मुलाकात अभिषेक से हुई थी. दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला. 2 साल के बाद दोनों इंडिया वापस आ रहे थे. आने से पहले कनिका सब को अभिषेक के बारे में बताना चाह रही थी.

सच में नया जमाना है. लड़का हो या लड़की, अपना जीवनसाथी खुद चुनना शर्म की बात नहीं रही. सचमुच नई पीढ़ी है.

कनिका जिद किए जा रही थी, ‘‘पापा, बताइए न प्लीज, अभिषेक कैसा लगा…मम्मी तो कुछ बोल ही नहीं रही हैं, आप ही बता दो न…’’

‘‘कनिका, जिद नहीं करते बेटा, यहां आ कर ही बात होगी,’’ अनिकेत ने कहा.

पापा की आवाज तेज होती देख कनिका ने चुप रहना ही ठीक समझा.

‘‘तुम्हें अभिषेक कैसा लगा? लड़का देखने में तो ठीक लग रहा है. परिवार भी ठीकठाक है. इस बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’ अनिकेत ने फोन रखते हुए प्रेरणा से पूछा.

‘‘मुझे नहीं पता,’’ कह कर प्रेरणा रसोई में चली गई.

‘‘अरे, पता नहीं का क्या मतलब? परसों कनिका और अभिषेक इंडिया आ रहे हैं. हमें कुछ सोचना तो पड़ेगा न,’’ अनिकेत बोले जा रहे थे.

पर अनिकेत को क्या पता था कि जिस अभिषेक के परिवार के बारे में वे प्रेरणा से पूछ रहे हैं उस के बारे में वह कल रात से ही सोचे जा रही थी.

कल इंटरनैट पर प्रेरणा ने कनिका द्वारा भेजी गई अभिषेक और उस के परिवार की फोटो देखी तो एकदम हैरान हो गई. खासकर यह जान कर कि अभिषेक, कपिल का बेटा है. वह मन ही मन खीझ पड़ी कि कनिका को भी पूरी दुनिया में यही लड़का मिला था. उफ, अब मैं क्या करूं?

अभिषेक के साथ कपिल को देख कर प्रेरणा परेशान हो उठी थी.

‘‘अरे, प्रेरणा, देखो दूध उबल कर गिर रहा है, जाने किधर खोई हुई हो…’’ अनिकेत यह कहते हुए रसोई में आ गए और पत्नी को इस तरह खयालों में डूबा हुआ देख कर उन को भी चिंता हो रही थी.

‘‘प्रेरणा, तुम शायद कनिका की बात से परेशान हो. डोंट वरी, सब ठीक हो जाएगा,’’ कनिका के इस समाचार से अनिकेत भी परेशान थे पर आज के जमाने को देख कर शायद वे कुछ हद तक पहले से ही तैयार थे, फिर पिता होने के नाते कुछ हद तक परेशान होना भी वाजिब था.

अनिकेत को क्या पता कि प्रेरणा परेशान ही नहीं हैरान भी है. आज प्रेरणा अपनी बेटी से नाराज नहीं बल्कि एक मां को अपनी बेटी से ईर्ष्या हो रही थी. पर क्यों? इस का जवाब प्रेरणा के ही पास था.

किचन से निकल कर प्रेरणा कमरे में पलंग पर जा आंखें बंद कर लेटी तो कपिल की यादें किसी छायाचित्र की तरह एक के बाद एक कर उभरने लगीं. प्रेरणा उस दौर में पहुंच गई जब उस के जीवन में बस कपिल का प्यार ही प्यार था.

कपिल और प्रेरणा दोनों पड़ोसी थे. घर की दीवारों की ही तरह उन के दिल भी मिले हुए थे.

छत पर घंटों खड़े रहना. दूर से एकदूसरे का दीदार करना. जबान से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं होती थी. आंखें ही हाले दिल बयां करती थीं.

निश्चित समय पर आना और अनिश्चित समय पर जाना. न कुछ कहना न कुछ सुनना. अजब प्रेम कहानी थी प्रेरणा और कपिल की. बरसाती बूंदें भी दोनों की पलकें नहीं झपका पाती थीं. एक दिन भी एकदूसरे को देखे बिना वे नहीं रह सकते थे.

यद्यपि कपिल ने कई बार प्रेरणा से बात करने की कोशिश की पर संकोच ने हर बार प्रेरणा को आगे बढ़ने से रोक दिया. कभी रास्ते में आतेजाते अगर कपिल पे्ररणा के करीब आता भी तो प्रेरणा का दिल तेजी से धड़कने लगता और तुरंत वह वहां से चली जाती. जोरजबरदस्ती कपिल को भी पसंद नहीं थी.

प्रेरणा की अल्हड़ जवानी के हसीन खयालों में कपिल ही कपिल समाया था. सारीसारी रात वह कपिल के बारे में सोचती और उस की बांहों में झूलने की तमन्ना अकसर उस के दिल में रहती थी पर कपिल के करीब जाने का साहस प्रेरणा में न था. स्वभाव से संकोची प्रेरणा बस सपनों में ही कपिल को छू पाती थी.

वह होली की सुबह थी. चारोें तरफ गुलाल ही गुलाल बिखर रहा था. लाल, पीला, नीला, हरा…रंग अपनेआप में चमक रहे थे. सभी अपनेअपने दोस्तों को रंग में नहलाने में जुटे हुए थे. इस कालोनी की सब से अच्छी बात यह थी कि सारे त्योहार सब लोग मिलजुल कर मनाते थे. होली के त्योहार की तो बात ही अलग है. जिस ने ज्यादा नानुकर की वह टोली का शिकार बन जाता और रंगों से भरे ड्रम में डुबो दिया जाता.

प्रेरणा अपनी टोली के साथ होली खेलने में मशगूल थी तभी प्रेरणा की मां ने उसे आवाज दे कर कहा था :

‘प्रेरणा, ऊपर छत पर कपड़े सूख रहे हैं, जा और उतार कर नीचे ले आ, नहीं तो कोई भी पड़ोस का बच्चा रंग फेंक कर कपड़े खराब कर देगा.’

प्रेरणा फौरन छत की ओर भागी. जैसे ही उस ने मां की साड़ी को तार से उतारना शुरू किया कि किसी ने पीछे से आ कर उस के चेहरे को लाल गुलाल से रंग दिया.

प्रेरणा ने घबरा कर पीछे मुड़ कर देखा तो कपिल को रंग से भरे हाथों के साथ पाया. एक क्षण को प्रेरणा घबरा गई. कपिल का पहला स्पर्श…वह भी इस तरह.

‘‘यह क्या किया तुम ने? मेरा सारा चेहरा…’’ पे्ररणा कुछ और बोलती इस से पहले कपिल ने गुनगुनाना शुरू कर दिया…

‘‘होली क्या है, रंगों का त्योहार…बुरा न मानो…’’

कपिल की आंखों को देख कर लग रहा था कि आज वह प्रेरणा को नहीं छोड़ेगा.

‘‘क्या हो गया है तुम्हें? भांगवांग खा कर आए हो…’’ घबराई हुई प्रेरणा बोली.

‘‘नहीं, प्रेरणा, ऐसा कुछ नहीं है. मैं तो बस…’’ प्रेरणा का इस तरह का रिऐक्शन देख कर एक बार तो कपिल घबरा गया था.

पर आज कपिल पर होली का रंग खूब चढ़ा हुआ था. तार पर सूखती साड़ी का एक कोना पकड़ेपकड़े कब वह प्रेरणा के पीछे आ गया इस का एहसास प्रेरणा को अपने होंठों पर पड़ती कपिल की गरम सांसों से हुआ.

इतने नजदीक आए कपिल से दूर जाना आज प्रेरणा को भी गवारा नहीं था. साड़ी लपेटतेलपेटते कपिल और प्रेरणा एकदूसरे के अंदर समाए जा रहे थे.

कपिल के हाथ प्रेरणा के कंधे से उतर कर उस की कमर तक आ रहे थे…इस का एहसास उस को हो रहा था. लेकिन उन्हें रोकने की चेष्टा वह नहीं कर रही थी.

कपिल के बदन पर लगे होली के रंग धीरेधीरे प्रेरणा के बदन पर चढ़ते जा रहे थे. साड़ी में लिपटेलिपटे दोनों के बदन का रंग अब एक हो चला था.

शारीरिक संबंध चाहे पहली बार हो या बारबार, प्रेमीप्रेमिका के लिए रसपूर्ण ही होता है. जब तक प्रेरणा कपिल से बचती थी तभी तक बचती भी रही थी पर अब तो दोनों ही एक होने का मौका ढूंढ़ते थे और मौका उन्हें मिल भी जाता था. सच ही है जहां चाह होती है वहां राह भी मिल जाती है.

पर इस प्रेमकथा का अंत इस तरह होगा, यह दोनों ने नहीं सोचा था.

कपिल और प्रेरणा की लाख दुहाई देने पर भी कपिल की रूढि़वादी दादी उन के विवाह के लिए न मानीं और दोनों प्रेमी जुदा हो गए. घर वालों के खिलाफ जाना दोनों के बस की बात नहीं थी. 2 घर की छतों से शुरू हुई सालों पुरानी इस प्रेम कहानी का अंत भी दोनों छतों के किनारों पर हो गया था.

शायद यहीं आ कर नई पीढ़ी आगे निकल गई है. आज किसी कनिका और किसी अभिषेक को किसी से डरने की जरूरत नहीं है. अपना फैसला वे खुद करते हैं. मांबाप को सूचित कर दिया यही काफी है. यह तो कनिका और अभिषेक के भले संस्कारों का असर है जो इंडिया आ कर शादी कर रहे हैं. यों अगर वे अमेरिका में ही कोर्टमैरिज कर लेते तो भला कोई क्या कर लेता.

प्रेरणा की शादी अनिकेत से तय हो गई थी. न कोई शिकवा न गिला यों हुआ उन की प्रेमकथा का एक मूक अंत.

विदाई के समय प्रेरणा की नजरें घर की छत पर जा टिकीं, जहां कपिल को खडे़ देख कर उस के दिल में एक हूक सी उठी थी लेकिन चाहते हुए भी प्रेरणा की नजरें कुछ क्षण से ज्यादा कपिल पर टिकी न रह सकीं.

हर जख्म समय के साथ भर जाए यह जरूरी नहीं.

प्रेरणा को याद है. जब शादी के कुछ समय बाद कपिल से उस की मुलाकात मायके में हुई थी, वह कैसा बुझाबुझा सा लग रहा था.

