कहानी- रमेश कुमार

‘‘अरे भाई, यह तो राधेश्याम नाई का सैलून है. लोग इस की दिलचस्प बातें सुनने के लिए ही इस की छोटी सी दुकान पर कटिंग कराने या दाढ़ी बनवाने आते हैं. ये बड़ा जीनियस व्यक्ति है. इस की दुकान रसिक एवं कलाप्रेमी ग्राहकों से लबालब होती है, जबकि यहां आसपास के सैलून ज्यादा नहीं चलते. राधेश्याम का रेट भी सारे शहर के सैलूनों से सस्ता है. राधेश्याम के बारे में यहां के अखबारों में काफी कुछ छप चुका है.’’

राजेश तो राधेश्याम का गुण गाए जा रहा था और मुझे उस का यह राग जरा भी पसंद नहीं आ रहा था क्योंकि गगन टायर कंपनी वालों ने मुझे राधेश्याम का परिचय कुछ अलग ही अंदाज से दिया था.

गगन टायर का शोरूम राधेश्याम की दुकान के ठीक सामने सड़क पार कर के था. मैं उन के यहां 5 दिनों से बतौर चार्टर्ड अकाउंटेंट बहीखातों का निरीक्षण अपने सहयोगियों के साथ कर रहा था. कंपनी के अधिकारियों ने इस नाई के बारे में कहा था कि यह दिमाग से जरा खिसका हुआ है. अपनी ऊलजलूल हरकतों से यह बाजार का माहौल खराब करता है. चीखचिल्ला कर ड्रामा करता है और टोकने पर पड़ोसियों से लड़ता है.

इन 5 दिनों में राधेश्याम मुझे किसी से लड़ते हुए तो दिखा नहीं, पर लंच के समय मैं अपने कमरे की खिड़की से उस की हरकतें जरूर देख रहा था. उस की दुकान से लोगों की जोरदार हंसी और ठहाकों की आवाज मेरे लंच रूम तक पहुंचती थी.

इस कंपनी में मेरे निरीक्षण कार्य का अंतिम दिन था. मैं ने अपनी फाइनल रिपोर्ट तैयार कर के स्टेनो को दे दी थी. फोन कर के राजेश को बुलाया था. मुझे राजेश के साथ उस के घर लंच के लिए जाना था. राजेश मेरा मित्र था और मैं उस के  यहां ही ठहरा था.

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