‘कैसे हो कपिल?’ प्रेरणा ने कपिल के करीब आ कर पूछा.

न जाने कपिल को क्या हुआ कि वह प्रेरणा के सीने से चिपक कर रोने लगा. ‘काश, प्रेरणा हम समय पर बोल पाते. क्यों मैं ने हिम्मत नहीं दिखाई? पे्ररणा, इतनी कायरता भी अच्छी नहीं. तुम से बिछड़ कर जाना कि मैं ने क्या खो दिया.’

‘ओह कपिल…’ प्रेरणा भी रोने लगी.

चाहीअनचाही इच्छाओं के साथ प्रेरणा और कपिल का रिश्ता एक बार फिर से जुड़ गया. प्रेरणा के मायके के चक्कर ज्यादा ही लगने लगे थे.

अब प्रेरणा की दिलचस्पी फिर से कपिल में बढ़ती जा रही थी और अनिकेत में कम होती जा रही थी. पर अकसर टूर पर रहने वाले अनिकेत को प्रेरणा के बारबार मायके जाने का कारण अपनी व्यस्तता और उस को समय न देना ही लगता.

प्रेरणा और कपिल का यह रिश्ता उन्हें कहां ले जाएगा यह दोनों ही नहीं सोचना चाहते थे. बस, एक लहर के साथ वे बहते चले जा रहे थे.

शादी के पहले तो सब के अफेयर होते हैं, जो नाजायज तो नहीं पर जायज भी नहीं होते हैं. पर शादी के बाद के रिश्ते नाजायज ही कहलाएंगे. यह बात प्रेरणा को अच्छी तरह समझ में आ गई थी. कनिका के जन्म के बाद से ही प्रेरणा ने कपिल से संबंध खत्म करने का निर्णय ले लिया था. कनिका के जन्म के बाद पहली बार प्रेरणा अपने मायके आई थी. कमरे में प्रेरणा अपने और कनिका के कपड़े अलमारी में लगा रही थी कि अचानक कपिल ने पीछे से आ कर प्रेरणा को अपनी बांहों में भर लिया.

‘ओह, प्रेरणा कितने दिनों बाद तुम आई हो. उफ, ऐसा लगता है मानो बरसों बाद तुम्हें छू रहा हूं. प्रेरणा, तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो. तुम्हारा यह भरा हुआ बदन…सच में मां बनने के बाद तुम्हारी खूबसूरती और भी निखर गई है.’ और हर शब्दों के साथ कपिल की बांहों का कसाव बढ़ता जा रहा था.

इस वक्त घर में कोई नहीं है यह बात कपिल को पता थी, इस वजह से वह बिना डरे बोले जा रहा था.

प्रेरणा के इकरार का इंतजार किए बिना ही कपिल उस की साड़ी उतारने लगा. कंधे से पल्ला गिरते ही लाल रंग के ब्लाउज में प्रेरणा का बदन बहुत उत्तेजित लगने लगा जिसे देख कर कपिल मदहोश हुआ जा रहा था.

इस से पहले कि कपिल के हाथ प्रेरणा के ब्लाउज के हुक खोलते, एक झन्नाटेदार चांटा कपिल के गाल पर पड़ा. ‘यह क्या कर रहे हो कपिल, तुम्हें शर्म नहीं आती कि मेरी बेटी यहां पर लेटी है. अब मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता है.’ न जाने प्रेरणा में इतना परिवर्तन कैसे आ गया था, जो अपने ही प्यार का अपमान इस तरह से कर रही थी.

कपिल एक क्षण के लिए चौंक गया फिर बिना कुछ बोले, बिना कुछ पूछे वह तुरंत कमरे से बाहर निकल गया. शायद इतनी बेइज्जती के बाद उस ने वहां रुकना उचित न समझा. कपिल के जाते ही प्रेरणा फूटफूट कर रोने लगी. कपिल से रिश्ता खत्म करने का शायद उसे यही एक रास्ता दिखा था. कपिल से रिश्ता तोड़ना प्रेरणा के लिए आसान नहीं था पर आज प्रेरणा एक औरत बन कर नहीं बल्कि एक मां बन कर सोच रही थी. कल को उस के नाजायज संबंधों का खमियाजा उस की बेटी को न भोगना पड़े.

बच्चों को आदर्श की बातें बड़े तभी सिखा पाते हैं जब वे खुद उन के लिए एक आदर्श हों. जिन भावनाओं को प्रेरणा शादी के बाद भी नहीं छोड़ पाई, उन्हीं भावनाओं को अपनी औलाद के लिए त्यागना कितना आसान हो गया था.

उस के बाद प्रेरणा और कपिल की कोई मुलाकात नहीं हुई.

पर आज भी कपिल प्रेरणा के खयालों में रहता है और अनिकेत के साथ अंतरंग क्षणों में प्रेरणा को कपिल की यादों का एहसास होता है. वक्तबेवक्त कपिल की यादें प्रेरणा की आंखों को नम कर देती थीं.

कुछ रिश्ते यादों की धुंध में ही अच्छे लगते हैं. यह बात प्रेरणा अच्छी तरह जानती थी पर आज वही रिश्ते यादों की धुंध से निकल कर प्रेरणा को विचलित कर रहे थे.

जिस इनसान से प्रेरणा कभी प्रेम करती थी अब उसी का बेटा उस की बेटी के जीवन में आ गया था.

कैसे प्रेरणा कपिल का सामना कर पाएगी? कपिल के लिए जो भावनाएं आज भी उस के दिल में जीवित हैं उन भावनाओं को हटा कर एक नया रिश्ता कायम करना क्या उस के लिए संभव हो सकेगा? कैसे वह इन नए संबंधों को संभाल पाएगी? बरसों बाद अपने पहले प्यार की मिलनबेला का स्वागत करे या…

कैसे वह अपनी ही जाई बेटी की खुशियों का गला घोट डाले? कैसे अपने और कपिल के रिश्ते को सब के सामने खोले? क्या कनिका यह सहन कर पाएगी?

वैसे भी नई पीढ़ी जातिपांति को नहीं मानती. उस के लिए तो प्यार में सब चलता है. नई पीढ़ी तो इन बंधनों के सख्त खिलाफ है. जातपांति के मिटने में ही सब का भला है. आज की पीढ़ी यही समझ रही है, तब किस आधार पर अभिषेक और कनिका का रिश्ता ठुकराया जाए?

अपने ही खयालों के भंवर में प्रेरणा फंसती जा रही थी. सच में दुनिया गोल है. कोई सिरा अगर छूट जाए तो आगेपीछे मिल ही जाता है. पर ऐसे सिरे से क्या फायदा जो सुलझाने के बजाय और उलझा दे.

अभिषेक के मातापिता को देख कर कनिका का दिल शायद न धड़के पर कपिल का सामना करने के केवल खयाल से ही प्रेरणा का दिल आज पहले की तरह तेजी से धड़क रहा था. धड़कते दिल को संभालने के लिए अनायास ही उस के मुंह  से निकल गया.

‘रखा था खयालों में अपने

जिसे संभाल कर,

ताउम्र उस को निहारा, सब से छिपा कर,

पर आज,

वक्त के थपेड़ों से सब बिखरता नजर आता है,

छिप कर आज कहां जाऊं,

वही चेहरा हर तरफ नजर आता है.’?

‘तो क्या जिस तरह यादों के तीर मेरे सीने के आरपार होते रहे उसी तरह के तीरों का शिकार अपनी बेटी को भी होने दूं?’ खुद से पूछे गए इस एक सवाल ने प्रेरणा को ठीक फैसला ले सकने की प्रेरणा दे दी. ‘कनिका को वैसा कुछ न सहना पड़े जो मैं ने सहा, चाहे इस के लिए अब मुझे कुछ भी सहना पड़े’ यह सोच कर प्रेरणा के मन की सारी उलझन गायब हो गई.

घर की बची नमकीन से बनाएं स्वादिष्ट मसाला समोसा

हमारे घरों में चाय नाश्ते के साथ अक्सर नमकीन खाई जाती है इनमें विविध प्रकार के सेव, आलू भुजिया, मूंगफली  और मिक्सचर शामिल होता है. बाजार से इन्हें लाने के बाद कुछ दिनों तक तो घर के सभी सदस्य बड़े स्वाद से खाते हैं परन्तु कुछ समय बाद नए नमकीन के आ जाने या दूसरा कुछ नाश्ता बन जाने पर घर के सदस्य इन्हें खाना बंद कर देते हैं. यही नहीं अक्सर घरों में भांति भांति की जरा जरा सी नमकीन और मिक्सचर डिब्बों की तली में पड़ी रह जाती है. इतने महंगे दामों पर मिलने वाली इन नमकीनों को फेंकने का भी मन नहीं करता. आज हम घर की इन्हीं बची नमकीनों से स्वादिष्ट समोसे बनाना बताएगें. इन्हें आप किसी पर्व या अवसर पर पहले से बनाकर रख सकतीं हैं क्योंकि ये 10-12 दिन तक खराब नहीं होते. होली आने वाली है तो आप इन्हें ट्राई कर सकतीं हैं.

कितने लोंगों के लिए         12

बनने में लगने वाला समय   30 मिनट

मील टाइप                       वेज

सामग्री

मैदा                          1 कप

गेहूं का आटा              1/2 कप

नीबू का रस                1 टीस्पून

नमक                         1/2 टीस्पून

अजवाइन                    1/4 टीस्पून

मोयन के लिये तेल         1 टेबलस्पून

तलने के लिए पर्याप्त मात्रा में तेल

सामग्री (भरावन के लिए)

आलू भुजिया              4 टेबलस्पून

मिक्सचर                     2 टेबलस्पून

सेंव                             2 टेबलस्पून

रोस्टेड मूंगफली            2 टेबलस्पून

काजू                           2 टेबलस्पून

किशमिश                     1 टेबलस्पून

चाट मसाला                  1/4 टीस्पून

सौंफ पाउडर                 1/4 टीस्पून

शेजवान सॉस (ऐच्छिक) 1 टीस्पून

विधि

मैदा में गेंहू का आटा, मोयन, नीबू का रस, अजवाइन और नमक मिलाकर पानी की सहायता से कड़ा गूंथकर आधे घण्टे के लिए सूती कपड़े से ढककर रख दें.

अब भरावन के लिए आलू भुजिया, मिक्सचर, सेंव, मूंगफली और काजू को मिक्सी में दरदरा पीस लें. ध्यान रखें कि मिश्रण एकदम पाउडर न हो जाये. इसे एक बाउल में निकालकर चाट मसाला, सौंफ पाउडर, किशमिश और शेजवान सॉस मिलाएं. तैयार मिश्रण से रोटी की लोई से छोटे बॉल्स तैयार करें. अब थोड़ी मैदा लेकर चकले पर बड़ी सी रोटी बनाएं. चाकू की सहायता से काजू कतली जैसे टुकड़े काटकर अलग कर लें. इन कटे टुकड़ों पर चारों ओर ब्रश या चम्मच से पानी लगाएं. बीच में मिश्रण की बॉल रखकर ऊपरी

सतह को फोल्ड करके दोनों कोनों को मिलाकर चारों ओर से उंगली से दबा दें ताकि किनारे चिपक जाएं. कांटे से किनारों को हल्का सा दबा दें. इसी प्रकार सारे समोसे तैयार करें. मध्यम गर्म तेल में मंदी आंच पर इन्हें सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल कर एयरटाइट जार में भरें और इच्छानुसार प्रयोग करें.

Holi 2024: मौन निमंत्रण- क्या अलग हो गए प्रशांत और प्राची

‘‘क्या प्राची, अभी तक ऐसे ही बैठी हो अस्तव्यस्त सी? मैं ने सोचा तैयार बैठी होगी तुम, ड्राइवर तुम्हें रिंकी के यहां छोड़ देगा,’’ बहुत सारी खरीदारी कर के लौटी थीं नीलाजी पर, प्राची को देखते ही उस पर बरस पड़ीं.

‘‘मेरा मन नहीं है रिंकी के यहां जाने का,’’ प्राची रिमोट से चैनल बदलते हुए बेमन से बोली.

‘‘अरे तो समझाओ अपने मन को. अपने मन पर काबू रखना सीखो. पर यहां तो उलटा ही हो रहा है. मन ही तुम्हें अपने पंजों में जकड़ता जा रहा है,’’ नीलाजी ने प्राची को समझाया.

‘‘मेरा मन मेरी सुनता कहां है मम्मी,’’ प्राची खोखली हंसी हंस दी.

‘‘ऐसा नहीं कहते. रिंकी तुम्हारी सब से प्यारी सहेली है. कितना आग्रह कर के गई थी कि मेहंदी की रस्म से ले कर विवाह की समाप्ति तक तुम्हें उस के घर में ही रहना है. तुम ने छुट्टी ले ली है. 2 महीनों से तुम्हारी तैयारी चल रही थी. ढेरों कपडे़ खरीद डाले तुम ने. फिर अचानक ऐसी बेरुखी क्यों?’’

‘‘कोई बेरुखी नहीं है. बस जाने का मन नहीं है. मुझे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो मम्मी.’’

‘‘क्या हो गया है मेरी बच्ची को? इस तरह तो तू घर की चारदीवारी में घुट कर रह जाएगी. जीवन है तो उस के सुखदुख भी होंगे. रिंकी के यहां तेरी अन्य सहेलियां भी आएंगी, मन बदल जाएगा,’’ नीलाजी ने उसे जबरदस्ती उठा दिया. नीलाजी देर तक शून्य में बनतीबिगड़ती आकृतियों को देखती रहीं… क्या नहीं था उन के पास धन, प्रतिष्ठा और प्राची व प्रखर जैसी मेधावी संतानें. पर प्राची का विवाह होते ही जैसे इस सुख को ग्रहण लग गया. प्राची ने जब प्रशांत से विवाह का प्रस्ताव रखा था तो उन की खुशी की सीमा नहीं थी. प्रशांत था भी लाखों में एक. 35 वर्ष का प्रशांत अपनी कंपनी का सर्वेसर्वा था. उस के शालीन व सुसंस्कृत व्यवहार ने सभी का मन जीत लिया था.

पर विवाह होते ही नवविवाहित जोड़े को न जाने क्यों ग्रहण लग गया. हर बात पर दोनों का अहं टकराता. प्राची ने हनीमून के बाद से ही प्रशांत में मीनमेख निकालना जो शुरू किया तो कभी रुकी ही नहीं. पहले तो प्राची ने इन छोटीमोटी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया. वह तो यही सोचती रही कि हर विवाह में एकदूसरे को जाननेसमझने में समय लगता ही है. पर जब तक वह चेती शायद बहुत देर हो चुकी थी. एक दिन अचानक ही प्राची ने घोषणा कर दी कि अब उस का प्रशांत के साथ रहना संभव नहीं है. यह सुन कर नीलाजी कुछ क्षणों तक स्तब्ध रह गईं. उन्होंने और उन के पति ने बात संभालने का भरसक प्रयत्न किया पर प्राची तो जैसे कुछ सुनने को ही तैयार नहीं थी. उन्होंने प्रशांत को अलग से समझाया, पर उस का उत्तर सुन कर नीलाजी निरुत्तर हो गईं.

‘‘प्राची पढ़ीलिखी, स्वावलंबी युवती है. यदि उसे लगता है कि वह मेरे साथ नहीं रह सकती तो उसे बांध कर तो नहीं रखा जा सकता न मम्मी?’’ प्रशांत का तर्क अकाट्य था. 2 वर्षों से प्राची और प्रशांत का तलाक का केस चल रहा है. अब तो नीलाजी की यही इच्छा है कि प्राची को शीघ्र मुक्ति मिल जाए ताकि वे भी इस झमेले से छुटकारा पा सकें. प्राची का हाल तोे उन से भी बुरा है. कई बार पूछने पर ही किसी बात का उत्तर देती है. हंसनाखेलना तो वह जैसे भूल ही चुकी है. रिंकी अपने विवाह का निमंत्रणपत्र देने आई तो नीलाजी की बांछें खिल गईं. रिंकी प्राची की सब से प्रिय सहेली है. इसी बहाने प्राची कुछ लोगों से मिलेगी. कम से कम कुछ दिनों के लिए तो अपनी घुटन से बाहर निकलेगी.

पिछले 2 महीनों से प्राची रिंकी के विवाह की तैयारी में व्यस्त थी. सप्ताहांत दोनों सखियां साथ बितातीं. जब तक प्राची रिंकी के साथ रहती घर दोनों की खिलखिलाहटों से गूंजता रहता. प्राची ने मेहंदी की रस्म से ले कर विदाई तक हर अवसर के लिए अलगअलग परिधान बनवाए थे. हर परिधान के साथ मेल खाते गहने तथा पर्स खरीदे थे. तरहतरह की चप्पलों और सैंडलों का चुनाव किया गया था. सब कुछ संजो कर करीने से सूटकेस में सजा कर पैक किया था और अचानक आज विवाह में जाने से मना कर दिया. नीलाजी की विचारशृंखला टूटी तो पुन: प्राची पर नजर गई. वह अब भी समाचारपत्र में मुंह गड़ाए बैठी थी. वे कुछ कहतीं उस से पहले ही फोन की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो, रिंकी,’’ प्राची ने फोन उठा कर कहा.

‘‘कहां हो प्राची? हम सब कब से इंतजार कर रहे हैं,’’ रिंकी का स्वर उभरा.

‘‘मैं नहीं आ सकूंगी. तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या हुआ तबीयत को? यह बहानेबाजी मुझ से नहीं चलेगी. 10 मिनट में नहीं पहुंची तो मैं स्वयं आ रही हूं लेने,’’ रिंकी ने धमकी दे डाली.

‘‘अब तो जाओ वरना रिंकी यहीं आ धमकेगी,’’ नीलाजी बोलीं.

‘‘बात वह नहीं है मम्मी. मैं तो कुछ और ही सोच रही थी.’’

‘‘क्या?’’

‘‘रिंकी वहां अकेली तो होगी नहीं, घर मित्रों और संबंधियों से भरा होगा. मुझे देख कर किसी ने कुछ कह दिया तो? मेरा मतलब किसी ने आपत्ति उठाई तो?’’

‘‘आपत्ति? कैसी आपत्ति?’’ नीलाजी अचरज भरे स्वर में बोलीं.

‘‘आप समझीं नहीं, विवाह में सभी नवविवाहितों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं. वहां मेरी मौजूदगी मेरा मतलब मैं तो असफल विवाह का प्रतीक हूं न मम्मी,’’ प्राची ने किसी तरह अपनी बात पूरी की.

‘‘क्या? ऐसी बात तुम्हारे मन में आई भी कैसे? कुदरत की कृपा से प्रशांत सहीसलामत है,’’ नीलाजी स्तब्ध रह गईं.

‘‘मन में विचार मेरी इच्छानुसार थोड़े ही आते हैं. अनायास यह बात मन में कौंधी,’’ चाह कर भी प्राची अपनी भर आई आंखों को न छिपा पाई.

‘‘चलो उठ कर तैयार हो जाओ. रिंकी को तो तुम अच्छी तरह जानती हो, वह सचमुच यहां आ धमकेगी,’’ नीलाजी आदेश भरे स्वर में बोलीं.

‘‘कितनी देर कर दी प्राची, कब से तेरी राह देख रही हूं. कहा था न आज छुट्टी ले लेना,’’ रिंकी ने प्राची को देखते ही शिकायत की.

‘‘छुट्टी ली थी रिंकी पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘मन को अजीब से संशय ने घेर लिया था.’’

‘‘कैसा संशय?’’

‘‘यही कि तेरे शुभ विवाह में मेरा क्या काम…’’

‘‘तेरे दिमाग में बड़ी ऊटपटांग बातें आने लगी हैं प्राची… खबरदार जो आज के बाद ऐसी बात मुंह से निकाली,’’ कह रिंकी ने उसे चुप करा दिया. मेहंदी की रस्म हंसीखुशी संपन्न हो गई. सब खानेपीने और बातचीत में व्यस्त थे पर प्राची को लगता सब उसी की बातें कर रहे हैं. रिंकी लगातार फोन करने में व्यस्त थी. बधाई देने वालों का तांता लगा था. उन से फुरसत मिलती तो सूरज का फोन आ जाता. वह अपने यहां होने वाले उत्सव का विवरण देता. फिर रिंकी उसे विस्तार से अपने मित्रों, संबंधियों और मेहंदी की रस्म के बारे में बताती. ‘‘आज रात को नृत्य और संगीत का कार्यक्रम है. प्राची मेरी अच्छी तरह फोटो लेना, मैं पूरा अलबम सूरज को भेंट करूंगी, फोटोग्राफर तो कल से आएगा,’’ रिंकी ने आग्रह किया.

‘‘ठीक है,’’ प्राची ने अनजाने ही सिर हिला दिया. वह तो अपनी ही सोच में डूबी थी. उसे स्वयं पर आश्चर्य हो रहा था कि कितनी बदल गई है वह, बिलकुल अकेली और उदास. मन में अजीब सा शून्य पसरा हुआ है. कोई फोन पर बात करने वाला भी नहीं है. अपना मोबाइल निकाल कर देर तक उस में सुरक्षित नंबरों को आगेपीछे करती रही. प्रशांत का नंबर अभी तक सुरक्षित था. सोचा फोन मिला कर देखे नंबर वही है या बदल गया है. अनजाने नंबर डायल कर दिया. उधर से प्रशांत का स्वर उभरा तो घबरा कर फोन बंद कर दिया. स्वयं पर ही क्रोध आया, प्रशांत न जाने क्या सोचता होगा. अगले दिन ढेर सारे काम थे. रिंकी की मम्मी साधनाजी ने रिंकी को ब्यूटीपार्लर ले जाने का काम उसे सौंप दिया. प्राची भी प्रसन्न थी. कम से कम लोगों की तीखी निगाहें तो नहीं झेलनी पड़ेंगी.

‘‘तेरी बूआजी तो मुझे ऐसे घूरघूर कर देख रही थीं गोया दिव्यदृष्टि से सब उगलवा लेंगी,’’ प्राची कार में बैठते ही बोली.

‘‘कौन? रमा बूआजी?’’

‘‘हां, तू कह रही थी न बड़ी अंधविश्वासी हैं वे.’’

‘‘प्राची क्या हो गया है तुझे? मैं ने किसी को नहीं बताया कि तेरा तलाक का मुकदमा चल रहा है… और तू क्या सोचती है पूरी दुनिया को केवल तेरी ही चिंता है? अरे, प्राची होश में आ. लोग अपनी उलझनों में ऐसे उलझे हैं कि किसी और के संबंध में सोचते तक नहीं,’’ रिंकी ने अपनी बातों से प्राची को दर्पण में अपनी छवि निहारने को मजबूर कर दिया था. ‘‘तू ठीक कहती है रिंकी, किसी को क्या पड़ी है मुझ जैसी तुच्छ युवती के बारे में सोचे,’’ प्राची सुबकने लगी.

‘‘यह क्या है प्राची… हर बात को अपनी सुविधानुसार मोड़ लेती है. पता है रमा बूआजी क्या कह रही थीं?’’

‘‘क्या?’’ प्राची ने आंसू पोंछ लिए थे.

‘‘कह रही थीं, तेरी सहेली तो बड़ी सुंदर है. मेरी नजर में एक बड़ा अच्छा लड़का है. उस से शादी करवाऊंगी तेरी सहेली की.’’

‘‘तो तूने क्या कहा?’’ प्राची आंसुओं के बीच भी मुसकरा दी.

‘‘मैं ने कहा कि मेरी सहेली न केवल सुंदर है वरन बहुत गुणी भी है. 50 हजार प्रति माह वेतन है उस का.’’

‘‘रिंकी तू जब भी मेरी प्रशंसा के पुल बांधती है तो मैं ठगी सी रह जाती हूं,’’ प्राची बोली.

‘‘मैं ने कुछ गलत कहा क्या?’’

‘‘नहीं, मैं ने यह तो नहीं कहा. सच कहूं तो तेरे जैसी मित्र पर नाज है मुझे.’’

‘‘नाज है न मुझ पर? तो प्रशांत से समझौता कर ले.’’

‘‘क्या कह रही है… तू तो हमारे केस को सुन रहे जज की तरह बात करने लगी है. पिछली सुनवाई में वे यही कह रहे थे. विवाह एक अनुबंध नहीं बंधन है बेटी. यह कोई गुड्डेगुडि़यों का खेल नहीं है कि आज खेला कल भूल गए.’’

‘‘तो तूने क्या कहा?’’

‘‘मैं क्या कहती. वे समझौते की बात कर रहे थे पर प्रशांत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई.’’

‘‘तो क्या हुआ. तुम भी पहल कर सकती थीं. पहले आप पहले आप में तुम दोनों की गाड़ी निकल जाएगी.’’

‘‘यदि उसे मेरी जरूरत नहीं है तो मुझे भी परवाह नहीं है,’’ प्राची क्रोधित स्वर में बोली.

‘‘प्राची अक्ल से काम ले. क्या बुराई है प्रशांत में, नशे में धुत्त घर लौटता है? मारतापीटता है? किसी और के चक्कर में है?’’

‘‘नहीं… नहीं… नहीं… पर वह मेरी चिंता ही नहीं करता. उस ने तो अपने काम से विवाह किया है. मेरा तो उसे जन्मदिन तक याद नहीं रहता.’’

‘‘पर विवाह से पहले तो उस के अपने काम के प्रति समर्पण पर ही तू मरमिटी थी प्राची,’’ रिंकी ने याद दिलाया.

‘‘तब की बात और थी. तब मैं नासमझ थी.’’ ‘‘अब तो समझदार हो गई है न तू. तो इस समझ का ठीक से प्रयोग क्यों नहीं करती?’’

रिंकी की बात का उत्तर दे पाती प्राची, उस से पहले ही गाड़ी ब्यूटीपार्लर के सामने रुक चुकी थी. दोनों सहेलियां नीचे उतर गईं. रिंकी से बातचीत कर के प्राची बहुत हलका महसूस करती है. यही तो खासीयत है रिंकी की. बड़ी सुलझी हुई बातें करती है. ऐसे मित्र बड़ी मुश्किल से मिलते हैं. ब्यूटीपार्लर में भी प्राची की विचारधारा अनवरत चल रही थी… विवाह का दिन गहमागहमी से भरा था. सजनेधजने से रिंकी का रूप और निखर आया था.

‘‘कितनी सुंदर लग रही है रिंकी. हैं न आंटी?’’ प्राची रिंकी को एकटक देखते हुए बोली.

‘‘तुम दोनों सहेलियां सब को मात कर रहीं…’’

रिंकी की मम्मी अपनी बात पूरी कर पातीं तभी आवाजें आने लगीं कि बरात आ गई. सब उसी ओर दौड़ गए. प्राची रिंकी के पास बैठी थी.

‘‘चल, बालकनी से बरात देखते हैं. देखें तो दूल्हे के वेश में सूरज कैसा लगता है,’’ प्राची बोली.

‘‘चल, वैसे बरात में तेरे लिए भी एक आश्चर्य है,’’ रिंकी बोली.

‘‘मेरे लिए? वह क्या?’’

‘‘स्वयं ही देख लेना.’’

बालकनी में पहुंच कर प्राची हैरान रह गई. बरातियों की भीड़ में माला पहने प्रशांत भी खड़ा था.

‘‘तुम ने प्रशांत को भी आमंत्रित किया था?’’

‘‘मैं ने नहीं, सूरज ने बुलाया है, दोनों अच्छे मित्र हैं,’’ रिंकी बोली. प्राची चुप रह गई. मन में हूक सी उठी कि सब ठीक होता तो दोनों साथ ही आते. जयमाला के समय दोनों आमनेसामने पड़ ही गए.

‘‘कैसी हो प्राची? बड़ी सुंदर लग रही हो,’’ प्रशांत बोला तो प्राची उसे गहरी नजरों से देखती रह गई कि अब प्रशांत को सामान्य शिष्टाचार समझ आने लगा है.

‘‘तुम भी कम सुंदर नहीं लग रहे हो,’’ प्राची ने पलट कर उत्तर दिया.

‘‘धन्यवाद, तुम्हारे मुंह से यह सुन कर बहुत अच्छा लगा,’’ कह प्रशांत मुसकराया. विवाह की अन्य रस्मों के बीच भी दोनों में आंखमिचौली चलती रही. प्रशांत कभी प्राची के लिए आइसक्रीम ले आता तो कभी और कोई खाने की चीज. प्राची झुंझला कर रह जाती. विवाह संपन्न हुआ तो मित्रों ने रिंकी और सूरज को घेर लिया. दोनों पर प्रश्नों की बौछार होने लगी. कब, कहां, कैसे मिले थे दोनों? संपर्क कैसे बढ़ा? विवाह करने का निर्णय कब लिया? दोनों हासपरिहास समझ कर हर प्रश्न का उत्तर दे रहे थे.

तभी मित्रगण आग्रह करने लगे कि दोनों एकदूसरे का नाम लेंगे.

‘‘यह कौन सा कठिन काम है रिंकी,’’ सूरज हंसते हुए बोला.

‘‘ऐसे नहीं. प्रशांत बाबू, कुछ सिखाओ अपने मित्र को,’’ मित्रों का समवेत स्वर गूंजा.

‘‘प्राची भई प्रशांत की रिंकी हुई उदास,’’ प्रशांत मुसकराते हुए बोला.

‘‘रिंकी सूरज की हुई, प्राची हुई उदास,’’ सूरज ने तुरंत ही दोहरा दिया. अब रिंकी की बारी थी पर प्राची न कुछ बोल रही थी न सुन. अपने विवाह की 1-1 घटना चलचित्र की भांति उस की आंखों के सामने घूमने लगी थी.

‘‘प्राची भई प्रशांत की…’’ यही तो कहा था प्रशांत ने, फिर यह अलगाव की भावना कहां से आ गई? प्राची का चेहरा आंसुओं से भीग गया. सब ने सोचा बेचारी सहेली की विदाई का दुख नहीं सह पा रही. तभी प्रशांत ने आगे बढ़ कर रूमाल पकड़ाया कि आंसू पोंछ डालो प्राची. क्या आज इस मंडप के नीचे एक और विदाई संभव है? मैं आज पुन: वचन देता हूं कि तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं आने दूंगा. प्राची ने मौन स्वीकृति में नजरें उठाईं तो प्रशांत की आंखों में उभरे मौन निमंत्रण को देख कर दंग रह गई. कौन कहता है कि मौन की भाषा नहीं होती.

Holi 2024: समानांतर- क्या सही था मीता का फैसला

रात का पहला पहर बीत रहा था. दूर तक चांदनी छिटकी हुई थी. रातरानी के फूलों की खुशबू और मद्धम हवा रात को और भी रोमानी बना रहे थे. मीता की आंखों में नींद नहीं थी. बालकनी में बैठी वह चांद को निहारे जा रही थी. हवाएं उस की बिखरी लटों से खेल रही थीं. तभी कहीं से भटके हुए आवारा बादलों ने चांद को ढक लिया तो मीता की तंद्रा भंग हुई. अब चारों और घुप्प अंधेरा था. मीता उठ कर अपने कमरे में चली गई. मोहन की बातें अभी भी उस के दिल और दिमाग दोनों को परेशान कर रही थीं. बिस्तर पर करवट बदलते हुए मीता देर तक सोने की कोशिश करती रही, लेकिन नींद नहीं आई. इतनी रात गए मीता राजन को भी फोन नहीं कर सकती थी. राजन दिन भर इतना व्यस्त रहता है कि रात में 11 बजते ही वह गहरी नींद में होता है. फिर तो सुबह 7 बजे से पहले उस की नींद कभी नहीं खुलती. दोनों के बीच बातों के लिए समय तय है. उस के अलावा कभी मीता का मन करता है बातें करने का तो इंतजार करना पड़ता है. पहले अकसर मीता चिढ़ जाया करती थी. अब मीता को भी इस की आदत हो गई है. यही सब सोचतेसोचते मीता बिस्तर से उठी और कमरे के कोने में रखी कुरसी पर बैठ गई. कुछ पढ़ने के लिए उस ने टेबल लैंप जला लिया. लेकिन आज उस का मन पढ़ने में भी नहीं लग रहा था. एक ही सवाल उस के दिमाग को परेशान कर रहा था. सिर्फ 5 महीने ही तो हुए थे मोहन से मिले हुए. क्या उम्र के इस पड़ाव पर आ कर सिर्फ 5 महीने की दोस्ती प्यार का रूप ले सकती है? उस पर तुर्रा यह कि दोनों शादीशुदा. मोहन की बातों ने उस के दिमाग को झकझोर कर रख दिया था. मीता फिर से बिस्तर पर आ कर लेट गई. मोहन के बारे में सोचतेसोचते कब उस की आंखें बंद हो गईं और वह नींद की आगोश में चली गई, उसे पता ही नहीं चला.

सुबह उस ने निश्चय किया कि आज मोहन को सीधेसीधे बोल देगी कि ऐसा बिलकुल भी संभव नहीं है. मेरी दुनिया अलग है और तुम्हारी अलग. इसलिए जो रिश्ता हमारे दरम्यान है वही सही है और उसे ही निभाना चाहिए. लेकिन मोहन के सामने उस की जबान बिलकुल बंद हो गई. ऐसा लगा जैसे किसी बाह्य शक्ति ने उस की जबान को बंद कर दिया हो. मोहन ने कौफी का घूंट भरते हुए मीता से पूछा, ‘‘फिर क्या सोचा है?’’ मीता ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, ‘‘मोहन, ऐसा नहीं हो सकता. देखो, तुम भी शादीशुदा हो और मैं भी. यह बात और है कि हम दोनों ‘डिस्टैंस रिलेशनशिप’ में बंधे हुए हैं. न तुम्हारी पत्नी और बच्चा यहां रहते हैं और न ही मेरे पति, लेकिन हम दोनों ही अपनेअपने परिवार से बेहद प्यार करते हैं. फिर हमारे बीच दोस्ती का रिश्ता तो है ही.’’ मोहन ने मीता की ओर देखे बगैर कौफी का दूसरा घूंट लिया और बोला, ‘‘मीता, शादीशुदा होने से क्या हमारा मन, प्यार सब गुलाम हो जाते हैं? क्या हमारी व्यक्तिगत पसंदनापसंद कुछ नहीं हो सकती?’’

‘‘जो भी हो मोहन लेकिन दोस्ती तक ठीक है. उस से आगे न तो मैं सोच सकती हूं और न ही तुम्हें सोचने का हक दे सकती हूं,’’ मीता थोड़ा सख्त होते हुए बोली. मोहन ने कहा, ‘‘मीता तुम अपनी बात कह सकती हो, मेरी सोच पर तुम लगाम कैसे लगा सकती हो?’’ मोहन का स्वर अब भी बेहद संयत था.मोहन की कौफी खत्म हो चुकी थी और मीता की कौफी अब भी जस की तस पड़ी थी. मोहन ने याद दिलाया, ‘‘कौफी ठंडी हो चुकी है मीता, कहो तो दूसरी मंगवा दूं?’’

मीता ने ‘न’ में सिर हिलाया और ठंडी ही कौफी पीने लगी. पूरे वातावरण में एक सन्नाटा छा गया था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई समुद्र जोरजोर से शोर मचाने के बाद थक कर बिलकुल शांत हो गया हो या फिर जैसे कोई तूफान आने वाला हो. काफी देर तक दोनों खामोश बैठे रहे. फिर चुप्पी को तोड़ते हुए मोहन ने मीता से कहा, ‘‘चलो, घर छोड़ देता हूं.’’

मीता ने मना कर दिया और फिर दोनों अलगअलग दिशा में चल पड़े. मीता रास्ते भर यही सोचती रही कि आखिर उस से कहां चूक हुई? मोहन ने ऐसा प्रस्ताव क्यों रखा? लेकिन हर बार उस के मन में उठ रहे प्रश्न अनुत्तरित रह जा रहे थे. अकसर ऐसा होता है कि अगर मनमुताबिक जवाब न मिले तो व्यक्ति आत्मसंतुष्टि के लिए अपने अनुसार जवाब खुद ही तय कर लेता है. मीता ने भी खुद को संतुष्ट करने के लिए एक जवाब तय कर लिया कि वही कुछ ज्यादा ही खुल कर बातें करने लगी थी मोहन से, इसीलिए ऐसा हुआ. घर आ कर मीता ने अपने पति राजन से फोन पर ढेर सारी बातें कीं. फिर निश्चिंत हो कर अपने मन में उठ रहे गैरजरूरी विचारों को झाड़ा. वह स्वयं से बोली जैसे खुद को समझाने और आश्वस्त करने की कोशिश कर रही हो, ‘मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करती हूं. जो तुम ने कहा वैसा कभी नहीं हो सकता मोहन, तुम देखना, जिस आकर्षण को तुम प्यार समझ बैठे हो वह जल्द ही खत्म हो जाएगा.’

ऐसा सोचने के बाद मीता की कोशिश यही रही कि वह मोहन से कम से कम मिले. हालांकि एक ही संस्थान में दोनों शिक्षक थे, इसलिए एकदूसरे से मुलाकातें तो हो ही जाती थीं. वैसे समय में उन दोनों के बीच बातें होतीं प्रोफैशन की, साहित्य की, क्योंकि दोनों को साहित्य से गहरा लगाव था. लेकिन अब मीता थोड़ी चुपचुप सी रहती, खुल कर बातें नहीं करती. मोहन भी अपनी भावनाओं को छिपाता था. उस ने उस बारे में फिर कभी कुछ नहीं कहा. एक शाम एक पत्रिका में छपे मोहन के आलेख पर चर्चा हो रही थी. आलेख निजी संबंध पर था. कुछ चीजें मीता को खटक रही थीं जिस पर उस ने आपत्ति जताई. फिर दोनों में बहस शुरू हो गई. बाकी साथी मूकदर्शक बन गए. अपना पक्ष रखते हुए मोहन ने मीता से पूछा, ‘‘क्या आप ने प्यार किया है?’’ फिर खुद ही जवाब भी देने लगा, ‘‘अगर किया होता तो फिर इस आलेख की गहराई को समझतीं और आप को आपत्ति भी नहीं होती.’’

मीता ने तल्खी से जवाब दिया, ‘‘ये कैसा बेतुका सवाल है. मैं एक शादीशुदा औरत हूं. मेरे पति हैं जिन से मैं बहुत प्यार करती हूं. भले ही वे काम की वजह से मुझ से दूर रहते हों, लेकिन हम दोनों एकदूसरे के बेहद करीब हैं.’’ मोहन ने कहा, ‘‘फिर तो प्रेम की समझ आप में बेहतर होनी चाहिए थी.’’

मीता ने तंज कसा, ‘‘लगता है आप अपनी पत्नी से प्रेम नहीं करते.’’ मोहन ने जवाब दिया, ‘‘जी नहीं, हमारे संबंध बहुत अच्छे हैं. हम एक आदर्श पतिपत्नी हैं, लेकिन मैं ने उन्हें किसी और से प्रेम करने से नहीं रोका. देखो मीता, इश्क का इतिहास तहजीब की उम्र से पुराना है. विवाह करना और प्यार करना दोनों अलग चीजें हैं. मानव मन गुलाम बनने के लिए बना ही नहीं है. प्रकृति ने मनुष्य को आजाद पैदा किया है. ये सामाजिक बंधन तो हमारे बनाए हुए हैं. प्राकृतिक रूप से हम ऐसे नहीं हैं.’’ पहले तो मीता सुनती रही फिर कहा, ‘‘अपनी गलती को न्यायोचित सिद्ध करने के लिए कुछ भी तर्क दिया जा सकता है. मैं इसे प्यार नहीं मानती. मेरी समझ से यह सिर्फ अपनी जरूरत पूरी करने के लिए दिया गया एक तर्क भर है.’’

उस शाम मोहन ने अपने जीवन में आई लड़कियों की कहानियां, अपने तर्क को सच साबित करने के क्रम में सुनाईं, लेकिन मीता उस की कोई बात मानने को तैयार नहीं थी. हां, इस घटना के बाद फिर से दोनों आपस में पहले की तरह या यों कहें पहले से ज्यादा खुल कर बातें करने लगे. जाने कब वे दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि जानेअनजाने दोनों की बातों में ज्यादातर दोनों का जिक्र होता. मीता को तो कई बार उस के पति राजन ने मजाक में फोन पर टोका था, ‘‘कहीं मोहन से तुम्हें प्यार तो नहीं हो गया मीता?’’ तब मीता खिलखिला देती, लेकिन राजन का यह मजाक कब गंभीर आरोप में बदल गया मीता समझ ही नहीं पाई और उस दिन तो सारी हदें पार हो गईं. मीता ने अभी क्लास खत्म ही की थी कि राजन का फोन आया. उस दिन राजन के स्वर से प्यार गायब था. ऐसा लग रहा था जैसे उस ने कुछ तय कर रखा हो. मीता हमेशा की तरह चहक रही थी. बातोंबातों में यह भी बोल गई कि आज दोपहर का खाना मोहन के साथ खाएगी. फिर तो जैसे शांत माहौल में तूफान आ गया.

राजन, जिस ने आज तक कभी उस से ऊंची आवाज में बात नहीं की थी, आज उस के चरित्र पर उंगली उठा रहा था. तब मीता अपनी सफाई में कुछ नहीं बोल सकी थी. हालांकि उस दिन के बाद इस के लिए राजन ने जाने कितनी बार माफी मांगी, लेकिन मीता के सीने में तो नश्तर चुभा था. जख्म भरना बड़ा ही मुश्किल था. वह अपनी ओर से बहुत कोशिश करती उन बातों को भुलाने की, लेकिन वे शब्द नासूर बन चुके थे. अकसर अकेले में रिसते रहते. मोहन जब तक साथ रहता मीता हंसती रहती, खुश रहती. लेकिन मोहन के जाते ही फिर से नकारात्मक सोच हावी होने लगता. इस दौरान जानेअनजाने मोहन ज्यादा से ज्यादा वक्त मीता के साथ गुजारने लगा. शायद दोनों को अब एकदूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था. दोनों के रिश्ते की गरमाहट की आंच दोनों के परिवार वालों तक पहुंचने लगी. शुरुआत मीता के परिवार में हुई और अब मोहन के घर में भी मातम मनाया जाने लगा. मीता मोहन के करीब आती जा रही थी और राजन से दूरी बढ़ती जा रही थी. मोहन का भी हाल ऐसा ही था. एक शाम मोहन ने फिर से मीता के सामने प्रेम प्रस्ताव रखा साथ ही यह भी कहा, ‘‘जवाब देने की कोई हड़बड़ी नहीं है. कल रविवार है. सुबह तुम्हारे घर आता हूं. सोचसमझ लो, रात भर का समय है तुम्हारे पास.’’

मीता घर आ कर देर तक मोहन के प्रस्ताव के बारे में सोचती रही. फिर राजन के बारे में सोचा तो मुंह कसैला हो गया. यह सब सोचतेसोचते धीरेधीरे मीता की पलकें भारी होने लगीं. फिर वह यह सोचते हुए सो गई कि आखिर कल उसे मोहन को सब कुछ सचसच बताना है. मीता सूरज की पहली किरण के साथ जागी. वह बेहद ताजगी महसूस कर रही थी, क्योंकि आज उस की जिंदगी एक नई करवट ले रही थी. वह पुरानी सभी यादों को अपनी जिंदगी से मिटा देना चाहती थी. राजन की दी हुई जिस पायल की रुनझुन से उस का मन नाच उठता था आज वही उसे बेडि़यां लगने लगी थी. जिस कुमकुम की बिंदी लगा कर वह अपना चेहरा देर तक आईने में निहारा करती थी आज वही उसे दाग सी लगने लगी थी. मीता ने अपना लैपटौप खोला और राजन को सारी बातें लिख डालीं. यह भी लिखा कि जिस दिन तुम ने पहली बार मुझे शक की नजर से देखा था राजन, तब तक जिंदगी में सिर्फ तुम थे. लेकिन मेरे प्रति तुम्हारा अविश्वास और मेरे लिए वक्त नहीं होना, मुझे मोहन के करीब लाता गया. मुझे जब भी तुम्हारी जरूरत होती थी राजन, तुम मेरे पास नहीं होते थे. लेकिन मोहन हमेशा साथ रहा और इस के लिए मैं तुम्हारी हमेशा शुक्रगुजार रहूंगी, क्योंकि अगर तुम ऐसा नहीं करते तो मैं मोहन की अहमियत को कभी समझ नहीं पाती. मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. मैं तुम्हारी दुनिया से बहुत दूर जा रही हूं.

इतना लिखने के बाद मीता ने गहरी सांस ली. आज सालों बाद वह अपने को तनावमुक्त और आजाद महसूस कर रही थी. उस ने अपने पांवों से पायल को उतार फेंका और कुमकुम की बिंदी मिटा कर उस की जगह काली छोटी सी बिंदी, जो वह कालेज के दिनों में लगाया करती थी, एक बार फिर से लगा ली. मोहन अपने अंदर चल रहे तूफान पर नियंत्रण रखने की कोशिश करता हुआ बैठक में मीता का इंतजार कर रहा था. इंतजार ने कौफी के स्वाद को फीका कर दिया था. लंबे इंतजार के बाद जब मीता मोहन के सामने आई तो बिलकुल पहचान में नहीं आ रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे अभीअभी उस ने कालेज में एडमिशन लिया हो. अपनी उम्र से 20 साल छोटी लग रही थी वह. मोहन उत्सुकता से उस के चेहरे की ओर देख रहा था. उसे अपना जवाब चाहिए था और ऐसा लग रहा था जैसे उस का जवाब मीता के चेहरे पर लिखा है.

मीता ने मुसकरा कर मोहन से कहा, ‘‘मोहन, कभीकभी सोच साहित्यिक होने लगती है. ऐसा लगने लगता है कि हम किसी कहानी का हिस्सा भर हैं. लेकिन सच कहूं मोहन, तो ऐसा लगता है कि तुम जब पहली बार उस शिक्षिका साहिबा से इश्क कर रहे थे, मेरे पास ही थे. फिर तुम जबजब जितनी भी स्त्रियों के पास गए, हर बार मेरे और पास आते गए और अब जब सारी दूरियां खत्म हो गईं हम और तुम एक हो गए. क्या ऐसा नहीं हो सकता हम किसी ऐसी जगह चले जाएं, जहां न कोई हमें पहचाने, न हम किसी को जानें. जहां न राजन हो न तुम्हारी प्रिया. बोलो मोहन, क्या ऐसा हो सकता है?’’ मोहन ने कुछ नहीं कहा, सिर्फ मीता के आंसुओं से भीगे चेहरे को सांसों की गरमी देते हुए अपने हाथों में थाम लिया. थोड़ी देर बाद दोनों एकदूसरे के हाथ में हाथ डाले चल पड़े एक अनजाने सफर पर जहां थोड़ा दर्द लेकिन सुकून था. खुली हवा थी, उम्मीदों से भरापूरा जीवन था.

Holi 202: होली के दुश्मन नकली रंग

होली मौजमस्ती का त्योहार है. इसे ले कर बच्चों, बूढ़ों, युवाओं सभी में उत्साह रहता है. पर कुछ लोग रंगों के डर से घर में छिप कर बैठ जाते हैं, जो ठीक नहीं होता. वर्ष में एक बार आने वाले इस पर्व का मजा तभी है, जब सभी एकदूसरे को रंगों से सराबोर करें. अगर आप को होली के रंगों से डर लगता है तो थोड़ी सी सूझबूझ से आप होली को सुरक्षित बना सकते हैं. यह तो देखना ही चाहिए कि जिन रंगों से हम होली खेलते हैं, क्या वे सेहत के लिए सुरक्षित भी हैं? कहीं वे सेहत को नुकसान तो नहीं पहुंचाएंगे?

कृत्रिम रंगगुलाल का सेहत पर प्रभाव

प्राकृतिक रंग और गुलाल सेहत के लिए सुरक्षित होते हैं, जबकि कृत्रिम रंग, कृत्रिम गुलाल आदि सेहत के लिए नुकसानदेह होते हैं. फिर भी इन्हीं का इस्तेमाल ज्यादा होता है, क्योंकि ये सस्ते भी होते हैं और आसानी से उपलब्ध भी. ऐसे रंगगुलाल से होली खेलने के दौरान हाथमुंह रंगों में रंगे होते हैं, ऐसे में कोई भी चीज आप खाते या पीते हैं तो रंगों का कुछ अंश मुंह के जरिए शरीर के अंदर पहुंच जाता है, जो किसी विष से कम घातक नहीं होता है. अधिकांश लोगों को कृत्रिम या रासायनिक रंगों से ऐलर्जी भी होती है. कुछ को तो गंभीर किस्म की ऐलर्जी हो जाती है, जिस का उपचार बड़ी मुश्किल से होता है. इस के अलावा शरीर पर छोटेछोटे दाने या फुंसियां निकलना, त्वचा में जलन, घाव, खुजली, फफोले होना तो आम बात है. यदि शरीर पर कहीं चोट या घाव है, तो उस पर लगे रंग निश्चित तौर पर हानि पहुंचाते हैं.

होली पर लोग रंग, गुलाल ही नहीं वार्निश, पेंट, तारकोल, ग्रीस आदि भी एकदूसरे के चेहरे पर लगा देते हैं. जाहिर है, ये सब त्वचा के अनुकूल नहीं होते हैं और फिर इन्हें छुड़ाना भी मुश्किल होता है.

होली खेलने से पूर्व बरतें सावधानी

होली खेलने से पूर्व शरीर पर वैसलीन या कोल्डक्रीम अच्छी तरह से लगा लें ताकि त्वचा पर रंगों का प्रभाव कम पड़े.

होली खेलने से पूर्व अपने शरीर के खुले भागों पर सरसों का तेल मल लें. चिकनाई की वजह से रंगों का त्वचा पर असर कम होगा.

नाखूनों पर नेलपौलिश लगा लें ताकि पक्के रंग नाखूनों पर न चढ़ें. बाद में नेलपौलिश रिमूवर से वह आसानी से उतर जाएगी.

होली जूते पहन कर ही खेलें. चाहें तो मौजे भी पहन लें. इस से पैर रंगों से सुरक्षित रहेंगे.

बालों को रंगों से खराब होने से बचाने के लिए उन में तेल लगा लें तथा खुला रखने के बजाय उन की चोटी या जूड़ा बना लें ताकि रंग बालों में न समाएं.

रंगों का सर्वाधिक दुष्प्रभाव आंखों पर पड़ता है, इसलिए उन्हें बचाना बहुत जरूरी है. यदि कोई चेहरे पर रंग लगाने की कोशिश करे तो तुरंत आंखें बंद कर लें.

होली खेलने के लिए नायलन, पौलिऐस्टर अथवा टैरीकौट के कपड़े पहनें, क्योंकि इन पर रंग ठहरता नहीं है, इसलिए त्वचा पर असर भी कम होता है. ऐसे कपड़े पहनें जिन से आप के शरीर का अधिकांश भाग ढक जाता हो ताकि रंग सीधे तौर पर त्वचा को प्रभावित न कर सकें.

कैसे छुड़ाएं रंग

जब भी कोई आप के बालों या शरीर पर सूखा रंग डाले, तुरंत उसे झाड़ दें ताकि वह शरीर के संपर्क में ज्यादा देर न रहे.

गीले रंग को भी यदि तत्काल सूखे कपड़े से पोंछ लिया जाए तो उस का असर कम होता है और वह जल्दी छूट जाता है.

गुलाल को कभी पानी से न धोएं अन्यथा वह आप को रंगना शुरू कर देगा. बेहतर यही होगा कि उसे सूखे कपड़े से झाड़ लें. सिर में गुलाल पड़ा हो तो कंघी कर लें और फिर शैंपू से धो लें.

रंग छुड़ाने के लिए मिट्टी के तेल, चूने के पानी आदि का इस्तेमाल न करें. उसे साबुन, पानी और उबटन से ही छुड़ाएं.

गरम पानी के बजाय ठंडे पानी का इस्तेमाल करें, क्योंकि गरम पानी से रंग पक्के हो जाते हैं.

रंग छुड़ाने के लिए घटिया डिटरजैंट का इस्तेमाल भी ठीक नहीं, क्योंकि इस से त्वचा छिल सकती है.

रंग छुड़ाने के लिए नहाने वाले किसी भी साबुन का इस्तेमाल करें. साबुन से उत्पन्न झाग को कपड़े से पोंछते जाएं. इस से रंग कपड़े पर उतर जाएगा और शरीर पर लगा रंग हलका होता जाएगा.

कभी भी खुरदरे पत्थर आदि का इस्तेमाल न करें अन्यथा त्वचा छिल जाएगी.

रंग छुड़ाने का आसान तरीका है नारियल के तेल में रुई को भिगो कर उस से धीरेधीरे रंग छुड़ाएं. ऐसा करने से जलन भी नहीं होगी.

यदि त्वचा पर गहरा रंग लगा है तो बेहतर होगा कि पहले नीबू से त्वचा को साफ कर लें, फिर उबटन लगाने से रंग छूट जाएगा.

बालों के रंग निकालते समय गरदन को इस प्रकार रखें कि रंग शरीर के अन्य हिस्सों पर न पड़े.

यदि नाखूनों के भीतर रंग चढ़ जाए तो उस जगह नीबू को रगड़ें.

रंग छुड़ाने के बाद त्वचा में जलन न हो, इस के लिए दूध व हलदी का लेप लगा लें.

रंग छुड़ाने के बाद हलकी सी जलन महसूस हो तो ग्लिसरीन में गुलाबजल मिला कर जलन वाली जगह पर कुछ देर लगाएं और फिर थोड़ी देर बाद कुनकुने पानी से धो लें.

यदि एक बार में रंग न निकले तो परेशान न हों. 1-2 दिन में निकल जाएगा. एक बार में ही सारा रंग निकालने की कोशिश त्वचा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी.

ऐसे करें हर्बल रंग तैयार

रासायनिक रंगों के बजाय घर पर हर्बल रंग तैयार कर उन से होली खेलना सुरक्षित रहता है. केसरिया रंग बनाने के लिए पानी में चंदन पाउडर तथा टेसू के फूलों का इस्तेमाल किया जा सकता है. गुलाबी रंग चुकंदर को रात भर पानी में भिगो कर उस से तैयार किया जा सकता है. लाल रंग बनाने के लिए लाल चंदन पाउडर का इस्तेमाल किया जा सकता है. मेहंदी पाउडर को पानी में भिगो कर हरा रंग बना सकते हैं, जबकि पीला रंग तैयार करने के लिए आटे में हलदी पाउडर मिलाया जा सकता है. गेंदे के फूलों को उबाल कर भी पीला रंग तैयार कर सकते हैं. नारंगी रंग बनाने के लिए पलाश के फूलों को रात भर पानी में भिगो दें. सुबह रंग तैयार मिलेगा. यदि आप भूरा रंग चाहते हैं तो कत्थे को पानी में घोल सकते हैं. काला रंग बनाने के लिए रात को लोहे की कड़ाही में थोड़ा आंवला चूर्ण मिला दें. सुबह काला रंग तैयार मिलेगा.होली मौजमस्ती का त्योहार है. इसे ले कर बच्चों, बूढ़ों, युवाओं सभी में उत्साह रहता है. पर कुछ लोग रंगों के डर से घर में छिप कर बैठ जाते हैं, जो ठीक नहीं होता. वर्ष में एक बार आने वाले इस पर्व का मजा तभी है, जब सभी एकदूसरे को रंगों से सराबोर करें. अगर आप को होली के रंगों से डर लगता है तो थोड़ी सी सूझबूझ से आप होली को सुरक्षित बना सकते हैं.

Holi 2024: पलाश- अर्पिता ने क्यों किया शलभ को अपनी जिंदगी से दूर?

रखैल…बदचलन… आवारा… अपने लिए ऐसे अलंकरण सुन कर अर्पिता कुछ देर के लिए अवाक रह गई. उस की इच्छा हुई कि बस धरती फट जाए और वह उस में समा जाए… ऐसी जगह जा कर छिपे जहां उसे कोई देख न पाए. रिश्तेदार तो कानाफूसी कर ही रहे थे, पर क्या शलभ की पत्नी भी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर सकती है? वह तो उस की अच्छी दोस्त बन गई थी. फिर वह ऐसा कैसे बोल सकती है?

अर्पिता का नाम शलभ के साथ जोड़ा जा रहा था, उस के संबंध को नाजायज बताया जा रहा था. उस ने रुंधे गले से शलभ से पूछा, ‘‘सब मुझे गलत कह रहे हैं… हमारे रिश्ते को नाजायज बता रहे हैं… सच ही तो है, तुम ठहरे शादीशुदा. तुम्हारे साथ रहने का मुझे कोई अधिकार नहीं… क्या मैं सच में तुम्हारी रखैल हूं?’’

शलभ को शीशे की तरह चुभा था यह सवाल. अर्पिता की सिसकियां थम नहीं रही थीं. रोतेरोते ही बोली, ‘‘इतनी बदनामी के बाद अब मुझ से कौन शादी करेगा?’’

शलभ ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘मैं ढूंढ़ूगा तुम्हारे लिए लड़का… तुम्हारे विवाह की सारी जिम्मेदारी मैं निभाऊंगा.’’

‘‘तुम मेरे बिना रह सकोगे?’’

शलभ अर्पिता के सवाल का जवाब देने के बजाय उस का सिर अपनी गोद में रख कर थपकियां देने लगा. थोड़ी ही देर में अर्पिता नींद में डूब गई. शलभ उस के मासूम चेहरे को देर तक देखता रहा, जो अब भी आंसुओं से भीगा था.

1-1 कर उसे अर्पिता से जुड़ी सभी छोटीबड़ी घटनाएं याद आने लगीं. यादें समुद्र की लहरों सी होती हैं. उठती हैं, गिरती हैं और फिर छोड़ जाती हैं एक खालीपन, एक एकाकीपन जिसे भर पाना मुश्किल हो जाता है…

अर्पिता रिश्ते में शलभ की कजिन थी. दोनों के बीच उम्र का बड़ा फासला भी था. उस फासले का असर दोनों के व्यक्तित्व, पसंदनापसंद में नजर आता था. शलभ के जेहन में नन्ही सी अर्पिता की धुंधली सी तसवीर थी, जबकि अर्पिता को तो शलभ बिलकुल याद नहीं था.

हो भी कैसे? तब से अब तक उस की जिंदगी ने बहुत उतारचढ़ाव देख लिए. मां गुजर गईं, पिता ने दूसरी शादी कर ली, इसे ननिहाल भेज दिया गया. जिंदगी के थपेड़ों ने उम्र के लिहाज से अनुभव थोड़ा ज्यादा दे दिया था, जो कभीकभी उस के स्वभाव से भी झलकता था.

वर्षों बाद अर्पिता शलभ से मिली थी. फिर भी उस के व्यवहार में बिलकुल भी अजनबियत नहीं दिखी. एक अपनापन था. चंद रोज में ही शलभ उस का राजदार बन गया. अर्पिता ने शलभ को अपने बचपन के प्यार के बारे में बताया. यह भी बताया कि दोनों शादी करना चाहते हैं.

‘‘घर वालों को शादी के लिए नहीं मना सकते, तो मुझे ही दिल्ली ले चलो. आसिफ वहीं नौकरी करता है. मैं भी पीजी में रहूंगी और नौकरी करूंगी. कोर्ट मैरिज करने के बाद घर वालों को बता दूंगी,’’ एक सांस में अर्पिता ने अपनी बात शलभ से कह डाली.

शलभ ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन फिर उस की जिद के आगे हार गया.

उन दिनों शलभ दिल्ली में कार्यरत था. अच्छी कंपनी, अच्छी कमाई, खुशहाल परिवार. अर्पिता के घर में शलभ की बड़ी इज्जत थी. अर्पिता के दिल्ली जाने की बात पर उस के घर वालों को समझाना पड़ा. आखिरकार अर्पिता को दिल्ली जाने की इजाजत मिल गई.

अर्पिता को तो पंख लग गए. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह दिन भी आ गया जब शलभ के साथ अर्पिता अपने सपनों की नगरी की ओर निकल पड़ी. अर्पिता के पिता ने उस की सारी जिम्मेदारी शलभ के कंधों पर डाल थी. शलभ ने भी इस जिम्मेदारी को खुशीखुशी स्वीकार लिया था.

दिल्ली पहुंचने के बाद शलभ ने अर्पिता के रहने का इंतजाम पीजी में करा दिया. गुजरते समय के साथ ही अर्पिता ने भी दिल्ली की रफ्तार भरी जिंदगी से तालमेल बैठा लिया. शलभ अपने काम में व्यस्त हो गया. अर्पिता इस नई और पसंद की दुनिया में बेहद खुश थी. वीकैंड पर आसिफ के साथ कभी कनाट प्लेस के चक्कर लगाती तो कभी बाइक से देर रात दोनों इंडिया गेट कुल्फी खाने निकल जाते.

मार्च का महीना था. पलाश के पेड़ों में हरे पत्तों की जगह सुर्ख फूलों ने ले ली थी. यही तो वे फूल हैं, जो बचपन से ही उसे बेहद पसंद हैं, सुर्ख रंग उस का पसंदीदा. उस के घर के सामने भी पलाश का पेड़ था. दिल्ली में कहीं भी सुर्ख फूल देख कर उसे घर जैसा महसूस होता.

होली आने में बस चंद दिन ही रह गए थे. इस बार की होली को ले कर अर्पिता बेहद उत्साहित थी. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. होली से चंद रोज पहले शलभ के पास अर्पिता के अस्वस्थ होने की खबर पहुंची. शलभ पीजी पहुंचा तो अर्पिता को तेज बुखार में तड़पता पाया.

अर्पिता की रूममेट्स से पता चला कि आसिफ ने प्यार और शादी का वादा कर उस के साथ शारीरिक संबंध बनाए और फिर उस पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने लगा. एक रोज धर्म को शादी की अड़चन बता कर उसे हमेशा के लिए छोड़ गया. जिस ख्वाब को आंखों में सजाए अर्पिता दिल्ली आई थी, वह टूट चुका था. कल्पना की उड़ान में उस के पंख लहूलुहान हो चले थे.

शलभ रात भर वहीं अर्पिता के पास बैठा रहा. उस के पिता को फोन पर सारी बातें बताने की कोशिश भी की, लेकिन उन की इस में कोई दिलचस्पी नहीं थी. सूर्योदय के साथ ही शलभ अर्पिता को अपने फ्लैट में ले आया. उस ने अर्पिता की देखरेख में कोई कसर नहीं छोड़ी. अर्पिता बचपन के प्यार और फिर उस से मिले धोखे से उबर नहीं पा रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस के प्रेम में जातिधर्म कैसे आड़े आ गए.

संघर्ष और दुख भरा समय गुजर गया. हफ्ते भर में अर्पिता स्वस्थ हो गई. शलभ ने उसे अपने औफिस में ही नौकरी दिला दी. अर्पिता का मन भी नौकरी में रमने लगा. खाली वक्त में वह खुद को घर के कामों में व्यस्त रखने लगी. शलभ की छोटीमोटी चीजों की जिम्मेदारी भी उठा ली. सुबह उठती, चाय बनाती, फिर शलभ को उठाती, नास्ता बनाती और फिर औफिस के लिए तैयार हो जाती. दोनों साथसाथ औफिस निकल पड़ते.

शाम को शलभ के साथ घर आ जाती. जिस रात शलभ को देर तक औफिस में रुकना होता, वह तब तक जागती रहती जब तक शलभ आ नहीं जाता. रात में कभी डर जाती तो चुपके से शलभ के पास बिस्तर पर आ कर सो जाती. शलभ भी उसे थपकियां देने लगता. लेकिन दोनों के बीच एक तकिए की दूरी बनी रहती. मगर एक रात यह एक तकिए की दूरी भी खत्म हो गई.

मुश्किल दिनों का साथ अकसर मजबूत होता है. संघर्ष रिश्ते बनाता है

तो कुछ रिश्तों को कमजोर भी करता है. 3-4 हफ्ते ही बीते थे. लेकिन ऐसा लगने लगा था जैसे सदियों से दोनों साथ रह रहे हों. वे एकदूसरे का चेहरा पढ़ सकते थे. शलभ का अपने गृह शहर जाना भी कम होने लगा था. अगर घर जाता भी तो लौटने की बुकिंग अर्पिता पहले से ही करवा देती.

एक तरफ शलभ और अर्पिता के बीच का फासला कम होता जा रहा था तो दूसरी तरफ घर और परिवार से शलभ का फासला बढ़ता जा रहा था. शलभ और उस की पत्नी के रिश्ते में कड़वाहट घुलती जा रही थी. कई बार तो शलभ ने अर्पिता से विवाह के बारे में भी सोचा, लेकिन हर बार उस की आंखों के सामने बेटे का मासूम चेहरा आ जाता. एक वही तो था जो उस के आने का बेसब्री से इंतजार करता था.

दोनों के घरों में व रिश्तेदारों के बीच कानाफूसी का दौर शुरू हो गया था. कानाफूसी धीरेधीरे आरोप में बदल गई और शलभ के शांत जीवन में भूचाल आ गया. रिश्तों के अग्निपथ पर चलते हुए पांवों में छाले पड़ने तो तय था, लेकिन छाले इतने दर्द भरे हो सकते हैं, इस का एहसास दोनों को अब होने लगा.

अचानक शलभ को घुटन सी महसूस हुई तो सोच का सिलसिला थम गया. शलभ ने अपनी गोद से उतार कर अर्पिता को बिस्तर पर सुला दिया और स्वयं बालकनी में आ गया. सुबह की लालिमा क्षितिज पर छाई थी. ऐसा लग रहा था जैसे ढेर सारे पलाश के फूलों को मसल कर आसमान में बिखेर दिया गया हो. शलभ सामने लगे पलाश के पेड़ को देखने लगा. उस के सारे पत्ते गिर चुके थे और लाल फूलों से लदा वृक्ष ऐसा लग रहा था जैसे नए रिश्ते बन गए हों और पुरानों से नाता टूट रहा हो.

शलभ के ऊपर एक नई जिम्मेदारी आ चुकी थी. अर्पिता के विवाह की जिम्मेदारी और इसे ले कर वह बेहद संजीदा था. शलभ ने औफिस में ही कार्य करने वाले अपने दोस्त के छोटे भाई से अर्पिता के विवाह की बात की. लड़का और उस के परिवार वालों ने इस प्रस्ताव को मान लिया. अर्पिता के हाथ पीले किए जाने की तैयारी शुरू हो गई.

पत्नी के खिलाफ जा कर शलभ ने अर्पिता की शादी की सारी जिम्मेदारी, सारा खर्च उठा लिया. शादी की तैयारी में दिन गुजरने लगे. शलभ के पास अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं रहती थी. पिता और सौतेली मां को अर्पिता की जिंदगी में कुछ खास रुचि थी नहीं. अर्पिता के लिए तो शलभ में ही उस का पूरा परिवार समाहित था.

नए रिश्ते को आत्मसात करने की जद्दोजहद में जानेअनजाने अर्पिता शलभ की उपेक्षा भी कर जाती थी. जिस अर्पिता के लिए शलभ ने अपने सभी रिश्तेदारों, यहां तक कि अपनी अर्धांगिनी से भी रिश्ता तोड़ लिया, अब वही उस से दूर होती जा रही थी. रात में देर से लौटने पर अब अर्पिता इंतजार करती नहीं मिलती थी, न ही सुबह की चाय के साथ उस की आवाज आती.

मौसम बदल रहा था. शलभ को इस का एहसास होने लगा था. वह स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगा था. उस ने अपने चारों ओर अकेलेपन की दीवार खड़ी करनी शुरू कर दी. जल्द ही अर्पिता के विवाह का दिन भी आ गया. शलभ की संवेदनाएं जड़ हो चुकी थीं. यंत्रवत वह सारे काम करता जा रहा था.

विदाई की बेला आ गई. हमेशा चहकने वाली अर्पिता की आंखें भर आईं.

वह बिलखने लगी. कमरे की हर दीवार उस की पसंद के रंग में रंगी थी, हर परदा उस की पसंद का था. बालकनी की छोटी सी बगिया में भी उस की पसंद के ही फूल सजे थे. वह नम आंखों से उन्हें निहार रही थी.

घर के सामने उस का पसंदीदा पलाश का पेड़ अकेला खड़ा था. शलभ जड़वत था. उसे एहसास था कि उस की जिंदगी की रंगत को भी वह अपने संग लिए जा रही है, लेकिन दिल पर पड़ा बोझ उतर गया था. उस ने अपनी जिम्मेदारी जो पूरी कर दी थी.

‘आज न छोड़ेंगे’ से लेकर ‘अंग से अंग लगाना सजन’ तक, इस होली में गानों को प्लेलिस्ट में करें शामिल

Bollywood Holi Songs 2024: ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली’ और ‘अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना..’ जैसे गाने जब तक न बजे लगता ही नहीं कि होली आ गई है. इन गानों का बजना और लोगों का थिरकना जैसे किसी परंपरा की तरह हो गया है. होली के त्यौहार का उत्साह बढ़ाने में बॉलीवुड ने हमारा खूब साथ दिया है.

1958 से लेकर आज तक फिल्मों में होली के गीत फिल्माएं जाते हैं और वे सुर्खियां भी बटोरते हैं. आज हम आपको बॉलीवुड के ऐसे ही यादगार होली सांग्स के सफर पर ले चल रहे हैं जिन्होंने हमारी होली का मजा दोगुना कर दिया.

1. होली आई रे कन्हाई

साल 1958 में आई फिल्म ‘मदर इंडिया’ का गाना ‘होली आई रे कन्हाई..’ किसे याद नहीं होगा. हमारे बुजुर्ग तो आज भी इसी गाने से होली का आगाज करते हैं.

2. आज न छोड़ेंगे… हम तेरी चोली, खेलेंगे हम होली

‘आज न छोड़ेंगे… हम तेरी चोली, खेलेंगे हम होली’ फिल्म ‘कटी पतंग’ (1970) से इस सदाबहार गीत को ही ले लीजिये. भला इसकी मस्ती और अल्हड़पन से कौन बच सकता है.

3. होली के दिन दिल खिल जाते हैं…

‘शोले’ (1975) फिल्म का गीत ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं…’ होली पर जैसे सबसे पॉपुलर गीतों में से एक है. इसे सुनकर सभी जैसे होली की मस्ती में डूब जाते हैं.

4. रंग बरसे भीगे चुनर वाली, रंग बरसे..

1981 में आई फिल्म ‘सिलसिला’ का यह गीत ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली, रंग बरसे..’ का तो मिजाज ही अलग है. होली की छेड़छाड़ और मस्ती को सलीके से बयां करता है. अमिताभ-रेखा, जया-संजीव कुमार पर फिल्माया यह गीत खूब गाया-सुना जाता है.

5. अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना..

साल 1993 में आई फिल्म ‘डर’ का गाना ‘अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना..’ किसे याद नहीं होगा. फिल्म में शाहरुख के नकारात्मक रोल को आज भी याद किया जाता है.

6. होली खेले रघुवीरा..

2003 में आई फिल्म बागबान में अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी पर फिल्माए गए गीत ‘होली खेले रघुवीरा..’ ने भी लोगों के दिलों को धड़का दिया.

7. डू मी ए फेवर लेट्स प्ले होली..

साल 2005 में आई फिल्म ‘वक्त- द रेस अगेंस्ड टाइम’ में अक्षय कुमार और प्रियंका चोपडा़ पर फिल्माया गया गीत ‘डू मी ए फेवर लेट्स प्ले होली..’ का गीत कुछ मॉर्डन टच लिए हुए था लेकिन युवाओं ने इसे काफी पसंद किया.

8. बलम पिचकारी..

साल 2013 ये ‘जवानी है दीवानी’ का गाना ‘बलम पिचकारी..’ युवाओं में लोकप्रिय है.

9. जा रे हट नटखट..

वी शांताराम की फिल्म नवरंग का गीत ‘जा रे हट नटखट..’ आज भी झूमने पर मजबूर कर देता है.

10. सोणी सोणी..

साल 2000 में आई शाहरुख-ऐश्वर्या की ‘मोहब्बतें’ फिल्म से ‘सोणी सोणी..’ सांग कौन भूल सकता है. इस गीत ने जैसे होली को फिर से रिवाइव कर दिया.

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